अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 142/ मन्त्र 1
अभु॑त्स्यु॒ प्र दे॒व्या सा॒कं वा॒चाह॑म॒श्विनोः॑। व्या॑वर्दे॒व्या म॒तिं वि रा॒तिं मर्त्ये॑भ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठअभु॑त्सि । ऊं॒ इति॑ । प्र । दे॒व्या । सा॒कम् । वा॒चा । अ॒हम् । अ॒श्विनो॑: ॥ वि । आ॒व॒: । दे॒वि॒ । आ । मतिम् । वि । रा॒तिम् ।मर्त्ये॑भ्य: ॥१४२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अभुत्स्यु प्र देव्या साकं वाचाहमश्विनोः। व्यावर्देव्या मतिं वि रातिं मर्त्येभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठअभुत्सि । ऊं इति । प्र । देव्या । साकम् । वाचा । अहम् । अश्विनो: ॥ वि । आव: । देवि । आ । मतिम् । वि । रातिम् ।मर्त्येभ्य: ॥१४२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैं (देव्या) उत्तम गुणवाली (वाचा साकम्) वाणी के साथ (अश्विनोः) दोनों अश्वी [व्यापक दिन-राति] के बीच (उ) अवश्य (प्र अभुत्सि) जागा हूँ। (देवि) हे देवी ! [प्रकाशमान उषा-म० २] तूने (आ) आकर (मर्त्येभ्यः) मनुष्यों के लिये (मतिम्) बुद्धि और (रातिम्) धन को (वि) विशेष करके (वि आवः) खोल दिया है ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य प्रभात समय उठकर दिन-राति विद्या और धन को प्राप्त करें ॥१॥
टिप्पणी
यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।९।१६-२१ ॥ १−(प्र अभुत्सि) बुध अवगमने-लुङ्। प्रबुद्धोऽस्मि (उ) अवश्यम् (देव्या) उत्तमगुणवत्या (साकम्) सह (वाचा) वाण्या (अहम्) (अश्विनोः) सू० १४०। म० २। व्यापकयोः। अहोरात्रमध्ये (वि आवः) वृणोतेर्लुङ्। त्वं विवृतां विस्तृतां कृतवती (देवि) हे द्योतमाने उषः-म० २। (आ) आगत्य (मतिम्) बुद्धिम् (वि) विशेषेण (रातिम्) धनम् (मर्त्येभ्यः) मनुष्याणां हिताय ॥
विषय
मतिम्-रातिम्
पदार्थ
१. (अहम्) = मैं (अश्विनो:) = प्राणापान की (वाचा) = स्तुतिरूप वाणी के द्वारा (देव्या साकम्) = इस प्रकाशमयी ज्ञानवाणी के साथ (उ प्र अभुत्सि) = सचमुच प्रबुद्ध हो उठा हूँ। जब मैं प्राणापान के स्तवन व साधन में प्रवृत्त होता है तब मैं ज्ञानदीप्ति प्राप्त करता हूँ। २. हे (देवि) = प्रकाशमयी ज्ञानवाणि! तू (आ) = [गच्छ]-आ, हमें प्राप्त हो और (मतिं व्याव:) = हमारी बुद्धि को अज्ञानान्धकार के आवरणों से रहित कर तथा (मर्त्येभ्यः) = मनुष्यों के लिए (रातिम्) = धनों को वि [आव: यच्छ] देनेवाली हो।
भावार्थ
प्राणसाधक ज्ञानदीसि तथा आवश्यक धनों को प्राप्त करता है।
भाषार्थ
(अहम्) मैं सम्राट् ने (देव्या वाचा) दैवीवाणी अर्थात् वेदवाणी के उपदेशानुसार, (साकम् अश्विनोः) साथ-साथ दोनों अश्वियों को उनके कर्त्तव्यों का (अभुत्सि उ) ठीक प्रकार से बोध करा दिया है। (देव्या) और इस दैवीवाणी द्वारा (मतिम्) वैदिक-मन्तव्यों को, (वि आवः) विशेषतया प्रकट कर दिया है। तथा (मर्त्येभ्यः) मनुष्य प्रजावर्गों से, जो उनहोंने (रातिम्) दानरूप में कर लेना है, तथा प्रत्युपकार में जो उन्होंने प्रजावर्ग को देना है उसे भी (वि आवः) मैंने विशेषतया प्रकट कर दिया है।
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
I am awake by the divine voice of the Ashvins. O divine dawn of light, open the human mind to the light and freedom of reason and give the gift of wisdom to mortal humanity.
