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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मातृनामा देवता - मातृनामौषधिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पिशाचक्षयण सूक्त
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    आ प॑श्यति॒ प्रति॑ पश्यति॒ परा॑ पश्यति॒ पश्य॑ति। दिव॑म॒न्तरि॑क्ष॒माद्भूमिं॒ सर्वं॒ तद्दे॑वि पश्यति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । प॒श्य॒ति॒ । प्रति॑ । प॒श्य॒ति॒ । परा॑ । प॒श्य॒ति॒ । पश्य॑ति । दिव॑म् । अ॒न्तरि॑क्षम् । आत् । भूमि॑म् । सर्व॑म् । तत् । दे॒वि॒ । प॒श्य॒ति॒ ॥२०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ पश्यति प्रति पश्यति परा पश्यति पश्यति। दिवमन्तरिक्षमाद्भूमिं सर्वं तद्देवि पश्यति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । पश्यति । प्रति । पश्यति । परा । पश्यति । पश्यति । दिवम् । अन्तरिक्षम् । आत् । भूमिम् । सर्वम् । तत् । देवि । पश्यति ॥२०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (5)

    विषय

    ब्रह्म की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवि) हे दिव्यशक्ति परमात्मन् ! तू, (तत्) विस्तार करनेवाला वा विस्तीर्ण ब्रह्म आप (आ) अभिमुख (पश्यति) देखता है, (प्रति) पीछे से (पश्यति) देखता है, (परा) दूर से (पश्यति) देखता है, और (पश्यति) सामान्यतः देखता है। (दिवम्) सूर्यलोक, (अन्तरिक्षम्) मध्यलोक (आत्) और भी (भूमिम्) भूमि अर्थात् (सर्वम्) सबको (पश्यति) देखता है ॥१॥

    भावार्थ

    वह ब्रह्म सब संसार को एक रस देखता रहता है, इसलिये सब मनुष्य उसकी उपासना करके दुष्कर्मों से बचकर सत्कर्मों में प्रवृत्त रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(आ) अभिमुखम् (पश्यति) अवलोकयति (प्रति) प्रतिमुखम् (परा) दूरतः (पश्यति) अविशेषेण साक्षात्करोति (दिवम्) सूर्यलोकम् (अन्तरिक्षम्) मध्यलोकम् (आत्) अपि च (भूमिम्) पृथिवीम् (सर्वम्) सकलम् (तत्) त्यजितनियजिभ्यो डित्। उ० १।१३२। इति तनु विस्तारोपकृतिशब्दोपतापेषु-अदि, स च डित्। विस्तारकं विस्तीर्णं वा, ब्रह्मनामैतत्। (देवि) हे दिव्यशक्ते त्वं तद् ब्रह्म भवत् (पश्यति) ॥

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    विषय

    सर्वदर्शन

    पदार्थ

    १. 'स्तुता मया वरदा वेदमाता' इन शब्दों में बेद को माता कहा गया है। यह वेदमाता हम पुत्रों के जीवनों को प्रकाशमय करती है, इसी से इसे 'देवी' कहा गया है। हे (देवी) = हमारे जीवनों को प्रकाशमय बनानेवाली वेदमातः! आपकी कृपा से आपका पुत्र (आ पश्यति) = चारों ओर सब पदार्थों को देखनेवाला बनता है, (प्रतिपश्यति) = यह प्रत्येक पदार्थ को देख पाता है, (परापश्यति) = इस जगत् से परे अलौकिक वस्तुओं [आत्मतत्त्व] को भी देखनेवाला यह बनता है, इसप्रकार यह पश्यति-ठीक से देखता है। २. हे देवि! (दिवम्) = धुलोक को, (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्षलोक को (आत् भूमिम्) = और इस भूमि को (तत् सर्वम्) = उस सम्पूर्ण जगत् को (पश्यति) = यह आपका पुत्र आपकी कृपा से देखता है। इस वेदमाता से सब लोक-लोकान्तरों का ज्ञान प्रास होता है।

    भावार्थ

    यह वेदमाता देवी है। यह हमारे लिए सब लोक-लोकान्तरों व पदार्थों का ज्ञान प्राप्त कराती है।

     

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( देवि ) = हे दिव्यशक्तिवाले परमेश्वर ! आप  ( तत् ) = विस्तार करनेवाले वा सब जगह में पूर्ण हो ।  ( आपश्यति ) = सबके सम्मुख देख रहे हो ।  ( प्रतिपश्यति ) = पीछे से देखते हो।  ( परापश्यति ) = दूर से देख लेते हो  ( पश्यति ) = सामने से देखते हो। ( दिवम् ) = सूर्यलोक  ( अन्तरिक्षम् ) = मध्यलोक  ( आत् ) = और भी  ( भूमिम् ) = भूमि और  ( सर्वम् पश्यति ) = सबको देखते हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ = दिव्यशक्तिवाले, सर्वत्र व्यापक सर्वज्ञ  सर्वान्तर्यामी, परमात्मा अपने सम्मुख, पीछे से, दूर से और सामने से देख रहे हैं। सूर्यलोक, अन्तरिक्षलोक और भूमि तथा सब पदार्थमात्र को प्रत्यक्ष देख रहे हैं। ऐसे दिव्यशक्तिवाले, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, अन्तर्यामी परमात्मा को सदा समीप द्रष्टा जानते हुए सब  पापों से बच कर सदा उसकी उपासना करनी चाहिये ।

