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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 94/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-९४
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    आ या॒त्विन्द्रः॒ स्वप॑ति॒र्मदा॑य॒ यो धर्म॑णा तूतुजा॒नस्तुवि॑ष्मान्। प्र॑त्वक्षा॒णो अति॒ विश्वा॒ सहां॑स्यपा॒रेण॑ मह॒ता वृष्ण्ये॑न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । या॒तु॒ । इन्द्र॑: । स्वऽप॑ति: । मदा॑य । य: । धर्म॑णा । तू॒तु॒जा॒न: । तुवि॑ष्मान् ॥ प्र॒ऽत्व॒क्षा॒ण: । अति॑ । विश्वा॑ । सहां॑सि । अ॒पा॒रेण॑ । म॒ह॒ता । वृष्ण्ये॑न ॥९४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ यात्विन्द्रः स्वपतिर्मदाय यो धर्मणा तूतुजानस्तुविष्मान्। प्रत्वक्षाणो अति विश्वा सहांस्यपारेण महता वृष्ण्येन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । यातु । इन्द्र: । स्वऽपति: । मदाय । य: । धर्मणा । तूतुजान: । तुविष्मान् ॥ प्रऽत्वक्षाण: । अति । विश्वा । सहांसि । अपारेण । महता । वृष्ण्येन ॥९४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 94; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (स्वपतिः) धन का स्वामी वा स्वयं स्वामी (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (मदाय) हमारे आनन्द के लिये (आ यातु) आवे, (यः) जो [राजा] (धर्मणा) धर्म के साथ (तूतुजानः) फुरतीला, (तुविष्मान्) वृद्धिवाला और (अपारेण) अपने अपार (महता) बड़े (वृष्ण्येन) साहस से [वैरियों के] (विश्वा) सब (सहांसि) जीतनेवाले बलों को (अति) सर्वथा (प्रत्वक्षमाणः) रेतनेवाला [छीलनेवाला] है ॥१॥

    भावार्थ

    राजा और प्रजा परस्पर सहाय करके शत्रुओं का नाश करें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-१०।४४।१-११ ॥ १−(आ यातु) आगच्छतु (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (स्वपतिः) धनपतिः स्वयं पतिर्वा (मदाय) अस्माकं हर्षाय (यः) इन्द्रः (धर्मणा) शास्त्रोक्तव्यवहारेण (तूतुजानः) त्वरमाणः (तुविष्मान्) वृद्धिमान् (प्रत्वक्षमाणः) प्रकर्षेण तनूकुर्वन् (अति) सर्वथा (विश्वा) सर्वाणि (सहांसि) अभिभवशीलानि बलानि (अपारेण) पाररहितेन (महता) प्रवृद्धेन (वृष्ण्येन) वृषकर्मणा। साहसेन ॥

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    विषय

    'तूतुजानः तुविष्मान्'

    पदार्थ

    १. (इन्द्रः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (आयातु) = मेरे समीप आये। जैसे एक बच्चा पिता की गोद में बैठता है, उसी प्रकार यह जितेन्द्रिय पुरुष प्रभु की गोद में बैठनेवाला हो। जो इन्द्र (स्वपति:) = अपना स्वामी है-इन्द्रियों, मन व बुद्धि का दास न होकर इनका अधिष्ठाता है और अतएव (मदाय) = सदा हर्ष के लिए होता है। २. प्रभु कहते हैं कि मेरे समीप वह 'इन्द्र' आये (यः) = जोकि (धर्मणा) = लोकधारण के हेतु से (तूतुजान:) = [स्वरमाण: नि० ६.२०] शीघ्रता से कार्य करनेवाला होता है। जो (तुविष्मान्) = [growth, strength, intellect] उन्नति, शक्ति व बुद्धिवाला है। ३. (अपारेण महता) = महान् अपार, अर्थात् बहुत अधिक (वृष्णयेन) = बल के द्वारा (विश्वा सहांसि) = सब सहनशक्ति के जनक बलों को (अति प्रत्यक्षाण:) = बहुत ही सुक्ष्म [तीव्र] बनानेवाला होता है। बल को बढ़ाता हुआ सहनशक्तिवाला होता है। वही प्रभु को पा सकता है। निर्बल व चिड़चिड़े पुरुष ने प्रभु को क्या पाना?

