अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 74/ मन्त्र 1
यच्चि॒द्धि स॑त्य सोमपा अनाश॒स्ता इ॑व॒ स्मसि॑। आ तू न॑ इन्द्र शंसय॒ गोष्वश्वे॑षु शु॒भ्रिषु॑ स॒हस्रे॑षु तुवीमघ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । चि॒त् । हि । स॒त्य॒ । सो॒म॒ऽपा॒: । अ॒ना॒श॒स्ता:ऽइ॑व । स्मसि॑ ॥ आ । तु । न॒: । इ॒न्द्र॒ । शं॒स॒य॒ । गोषु॑ । अश्वे॑षु । शु॒भ्रिषु॑ । स॒हस्रे॑षु । तु॒वि॒ऽम॒घ॒ ॥७४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यच्चिद्धि सत्य सोमपा अनाशस्ता इव स्मसि। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । चित् । हि । सत्य । सोमऽपा: । अनाशस्ता:ऽइव । स्मसि ॥ आ । तु । न: । इन्द्र । शंसय । गोषु । अश्वेषु । शुभ्रिषु । सहस्रेषु । तुविऽमघ ॥७४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(सत्य) हे सच्चे ! [सत्यवादी, सत्यगुणी] (सोमपाः) हे सोम [तत्त्व रस] पीनेवाले ! [वा ऐश्वर्य के रक्षक राजन्] (यत् चित्) जो कभी (हि) भी (अनाशस्ताः इव) निन्दनीय कर्मवालों के समान (स्मसि) हम होवें। (तुविमघ) हे महाधनी (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े प्रतापी राजन्] (तु) निश्चय करके (नः) हमको (सहस्रेषु) सहस्रों (शुभ्रिषु) शुभ गुणवाले (गोषु) विद्वानों और (अश्वेषु) कामों में व्यापक (बलवानों में (आ) सब ओर से (शंसय) बड़ाईवाला कर ॥१॥
भावार्थ
यदि धार्मिक लोगों से किसी कारण विशेष से अपराध हो जावे, नीतिज्ञ राजा यथायोग्य बर्ताव करके उन भूले-भटकों को फिर सुमार्ग पर लावे ॥१॥
टिप्पणी
यह सूक्त ऋग्वेद में है-१।२९।१-७ ॥ १−(यत् चित्) यद्यपि (हि) एव (सत्य) हे यथार्थवादिन्। यथार्थ गुणिन्। (सोमपाः) हे तत्त्वरसस्य पानकर्तः। ऐश्वर्यरक्षक। (अनाशस्ताः) अप्रशस्ताः। निन्दनीयकर्माणः (इव) यथा (स्मसि) भवामः (आ) समन्तात् (तु) निश्चयेन (नः) अस्मान् (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् ! (शंसय) प्रशस्तान् कुरु (गोषु) गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। स्तोतृषु। विद्वत्सु (अश्वेषु) कर्मसु व्यापकेषु। बलवत्सु (शुभ्रिषु) अदिशदिभूशुभिभ्यः क्रिन्। उ० ४।६। शुभ दीप्तौ-क्रिन्। शुभगुणयुक्तेषु (सहस्रेषु) बहुषु (तुविमघ) हे बहुधनवन् ॥
विषय
प्रशस्त, न कि अनाशस्त
पदार्थ
१. हे (सत्य) = सत्यस्वरूप (सोमपा) = हमारे सोम का रक्षण करनेवाले प्रभो! (यत्) = जो हम (चित्) = निश्चय से (अनाशस्ता: इव) = अप्रशस्त से जीवनवाले (स्मसि) = हैं, अतः हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यवाले प्रभो! आप (न:) = हमें (तु) = तो (आ) = सब प्रकार से (शुभ्रिषु) = शुद्ध व (सहस्त्रेषु) = [स हस्] मनःप्रसाद से युक्त (गोषु) = ज्ञानेन्द्रियों में तथा (अश्वेष) = कर्मेन्द्रियों में (शंसय) = प्रशस्त बनाइए। २. हे प्रभो! आप (तुवीमघ) = महान् ऐश्वर्यवाले हैं। आपके ऐश्वर्य में भागी बनकर हम भी प्रशस्त व आनन्दमय जीवनवाले बनें। हे प्रभो! आप 'सत्य' हैं, मैं भी सत्य के द्वारा पवित्र मनवाला बनूं। आप 'सोमपा: 'है-मन को पवित्र करके मैं भी सोम का रक्षण करनेवाला बनूं। 'इन्द्र' नाम से आपका स्मरण करता हुआ मैं भी जितेन्द्रिय बनूं। यह जितेन्द्रियता ही तो मुझे 'त्रिभुवन-विजेता' व 'तुवीमघ' बनाएगी।
भावार्थ
वे 'सत्य, सोमपा इन्द्र' मेरे जीवन को शुभ व मेरी इन्द्रियों को निर्मल बनाने की कृपा करें। मैं अनाशस्त से प्रशस्त बन जाऊँ।
भाषार्थ
(सत्य) हे सत्यस्वरूप परमेश्वर! (यत् चित् हि) यतः आप (सोमपाः) भक्तिरस का पान करते हैं, इसलिए हम उपासक (अनाशस्ताः इव) सांसारिक आशंसाओं अर्थात् अभिलाषाओं से रहित-से (स्मसि) हो चुके हैं [और आपको भक्तिरस समर्पित कर रहे हैं]। (तुवीमघ इन्द्र) हे अध्यात्मधन के महाधनी परमेश्वर! हम उपासकों की (सहस्रेषु) हजारों (गोषु) इन्द्रियों, और हजारों (अश्वेषु) मनों के (शुभ्रिषु) उपासना द्वारा सात्विक हो जाने पर, (नः) हमें आप (आशंसय) नये आध्यात्मिक मार्ग का उपदेश दीजिए, या एतत्सम्बन्धी आशा बन्धाइए१।
टिप्पणी
[१. अथवा- हे परमेश्वर! हम नवीन उपासक अभी उपासना-मार्ग में अशिक्षित- से है। हमारा जीवन सात्विक है, इसलिए हमें आप उपासना-मार्ग का उपदेश दीजिए। [आ+शंस =Desire, wish, long for; To bless (आप्टे)।]
इंग्लिश (4)
Subject
In dr a Devata
Meaning
Indra, lord of glory, eternal and imperishable, protector and promoter of soma, beauty and prosperity of life, if ever we are found wanting (for our acts of omission or commission), graciously help us repair, rehabilitate and re-establish in a splendid world of a thousand cows and horses (in a state of good health and a sound economy of plenty and progress).
