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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 1
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अनुमतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अनुमति सूक्त
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    अन्व॒द्य नोऽनु॑मतिर्य॒ज्ञं दे॒वेषु॑ मन्यताम्। अ॒ग्निश्च॑ हव्य॒वाह॑नो॒ भव॑तां दा॒शुषे॒ मम॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑ । अ॒द्य । न॒: । अनु॑ऽमति: । य॒ज्ञम् । दे॒वेषु॑ । म॒न्य॒ता॒म् । अ॒ग्नि: । च॒ । ह॒व्य॒ऽवाह॑न: भव॑ताम् । दा॒शुषे॑ । मम॑ ॥२१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्वद्य नोऽनुमतिर्यज्ञं देवेषु मन्यताम्। अग्निश्च हव्यवाहनो भवतां दाशुषे मम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनु । अद्य । न: । अनुऽमति: । यज्ञम् । देवेषु । मन्यताम् । अग्नि: । च । हव्यऽवाहन: भवताम् । दाशुषे । मम ॥२१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्यों के कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अनुमतिः) अनुमति, अनुकूल बुद्धि (अद्य) आज (नः) हमारे (यज्ञम्) संगति व्यवहार को (देवेषु) विद्वानों में (अनु मन्यताम्) निरन्तर माने। (च) और (अग्निः) अग्नि [पराक्रम] (मम दाशुषे) मुझ दाता के लिये (हव्यवाहनः) ग्राह्य पदार्थों का पहुँचानेवाला (भवताम्) होवे ॥१॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य धार्मिक व्यवहारों में अनुकूल बुद्धिवाले और पराक्रमी होते हैं, वे ही उत्तम पदार्थों को पाकर सुखी होते हैं ॥१॥ निरुक्त ११।२९। के अनुसार (अनुमति) पूर्णमासी का नाम है। अर्थात् हमारा समय पौर्णमासी के समान पुष्टि और हर्ष करनेवाला हो ॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है-अ० ३४।९ ॥

    टिप्पणी

    १−(अनु) निरन्तरम् (अद्य) अस्मिन् दिने (नः) अस्माकम् (अनुमतिः) अ० १।१८।२। अनुकूला बुद्धिः। अनुमती राकेति देवपत्न्याविति नैरुक्ताः पौर्णमास्याविति याज्ञिका या पूर्वा पौर्णमासी सानुमतिर्योत्तरा सा राकेति विज्ञायते। अनुमतिरनुमननात्-निरु० ११।२९। (यज्ञम्) संगतिव्यवहारम् (देवेषु) विद्वत्सु (मन्यताम्) जानातु। ज्ञापयतु (अग्निः) पराक्रमः (च) (हव्यवाहनः) हव्येऽनन्तःपादम्। पा० ३।२।६६। इति हव्य+वह प्रापणे ञ्युट्। ग्राह्यपदार्थस्य प्रापकः (भवताम्) आत्मनेपदं छान्दसम्। भवतात् (दाशुषे) दानशीलाय (मम) चतुर्थ्यां षष्ठी। मह्यम् ॥

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    विषय

    अनुमति

    पदार्थ

    १. (अनुमतिः) = अनुकूल बुद्धि, उत्तम कर्मों में अनुज्ञा देनेवाली बुद्धि, (अद्य) = अब (न:) = हमारे (देवेषु यज्ञम्) = देवों के विषय में पूजा, संगतिकरण तथा समर्पण [दान] को (अनुमन्यताम्) = अनुमत [अनुज्ञात] करे। हमारी बुद्धि हमें देवपूजन व देवसंग में प्रेरित करे। २. देवसंग से उत्तम बुद्धिबाले होकर हम यज्ञों में प्रवृत्त हों (च) = और (मम दाशुषे) = मुझ दाश्वान् के लिए. हवि देनेवाले मेरे लिए, (अग्निः) = वह अग्रणी प्रभु (हव्यवाहन:) = हव्य पदार्थों को प्राप्त करानेवाला (भवताम्) = हो। हम यज्ञशील बनें और हव्य पदार्थों को प्राप्त करने के पात्र हों।