    भावार्थ

    प्रभु की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम 'इन्द्र-स्वपति-धारणात्मक कर्मों को करनेवाले-उन्नतिशील-तथा सबल बनकर सहनशील' हों।

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    भाषार्थ

    (स्वपतिः) समग्रैश्वर्यों का पति परमेश्वर (मदाय) उपासकों की प्रसन्नता और तृप्ति के लिए (आ यातु) हम उपासकों में प्रकट हो। (यः) जो परमेश्वर (तुविष्मान्) बहुविध पदार्थों का स्वामी है, वह (धर्मणा) वैदिक धर्म के द्वारा (तूतुजानः) हमारा पालन कर रहा है। वह (अपारेण) असीम (महता) और महान् (वृष्ण्येन) सामर्थ्य द्वारा (विश्वा) सब (सहांसि) पराभवकारी राग-द्वेष और तज्जन्य बुराइयों का (अति प्रत्वक्षाणः) अत्यन्त और पूर्ण विनाश करता है, या उन्हें तनूकृत कर देता है।

    टिप्पणी

    [तूतुजानः=तुजि पालने+कानच्। त्वक्ष्=तनूकरणे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    May Indra, lord ruler of his world of reality, come, arise in view, in our consciousness, for the joy of his devotees. Mighty is he, loving, bright and accepting by his own essential nature and the laws of life, and, by his boundless grandeur and generosity, he takes on all challenges of counterforces and reduces them to naught for his people. (The mantra may be applied to Divinity or to the ruling power). May Indra, lord ruler of his world of reality, come, arise in view, in our consciousness, for the joy of his devotees. Mighty is he, loving, bright and accepting by his own essential nature and the laws of life, and, by his boundless grandeur and generosity, he takes on all challenges of counterforces and reduces them to naught for his people. (The mantra may be applied to Divinity or to the ruling power).

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    Translation

    Let the sovereigh King who is strong active by righteous acts, who is over-powerer of all the conquering forces with his great vigorous unlimited power come to us for our pleasure.

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    Translation

    Let the sovereign King who is strong active by righteous acts, who is over-powerer of all the conquering forces with his great vigorous unlimited power come to us for our pleasure.

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    Translation

    O king or soul, let thy vehicle be of firm durability (in times of war) and thy horses well-controlled, let there be the deadly weapons in thy hands. Let thee come quickly in the forefront by a good path. Let us add to the striking powers of thee, the protector of the nature.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-१०।४४।१-११ ॥ १−(आ यातु) आगच्छतु (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् राजा (स्वपतिः) धनपतिः स्वयं पतिर्वा (मदाय) अस्माकं हर्षाय (यः) इन्द्रः (धर्मणा) शास्त्रोक्तव्यवहारेण (तूतुजानः) त्वरमाणः (तुविष्मान्) वृद्धिमान् (प्रत्वक्षमाणः) प्रकर्षेण तनूकुर्वन् (अति) सर्वथा (विश्वा) सर्वाणि (सहांसि) अभिभवशीलानि बलानि (अपारेण) पाररहितेन (महता) प्रवृद्धेन (वृष्ण्येन) वृषकर्मणा। साहसेन ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (স্বপতিঃ) ধন-সম্পদের স্বামী বা স্বয়ং স্বামী (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যশালী রাজা] (মদায়) আমাদের আনন্দের জন্য (আ যাতু) আগমন করুক, (যঃ) যে [রাজা] (ধর্মণা) ধর্মের সহিত (তূতুজানঃ) চতুর/বেগবান, (তুবিষ্মান্) বৃদ্ধিশীল এবং (অপারেণ) নিজ অপার (মহতা) মহৎ (বৃষ্ণ্যেন) সাহস দ্বারা [শত্রুদের] (বিশ্বা) সকল প্রকার (সহাংসি) বিজয়ী বলকে (অতি) সর্বদা (প্রত্বক্ষমাণঃ) খর্বকারী ॥১॥

    भावार्थ

    রাজা এবং প্রজা পরস্পরের সহয়তায় শত্রুদের বিনাশ করে ॥১॥ এই সূক্ত ঋগ্বেদ-১০।৪৪।১-১১-এ বিদ্যমান।

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    भाषार्थ

    (স্বপতিঃ) সমগ্রৈশ্বর্যের পতি পরমেশ্বর (মদায়) উপাসকদের প্রসন্নতা এবং তৃপ্তির জন্য (আ যাতু) আমাদের উপাসকদের মধ্যে প্রকট হোক/হন। (যঃ) যে পরমেশ্বর (তুবিষ্মান্) বহুবিধ পদার্থ-সমূহের স্বামী, তিনি (ধর্মণা) বৈদিক ধর্ম দ্বারা (তূতুজানঃ) আমাদের পালন করছেন। তিনি (অপারেণ) অসীম (মহতা) এবং মহান্ (বৃষ্ণ্যেন) সামর্থ্য দ্বারা (বিশ্বা) সকল (সহাংসি) পরাভবকারী রাগ-দ্বেষ এবং তজ্জন্য দুর্গুণের (অতি প্রত্বক্ষাণঃ) অত্যন্ত এবং পূর্ণরূপে বিনাশ করেন, বা সেগুলো তনূকৃত করেন।

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