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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - विद्युत् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विद्युत सूक्त
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    नम॑स्ते अस्तु वि॒द्युते॒ नम॑स्ते स्तनयि॒त्नवे॑। नम॑स्ते अ॒स्त्वश्म॑ने॒ येना॑ दू॒डाशे॒ अस्य॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । ते॒ । अ॒स्तु॒ । वि॒ऽद्युते॑ । नम॑: । ते॒ । स्त॒न॒यि॒त्नवे॑ ।नम॑: । ते॒ । अ॒स्तु॒ । अश्म॑ने । येन॑ । दु॒:ऽदाशे॑ । अस्य॑सि ॥१३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमस्ते अस्तु विद्युते नमस्ते स्तनयित्नवे। नमस्ते अस्त्वश्मने येना दूडाशे अस्यसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । ते । अस्तु । विऽद्युते । नम: । ते । स्तनयित्नवे ।नम: । ते । अस्तु । अश्मने । येन । दु:ऽदाशे । अस्यसि ॥१३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मरक्षा के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमेश्वर !] (ते) तुझ (विद्युते) कौंधा लेती हुयी, बिजुली रूप को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (ते) तुझ (स्तनयित्नवे) गड़गड़ाते हुए, बादलरूप को (नमः) नमस्कार होवे। (ते) तुझ (अश्मने) पाषाण रूप को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (येन) जिस [पत्थर] से (दूडाशे) दुःखदायी पुरुष को (अस्यसि) तू ढा देता है ॥१॥

    भावार्थ

    न्यायकारी परमात्मा दुःखदायी अधर्मी पापियों को आधिदैविक आदि दण्ड देकर असह्य विपत्तियों में डालता है, इसलिये सब मनुष्य उस के कोप से डर कर उस की आज्ञा का पालन करें और सदा आनन्द भोगें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−विद्युते। भ्राजभासधुर्विद्युतो०। पा० ३।२।१७७। इति वि+द्युत दीप्तौ−क्विप् विशेषेण दीप्यमानायै तडिते, सौदामिन्यै, तडिद्रूपाय। स्तनयित्नवे। स्तनिहृषिपुषिगदिमदिभ्यो णेरित्नुच्। उ० ३।२९। इति स्तन देवशब्दे−इत्नुच्। चुरादित्वात् णिच्। अदन्तत्वाद् उपधावृद्ध्यभावः। अयामन्ताल्वाय्येत्न्विष्णुषु। पा० ६।४।५५। इति णेः अयादेशः। गर्जनशीलाय मेघाय, तद्रूपाय। अश्मने। अशिशकिभ्यां छन्दसि। उ० ४।१४७। इति अशूङ् व्याप्तिसंहत्योः−मनिन्। व्यापनशीलाय। पाषाणाय, तद्रूपाय। दुः-दाशे। दुर्+दाशृ दाने-घञ् वा खल्। पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम्। पा० ६।१।१०९। अत्र। दुरोदाशनाशदमध्येषूत्वमुत्तरपदादेः ष्टुत्वं च। इति वार्त्तिकेन ऊत्वं डत्वं च। दुर् दुःखं दाशति ददातीति दूडाशः। सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। इति द्वितीयायां सप्तमी। दुःखदाविनम् अधार्मिकं पुरुषम्। अस्यसि। असु क्षेपणे-श्यन्। क्षिपसि नाशयसि ॥

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    विषय

    विद्युत, स्तनयित्नु व अश्मा

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! (विद्युते ते नमः अस्तु) = वृष्टिकाल में विद्युत् के रूप में चमकते हुए आपके लिए नमस्कार हो। (स्तनयित्नवे) = मेघों में गर्जना के रूप में शब्द करते हुए (ते नमः) = आपके लिए हम नतमस्तक हों। (अश्मने ते) = बीच-बीच में ओलों के रूप में बरसनेवाले आपके लिए (नमः अस्तु) = हमारा नमस्कार हो। २. हम आपको नमस्कार करते हैं (येन) = क्योंकि (दूडाशे) = [दाश्नोति to kill] बुरी तरह से हमारा नाश करनेवाली काम-क्रोधादि वृत्तियों को आप हमसे (अस्यति) = परे फेंकते हो [दूडाश के द्विवचन का यहाँ प्रयोग है]। काम-क्रोधादि वृत्तियों हमारा नाश करती हैं। ('तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ')। प्रभु का स्मरण इन वृत्तियों को नष्ट करता है और इसप्रकार हमारा कल्याण करता है।

