ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 81/ मन्त्र 7
ऋषिः - विश्वकर्मा भौवनः
देवता - विश्वकर्मा
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
वा॒चस्पतिं॑ वि॒श्वक॑र्माणमू॒तये॑ मनो॒जुवं॒ वाजे॑ अ॒द्या हु॑वेम । स नो॒ विश्वा॑नि॒ हव॑नानि जोषद्वि॒श्वश॑म्भू॒रव॑से सा॒धुक॑र्मा ॥
स्वर सहित पद पाठवा॒चः । पति॑म् । वि॒श्वऽक॑र्माणम् । ऊ॒तये॑ । म॒नः॒ऽजुव॑म् । वाजे॑ । अ॒द्य । हु॒वे॒म॒ । सः । नः॒ । विश्वा॑नि । हव॑नानि । जो॒ष॒त् । वि॒श्वऽश॑म्भूः । अव॑से । सा॒धुऽक॑र्मा ॥
स्वर रहित मन्त्र
वाचस्पतिं विश्वकर्माणमूतये मनोजुवं वाजे अद्या हुवेम । स नो विश्वानि हवनानि जोषद्विश्वशम्भूरवसे साधुकर्मा ॥
स्वर रहित पद पाठवाचः । पतिम् । विश्वऽकर्माणम् । ऊतये । मनःऽजुवम् । वाजे । अद्य । हुवेम । सः । नः । विश्वानि । हवनानि । जोषत् । विश्वऽशम्भूः । अवसे । साधुऽकर्मा ॥ १०.८१.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 81; मन्त्र » 7
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 7
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अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अद्य) आज-अब (वाजे) जीवनसंग्राम में (मनोजुवम्) मन के प्रेरक (विश्वकर्माणम्) विश्व के रचनेवाले (वाचस्पतिम्) ज्ञानदाता परमात्मा को (ऊतये) रक्षा के लिए (हुवेम) आमन्त्रित करें-स्मरण करें (सः) वह (विश्वशंभूः) समस्त कल्याण का भावित करनेवाला (साधुकर्मा) यथार्थ कर्मविधायक (नः) हमारे (अवसे) रक्षण के लिए (विश्वानि हवनानि) सब हृदय के भावों को (जोषत्) तृप्त करे-पूरा करे ॥७॥
भावार्थ
मानव के जीवनसंग्राम में विश्वरचयिता परमात्मा मन को प्रेरणा देता है, हृदय के भावों को पूरा करता है, उसकी शरण लेनी चाहिए ॥७॥
विषय
वाचस्पति प्रभु का स्मरण, ध्यान, प्रार्थना। सर्वजगत् का उत्तम शिल्पी प्रभु।
भावार्थ
हम (वाचः पतिम्) वाणी के पालन करने वाले, वेदवाणी के स्वामी, वाणी के ऐश्वर्य से सम्पन्न, (विश्व-कर्माणम्) समस्त जगत् के बनाने वाले (मनः-जुवम्) समस्त जीवों और ऋषियों के चित्तों में ज्ञान की प्रेरणा करने वाले उस प्रभु को हम (ऊतये) अपनी रक्षा, ज्ञान-प्राप्ति और स्नेह-समृद्धि और दुष्टों के नाश के लिये (अद्य) आज (वाजे) ऐश्वर्य, ज्ञान और बल के निमित्त (हुवेम) हम बुलाते हैं उसका स्मरण, मनन करते हैं। (सः) वह (नः) हमारे (विश्वा हवनानि) समस्त त्यागों, समर्पणों और नाम-स्मरण और पुकारों को भी (जोषत्) प्रेम से स्वीकार करे। वह (अवसे) रक्षा करने, प्रेम करने, दुष्टों का नाश करने के कारण (विश्व-शं-भूः) समस्त विश्व का कल्याण करने वाला और (साधु-कर्मा) समस्त उत्तम कर्मों को करने और जगत् को अच्छी प्रकार त्रुटिरहित रूप से बनाने वाला है। इति षोडशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वकर्मा भौवनः॥ विश्वकर्मा देवता॥ छन्द:– १, ५, ६ विराट् त्रिष्टुप्। २ ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ३, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। सप्तर्चं सूक्तम्॥
विषय
विश्वशम्भूः साधुकर्मा
पदार्थ
[१] जीव अपने साथियों के साथ मिलकर प्रार्थना करता है कि (वाचस्पतिम्) = उस ज्ञान के पति (विश्वकर्माणम्) = सब कर्मों को करनेवाले (मनोजुवम्) = मन को प्रेरणा देनेवाले, हृदयस्थरूपेण सन्मार्ग का दर्शन करानेवाले प्रभु को (ऊतये) = रक्षा के लिये (वाजे) = शक्ति प्राप्ति के निमित्त (अद्या हुवेम) = आज ही पुकारते हैं । (स) = वे प्रभु (नः) = हमारी (विश्वानि हवनानि) = सब पुकारों को (जोषत्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करते हैं । अर्थात् प्रभु की आराधना कभी व्यर्थ नहीं जाती । [२] वे प्रभु (विश्वशंभूः) = सब शान्तियों के उत्पत्ति स्थान हैं । (अवसे) = हमारे रक्षण के लिये (साधुकर्मा) = सब उत्तम कर्मों को करनेवाले हैं। हमारे सब कर्मों को वे प्रभु ही सिद्ध करते हैं। [साध्नोति कर्माणि] ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का आराधन करते हुए हम भी 'वाचस्पति ' = ज्ञानी व 'विश्वकर्मा' कियाशील बनेंगे। शान्ति को प्राप्त करेंगे और सदा उत्तम कर्मोंवाले होंगे। इस सूक्त की तह अगले सूक्त में भी 'विश्वकर्मा - भौवन' का ही वर्णन करते हैं-
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अद्य वाजे) अद्य जीवनसंग्रामे “वाजः संग्रामनाम” [निघ० २।१७] (मनोजुवं विश्वकर्माणं वाचस्पतिम्) मनःप्रेरकं विश्वरचयितारं ज्ञानदातारं परमात्मानम् (ऊतये हुवेम) रक्षायै-आमन्त्रये (सः-विश्व-शंभू: साधुकर्मा) स सर्वकल्याणस्य भावयिता यथार्थ-कर्मविधायकः (नः-अवसे विश्वानि हवनानि जोषत्) अस्माकं रक्षणाय सर्वान् हृद्भावान् प्रीणीयात् सेवां प्राप्नुयात् ॥७॥
इंग्लिश (1)
Meaning
For our enlightenment and victory in our battle of existence and action today, we invoke Vishvakarma, lord of universal speech and the expanding universe, creative cosmic awareness inspiring human mind and thought, and we pray that the lord of holy action and universal well being be pleased to listen and grant us the fruit of all our invocations, prayers and adorations.
मराठी (1)
भावार्थ
मानवाच्या जीवन संग्रामात विश्वनिर्माता परमात्मा मनाला प्रेरणा देतो, हृदयाचे भाव तृप्त करतो, त्यालाच शरण गेले पाहिजे. ॥७॥
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