अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 143/ मन्त्र 1
तं वां॒ रथं॑ व॒यम॒द्या हु॑वेम पृथु॒ज्रय॑मश्विना॒ संग॑तिं॒ गोः। यः सू॒र्यां वह॑ति वन्धुरा॒युर्गिर्वा॑हसं पुरु॒तमं॑ वसू॒युम् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । वा॒म् । रथ॑म् । व॒यम् । अ॒द्य । हु॒वे॒म॒ । पृ॒थु॒ऽज्रय॑म् । अ॒श्वि॒ना॒ । सम्ऽग॑तिम् । गो: ॥ य: । सू॒र्याम् । वह॑ति । ब॒न्धु॒रऽयु: । गिर्वा॑हसम् । पु॒रु॒ऽतम॑म् । व॒सु॒ऽयुम् ॥१४३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
तं वां रथं वयमद्या हुवेम पृथुज्रयमश्विना संगतिं गोः। यः सूर्यां वहति वन्धुरायुर्गिर्वाहसं पुरुतमं वसूयुम् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । वाम् । रथम् । वयम् । अद्य । हुवेम । पृथुऽज्रयम् । अश्विना । सम्ऽगतिम् । गो: ॥ य: । सूर्याम् । वहति । बन्धुरऽयु: । गिर्वाहसम् । पुरुऽतमम् । वसुऽयुम् ॥१४३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
१-७; ९ राजा और मन्त्री के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [चतुर राजा और मन्त्री] (वयम्) हम (अद्य) आज (वाम्) तुम दोनों के (पृथुज्रयम्) बड़ी गतिवाले, (गोः) पृथिवी की (संगतिम्) संगति करनेवाले, (गिर्वाहसम्) विज्ञान से चलनेवाले, (पुरुतमम्) अत्यन्त बड़े, (वसूयुम्) बहुत धनवाले (तम्) उस (रथम्) रमणीय रथ को (हुवेम) ग्रहण करें, (यः) जो (वन्धुरायुः) यन्त्रों के बन्धनोंवाला [रथ] (सूर्याम्) सूर्य की धूप को (वहति) प्राप्त होता है [रखता है] ॥१॥
भावार्थ
राजा और मन्त्री विज्ञानियों से ऐसे रथ यान-विमान आदि बनवावें, जो भानुताप [सूर्य की धूप] आदि से चलें ॥१॥
टिप्पणी
मन्त्र १-७ ऋग्वेद में हैं-४।४४।१-७ ॥ १−(तम्) (वाम्) युवयोः (रथम्) रमणीयं यानम् (वयम्) (अद्य) संहितायां दीर्घः। अस्मिन् दिने (हुवेम) आदद्याम (पृथुज्रयम्) ज्रयतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४, ततः-अच्। बहुगतियुक्तम् (अश्विना) अथ० २।२९।६। अश्विना राजानौ पुण्यकृतावित्यैतिहासिकाः-निरु० १२।१। हे चतुरराजामात्यौ (संगतिम्) गमेः-क्तिच्। संगन्तारम् (गोः) पृथिव्याः (यः) रथः (सूर्याम्) सूर्यस्य कान्तिम्। भानुतापम् (वहति) प्राप्नोति। धारयति (वन्धुरायुः) मद्गुरादयश्च। उ० १।४१। बन्ध बन्धने-उरच्+युजिर् योगे-डु। यन्त्राणां बन्धनयुक्तः (गिर्वाहसम्) अथ० २०।३।४। गॄ विज्ञापने विज्ञाने शब्दे च-क्विप्+वह प्रापणे-असुन्। विज्ञानेन गतिशीलम् (पुरुतमम्) अतिशयेन विशालम् (वसूयुम्) छान्दसो दीर्घः। बहुधनयुक्तम् ॥
विषय
'पृथुज्रय' रथ
पदार्थ
१. हे (अश्विना) = प्राणापानो! (वयम्) = हम (अद्य) = आज (वाम्) = आपके (तं रथम) = उस शरीर-रथ की (हुवेम) = पुकार करते हैं-उस शरीर-रथ को प्राप्त करने की कामना करते हैं जोकि (पृथुज्रयम्) = बड़े वेगवाला है-स्फूर्तियुक्त है, (गो: संगतिम्) = ज्ञान की किरणों के मेलवाला है। यह रथ शक्ति के कारण गतिघाला व प्रकाशमय है। २. (यः) = जो रथ (सूर्याम्) = सूर्य की दुहिता को-बुद्धि को (वहति) = धारण करता है। (बन्धुरायु) = सौन्दयों को अपने साथ जोड़नेवाला है। हम उस रथ की कामना करते हैं, जो (गिर्वाहसम्) = ज्ञानपूर्वक स्तुति की वाणियों का धारण करता है। (पुरुत्तमम्) = खूब ही पालक व पूरक है। (वसूयुम्)-निवास के लिए आवश्यक सब धनों को अपने में लिये हुए है।
