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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 64/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वृषा॑ सोम द्यु॒माँ अ॑सि॒ वृषा॑ देव॒ वृष॑व्रतः । वृषा॒ धर्मा॑णि दधिषे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृषा॑ । सो॒म॒ । द्यु॒ऽमान् । अ॒सि॒ । वृषा॑ । दे॒व॒ । वृष॑ऽव्रतः । वृषा॑ । धर्मा॑णि । द॒धि॒षे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषा सोम द्युमाँ असि वृषा देव वृषव्रतः । वृषा धर्माणि दधिषे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषा । सोम । द्युऽमान् । असि । वृषा । देव । वृषऽव्रतः । वृषा । धर्माणि । दधिषे ॥ ९.६४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 64; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 36; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मनो गुणा वर्ण्यन्ते।

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! त्वं (द्युमानसि) दीप्तिमानसि। तथा (वृषा) समस्ताभीष्टवर्षकोऽसि। तथोपासकानां हृदयानि (वृषा) स्नेहेन सिञ्चसि। (देव) हे दिव्यगुणसम्पन्न ! भवान् (वृषव्रतः) आनन्दवर्षणशीलं ददाति। (वृषा धर्माणि दधिषे) तथा वर्षणशीलधर्मधारकोऽस्ति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब परमात्मा के गुणों का वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (द्युमान्) आप दीप्तिमान् (असि) हैं (वृषा) तथा सब कामनाओं की वर्षा करनेवाले हैं। (देव) हे देव ! आप (वृषव्रतः) अर्थात् आनन्द की वृष्टिरूप शील को धारण किये हुए हैं तथा उपासकों के हृदयों को (वृषा) स्नेह से सिञ्चन करते हैं (वृषा धर्माणि दधिषे) और वर्षणशील धर्मों को धारण किये हुए हैं ॥१॥

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! आप नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्त-स्वभाव हैं और आपकी मर्यादा में ही सब लोक-लोकान्तर स्थिर हैं। आप अपनी धर्ममर्यादा में हमको भी स्थिर कीजिये ॥१॥

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    विषय

    'वृषा द्युमान्' सोम

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (वृषा) = शक्तिशाली है, हमें शक्ति-सम्पन्न बनाता है । (द्युमान् असि) = तू ज्योतिर्मय है, हमारी ज्ञान ज्योति को बढ़ानेवाला है । [२] हे (देव) = दिव्य गुणों को हमारे में उत्पन्न करनेवाले सोम तू वृषा शक्तिशाली है। (वृषव्रतः) = शक्तिशाली कर्मोंवाला है । [३] वृषा शक्तिशाली होता हुआ तू (धर्माणि) = धारणात्मक कर्मों को दधिषे हमारे में धारण करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें 'शक्तिशाली ज्योतिर्मय' जीवनवाला बनाता है। यह हमें शक्तिशाली कर्मोंवाला बनाता है और धारणात्मक कर्मों में हमें प्रवृत्त करता है ।

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    विषय

    सोम पवमान।

    भावार्थ

    हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! शास्तः ! प्रभो ! तू (वृषा) बलवान्, उत्तम प्रबन्धक, मेघवत् सुखों, ऐश्वर्यों का वर्षक, क्षेत्रों का उत्तम सेचक, (द्युमान् असि) कान्तिमान्, तेजस्वी है। हे (देव) देव ! तू (वृषा) इस प्रकार वर्षणशील होकर (वृष-व्रतः) जल-वर्षक मेघ के समान नियम-पूर्वक कार्य करने में समर्थ हो। तू (वृषा) बलवान् होकर (धर्माणि दधिषे) सब धर्मों, राजनियम, व्यवस्थाओं को धारण करने में समर्थ है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४, ७, १२, १३, १५, १७, १९, २२, २४, २६ गायत्री। २, ५, ६, ८–११, १४, १६, २०, २३, २५, २९ निचृद् गायत्री। १८, २१, २७, २८ विराड् गायत्री। ३० यवमध्या गायत्री ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, divine spirit of peace and prosperity, you are virile, omnipotent and generous, refulgent and abundant giver of light, self-committed to showers of generosity for humanity and all life in existence. O generous and mighty lord, you alone ordain, maintain and sustain the laws of Dharma in nature and humanity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे परमात्मा! तू नित्य शुद्ध-बद्ध-मुक्त स्वभावाचा आहेस व तुझ्या मर्यादेनेच सर्व लोकलोकांतर स्थिर आहेत. तू आपल्या धर्म मर्यादेत आम्हाला स्थिर कर. ॥१॥

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