Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 106 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 106/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-१०६
    0

    तव॒ त्यदि॑न्द्रि॒यं बृ॒हत्तव॒ शुष्म॑मु॒त क्रतु॑म्। वज्रं॑ शिशाति धि॒षणा॒ वरे॑ण्यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तव॑ । त्यत् । इ॒न्द्रि॒यम् । बृ॒हत् । तव॑ । शुष्म॑म् । उ॒त । क्रतु॑म् ॥ वज्र॑म् । शि॒शा॒ति॒ । धि॒षणा॑ । वरे॑ण्यम् ॥१०६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तव त्यदिन्द्रियं बृहत्तव शुष्ममुत क्रतुम्। वज्रं शिशाति धिषणा वरेण्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तव । त्यत् । इन्द्रियम् । बृहत् । तव । शुष्मम् । उत । क्रतुम् ॥ वज्रम् । शिशाति । धिषणा । वरेण्यम् ॥१०६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 106; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमेश्वर !] (तव) तेरे (त्यत्) उस [प्रसिद्ध] (बृहत्) बड़े (इन्द्रियम्) इन्द्रपन [ऐश्वर्य], (तव) तेरे (शुष्मम्) बल (उत) और (क्रतुम्) बुद्धि और (वरेण्यम्) उत्तम (वज्रम्) वज्र [दण्डसामर्थ्य] को (धिषणा) [तेरे] वाणी (शिशाति) पैना करती है ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर के गुणों को वेद द्वारा निश्चय करके अपना सामर्थ्य बढ़ावें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।।७-९; कुछ भेद से सामवेद-उ० ८।१। तृच ११ ॥ १−(तव) (त्यत्) तत्प्रसिद्धम् (इन्द्रियम्) इन्द्रलिङ्गम्। ऐश्वर्यम् (बृहत्) (तव) (शुष्मम्) शोषकबलम् (उत) अपि च (क्रतुम्) प्रज्ञाम् (वज्रम्) शासनसामर्थ्यम् (शिशाति) श्यति। तीक्ष्णीकरोति (धिषणा) वेदरूपा वाणी (वरेण्यम्) वरणीयं श्रेष्ठम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शुष्म-क्रतु-वज्र-इन्द्रिय

    पदार्थ

    १. हे उपासक! (तव) = तेरी (धिषणा) = यह स्तुति (त्यत्) = उस (इन्द्रियम्) = इन्द्रियों की शक्ति को (शिशाति) = तीक्ष्ण करती है (उत) = और यह स्तुति (तव) = तेरे (बृहत्) = वृद्धि के कारणभूत (शुष्मम्) = शत्रु शोषक बल को और (क्रतम्) = प्रज्ञान को बढ़ाती है। २. 'इन्द्रियशक्ति, शत्रुशोषक बल व प्रज्ञान' का वर्धन करती हुई यह स्तुति (वरेण्यम्) = वरणीय-चाहने योग्य (वज्रम्) = क्रियाशीलता को बढ़ानेवाली होती है।

    भावार्थ

    प्रभु-स्तवन से हमारा जीवन 'शक्ति, ज्ञान व क्रियाशीलता' वाला होता है। यह स्तुति हमारी इन्द्रियों की शक्ति का वर्धन करती है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (तव) आपके (त्यत्) उस (बृहत् इन्द्रियम्) महा-ऐश्वर्य, (तव) आपके (शुष्मम्) रौद्र-बल, (उत) और (क्रतुम्) प्रज्ञा और क्रियाशक्ति, तथा (वरेण्यं वज्रम्) पापों से निवारण करनेवाले सर्वश्रेष्ठ न्याय-वज्र के सम्बन्ध में—(धिषणा) बुद्धिप्रदा वेदवाणी, (शिशाति) हमें सम्यक् ज्ञान देती है।

    टिप्पणी

    [इन्द्रिम्=धनम् (निघं০ २.१०)। शुष्मम्=बलम् (निघं০ २.९), अर्थात् सुखा देनेवाला बल, पापियों का शोषण करनेवाला बल। क्रतुः=प्रज्ञा (निघं০ ३.९); कर्म (निघं০ २.१)। धिषणा=वाक् (निघं০ १.११); धिषणा=वाक्, धी-सानिनी (निरु০ ८.१.३)। धीः=बुद्धि, ज्ञान+षणु दाने, या षण संभक्तौ।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    That grandeur and majesty of yours, that power and potential, that continuous act of divine generosity, that adamantine will and force of natural justice and dispensation of the thunderbolt which overwhelms our will and choice commands our sense of discrimination, and we glorify it, we sharpen it, we accept it with adoration.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    To that lofty energy of yours, your strength and your intelligence and your thunder-bolt for which we long your vedic speech and knowledge make keen.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    To that lofty energy of yours, your strength and your intelligence and your thunder-bolt for which we long your vedic speech and knowledge make keen.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Mighty Lord, the heavens and the earth enhance (i.e., show thegrandeur of) Thy Might and Glory. The waters of the oceans and rivers etc., and the mountains also hint at Thee (i.e., be speak highly of Thy Greatness).

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।।७-९; कुछ भेद से सामवेद-उ० ८।१। तृच ११ ॥ १−(तव) (त्यत्) तत्प्रसिद्धम् (इन्द्रियम्) इन्द्रलिङ्गम्। ऐश्वर्यम् (बृहत्) (तव) (शुष्मम्) शोषकबलम् (उत) अपि च (क्रतुम्) प्रज्ञाम् (वज्रम्) शासनसामर्थ्यम् (शिशाति) श्यति। तीक्ष्णीकरोति (धिषणा) वेदरूपा वाणी (वरेण्यम्) वरणीयं श्रेष्ठम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে পরমেশ্বর!] (তব) তোমার (ত্যৎ) সেই [প্রসিদ্ধ] (বৃহৎ) মহান (ইন্দ্রিয়ম্) ইন্দ্রত্ব [ঐশ্বর্য], (তব) তোমার (শুষ্মম্) বল (উত) এবং (ক্রতুম্) বুদ্ধি এবং (বরেণ্যম্) উত্তম (বজ্রম্) বজ্রকে [দণ্ডসামর্থ্যকে] (ধিষণা) [তোমার] বাণী (শিশাতি) তীক্ষ্ণ করে ॥১॥

    भावार्थ

    মানুষ পরমেশ্বরের গুণসমূহকে বেদ দ্বারা নিশ্চিত করে নিজেদের সামর্থ্য বৃদ্ধি করুক ॥১॥ এই তৃচ ঋগ্বেদে আছে-৮॥৭-৯; কিছু ভেদপূর্বক সামবেদ-উ০ ৮।১। তৃচ ১১।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (তব) আপনার (ত্যৎ) সেই (বৃহৎ ইন্দ্রিয়ম্) মহা-ঐশ্বর্য, (তব) আপনার (শুষ্মম্) রৌদ্র-বল, (উত) এবং (ক্রতুম্) প্রজ্ঞা এবং ক্রিয়াশক্তি, তথা (বরেণ্যং বজ্রম্) পাপ থেকে নিবারণকারী সর্বশ্রেষ্ঠ ন্যায়-বজ্রের বিষয়ে—(ধিষণা) বুদ্ধিপ্রদা বেদবাণী, (শিশাতি) আমাদের সম্যক্ জ্ঞান প্রদান করে।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top