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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नि उष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
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    तद्यस्यै॒वंवि॒द्वान्व्रात्य॒ एकां॒ रात्रि॒मति॑थिर्गृ॒हे वस॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । यस्य॑ । ए॒वम् । वि॒द्वान् । व्रात्य॑: । एका॑म् । रात्रि॑म् । अति॑थि: । गृ॒हे । वस॑ति ॥१३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्यस्यैवंविद्वान्व्रात्य एकां रात्रिमतिथिर्गृहे वसति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । यस्य । एवम् । विद्वान् । व्रात्य: । एकाम् । रात्रिम् । अतिथि: । गृहे । वसति ॥१३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अतिथि और अनतिथि के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (तत्) सो (एवम्)व्यापक परमात्मा को (विद्वान्) जानता हुआ (व्रात्यः) व्रात्य [सत्यव्रतधारी] (अतिथिः) अतिथि (एकाम् रात्रीम्) एक रात्रि (यस्य) जिस [गृहस्थ] के (गृहे) घरमें (वसति) वसता है ॥१॥

    भावार्थ

    विद्वान् गृहस्थ पुरुषआप्त सदाचारी अतिथि को एक दिन ठहरा कर उससे उपकारी भूमिविद्या ग्रहण करके लोगोंमें प्रतिष्ठा पावे ॥१, २॥

    टिप्पणी

    १−(तत्) अनन्तरम् (यस्य) गृहस्थस्य (एवम्) व्यापकं परमात्मानम् (विद्वान्) जानन् (व्रात्यः)सत्यव्रतधारी (एकाम्) (रात्रिम्) कालात्यन्तसंयोगे द्वितीया (अतिथिः) (गृहे) (वसति) तिष्ठति ॥

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    विषय

    आतिथ्य से पुण्यलोकों की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (तत्) = इसलिए (यस्य गृहे) = जिसके घर में (एवं विद्वान्) = सर्वत्र गतिवाले प्रभु को जानता हुआ (व्रात्य:) = व्रतीपुरुष (एकामरात्रिम) = एक रात (अतिथिः वसति) = अतिथि बनकर रहता है तो (तेन) = उस अतिथि से वह गृहस्थ (यः) = जो (पृथिव्याम्) = पृथिवी में (पुण्या: लोका:) = पुण्यलोक है (तान् एव) = उनको ही अवरुन्द्ध-अपने लिए सुरक्षित करता है। २. (तत्) = इसलिए (यस्य गृहे) = जिसके घर में (एवं विद्वान् व्रात्यः) = सर्वत्र गतिवाले प्रभु को जाननेवाला व्रतीपुरुष (द्वितीयां रात्रिं अतिथि: वसति) = दूसरे रात भी अतिथिरूपेण रहता है तो (तेन) = उस आतिथ्य कर्म से ये अन्तरिक्षे (पुण्या: लोका:) = जो अन्तरिक्ष में पुण्यलोक हैं (तान् एव) = उनको निश्चय ही अवरुन्द्धे-अपने लिए सुरक्षित करता है। ३. (तत्) = इसलिए (यस्य गृहे) = जिसके घर में (एवं विद्वान् व्रात्यः) = उस गति के स्रोत [इ गतौ] प्रभु को जाननेवाला व्रतीपुरुष (ततीयां रात्रिम्) = तीसरी रात भी (अतिथि: वसति) = अतिथिरूप में रहता है तो (तेन) = उस आतिथ्य कर्म से ये दिवि (पुण्या: लोका:) = जो द्युलोक में पुण्यलोक हैं (तान् एव) = अवरुन्द्धे-उनको अपने लिए निश्चय से सुरक्षित कर पाता है। ४, (तत्) = इसलिए (यस्य गृहे) = जिसके घर में (एवं विद्वान् व्रात्यः) = गति के स्रोत प्रभु को जाननेवाला व्रतीपुरुष चतुर्थी रात्रिं (अतिथिः वसति) = चौथी रात भी अतिथिरूपेण रहता है तो (तेन) = उस आतिथ्य कर्म से ये (पुण्यानां पुण्याः लोका:) = जो पुण्यों के भी पुण्यलोक हैं-अतिशयेन पुण्यलोक हैं, (तान् एव अवरुन्द्ध) = उन्हें अपने लिए सुरक्षित कर लेता है । ५. (तत्) = इसलिए (यस्य गृहे) = जिसके घर में (एवं विद्वान् व्रात्यः) = गति के स्रोत प्रभु को जाननेवाला व्रती (विद्वान् अपरमिता: रात्रीः अतिथि: वसति) = न सीमित-बहुत रात्रियों तक अतिथिरूपेण रहता है तो (तेन) = उस आतिथ्य कर्म से यह गृहस्थ (ये एवं अपरिमिता: पुण्याः लोका:) = जो भी अपरिमित पुण्यलोक हैं (तान् अवरुन्द्धे) = उन सबको अपने लिए सुरक्षित कर लेता है।

    भावार्थ

    विद्वान् व्रात्य के आतिथ्य से गृहस्थ पुण्यलोकों को प्राप्त करता है। उन विद्वान् व्रात्यों की प्रेरणाएँ इन्हें पुण्य-मार्ग पर ले-चलती हुई पुण्यलोकों को प्राप्त कराती हैं।

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    भाषार्थ

    (तद्) तो (एवम्) इस प्रकार का (विद्वान् व्रात्यः) विद्वान् व्रती तथा प्रजाजन हितकारी (अतिथिः) जिस के आने की तिथि निश्चित नहीं ऐसा अतिथि, (यस्य) जिस गृहस्थी के (गृहे) घर में (एकाम्, रात्रिम्) एक रात (वसति) निवास करता है,-

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    In whose house a learned Vratya guest stays for a night ...

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    Subject

    Vratyah

    Translation

    So he, at whose home such a knowledgeable vow-observing Sage stays for one night as a guest.

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    Translation

    He in whose house the Vratya who possesses this knowledge passes one night as a guest.

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    Translation

    He, in whose house the Acharya who possesses this knowledge of God stays as a guest for one night.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(तत्) अनन्तरम् (यस्य) गृहस्थस्य (एवम्) व्यापकं परमात्मानम् (विद्वान्) जानन् (व्रात्यः)सत्यव्रतधारी (एकाम्) (रात्रिम्) कालात्यन्तसंयोगे द्वितीया (अतिथिः) (गृहे) (वसति) तिष्ठति ॥

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