    भावार्थ

    विद्युत्, स्तनयित्नु व अश्मा में प्रभु की ही शक्ति कार्य कर रही है। यह प्रभुशक्ति ही हमारे काम-क्रोध का भी नाश करके हमारा रक्षण करती है।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर ! (विद्युते) विद्योतमान अर्थात् ज्योतिःस्वरूप (ते) तेरे लिये (नमः अस्तु) नमस्कार हो, (स्तनयित्नवे) मेघवत् गर्जन करनेवाले (ते) तेरे लिये (नमः) नमस्कार हो। (अश्मने) अश्मा अर्थात् मेघवत् वर्षा करनेवाले के सदृश सुखवर्षा करनेवाले (ते) तेरे लिये ( नम: ) नमस्कार हो, (येना=येन) जिस कारण (दूदाशे) दुःखपूर्वक दान देनेवाले पर (अस्यसि) तू दुःख बम फेंकता है । अश्मा मेघनाम (निघं० १।१०)

    टिप्पणी

    [दूदाशे=दुर् +दार्श (दास दाने भ्वादिः)। सामाजिक कर्म तथा राष्ट्रोन्नति के लिये दान देना। बाढ़, भूचाल, अग्निकाण्ड तथा रोग रूप में परमेश्वर का गर्जन। दूदाशे =दुर् + दाशे (दासृ दाने, भ्वादिः), सकारस्य शकारः छान्दसः "दू" दाशे=दुःखेन दाश्यते दाप्यते इति दूदाशो लुब्धः (सायण:)।]

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    विषय

    विद्युत् शक्ति।

    भावार्थ

    हे विद्युत् ! ( ते ) तुझ ( विद्युते ) विशेष दीप्ति से चमकने वाली विद्युत् का ( नमः ) हम उपयोग करते हैं और ( ते स्तनयित्नवे नमः ) तुझ शब्द करने वाले का भी हम उपयोग करते हैं। ( ते ) तेरे ( अश्मने ) ओले रूप में पड़ने वाले जल का, या सर्वत्र शीघ्रता से फैलने वाली तेरा ( नमः ) हम उपयोग करते हैं। ( येन ) जिसके कारण से तू ( दूडाशे ) विद्युत् शक्ति को समीप के अन्य पदार्थ को न दे देने वाले दुर्वाहक पदार्थों पर अपने को ( अस्यसि ) फेंकता है । काठ, वृक्ष आदि दुर्वाहक पदार्थों पर अशनिपात होता है।

    टिप्पणी

    ‘नमस्ते भगवन्नस्तु यतः स्वः समीहसे’ इति उतरार्धो यजुषि ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वंगिराः। ऋषिः। विद्युत् देवता। १, २ अनुष्टुप् छन्दः । ३ चतुष्पद विराड् जगती । ४ त्रिष्टुप् परा बृहतीगर्भा पंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Electric Energy

    Meaning

    O lord omnipotent, homage to you for electric energy, homage to you for thunder energy, homage to you for the energy that strikes like a deadly bolt, and for that which attracts and repels and conducts itself to the targets and into the absorbent materials, and by which you strike at the enemy.

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    Subject

    Vidyut-Deterrent Homage to Lightning

    Translation

    O Lord, homage (Namaste) be to you the lightning, homage to you the thundering. Homage be to you the raining hail and stones, with which you drive away the delinquent

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    Translation

    We express our words of appreciation for electricity. We express the words of appreciation for thunder-bolt. We express the words of our appreciation for the electricity causing hail. My words of appreciation for it whereby it throws it self on the things of bad conductor.

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    Translation

    Homage to Thee, O God, bright like the lightning flash. Homage to Thee, O. God, powerful like the thundering cloud. Homage to Thee, O God, strong like a stone, which Thou hurlest against the undevout.