Translation
O mighty ruler, you are truthful and the guardian of subject (Somapa). If we be hopeless now or at any occasion in any venture of ours do you O Wealthy one, give us hope of beauteous horses and cows in thousands.
Translation
O mighty ruler, you are truthful and the guardian of subject (Somapa). IF we be hopeless now or at any occasion in any venture of ours do you O Wealthy one, give us hope of beauteous horses and cows in thousands.
Translation
O Truthful and Constant Protector of the created universe, and Lord of Immense fortunes, make us fully instructed and well-disciplined in whatever acts and on whatever occasions, we may be found lacking in discipline and good behaviour and invest us with wealth of cows, horses, knowledge and bodily activity and thousand acts of glory and brilliance.
Footnote
(1-7) 2nd part is repeated in each verse to impress upon the king's duty towards the welfare of his subjects.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह सूक्त ऋग्वेद में है-१।२९।१-७ ॥ १−(यत् चित्) यद्यपि (हि) एव (सत्य) हे यथार्थवादिन्। यथार्थ गुणिन्। (सोमपाः) हे तत्त्वरसस्य पानकर्तः। ऐश्वर्यरक्षक। (अनाशस्ताः) अप्रशस्ताः। निन्दनीयकर्माणः (इव) यथा (स्मसि) भवामः (आ) समन्तात् (तु) निश्चयेन (नः) अस्मान् (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् ! (शंसय) प्रशस्तान् कुरु (गोषु) गौः स्तोतृनाम-निघ० ३।१६। स्तोतृषु। विद्वत्सु (अश्वेषु) कर्मसु व्यापकेषु। बलवत्सु (शुभ्रिषु) अदिशदिभूशुभिभ्यः क्रिन्। उ० ४।६। शुभ दीप्तौ-क्रिन्। शुभगुणयुक्तेषु (सहस्रेषु) बहुषु (तुविमघ) हे बहुधनवन् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(সত্য) হে সত্য ! [সত্যবাদী, যথার্থ গুণী] (সোমপাঃ) হে সোম [তত্ত্ব রস] পানকারী/সেবনকারী ! [বা ঐশ্বর্যের রক্ষক রাজন্] (যৎ চিৎ) যে না কখন (হি) ও (অনাশস্তাঃ ইব) নিন্দনীয় কর্মকারীদের সমান (স্মসি) আমরা হই। (তুবিমঘ) হে মহাধনী (ইন্দ্র) ইন্দ্র ! [মহা পরাক্রমশালী রাজন্] (তু) নিশ্চিতরূপে (নঃ) আমাদের (সহস্রেষু) সহস্র (শুভ্রিষু) শুভ গুণযুক্ত (গোষু) বিদ্বানদের এবং (অশ্বেষু) কর্মে ব্যাপক বলবানের মধ্যে (আ) সর্বতোভাবে (শংসয়) প্রশংসার যোগ্য করুন॥১॥
भावार्थ
যদি ধার্মিক লোকেদের দ্বারা কোনো কারণে অপরাধ হয়, তবে নীতিজ্ঞ রাজা যথাযোগ্য উপায় অবলম্বন পূর্বক লক্ষ্য ভ্রষ্টদের পুনরায় সুমার্গে নিয়ে আসুক॥১॥এই সূক্ত ঋগ্বেদে আছে-১।২৯।১-৭ ॥
भाषार्थ
(সত্য) হে সত্যস্বরূপ পরমেশ্বর! (যৎ চিৎ হি) যতঃ আপনি (সোমপাঃ) ভক্তিরস পান করেন, এইজন্য আমরা উপাসক (অনাশস্তাঃ ইব) সাংসারিক আশংসা অর্থাৎ অভিলাষা রহিত (স্মসি) হয়েছি [এবং আপনার প্রতি ভক্তিরস সমর্পিত করছি]। (তুবীমঘ ইন্দ্র) হে অধ্যাত্মধনের মহাধনী পরমেশ্বর! আমাদের উপাসকদের (সহস্রেষু) সহস্র (গোষু) ইন্দ্রিয়-সমূহ, এবং সহস্র (অশ্বেষু) মনের (শুভ্রিষু) উপাসনা দ্বারা সাত্ত্বিক হলে, (নঃ) আমাদের আপনি (আশংসয়) নতুন আধ্যাত্মিক মার্গের উপদেশ করুন/, বা এতৎসম্বন্ধী আশাবদ্ধ করুন১]
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