    भावार्थ

    हमारी अनुमति हमें देवपूजन व देवसंग के लिए प्रेरित करे। इसप्रकार यज्ञशील बनते हुए हम प्रभुकृपा से हव्य पदार्थों को प्राप्त करें।

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    भाषार्थ

    (अद्य) आज अर्थात प्रतिदिन (अनुमतिः) अनुकूल मति वाली पत्नी (नः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञकर्म को (देवेषु) वायु आदि देवों में (अनुमन्यताम्) अनुकूलरूप में माने, (च) और (मम) मेरी (अग्निः) गार्हपत्य अग्नि (दाशुषे) मुझ दाता के लिये (हव्यवाहनः) हव्यों का वहन करनेवाली [हो], (भवताम्) [इस प्रकार से दोनों मेरे यज्ञ को सफल करने वाले] हों। दोनों= अनुमति पत्नी और यज्ञाग्नि।

    टिप्पणी

    [नः= गृहस्थ के सदस्य। अनुमति है पति-पत्नी के विचारों में अनुकूलता, सांमनस्य, न कि वैमनस्य। “अद्य" का अभिप्राय है-प्रतिदिन]।

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    विषय

    ‘अनुमति’ नाम सभा का वर्णन।

    भावार्थ

    (अद्य) अब, वर्त्तमान काल में, सदा (नः) हमारी (अनुमतिः) एक दूसरे के अनुकूल हित साधना की मति या सभा (देवेषु) विद्वान् पुरुषों में (यज्ञं) परस्पर संगति और सत्कर्म अनुष्ठान आदि कार्य की (अनु मन्यताम्) सदा आज्ञा दे। इस प्रकार परस्पर के हित का चिन्तन करने वाली संस्था और (हव्य-वाहनः) ग्रहण करने योग्य विचारों को हम तक पहुंचाने वाला (अग्निः च) अग्नि = हमारा अग्रणी, ज्ञानवान् नेता ये दोनों (मम) मेरे (दाशुषे) दानशील समाज व्यवस्था के अनुकूल अपना भाग देने वाले पुरुष के लिये (भवताम्) उपयोगी, हितकर पदार्थ प्राप्त कराने वाले होवें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अनुमतिर्देवता। १, २ अनुष्टुप्। ३ त्रिष्टुप्। ४ भुरिक्। ५, ६ अतिशक्वरगर्भा अनुष्टुप्। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Consensus and consent

    Meaning

    Let common agreement of our minds carry the fragrance of our yajna daily to the divinities of nature. Let the fruit of our creative action with united minds reach the noblest minds of the nation and daily win their joyous approval. And let the fire of yajna be the carrier and harbinger of our havi and its fragrant fruit for me too, the giver in yajna.

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    Subject

    Anumatih - asserit

    Translation

    May the assent (of the Lord) get this sacrifice of ours approved among the enlightened one today. And may the fire divine become the conveyer of offerings for me, the sacrificer.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.21.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    Let Anumati, the full-moon night be convenient and suitable for our yajna performed in the midst of learned men. Let the fire be carrier of the substance of oblations offered there in for me, the performer of yajna.

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    Translation

    May the man of favorable knowledge approve friendly this day our Sacrifice (Yajna) among the learned. May prowess bring all desired objects for me, a charitably disposed person.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(अनु) निरन्तरम् (अद्य) अस्मिन् दिने (नः) अस्माकम् (अनुमतिः) अ० १।१८।२। अनुकूला बुद्धिः। अनुमती राकेति देवपत्न्याविति नैरुक्ताः पौर्णमास्याविति याज्ञिका या पूर्वा पौर्णमासी सानुमतिर्योत्तरा सा राकेति विज्ञायते। अनुमतिरनुमननात्-निरु० ११।२९। (यज्ञम्) संगतिव्यवहारम् (देवेषु) विद्वत्सु (मन्यताम्) जानातु। ज्ञापयतु (अग्निः) पराक्रमः (च) (हव्यवाहनः) हव्येऽनन्तःपादम्। पा० ३।२।६६। इति हव्य+वह प्रापणे ञ्युट्। ग्राह्यपदार्थस्य प्रापकः (भवताम्) आत्मनेपदं छान्दसम्। भवतात् (दाशुषे) दानशीलाय (मम) चतुर्थ्यां षष्ठी। मह्यम् ॥

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