भावार्थ
प्राणसाधना से हमारा शरीर स्फूर्तिमय, ज्ञान के प्रकाशवाला, बुद्धि-सम्पन्न, सुन्दर, ज्ञानपूर्वक स्तुतिवाणियों को धारण करनेवाला, नीरोग व उत्तम निवासवाला बनता है।
भाषार्थ
(अश्विना) हे नागरिक प्रजा, तथा सेना के अधिपतियो! (वाम्) आप दोनों के (तं रथम्) उस प्रसिद्ध रथ का (अद्य) दिन-प्रतिदिन (वयम्) हम नागरिक तथा सैनिक (हुवेम) आह्वान करते हैं, जो रथ कि (पृथुज्रयम्) महावेगी तथा बाधाओं का पराभव करनेवाला है, तथा जिसमें (गोः) प्रकाश की किरणों का (संगतिम्) प्रबन्ध है। (यः) जो रथ कि (सूर्याम् वहति) तुम्हारी पत्नियों का तुम्हारे साथ वहन करता है, (वन्धुरायुः) रथ के सम्यक्-चलन का संचालक-शिल्पी जिसे चाहता है, (गिर्वाहसम्) जो कि अधिपतियों के निर्देशानुसार चलाया जाता है, (पुरुतमम्) सुख-सामग्री से परिपूर्ण है, तथा (वसूयुम्) धन-सम्पत् जिसमें विद्यमान है।
टिप्पणी
[पृथुज्रयम्=पृथुजवम्, अथवा—ज्रि अभिभवे। सूर्याम्=सूर्यासूक्त में सूर्या के विवाह का वर्णन है। इसके योग्य पति आदित्य ब्रह्मचारी का भी वर्णन सूर्यासूक्त (अथर्व০ १४.१-२) में है। वन्धुरायुः=रथ के अवयवों को परस्पर जोड़ सकनेवाला “आयु” अर्थात् मनुष्य=रथशिल्पी, जिसे कि वेद में “ऋभु” कहा है। यथा—“ऋभू रथस्येवाङ्गानि सं दधत् परुषा परुः” (अथर्व০ ४.१२.७)। रथम्=“रथ” में एकवचन है। सम्भवतः दोनों अधिपतियों को निर्देश दिया गया है कि वे दोनों एक-रथ में जाकर प्रजा का निरीक्षण मिलकर किया करें।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Ashvins, complementary currents of cosmic energy of the Divine, today we invoke you and call for that chariot of yours which is wide extended, joins earth and heaven, carries the light and energy of sunrays, ages not, carries the sound, and which is abundant in various wealth which never diminishes but continuously enriches the earth.
Translation
O king and Minister, May we possess that car of yours which has a great speed, which makes accessible all parts of the globe, which catches speed by scientific media, which is bigest in stature and which carries riches. This is that car which has bands devices and has in it the light and heat of sun.
Translation
O king and Minister, May we possess that car of yours which has a great speed, which makes accessible all parts of the globe, which catches speed by scientific media, which is biggest in stature and which carries riches. This is that car which has bands devices and has in it the light and heat of sun.
Translation
O Asvins, we invoke, today, that vehicle of transport of yours, which is of vast power and energy, wherein are focused the rays of the Sun, which carries the dawn along with it, the mainstay of all, the conveyer of rays or voice, the vastest of all and the uniter of all sources of life on the earth or elsewhere.