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    भाषार्थ

    (आ पश्यति) सबको एक दृष्टिपात में देखता है, (प्रति पश्यति) प्रतिवस्तु को पृथक्-पृथक् रूप में भी देखता है, (परा पश्यति) दूर की वस्तु को भी देखता है, (पश्यति) समीप की वस्तु को भी देखता है, (देवि१) है देवी ! (दिवम्, अन्तरिक्षम्, आत् भूमिम्) द्यौः को, अन्तरिक्ष को, तथा भूमि को (तत् सर्वम्) उस सबको (पश्यति) वह देखता है।

    टिप्पणी

    [देवी है देवीगुणवती 'सदंपुष्पा' (सायण)। सदंपुष्पा का अर्थ है, "सदा जिसके फूल खिले रहते हैं" इसी प्रकार द्रष्टा-योगी की चक्षुः सदा फूल के सदृश विकसित रहती है, देखने के लिए।] [१. यह देवी है "योगजन्या दिव्यदृष्टि" अर्थात् प्रातिभ दृष्टि (देखो सूक्तान्त में विशेष वक्तव्य)]

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    विषय

    दर्शनशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    दृक् शक्ति का वर्णन करते हैं। हे देवि ! हे दृक् शक्ते ! तेरे सामर्थ्य से (आ पश्यति) यह पुरुष सब ओर देखता है (प्रति-पश्यति) और प्रत्येक पदार्थ को देखता है (परा पश्यति) दूर के पदार्थों को भी देखता है। (दिवम्) द्यौः, सूर्य (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष, वायुस्थान, (आत्) और उससे उतर कर (भूमिम्) इस भूमि, स्थूल पदार्थ (तत् सर्वं) उस सब को (पश्यति) दर्शन करता है। अध्यात्म ज्ञानी दृक् शक्ति के द्वारा सब ओर, समीप और दूर के सब पदार्थों को देख कर प्रथम तृण से लेके पृथिवी, वायु, आकाश और पांचों तत्वों को जान कर पुनः ब्रह्म का भी ज्ञान कर लेता है।

    टिप्पणी

    इस दृक् शक्ति रूप आत्मा का वर्णन देखो योग-दर्शन अ० २। सू० २७।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मातृनामा ऋषिः। मातृनामा देवताः। १ स्वराट्। २-८ अनुष्टुभः। ९ भुरिक्। नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Sight

    Meaning

    Matrnama is the name of a herb. Satavalekara has, in his note on this sukta, given names of three matrnama herbs which protect and promote good eye¬ sight. And eye sight here extends beyond the physical to the divine vision. The three herbs are: Akhukarani, Mahashravanika and Ghrtakumari. O vision divine, by virtue of your gift, man sees, sees directly, sees everything specifically, sees far far and wide, sees all round. Man sees the heavens, the middle regions, the earth, man sees all.

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    Subject

    Cure and Medicine

    Translation

    You see in front. You see behind. You see afar. You see all. Whatever is in the sky, in the midspace and also on this earth, O glorious one, you see all of it.

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    Translation

    Through this wonderful plant a man sees in front, sees behind, sees far away and he sees. He sees the sky, firmament and the earth he sees all this.

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    Translation

    God sees in front, He sees behind, He sees far away, He sees. The sky, the firmament, and earth, all this, He beholds.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(आ) अभिमुखम् (पश्यति) अवलोकयति (प्रति) प्रतिमुखम् (परा) दूरतः (पश्यति) अविशेषेण साक्षात्करोति (दिवम्) सूर्यलोकम् (अन्तरिक्षम्) मध्यलोकम् (आत्) अपि च (भूमिम्) पृथिवीम् (सर्वम्) सकलम् (तत्) त्यजितनियजिभ्यो डित्। उ० १।१३२। इति तनु विस्तारोपकृतिशब्दोपतापेषु-अदि, स च डित्। विस्तारकं विस्तीर्णं वा, ब्रह्मनामैतत्। (देवि) हे दिव्यशक्ते त्वं तद् ब्रह्म भवत् (पश्यति) ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    আ পশ্যতি প্রতি পশ্যতি পরা পশ্যতি পশ্যতি।

    দিবমন্তরিক্ষমাদ্ ভূমিং সর্বং তদ্ দেবি পশ্যতি ।।৬৭।।

     (অথর্ব ৪।২০।১)

    পদার্থঃ (দেবি) হে দিব্য শক্তির অধিষ্ঠাতা! তুমি (আ পশ্যতি) চারদিকের সমস্ত কিছু দর্শন করছ, (প্রতি পশ্যতি) সমস্ত পদার্থকে দর্শন করছ, (পরা পশ্যতি) সমস্ত আত্মিক সত্তাকে দর্শন করছ, এভাবে (পশ্যতি) সমস্ত কিছুর অবলোকন করছ। তুমি (দিবম্) দ্যুলোক, (অন্তরিক্ষম্) অন্তরিক্ষলোক (আৎ) এবং (ভূমিম্) পৃথিবী (তৎ সর্বম্ পশ্যতি) এই সমস্ত কিছুই দর্শন করছ।

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ পরমাত্মাই সমস্ত লোক লোকান্তরের প্রকৃত দর্শনকারী। তিনি সদা সর্বদা সমস্ত কিছুই অবলোকন করছেন। তিনিই আমাদের উপাসনার যোগ্য ।।৬৭।।

     

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