    Footnote

    The heavy punishment God gives to a sinner is here spoken of as a stone. Just as a person is injured by hurling a stone at him, so does God punish a sinner by inflicting severe punishment on him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−विद्युते। भ्राजभासधुर्विद्युतो०। पा० ३।२।१७७। इति वि+द्युत दीप्तौ−क्विप् विशेषेण दीप्यमानायै तडिते, सौदामिन्यै, तडिद्रूपाय। स्तनयित्नवे। स्तनिहृषिपुषिगदिमदिभ्यो णेरित्नुच्। उ० ३।२९। इति स्तन देवशब्दे−इत्नुच्। चुरादित्वात् णिच्। अदन्तत्वाद् उपधावृद्ध्यभावः। अयामन्ताल्वाय्येत्न्विष्णुषु। पा० ६।४।५५। इति णेः अयादेशः। गर्जनशीलाय मेघाय, तद्रूपाय। अश्मने। अशिशकिभ्यां छन्दसि। उ० ४।१४७। इति अशूङ् व्याप्तिसंहत्योः−मनिन्। व्यापनशीलाय। पाषाणाय, तद्रूपाय। दुः-दाशे। दुर्+दाशृ दाने-घञ् वा खल्। पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम्। पा० ६।१।१०९। अत्र। दुरोदाशनाशदमध्येषूत्वमुत्तरपदादेः ष्टुत्वं च। इति वार्त्तिकेन ऊत्वं डत्वं च। दुर् दुःखं दाशति ददातीति दूडाशः। सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। इति द्वितीयायां सप्तमी। दुःखदाविनम् अधार्मिकं पुरुषम्। अस्यसि। असु क्षेपणे-श्यन्। क्षिपसि नाशयसि ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (বিদ্যুতে) বিদ্যুতের তুল্য তীক্ষ্ণ (তে) তোমাকে (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হউক (স্তনয়িত্নবে) গর্জনশীল মেঘের সমান ভয়ঙ্কর (তে) তোমাকে (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হউক, (য়েন) যাহা দ্বারা (দূড়াসে) দুঃখদায়ী পুরুষকে (অস্যসি) তুমি বিচূর্ণ কর।।

    भावार्थ

    হে পরমেশ্বর! তুমি বিদ্যুতের ন্যায় তীক্ষ্ণ, গর্জনশীল মেঘের ন্যায় ভয়ঙ্কর এবং প্রস্তরের ন্যায় দৃঢ় । দুঃখদায়ী পুরুষ তোমার পরাক্রমের নিকট চূর্ণ-বিচূর্ণ হইয়া যায়।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    নমস্তে অস্তু বিদ্যুতে নমস্তে স্তনয়িত্ববে৷ নমস্তে অস্ত্বশ্ননে য়েনা দূড়াশে অস্যসি।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। বিদ্যুৎ। অনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (আত্মরক্ষোপদেশঃ) আত্মরক্ষার জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর ! (তে) আপনার (বিদ্যুতে) বিদ্যুৎ রূপকে (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হোক, (তে) আপনার (স্তনয়িত্নবে) গর্জনকারী, বাদলরূপকে (নমঃ) নমস্কার হোক। (তে) আপনার (অশ্মনে) পাষাণ রূপকে (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হোক, (যেন) যে [পাথর] দিয়ে (দূডাশে) দুঃখদায়ী পুরুষকে (অস্যসি) আপনি নাশ করেন ॥১॥

    भावार्थ

    ন্যায়কারী পরমাত্মা দুঃখদায়ী অধর্মী পাপীদের আধিদৈবিক আদি দণ্ড দিয়ে অসহ্য বিপত্তিতে ফেলে দেন, এইজন্য সমস্ত মনুষ্য উনার কোপের ভয়ে উনার আজ্ঞার পালন করুক এবং সদা আনন্দ ভোগ করুক ॥১॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর ! (বিদ্যুতে) বিদ্যোতমান অর্থাৎ জ্যোতিঃস্বরূপ (তে) তোমার জন্য (নমঃ অস্তু) নমস্কার হোক, (স্তনয়িত্নবে) মেঘবৎ গর্জনকারী (তে) তোমার জন্য (নমঃ) নমস্কার হোক। (অশ্মনে) অশ্মা অর্থাৎ মেঘবৎ বর্ষণকারীর সদৃশ সুখবর্ষণকারী (তে) তোমার জন্য (নমঃ) নমস্কার হোক, (যেনা=যেন) যে কারণে (দূডাশে) দুঃখপূর্বক দানকারীদের ওপর (অস্যসি) তুমি দুঃখ নিক্ষেপ করো। অশ্মা মেঘনাম (নিঘং০ ১।১০)

    टिप्पणी

    [দূডাশে=দুর্ +দাশে (দাশৃ দানে ভ্বাদিঃ)। সামাজিক কর্ম তথা রাষ্ট্রোন্নতির জন্য দান করা। বন্যা, ভূমিকম্প, অগ্নিকাণ্ড ও রোগ রূপে পরমেশ্বরের গর্জন। দূদাশে =দুর্ + দাশে (দাসৃ দানে, ভ্বাদিঃ), "দূ" দাশে=দুঃখেন দাশ্যতে দাপ্যতে ইতি দূডাশো লুব্ধঃ দুরো দাশনাশদভধ্যেষ্বিতি (অষ্টা০ ৬।৩।১০৯, বা০) দূরো রেফস্য উত্বমুত্তরপদাদেঃ ষ্টুত্বঞ্চ (সায়ণঃ)।]

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