ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 101/ मन्त्र 6
ऋषिः - वसिष्ठः कुमारो वाग्नेयः
देवता - पर्जन्यः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स रे॑तो॒धा वृ॑ष॒भः शश्व॑तीनां॒ तस्मि॑न्ना॒त्मा जग॑तस्त॒स्थुष॑श्च । तन्म॑ ऋ॒तं पा॑तु श॒तशा॑रदाय यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठसः । रे॒तः॒ऽधाः । वृ॒ष॒भः । शश्व॑तीनाम् । तस्मि॑न् । आ॒त्मा । जग॑तः । तु॒स्थुषः॑ । च॒ । तत् । मा॒ । ऋ॒तम् । पा॒तु॒ । श॒तऽशा॑रदाय । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स रेतोधा वृषभः शश्वतीनां तस्मिन्नात्मा जगतस्तस्थुषश्च । तन्म ऋतं पातु शतशारदाय यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठसः । रेतःऽधाः । वृषभः । शश्वतीनाम् । तस्मिन् । आत्मा । जगतः । तुस्थुषः । च । तत् । मा । ऋतम् । पातु । शतऽशारदाय । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.१०१.६
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 101; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 6
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अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सः) स परमात्मा (रेतोधाः) प्रकृतिरूपबीजस्य धाता तथा (शश्वतीनाम्) अनन्तासु प्रजासु (वृषभः) वर्षिता सुखानां (तस्मिन्) तस्मिन्नेव परमात्मनि (जगतः, तस्थुषश्च) स्थावरा जङ्गमाश्च जीवा वर्तन्ते (तत्) स ईश्वरः (शतशारदाय) वर्षशतपर्यन्तं (मा) मम (ऋतम्) सत्यं (पातु) रक्षतु, हे परमात्मन्, (यूयम्) भवान् (स्वस्तिभिः) मङ्गलवाग्भिः (सदा) शश्वत् (नः) अस्मान् (पात) रक्षतु ॥६॥इत्येकोत्तरशततमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सः) वह परमात्मा (रेतोधाः) प्रकृतिरूप बीज के धारण करनेवाला है, (शश्वतीनाम्) अनन्त प्रजाओं में (वृषभः) वर्षिता (निरु. १, ८) सुख की वृष्टि करनेवाला है, (तस्मिन्) उसी परमात्मा में (जगतः, तस्थुषः, च) स्थावर और जङ्गम संसार के सब जीव विराजमान हैं, (तत्) वह ब्रह्म (शतशारदाय) सैकड़ों वर्षों तक (मा) हमारी (ऋतम्) सच्चाई की (पातु) रक्षा करे, हे परमात्मन् ! (यूयम्) आप (स्वस्तिभिः) मङ्गल कार्यों द्वारा (सदा) सदैव (नः) हमारी (पात) रक्षा करें ॥६॥
भावार्थ
जिस परमात्मा में चराचर सब जीव निवास करते हैं और जो प्रकृतिरूपी बीजकोष धारण किये हुए है, अर्थात् जिससे तीनों गुणों की साम्यावस्थारूप प्रकृति और जीवरूप प्रकृति सदा भिन्न होकर विराजमान हैं, उसी एकमात्र परमात्मा से अपने सदाचार और सत्यता की प्रार्थना करनी चाहिये ॥६॥ यह १०१वाँ सूक्त और पहला वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
गौ वृषभ के दृष्टान्त से जगत्-स्वष्टा के आधार पर समस्त जगत् ।
भावार्थ
( सः ) वह प्रभु परमेश्वर ( रेतोधाः ) प्रकृति देवी में विश्व को उत्पन्न करने वाले परम बीज, रेतस, तेज को आधान करने वाला ( शश्वतीनां वृषभः ) मेघ के समान सब सुखों का वर्षक, बहुत सी गौओं के बीच सांड के समान समस्त पृथिवियों में जीवों का बीज वपन करने वाला है, ( तस्मिन् ) उसके ही आश्रय ( जगतः तस्थुषः च आत्मा ) जंगम और स्थावर संसार का आत्मा या सत्ता विद्यमान है। ( तत् ऋतं ) वह सत्यज्ञानमय परमेश्वर ( मे शतशारदाय पातु ) मेरे जीवन को सौ वर्षों तक पालन करे। हे विद्वान् पुरुषो ! ( यूयं स्वस्तिभिः नः सदा पात ) आप लोग उत्तम कल्याणकारक उपायों से हमारी सदा रक्षा करें । इति प्रथमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठः कुमारो वाग्नेय ऋषिः॥ पर्जन्यो देवता॥ छन्दः—१, ६ त्रिष्टुप्। २, ४, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप्॥
विषय
ज्ञानमय परमेश्वर
पदार्थ
पदार्थ- (सः) = वह परमेश्वर (रेतोधाः) = प्रकृति देवी में विश्व के उत्पादक परम बीज, तेज को आधान करनेवाला (शश्वतीनां वृषभः) = मेघ तुल्य सुखों का वर्षक, गौओं में साण्ड के समान पृथिवियों में जीवों का बीज बोनेवाला है, (तिस्मन्) = उसके ही आश्रय (जगतः तस्थुषः च आत्मा) = जंगम और स्थावर संसार का आत्मा या सत्ता विद्यमान है। (तत् ऋतं) = वह ज्ञानमय परमेश्वर (मे शतशारदाय पातु) = मेरे जीवन को सौ वर्षों तक पालन करे। हे विद्वान् पुरुषो! (यूयं स्वस्तिभिः नः सदा पात) = आप सदैव ही उत्तम साधनों से हमारी रक्षा करें।
भावार्थ
भावार्थ- वह परमात्मा प्रकृति में अपना तेज भरकर सृष्टि के योग्य बनाता है। जीवों के बीज=वीर्य के परमाणु पृथिवी में भरता है। जड़ और चेतन समस्त सृष्टि का आश्रय है। उस ज्ञानमय परमेश्वर से सौ वर्ष तक जीवन धारण करने का सामर्थ्य प्राप्त करो। अग्रिम सूक्त के ऋषि देवता यही हैं ।
इंग्लिश (1)
Meaning
That lord is the infinite reservoir of the seeds of existence, mighty abundant and generous, from whom flows the eternal cycle of life. Therein abides the very soul of existence in motion and stabilised in motion. May the lord sustain, protect and promote the abundant flow of truthful life in action for me for a full span of hundred years. O lord, O clouds, O showers of rain, protect and promote us by all modes and means of happiness and well being all round all ways all time.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या परमात्म्यामध्ये चराचर सर्व जीव निवास करतात व ज्याने प्रकृतिरूपी बीज धारण केलेले आहे. अर्थात्, ज्याच्यापेक्षा तीन गुणयुक्त साम्यावस्थारूपी प्रकृती व जीवरूपी प्रकृती सदैव भिन्न असते. त्याच एकमेव परमात्म्याची सदाचार व सत्य यासाठी प्रार्थना केली पाहिजे. ॥६॥
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