अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 133/ मन्त्र 1
ऋषिः - अगस्त्य
देवता - मेखला
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - मेखलाबन्धन सूक्त
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य इ॒मां दे॒वो मेख॑लामाब॒बन्ध॒ यः सं॑न॒नाह॒ य उ॑ नो यु॒योज॑। यस्य॑ दे॒वस्य॑ प्र॒शिषा॒ चरा॑मः॒ स पा॒रमि॑च्छा॒त्स उ॑ नो॒ वि मु॑ञ्चात् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । इ॒माम् । दे॒व: । मेख॑लाम् । आ॒ऽब॒बन्ध॑ । य: । स॒म्ऽन॒नाह॑ । य: । ऊं॒ इति॑ । न॒: । यु॒योज॑ । यस्य॑ । दे॒वस्य॑ । प्र॒ऽशिषा॑ । चरा॑म: । स: । पा॒रम् । इ॒च्छा॒त् । स: । ऊं॒ इति॑ । न॒: । वि । मु॒ञ्चा॒त् ॥१३३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
य इमां देवो मेखलामाबबन्ध यः संननाह य उ नो युयोज। यस्य देवस्य प्रशिषा चरामः स पारमिच्छात्स उ नो वि मुञ्चात् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । इमाम् । देव: । मेखलाम् । आऽबबन्ध । य: । सम्ऽननाह । य: । ऊं इति । न: । युयोज । यस्य । देवस्य । प्रऽशिषा । चराम: । स: । पारम् । इच्छात् । स: । ऊं इति । न: । वि । मुञ्चात् ॥१३३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
मेखना बाँधने का उपदेश।
पदार्थ
(यः देवः) जिस विद्वान् [आचार्य] ने (नः) हमारे (इमाम्) इस (मेखलाम्) मेखला [तागड़ी, पेटी, कटिबन्धन] (आबबन्ध) अच्छे प्रकार बाँधी है, (वः) जिसने (सन्ननाह) सजाई है। (उ) और (यः) जिसने (युयोज) संयुक्त की है। (यस्य देवस्य) जिस विद्वान् के (प्रशिषा) उत्तम शासन से (चरामः) हम विचरते हैं (सः) वह (नः) हमें (पारम्) पार (इच्छात्) लगावे, (सः उ) वही [कष्ट से] (विमुञ्चात्) मुक्त करे ॥१॥
भावार्थ
वेदारम्भ संस्कार के अन्तर्गत मेखलाबन्धन एक संस्कार है। आचार्य ब्रह्मचारी के मेखला इस लिये बाँधे कि वह कटि को कस कर फुर्ती से वेदों को पढ़ कर संसार में उपकारी होवे ॥१॥
टिप्पणी
१−(यः) (इमाम्) (देवः) विद्वान्, आचार्यः (मेखलाम्) मीयते प्रक्षिप्यते कायमध्यभागे। डुमिञ् क्षेपे−खलच्। कटिबन्धनम्। कक्ष्याम् (आबबन्ध) आबद्धवान् (यः) (सन्ननाह) णह बन्धने लिट्। सज्जितवान् (यः उ) (नः) अस्मभ्यम् (युयोज) संयोजितवान् (यस्य) (देवस्य) विदुषः (प्रशिषा) उत्तमशासनेन (चरामः) वर्त्तामहे (सः) (पारम्) कर्मणः समाप्तिम् (इच्छात्) इच्छेत् (सः) (उ) (नः) अस्मान् (विमुञ्चात्) कष्टाद् विमोचयेत् ॥
विषय
मेखला-बन्धन
पदार्थ
१. (यः) = जो (देव:) = शत्रुहनन-कुशल प्रभु (इमां मेखलां आबबन्ध) = इस मेखला को हमारे कटि-प्रदेश में बाँधते हैं और इस मेखला-बन्धन द्वारा (यः संननाह) = जो हमें कर्तव्यकर्मों को करने में सन्नद्ध करते हैं, और (उ) = निश्चय से (न: युयोज) = हमें अपने साथ युक्त करते हैं। ऐसा होने पर (यस्य देवस्य) = जिस सर्वान्तर्यामी देव के (प्रशिषा) = प्रशासन से (चरामः) = हम (वर्तते) = हैं-कर्मों में प्रवृत्त होते हैं, (स:) = वे प्रभु (पारम् इच्छात्) = हमारे प्रारिप्सित कर्म के पार तक हमें ले-चलना चाहें, (उ) = और (सः) = वे ही (न:) = हमें (विमुञ्चात्) = शत्रुओं से मुक्त करें।
भावार्थ
प्रभु ने वेद के द्वारा मेखला-बन्धन का निर्देश किया है। इसके द्वारा प्रभु हमें कर्त्तव्यकों को करने में सन्नद्ध करते हैं और हमें उन कर्मों में सफलता प्राप्त कराते हैं। प्रभु के शासन में चलने पर हम काम-क्रोध आदि शत्रुओं से आक्रान्त नहीं होते।
भाषार्थ
(यः देवः) जिस आचार्य देव ने (इमाम् मेखलाम्) इस मेखला को (आबबन्ध) [हम से पूर्व के ब्रह्मचारियों को] बान्धा, (यः) जिसने (सं ननाह) वर्तमान में सन्नद्ध किया, तैयार किया, और (यः) जिसने (उ) ही (नः) हमारे साथ (युयोज) उसे संयुक्त किया; (यस्य) और जिस (देवस्य) आचार्य देव के (प्रशिषा) प्रशासन द्वारा (चरामः) हम ब्रह्मचर्याश्रम में विचरते हैं, (सः) वह (पारम्) ब्रह्मचर्य समुद्र से पार करना (इच्छात्) चाहे, (स उ) वह ही (नः) हमें (विमुञ्चात्) मेखला से विमुक्त करे।
टिप्पणी
[कौशिक सूत्र ५७।१ में उपनयन कर्म में सूक्त का विनियोग किया है। "आचार्यदेवो भव" के अनुसार मन्त्रोक्त "देव" आचार्य देव है। ब्रह्मचर्याश्रम रूपी समुद्र है, जिससे ब्रह्मचारी को आचार्य पार करता है, और इस समुद्र से पार होते हुए ब्रह्मचारी को मेखला से नियुक्त करता है। मेखला है ब्रह्मचर्य की सूचिका। ब्रह्मचर्य की समाप्ति पर ब्रह्मचारी ने गृहस्थाश्रम में प्रवेश करता है। अतः आचार्य ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य की सूचिका मेखला से वियुक्त करता है।].
