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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 1
    ऋषिः - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुबाधन सूक्त
    4

    ये ऽमा॑वा॒स्यां॑३ रात्रि॑मु॒दस्थु॑र्व्रा॒जम॒त्त्रिणः॑। अ॒ग्निस्तु॒रीयो॑ यातु॒हा सो अ॒स्मभ्य॒मधि॑ ब्रवत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अ॒मा॒ऽवा॒स्याम् । रात्रि॑म् । उ॒त्ऽअस्थु॑: । व्रा॒जम् । अ॒त्त्रिण॑: । अ॒ग्नि: । तु॒रीय॑: । या॒तु॒ऽहा । स: । अ॒स्मभ्य॑म् । अधि॑ । व्र॒व॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ऽमावास्यां३ रात्रिमुदस्थुर्व्राजमत्त्रिणः। अग्निस्तुरीयो यातुहा सो अस्मभ्यमधि ब्रवत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अमाऽवास्याम् । रात्रिम् । उत्ऽअस्थु: । व्राजम् । अत्त्रिण: । अग्नि: । तुरीय: । यातुऽहा । स: । अस्मभ्यम् । अधि । व्रवत् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विघ्न के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) वे जो (अत्रिणः) उदरपोषक [खाऊ लोग] (अमावास्याम्) अमावसी में (रात्रिम्) विश्राम देनेहारी रात्रि को (व्राजम्) गोशालाओं पर [अथवा समूह के समूह] (उदस्थुः) चढ़ आये हैं। (सः) वह (तुरीयः) वेगवान् (यातुहा) राक्षसों का नाश करनेहारा (अग्निः) अग्नि [अग्निसदृश तेजस्वी राजा] (अस्मभ्यम्) हमारे हित के लिये (अधि) [उन पर] अधिकार जमा कर (ब्रवत्) घोषणा करे ॥१॥

    भावार्थ

    जो दुष्ट जन अन्धेरी रातों में गोशाला आदि पर धावा करके प्रजा को सतावें, तो प्रतापी राजा ऐसे राक्षसों से रक्षा करके राज्य भर में शान्ति फैलावे ॥१॥

    टिप्पणी

    १−अमा-वास्याम्। अमा+वस निवासे−घञ्। अमा साहित्येन चन्द्रार्कयोर्वासो यत्र। षिद्गौरादिभ्यश्च। पा० ४।१।४१। इति ङीष्। उदात्तस्वरितयोर्यणः स्वरितोऽनुदात्तस्य। पा० ८।२।४। इति स्वरितः। अमावस्यायां रात्रौ, महान्धकारे। रात्रिम्। राशदिभ्यां त्रिप्। उ० ४।६७। इति रा दानग्रहणयोः−त्रिप्, ददाति विश्रामं, गृह्णाति श्रमं च। कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे। पा० २।३।५। इति द्वितीया। रजनीम्। निशाकाले। उत्-अस्थुः। ष्ठा गतिनिवृत्तौ-लुङ्। उत्थितवन्तः, संचरणं कृतवन्तः। व्राजम्। तस्य समूहः पा० ४।२।३७। इति व्रज−अण् समूहे, नपुंसकत्वम्। गोष्ठसमूहम्। अथवा। क्रियाविशेषणम्। व्रजः=समूहः−अण्। अतिसमूहेन। अत्रिणः। १।७।३। अदनशीलाः, स्वार्थिनः, उदरपोषकाः। अग्निः। १।६।२। अग्निवत् तेजस्वी राजा। तुरीयः। तुरो वेगः। घच्छौ च। पा० ४।४।११७। इति तुर−छः प्रत्ययः, तत्र भव इत्यर्थे। वेगवान्। यातुहा। कृवापाजिमि० उ० १।१। इति यत ताडने−उण्। यातयतीति यातुः, राक्षसः। बहुलं छन्दसि। पा० ३।२।८८। इति यातूपपदे हन हिंसागत्योः−क्विप्। राक्षसघातकः। दुष्टनाशकः। अधि। अधिकृत्य, स्वामित्वेन। ब्रवत्। ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि-लेट्। ब्रूयात् ॥

