अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 1
आ॒रे॑३ ऽसा॑व॒स्मद॑स्तु हे॒तिर्दे॑वासो असत्। आ॒रे अश्मा॒ यमस्य॑थ ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒रे । अ॒सौ । अ॒स्मत् । अ॒स्तु । हे॒ति: । दे॒वा॒स॒: । अ॒स॒त् । आ॒रे । अश्मा॑ । यम् । अस्य॑थ॥
स्वर रहित मन्त्र
आरे३ ऽसावस्मदस्तु हेतिर्देवासो असत्। आरे अश्मा यमस्यथ ॥
स्वर रहित पद पाठआरे । असौ । अस्मत् । अस्तु । हेति: । देवास: । असत् । आरे । अश्मा । यम् । अस्यथ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
युद्ध का प्रकरण।
पदार्थ
(देवासः) हे विजयी शूरवीरो ! (असौ) वह (हेतिः) साँग वा बरछी (अस्मत्) हमसे (आरे) दूर (अस्तु) रहे और (अश्मा) वह पत्थर (आरे) दूर (असत्) रहे (यम्) जिसे (अस्यथ) तुम फैंकते हो ॥१॥
भावार्थ
युद्धकुशल सेनापति लोग चक्रव्यूह, पद्मव्यूह, मकरव्यूह, क्रौञ्चव्यूह, सूचीव्यूह आदि से अपनी सेना का विन्यास इस प्रकार करें कि शत्रु के अस्त्र-शस्त्र का प्रहार अपने प्रजा और सेना को न लगैं और न अपने अस्त्र-शस्त्र उलट कर अपने ही लगैं, किन्तु शत्रुओं का विध्वंस करैं ॥१॥
टिप्पणी
१−आरे। दूरे। असौ। सा शत्रुप्रयुक्ता। हेतिः। १।१३।३। खङ्गाद्यायुधं शक्तिनामास्त्रम्। देवासः। १।७।१। आज्जसेरसुक्। पा० ७।१।५०। इति असुक्। हे विजयिनो महात्मानः सेनापतयः। असत्। १।२२।२। भवेत्। अश्मा। १।२।२। मेघः, आयुधवृष्टिः। पाषाणः। यम्। अश्मानम्। अस्यथ। असु क्षेपणे-लट्, दिवादित्वात् श्यन्। यूयं क्षिपथ ॥
विषय
बिजली गिरना व ओले पड़ना
पदार्थ
१. उल्का आदि का गिरना अथवा बिजली का गिरना ही 'देवों के वज्र का गिरना' कहलाता है। (असौ) = वह (हेति:) = वज्रपात (अस्मत्) = हमसे आरे (अस्तु) - दूर हो। बिजली आदि के गिरने के आधिदैविक प्रकोप से हम बचे रहें। २. हे (देवास:) = देवो! (यम्) = जिसे (अस्यथ) - आप फेंकते हो वह (अश्मा) = पत्थर आरे (असत्) = हमसे दूर रहें। ओलों के रूप में ये पत्थर पड़ते हैं और सम्पूर्ण पकी खेती की हानि हो जाती है। यह भी एक प्रबल आधिदैविक आपत्ति है। ३. देवों से प्रार्थना करते हैं कि ये आपत्तियाँ हमसे दूर ही रहें। वस्तुत: इन्हें दूर रखने का उपाय यही है कि हम भी 'देव' बनें। देव बनकर ही आधिदैविक कष्टों को दूर रक्खा जा सकता है। देव बनने का स्थूलभाव ('देवो दानाद्वा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा') = इन शब्दों में सुव्यक्त है कि हम [क] देनेवाले बनें, [ख] ज्ञान की ज्योति से अपने को दीस करें, [ग] औरों के लिए ज्ञान-ज्योति देनेवाले हो।
भावार्थ
देव बनकर हम बिजली गिरने व ओले आदि पड़ने के आधिदैविक कष्टों से बच सकते हैं।
भाषार्थ
(देवासः) हे देवो! (असौ हेतिः) वह प्रेरित आयुध (अस्मत्) हमसे (आरे) दूर रहे। (आरे) दूर (असत्) हो ( अश्मा ) पत्थर अर्थात् वज्र (यम्) जिसको (अस्यथ) तुम फेंकते हो।
टिप्पणी
[देवासः= विजिगीषु हमारे सेनापति आदि; "दिवु क्रीड़ा विजिगीषा" आदि (दिवादिः)। निज सेनापति आदि से कहा है कि तुम हेति अर्थात् आयुध को इस प्रकार शत्रु पर फेंको कि उसका दुष्परिणाम हम पर न हो। अश्मा ही हेति है, अश्मा अशूङ् व्याप्तौ (स्वादिः)। यह ऐसा अस्त्र है जिसका कि दुष्परिणाम शत्रु पर और हम पर भी हो सकता है। अत: निजसेनापतियों को सावधान किया गया है। तामसास्त्र का दुष्परिणाम हम पर और शत्रु पर, दोनों पर हो सकता है। तामसास्त्र है अन्धकार फैला देनेवाला अस्त्र (अथर्व० ३।२।५, ६)।]
विषय
रक्षा, सभ्यता और शान्ति।
भावार्थ
( देवासः ) हे विजिगीषु सैनिक पुरुषो ! ( असौ ) यह ( हेतिः ) अस्त्र, हथियार ( यम् ) जिसको तुम ( अस्यथ ) शत्रुओं पर फेंकते हो वह ( अस्मद् ) हमसे ( आरे अस्तु ) दूर रहे और वह ( अः श्मा ) अश्मा = दृढ़ लोह या पाषाण का बना शस्त्र जिस को तुम फेंकते हो वह भी (आरे असत्) हमसे दूर ही रहे ।
टिप्पणी
(प्र० द्वि०) ‘आरे सा वः सुदानवो मरुत ऋञ्जती शरुः’। इति ऋ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। इन्दादयो मन्त्रोक्ता बहवो देवताः। १,३ गायत्री, २ त्रिपदा साम्नी त्रिष्टुप्। ४ पादनिचृत्। २, ४ एकावसाना। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Peace and Protection
Meaning
O Devas, potent forces of offence and defence, may that attack you launch upon the enemy be far from us. May that thunderous missile you shoot fall far off from us.