विषय
मेखला बन्धन का विधान।
भावार्थ
(यः देवः) जो देव, विद्वान् ब्राह्मण, ज्ञानदाता या ज्ञानप्रकाशक आचार्य (इमाम्) इस (मेखलाम्) मेखला को (आ बबन्ध) ब्रह्मचारी के शरीर पर बाँधता है, और जो (नः) हम ब्रह्मचारियों को (संननाह) ब्रह्मचर्य पालन के लिये संनद्ध करता है और (यः उ नः) जो इ में (युयोज) व्रत पालन में लगाता है, और (यस्य देवस्य) जिस ज्ञानदाता गुरु के (प्रशिषा) भाज्ञापालन या शासन में (चरामः) हम रहते हैं (सः) वही हमारे (पारम्) व्रत को पूर्ण पालन कराके उसकी समाप्ति भी (इच्छात्) चाहता है। (सः उ) और वही (नः) हमें (विमुञ्चात्) सब विघ्नबाधाओं से मुक्त करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः। मेखला देवता। १ भुरिक्। २, ५ अनुष्टुभौ। ३, त्रिष्टुप्। ४ भुरिक्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(यः-देवः-इमां मेखलाम्)-आबबन्ध जो विद्वान् आचार्य इस मेखला मौञ्जी-अधोबन्धनी को बांधता है ब्रह्मचारी के आत्मा मैं ऊर्ज प्राप्ति के लिये, मेखला मध्यत आत्मन ऊर्ज धत्तं,(शत. ३।१।२।१०) (यः संननाह) जो आचार्य उस कौपीन सहित मेखला से ब्रह्मचारी के गुप्ताङ्ग को ढंकता है (यः-उ-नः युयोज) जो ही हम ब्रह्मचारियों को ब्रह्मचर्य व्रत में युक्त करता है (यस्य देवस्य-प्रशिषा चरामः) जिस आचार्य देव के शासन में हम ब्रह्मचारी लोग उस ब्रह्मचर्य को चरते हैं-सेवन करते हैं - (सः-पारम्- इच्छात्) वह उसकी समाप्ति को चाहेसमाप्ति के लिये सहायता करे (सः-उ-नः-विमुञ्चात्) वह ही आचार्य हमें कामपाशों से छुड़ाता है ॥१॥
विशेष
ऋषिः—अगस्त्यः (अगः) = पाप को त्यागे हुये. अगः - त्यज ' डः, अन्येभ्योपि दृश्यते वा, अन्येष्वपि दृश्यते" (अष्टा० ३।२।१०१) देवता - मेखला (संयमनी रज्जु "कौपीन")
इंग्लिश (4)
Subject
Brahmachari’s Girdle
Meaning
The divine, brilliant and generous teacher who tied the girdle, firmed it and assigned us the task in studies and later in life, by whose word, order and discipline we learn, act and live in life, may he wish us all success and lead us to fulfil our duties and obligations to freedom.
Subject
Mekhala: Belt or Girdle
Translation
The enlightened one, who has bound this (belt or girdle), who has fastened it tight, who has deployed us, at whose direction we move up, may he wish us to reach our goal (the other shore); may he free us from it as well.
Translation
Learned Acharya, the preceptor who has engirt us with this girdle, he who has fastened it and he who employed us in this task of education, by whose directions we live and study, may like us achieve the end and make us free from obstacle.
Translation
The learned preceptor, who fastens this girdle on the body of the Brahmchari, who prepares us for observing celibacy, who yokes us to fulfill our vow, under whose sway we prosecute our studies, longs for the completion of our pledge. May he free us from all impediments in our studies.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(यः) (इमाम्) (देवः) विद्वान्, आचार्यः (मेखलाम्) मीयते प्रक्षिप्यते कायमध्यभागे। डुमिञ् क्षेपे−खलच्। कटिबन्धनम्। कक्ष्याम् (आबबन्ध) आबद्धवान् (यः) (सन्ननाह) णह बन्धने लिट्। सज्जितवान् (यः उ) (नः) अस्मभ्यम् (युयोज) संयोजितवान् (यस्य) (देवस्य) विदुषः (प्रशिषा) उत्तमशासनेन (चरामः) वर्त्तामहे (सः) (पारम्) कर्मणः समाप्तिम् (इच्छात्) इच्छेत् (सः) (उ) (नः) अस्मान् (विमुञ्चात्) कष्टाद् विमोचयेत् ॥
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