Footnote
cf. Rig, 4.44. (1-7); 4.57.3; 8.57.3 (Valkhilya 9.3).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र १-७ ऋग्वेद में हैं-४।४४।१-७ ॥ १−(तम्) (वाम्) युवयोः (रथम्) रमणीयं यानम् (वयम्) (अद्य) संहितायां दीर्घः। अस्मिन् दिने (हुवेम) आदद्याम (पृथुज्रयम्) ज्रयतिर्गतिकर्मा-निघ० २।१४, ततः-अच्। बहुगतियुक्तम् (अश्विना) अथ० २।२९।६। अश्विना राजानौ पुण्यकृतावित्यैतिहासिकाः-निरु० १२।१। हे चतुरराजामात्यौ (संगतिम्) गमेः-क्तिच्। संगन्तारम् (गोः) पृथिव्याः (यः) रथः (सूर्याम्) सूर्यस्य कान्तिम्। भानुतापम् (वहति) प्राप्नोति। धारयति (वन्धुरायुः) मद्गुरादयश्च। उ० १।४१। बन्ध बन्धने-उरच्+युजिर् योगे-डु। यन्त्राणां बन्धनयुक्तः (गिर्वाहसम्) अथ० २०।३।४। गॄ विज्ञापने विज्ञाने शब्दे च-क्विप्+वह प्रापणे-असुन्। विज्ञानेन गतिशीलम् (पुरुतमम्) अतिशयेन विशालम् (वसूयुम्) छान्दसो दीर्घः। बहुधनयुक्तम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
১-৭; ৯ রাজামাত্যকৃত্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(অশ্বিনা) হে উভয় অশ্বী! [চতুর রাজা এবং মন্ত্রী] (বয়ম্) আমরা (অদ্য) আজ (বাম্) তোমাদের উভয়ের (পৃথুজ্রয়ম্) বহু গতিযুক্ত, (গোঃ) পৃথিবীর (সঙ্গতিম্) সঙ্গতিকারী, (গির্বাহসম্) বিজ্ঞান দ্বারা চালিত, (পুরুতমম্) অত্যন্ত মহান, (বসূয়ুম্) বহু ধনবান (তম্) সেই (রথম্) রমণীয় রথকে (হুবেম) গ্রহণ করি, (যঃ) যে (বন্ধুরায়ুঃ) যন্ত্রের বন্ধনযুক্ত [রথ] (সূর্যাম্) সূর্যের আলো (বহতি) প্রাপ্ত হয় [ধারণ করে] ॥১॥
भावार्थ
রাজা এবং মন্ত্রী বিজ্ঞানীদের দ্বারা এমন রথ যান-বিমান আদি তৈরি করুক, যেন তা ভানুতাপ [সূর্যের তাপ/রোদ] আদি দ্বারা চলে ॥১॥ মন্ত্র ১-৭ ঋগ্বেদে আছে-৪।৪৪।১-৭।
भाषार्थ
(অশ্বিনা) হে নাগরিক প্রজা, তথা সেনাধিপতিগণ! (বাম্) আপনাদের দুজনের (তং রথম্) সেই প্রসিদ্ধ রথের (অদ্য) দিন-প্রতিদিন (বয়ম্) আমরা নাগরিক তথা সৈনিক (হুবেম) আহ্বান করি, যে রথ (পৃথুজ্রয়ম্) মহাবেগী তথা বাধার পরাভবকারী, তথা যার মধ্যে (গোঃ) আলোর কিরণের (সঙ্গতিম্) ব্যবস্থা/প্রবন্ধ/সঙ্গতি আছে। (যঃ) যে রথ (সূর্যাম্ বহতি) তোমাদের পত্নীদের তোমাদের সাথে বহন করে, (বন্ধুরায়ুঃ) রথের সম্যক্-চলনের সঞ্চালক-শিল্পী যা চায়, (গির্বাহসম্) যা অধিপতিদের নির্দেশানুসারে চালনা করা হয়, (পুরুতমম্) সুখ-সামগ্রী দ্বারা পরিপূর্ণ, তথা (বসূয়ুম্) ধন-সম্পৎ যার মধ্যে বিদ্যমান।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal