अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 1
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - दैवी पङ्क्ति
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
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तस्य॒व्रात्य॑स्य ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । व्रात्य॑स्य ॥१५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्यव्रात्यस्य ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । व्रात्यस्य ॥१५.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अतिथि के सामर्थ्य का उपदेश।
पदार्थ
(तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रात्य [सत्यव्रतधारी अतिथि] के ॥१॥
भावार्थ
परमेश्वर ने प्राणियोंके शरीर में मस्तक के भीतर दो कान, दो नथने, दो आँखें और एक मुख सात छिद्र बनायेहैं, इन को ही [सप्त ऋषयः, सप्त सिन्धवः, सप्त प्राणाः आदि] कहते हैं। विद्वान्योगी अतिथि इनकी विविध वृत्तियों को वश में करने से तत्त्वज्ञानी होकर सर्वोपकारीहोता है। इन ही सात शीर्षण्य छिद्रों के सम्बन्ध से इस सूक्त तथा १६ और १७ मेंअतिथि के सात प्राण, सात अपान और सात व्यान का वर्णन है ॥१, २॥अथर्ववेवद १०।२।६का वचन है−(कः सप्त खानि वि ततर्द शीर्षणि कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्। येषांपुरुत्रा विजयस्य मह्मनि चतुष्पादो द्विपदो यन्ति यामम्) कर्ता प्रजापति ने [प्राणी के] मस्तक में सात गोलक खोदे, यह दोनों कान, दो नथने, दोनों आँखें और एकमुख। जिनके विजय की महिमा में चौपाये और दोपाये जीव अनेक प्रकार से सन्मार्ग परचलते हैं ॥
टिप्पणी
१−(तस्य) तादृशस्य (व्रात्यस्य) सत्यव्रतधारिणोऽतिथेः ॥
विषय
सात 'प्राण, अपान, व्यान'
पदार्थ
१. (तस्य व्रात्यस्य) = उस व्रतमय जीवनवाले विद्वान् के (सप्त प्राण) = सात प्राण हैं। (सप्त अपाना:) = सात अपान है और (सप्त व्याना:) = सात व्यान हैं। २. शरीर में शक्ति का संचार करनेवाले तत्त्व प्राण हैं। शरीर में दोषों को दूर करनेवाले तत्त्व अपान हैं तथा शरीर की सब क्रियाओं को शासित करनेवाली शक्तियों व्यान हैं।
भावार्थ
व्रात्य 'सात प्राणों, सात अपानों तथा सात व्यानों का स्वामी होता है।
भाषार्थ
(तस्य) उस (व्रात्यस्य) व्रतपति तथा प्राणिवर्गों के हितकारी परमेश्वर की [सृष्टि में]-
विषय
व्रात्य के सात प्राणों का निरूपण।
भावार्थ
(तस्य व्रात्यस्य) उस व्रात्य प्रजापति के (सप्त प्राणाः) सात प्राण, (सप्त अपानाः) सात अपान और (सप्त व्यानाः) सात व्यान हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ दैवी पंक्तिः, २ आसुरी बृहती, ३, ४, ७, ८ प्राजापत्यानुष्टुप् [ ४, ७, ८ भुरिक् ], ५, ६ द्विपदा साम्नी बृहती, ९ विराड् गायत्री। नवर्चं पञ्चदशं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
Of that Vratya, man of avowed discipline.
Translation
Of that Vratya.
Translation
Of that learned guest wedded to the fulfillment of his vow.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(तस्य) तादृशस्य (व्रात्यस्य) सत्यव्रतधारिणोऽतिथेः ॥
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