Subject
Indra and Others
Translation
O bounties of Nature, may that weapon (lightning) remain far from us and far the hail-stones, that you hurl.
Translation
O Ye army personnel’s; this weapon which you aim at enemies be away from us and be far away from us also the deadly weapon.
Translation
Ye conquering heroes, let that destructive weapon be far from us, far be the iron weapon Ye want to hurl.
Footnote
अश्मा literally means stone, but figuratively here it means an iron weapon.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−आरे। दूरे। असौ। सा शत्रुप्रयुक्ता। हेतिः। १।१३।३। खङ्गाद्यायुधं शक्तिनामास्त्रम्। देवासः। १।७।१। आज्जसेरसुक्। पा० ७।१।५०। इति असुक्। हे विजयिनो महात्मानः सेनापतयः। असत्। १।२२।२। भवेत्। अश्मा। १।२।२। मेघः, आयुधवृष्टिः। पाषाणः। यम्। अश्मानम्। अस्यथ। असु क्षेपणे-लट्, दिवादित्वात् श्यन्। यूयं क्षिपथ ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(দেবাসঃ) হে বিজয়ী শূরবীর! (অসৌ) সেই (হেতিঃ) বরশী অস্ত্র (অস্মৎ) আমাদের নিকট হইতে (আরে) দূরে (অদ্ভু) থাকুক, (অস্মা) প্রস্তর (আরে) দূরে (অসৎ) থাকুক (য়ম্) যাহা (অস্যথ) তুমি নিক্ষেপ করিতেছ।।
भावार्थ
হে বিজয়ী শূরবীর! তুমি যে সব অস্ত্র নিক্ষেপ করিতেছ তাহার মধ্যে বরশী অস্ত্র ও প্রস্তর আমাদের নিকট হইতে দূরে থাকুক।।
मन्त्र (बांग्ला)
আরে ৩ হসাবস্মদস্তু হেতি দেবাসো অসৎ। আরে অশ্মা য়মস্যথ।।
ऋषि | देवता | छन्द
ব্ৰহ্মা। ইন্দ্রাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। গায়ত্রী
मन्त्र विषय
(যুদ্ধপ্রকরণম্) যুদ্ধের প্রকরণ
भाषार्थ
(দেবাসঃ) হে বিজয়ী বীরগণ ! (অসৌ) সেই (হেতিঃ) বল্লম (অস্মৎ) আমাদের থেকে (আরে) দূরে (অস্তু) থাকুক এবং (অশ্মা) সেই পাথর (আরে) দূরে (অসৎ) থাকুক (যম্) যেগুলো (অস্যথ) তোমরা নিক্ষেপ করো ॥১॥
भावार्थ
যুদ্ধকুশল সেনাপতিগণ চক্রব্যূহ, পদ্মব্যূহ, মকরব্যূহ, ক্রৌঞ্চব্যূহ, সূচীব্যূহ আদি দ্বারা নিজের সেনার বিন্যাস এভাবে করবেন যেন শত্রুর অস্ত্র-শস্ত্রের প্রহার নিজের প্রজা এবং সেনাকে আঘাত না করে এবং না নিজের অস্ত্র-শস্ত্র উল্টো নিজেদেরকেই আঘাত করে, বরং শত্রুদের বিধ্বংস করে ॥১॥
भाषार्थ
(দেবাসঃ) হে দেবগণ ! (অসৌ হেতিঃ) সেই প্রেরিত অস্ত্র (অস্মৎ) আমাদের থেকে (আরে) দূরে থাকুক। (আরে) দূরে (অসৎ) থাকুক (অশ্মা) পাথর অর্থাৎ বজ্র (যম্) যা (অস্যথ) তুমি নিক্ষেপ করো।
टिप्पणी
[দেবাসঃ= বিজিগীষু আমাদের সেনাপতি আদি; "দিবু ক্রীড়া বিজিগীষা" আদি (দিবাদিঃ)। নিজ সেনাপতিদের বলেছে যে, তুমি হেতি অর্থাৎ অস্ত্র এমনভাবে শত্রুর দিকে নিক্ষেপ করো যাতে তার অপপ্রয়োগ কখনো আমাদের প্রতি না হয়। অশ্মা-ই হেতি, অশ্মা অশূঙ্ ব্যাপ্তৌ (স্বাদিঃ)। এটা এমন অস্ত্র যার দুষ্পরিণাম শত্রুর প্রতি এবং আমাদের প্রতিও হতে পারে। অতএব নিজ সেনাপতিদের সচেতন করা হয়েছে। তামশাস্ত্রের দুষ্পরিণাম আমাদের প্রতি এবং শত্রুর প্রতি, উভয়ের প্রতি হতে পারে। তামশাস্ত্র হলো অন্ধকার বিস্তারকারী অস্ত্র (অথর্ব০ ৩।২।৫, ৬)।]
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