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    विषय

    तुरीय अग्नि का उपदेश

    पदार्थ

    १. समाज में अच्छी-से-अच्छी व्यवस्था होने पर भी कुछ-न-कुछ न्यूनता रह ही जाती है और ऊँचे-से-ऊँचे समाज में भी कुछ दस्यु-प्रवृत्ति के लोग हो ही जाते हैं। ज्ञानी संन्यासी उपदेश देकर इन्हें उत्तम बनाने का प्रयत्न करें कि (ये) = जो (अमावास्याम् रात्रिम्) = अमावस की रात्रि में (वाजम्) = समूह में (उदस्थः) = उठ खड़े होते हैं, (अत्रिण:) = [अद् भक्षणे] ये औरों के खा जानेवाले होते हैं। चोर-डाकू प्राय: अन्धकार में ही अपना कार्य करते हैं, अतः यहाँ अमावस को रात्रि का उल्लेख है। प्रायः ये अकेले न होकर समूह में अपना कार्य करते हैं, अतः यहाँ 'वाजः' शब्द का प्रयोग है। अत्यन्त स्वार्थ से चलते हुए ये औरों का नाश करने में तनिक भी नहीं हिचकते, इससे इन्हें 'अत्तिण: ' कहा गया है। २. सबसे पहले इन्हें ज्ञान देकर, समझा बुझाकर ठीक मार्ग पर लाने का प्रयत्न करना चाहिए। यह कार्य संन्यासी के द्वारा सुसम्पन्न हो सकता है, अत: कहते हैं कि (अग्रि:) = ज्ञानदाता ब्राह्मण (तुरीय:) = जो चतुर्थ आश्रम में प्रवेश कर चुका है, (यातु-हा) = जो उपदेश द्वारा दैत्यों के दैत्यपन को नष्ट करनेवाला है, (स:) = वह, (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए, अर्थात् हमारी ओर से सारे समाज का प्रतिनिधि होकर अथवा हम सबके हित के लिए (अधिबवत्) = अधिकारपूर्वक उपदेश करता है। उस ज्ञानी तथा संन्यासी के उपदेश से प्रभावित होकर वह 'यातु' [Demon] यात नहीं रहता। अपनी बुराई को छोड़कर वह भी समाज का उपयोगी अङ्ग बन जाता है। -

    भावार्थ

    ज्ञानी संन्यासी उपदेश के द्वारा चोरों की मनोवृत्ति को बदलने का प्रयत्न करें।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (अत्रिणः) भक्षक चोर-डाकू या शत्रु सैनिकों का ( व्राजम् ) समूह, (अमावास्यां रात्रिम्) अमावास्या की रात्रि को निमित्त करके (उदस्थु:) उत्थान करते हैं [ आक्रमण करने के लिये ] (सः ) वह ( यातुहा) यातनाकारियों का हनन करनेवाला, (तुरीयः) तुरीयावस्था का परमेश्वर, (अग्निः) जो कि अग्निवत् प्रकाशस्वरूप है, (अस्मभ्यम् ) हमें (अधिब्रवत्) स्वाधिकारपूर्वक इसका उपदेश करे।

    टिप्पणी

    [ तुरीयः= माण्डू उप० (पाद १२ )। जो कि तुरीयावस्था का होता है न कि जो "ब्रवत्" रूप में तुर्यावस्था का है। "ब्रवत्" रूप में वह तुरीयावस्था का नहीं । अग्नि को "तुरीय:" कहा है यह दर्शाने के लिये कि यह अग्नि और कोई नहीं विना तुरीय ब्रह्म के। "ब्रवत्" अर्थात् बोलना या उपदेश देना चेतन अग्नि द्वारा ही सम्भव है, जड़-अग्नि द्वारा नहीं। ब्रवत्=परमेश्वर ने मन्त्रों द्वारा सीसे के प्रयोग का कथन किया ही है। ]