Translation
I, with the shining knowledge and speech of the teacher and preacher, attain thought and understanding. Let this marvellous knowledge and speech give conviction and riches to mortals.
Translation
I, with the shining knowledge and speech of the teacher and preacher, attain thought and understanding. Let this marvelous knowledge and speech give conviction and riches to mortals.
Translation
I (a devotee) have got enlightened by the enlightened speech of the teacher and the preacher, just the people get awakened by the rays of the brilliant dawn. That enlightening speech or sermon clearly explains to the persons, enough material to ponder over and convey the same to others.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह सूक्त ऋग्वेद में है-८।९।१६-२१ ॥ १−(प्र अभुत्सि) बुध अवगमने-लुङ्। प्रबुद्धोऽस्मि (उ) अवश्यम् (देव्या) उत्तमगुणवत्या (साकम्) सह (वाचा) वाण्या (अहम्) (अश्विनोः) सू० १४०। म० २। व्यापकयोः। अहोरात्रमध्ये (वि आवः) वृणोतेर्लुङ्। त्वं विवृतां विस्तृतां कृतवती (देवि) हे द्योतमाने उषः-म० २। (आ) आगत्य (मतिम्) बुद्धिम् (वि) विशेषेण (रातिम्) धनम् (मर्त्येभ्यः) मनुष्याणां हिताय ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
অহোরাত্রসুপ্রয়োগোপদেশঃ
भाषार्थ
(অহম্) আমি (দেব্যা) উত্তম গুণযুক্ত (বাচা সাকম্) বাণীর সাথে (অশ্বিনোঃ) উভয় অশ্বীর [ব্যাপক দিন-রাতের] মাঝে (উ) অবশ্যই (প্র অভুৎসি) জাগ্রত। (দেবি) হে দেবী! [প্রকাশমান উষা-ম০ ২] তুমি (আ) এসে (মর্ত্যেভ্যঃ) মনুষ্যের জন্য (মতিম্) বুদ্ধি এবং (রাতিম্) ধন (বি) বিশেষভাবে (বি আবঃ) উন্মুক্ত করেছো ॥১॥
भावार्थ
মনুষ্য প্রভাত সময় উঠে দিন-রাত বিদ্যা এবং ধন প্রাপ্ত করুক ॥১॥ এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছে-৮।৯।১৬-২১ ॥
भाषार्थ
(অহম্) আমি সম্রাট্ (দেব্যা বাচা) দৈবীবাণী অর্থাৎ বেদবাণীর উপদেশানুসারে, (সাকম্ অশ্বিনোঃ) একসাথে দুই অশ্বিকে তাঁদের কর্ত্তব্যের (অভুৎসি উ) সঠিকভাবে বোধ করিয়েছি। (দেব্যা) এবং এই দৈবীবাণী দ্বারা (মতিম্) বৈদিক-মন্তব্যকে, (বি আবঃ) বিশেষভাবে প্রকট করেছি। তথা (মর্ত্যেভ্যঃ) মনুষ্য প্রজাবর্গ থেকে, যে (রাতিম্) দানরূপে কর নিতে হবে, তথা প্রত্যুপকারে যা তাঁদের প্রজাবর্গকে প্রদান করতে হবে তাও (বি আবঃ) আমি বিশেষভাবে স্পষ্ট করেছি।
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