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    विषय

    दुष्टों के नाश का उपाय।

    भावार्थ

    (ये) जो दुष्ट पुरुष (अमावास्यां) चन्द्र के प्रकाश से रहित ( रात्रिम् ) रात्रि, अन्धकार के समय में ( अत्रिणः ) दूसरों का प्राण और धन चुरा कर खाजाने वाले लोग ( व्राजं ) गोल बांधकर डाका आदि मारने के लिये ( उद् अस्थुः ) उठखडे हों या बल पकड़ जाय तो ( तुरीयः ) विनाशकारी, तीव्र (सः ) वह ( यातुहा ) शत्रुनाशक ( अग्निः ) अग्नि, राष्ट्र का नायक अग्रणी ( अस्मभ्यम् ) हमें ( अधिब्रवत् ) इनके नाश करने के प्रकारों का उपदेश करे।

    टिप्पणी

    ‘भ्राजं’ इति सायणाभिमतः पाठः ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः । अग्नीन्द्रो, वरुणः, सीसश्च देवताः। १-३ अनुष्टुभः ४ ककुम्मती अनुष्टुप्। चतुऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Elimination of Thieves

    Meaning

    Those thieves and robbers who join in gangs and proceed in dark moonless night and attack others to rob them of their wealth are suckers. Let Agni, government power of peace and security, destroyer of evil at the fastest, warn us against these.

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    Subject

    Agni

    Translation

    About the vagabonds, who invade our hamlet during the night of new moon, let the powerful leader Agni, the fourth one, the destroyer of robbers, inform us before hand.

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    Translation

    The powerful Agni, the king who is the destroyer of wickeds, makes us know (through his declaration) dacoits and thieves who rise in gangs in the night of dark moon.

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    Translation

    May powerful king, who destroys the demons, bless and shelter us, from greedy friends who rise in troops at night-time when the moon is utterly dark.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−अमा-वास्याम्। अमा+वस निवासे−घञ्। अमा साहित्येन चन्द्रार्कयोर्वासो यत्र। षिद्गौरादिभ्यश्च। पा० ४।१।४१। इति ङीष्। उदात्तस्वरितयोर्यणः स्वरितोऽनुदात्तस्य। पा० ८।२।४। इति स्वरितः। अमावस्यायां रात्रौ, महान्धकारे। रात्रिम्। राशदिभ्यां त्रिप्। उ० ४।६७। इति रा दानग्रहणयोः−त्रिप्, ददाति विश्रामं, गृह्णाति श्रमं च। कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे। पा० २।३।५। इति द्वितीया। रजनीम्। निशाकाले। उत्-अस्थुः। ष्ठा गतिनिवृत्तौ-लुङ्। उत्थितवन्तः, संचरणं कृतवन्तः। व्राजम्। तस्य समूहः पा० ४।२।३७। इति व्रज−अण् समूहे, नपुंसकत्वम्। गोष्ठसमूहम्। अथवा। क्रियाविशेषणम्। व्रजः=समूहः−अण्। अतिसमूहेन। अत्रिणः। १।७।३। अदनशीलाः, स्वार्थिनः, उदरपोषकाः। अग्निः। १।६।२। अग्निवत् तेजस्वी राजा। तुरीयः। तुरो वेगः। घच्छौ च। पा० ४।४।११७। इति तुर−छः प्रत्ययः, तत्र भव इत्यर्थे। वेगवान्। यातुहा। कृवापाजिमि० उ० १।१। इति यत ताडने−उण्। यातयतीति यातुः, राक्षसः। बहुलं छन्दसि। पा० ३।२।८८। इति यातूपपदे हन हिंसागत्योः−क्विप्। राक्षसघातकः। दुष्टनाशकः। अधि। अधिकृत्य, स्वामित्वेन। ब्रवत्। ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि-लेट्। ब्रूयात् ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (যে) যে সব (অন্ত্ৰিণঃ) ভোজন প্রিয় ব্যক্তি (অমাবাস্যম্) অমাবস্যায় (রাত্রিং) রাত্রিতে (ব্রাজং) গোশালার উপর (উদদ্ভুঃ) আক্রমণ করে (সং) সেই (তুরীয়ঃ) বেগবান (য়াতুহা) রাক্ষসদের বিনাশ কর্তা (অগ্নিঃ) অগ্নিতুল্য তেজস্বী রাজা (অস্মভ্যম্) আমাদের হিতের জন্য (অধি) তাহাদের উপর অধিকার বিস্তার করিয়া (ব্রবৎ) ঘোষণা করুক।।

    भावार्थ

    যে সব স্বার্থপর লুণ্ঠক অন্ধকার রজনীতে গোশালা আক্রমণ করে সেই সব বেগবান রাক্ষসের বিনাশ কর্তা অগ্নিতুল্য তেজস্বী রাজা আমাদের হিতের জন্য তাহাদের উপর স্বীয় অধিকার বিস্তার করুক এবং সর্বত্র ইহায় ঘোষণা প্রচার করুক।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়েহ মাবাস্যাং ৩ রাত্রিমুদস্থ ব্রাজমন্ত্রিণঃ । অগ্নি স্তুরীয়ো য়াতুহা সো অস্মভ্যমধি ব্রবৎ।

    ऋषि | देवता | छन्द

    চাতনঃ। অগ্নিঃ। অনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (বিঘ্ননাশনোপদেশঃ) বিঘ্ন নাশের উপদেশ।

    भाषार्थ

    (যে) সেসব যে (অত্রিণঃ) উদরপোষক [খাদক] (অমাবাস্যাম্) অমাবস্যায় (রাত্রিম্) বিশ্রাম দানকারী রাত্রিতে (ব্রাজম্) গোশালা মধ্যে [অথবা গোষ্ঠী সমূহে] (উদস্থুঃ) আরোহণ করে এসেছে, (সঃ) সেই (তুরীয়ঃ) বেগবান (যাতুহা) রাক্ষসসমূহের বিনাশকারী (অগ্নিঃ) অগ্নি [অগ্নিসদৃশ তেজস্বী রাজা] (অস্মভ্যম্) আমাদের হিতের জন্য (অধি) [তাদের উপর] অধিকার প্রতিষ্ঠিত করে (ব্রবৎ) ঘোষণা করুক॥১॥

    भावार्थ

    যেসব দুষ্ট জন অন্ধকার রাতে গোশালা আদিতে আক্রমণ করে প্রজাকে উত্যক্ত করে, প্রতাপী রাজা এরূপ রাক্ষসদের থেকে রক্ষা করে সম্পূর্ণ রাজ্যে শান্তি প্রতিষ্ঠিত করুক॥১॥

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    भाषार्थ

    (যে) যে (অত্রিণঃ) ভক্ষক চোর-ডাকাত বা শত্রু সৈনিকদের (ব্রাজম্) সমূহ, (অমাবস্যাং রাত্রিম্) অমাবস্যার রাত্রিকে নিমিত্ত/উদ্দেশ্য করে (উদস্থুঃ) উত্থান করে [আক্রমণ করার জন্য], (সঃ) সেই (যাতুহা) যাতনাদায়ীদের হননকারী (তুরীয়ঃ) তুরীয়াবস্থার পরমেশ্বর, (অগ্নিঃ) যিনি অগ্নির সদৃশ প্রকাশস্বরূপ, (অস্মভ্যম্) আমাদের (অধি ব্রবৎ) স্বাধিকারপূর্বক এর উপদেশ করুন।

    टिप्पणी

    [তুরীয়= মাণ্ডু উপ০ (পাদ ১২)। যা তুরীয়াবস্থার হয় "ব্রবৎ" রূপে তুর্যাবস্থার নয়। "ব্রবৎ" রূপে তা তুরীয়াবস্থার নয়। অগ্নি কে "তুরীয়ঃ" বলা হয়েছে এটা বোঝানোর জন্য যে এই অগ্নি আর কেউ নয় বিনা তুরীয় ব্রহ্মের। "ব্রবৎ" অর্থাত্ বলা বা উপদেশ দেওয়া চেতন অগ্নি দ্বারাই সম্ভব, জড়-অগ্নি দ্বারা নয়। ব্রবৎ= পরমেশ্বর মন্ত্রের দ্বারা সীসার প্রয়োগের কথা বলেছেন।]

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