अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 35/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - हिरण्यम्, इन्द्राग्नी, विश्वे देवाः
छन्दः - जगती
सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
3
यदाब॑ध्नन्दाक्षाय॒णा हिर॑ण्यं श॒तानी॑काय सुमन॒स्यमा॑नाः। तत्ते॑ बध्ना॒म्यायु॑षे॒ वर्च॑से॒ बला॑य दीर्घायु॒त्वाय॑ श॒तशा॑रदाय ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । आ॒ऽब॑ध्नन् । दा॒क्षा॒य॒णा: । हिर॑ण्यम् । श॒तऽअ॑नीकाय । सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑ना: । तत् । ते॒ । ब॒ध्ना॒मि॒ । आयु॑षे । वर्च॑से । बला॑य । दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑ । श॒तऽशा॑रदाय ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं शतानीकाय सुमनस्यमानाः। तत्ते बध्नाम्यायुषे वर्चसे बलाय दीर्घायुत्वाय शतशारदाय ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । आऽबध्नन् । दाक्षायणा: । हिरण्यम् । शतऽअनीकाय । सुऽमनस्यमाना: । तत् । ते । बध्नामि । आयुषे । वर्चसे । बलाय । दीर्घायुऽत्वाय । शतऽशारदाय ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सुवर्ण आदि धन प्राप्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जिस (हिरण्यम्) कामनायोग्य विज्ञान वा सुवर्णादि को (दाक्षायणाः) बल की गति रखनेवाले, परम उत्साही (सुमनस्यमानाः) शुभचिन्तकों ने (शतानीकाय) सौ सेनाओं के लिये (अबध्नन्) बाँधा है। (तत्) उसको (आयुषे) लाभ के लिये, (वर्चसे) यश के लिये, (बलाय) बल के लिये और (शतशारदाय) सौ शरद् ऋतुओंवाले (दीर्घायुत्वाय) चिरकाल जीवन के लिये (ते) तेरे (बध्नामि) मैं बाँधता हूँ ॥१॥
भावार्थ
जिस प्रकार कामनायोग्य उत्तम विज्ञान और धन आदि से दूरदर्शी, शुभचिन्तक, शूरवीर विद्वान् लोग बहुत सेना लेकर रक्षा करते हैं, उसी प्रकार सब मनुष्य विज्ञान और धन की प्राप्ति से संसार में कीर्त्ति और सामर्थ्य बढ़ावें और अपना जीवन सुफल करें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है। अ० ३४ म० ५२ ॥
टिप्पणी
१−यत्। हिरण्यम्। आ। समन्तात्। अबध्नन्। बन्ध बन्धने−लङ्। अधारयन्, अस्थापयन्। दाक्षायणाः। दक्ष−अयनाः। दक्ष वृद्धौ−अच्। दक्षते प्रवृद्धये समर्थो भवतीति। दक्षः, बलम्। निघ० २।९। अय गतौ−ल्युट्। अयनं गतिः। पूर्वपददीर्घत्वं छान्दसम्। दक्षस्य बलस्य अयनं गतिर्येषां ते दाक्षायणाः। परमोत्साहिनः शूरवीरा विद्वांसो वा। हिरण्यम्। १।९।२। कमनीयं विज्ञानम्। सुवर्णादिकं धनम्। शत-अनीकाय। दिक्संख्ये संज्ञायाम्। पा० २।१।५०। इति तत्पुरुषः। शत सेनाप्राप्तये। सु-मनस्यमानाः। कर्तुः क्यङ् सलोपश्च। पा० ३।१।११। इति मनस्−क्यङ्, विकल्पत्वादत्र सकारभावः, ततो लटः शानच्। शोभनं मनः कुर्वन्ते सुमनस्यन्ते सुमनायन्ते वा ते सुमनस्यमानाः, शोभनं ध्यायन्तः शुभचिन्तकाः सज्जनाः। बध्नामि। बन्ध बन्धने−क्र्यादि। धारयामि। आयुषे। १।३०।३। ईयते प्राप्यते यत्तद् आयुः। आयाय, लाभाय। वर्चसे। १।९।४। तेजसे, यशसे। बलाय। १।१।१। पराक्रमाय। दीर्घायु-त्वाय। दॄ विदारणे−घञ्। छन्दसीणः। उ० १।२। इति इण् गतौ−उण्−आयुः। भावे त्व प्रत्ययः। लम्बमानजीवनाय, चिरकालजीवनाय। शत−शारदाय। सन्धिवेलाद्यृतुनक्षत्रेभ्योऽण्। पा० ४।३।१६। इति शरद्−अण्। शरदृतोः संबन्धी कालः संवत्सरः। शतसंवत्सरयुक्ताय ॥
विषय
हिरण्य-बन्धन
पदार्थ
१. (दाक्षायण:) = [दक्ष-to grow] सब प्रकार की उन्नति की कामनावाले (सुमनस्यमानाः) = सौमनस्य [मन की प्रसन्नता] को चाहनेवाले लोग (शतानीकाय) = सौ-के-सौ वर्ष तक बल की स्थिरता के लिए (यत्) = जिस (हिरण्यम्) = हितरमणीय वीर्यशक्ति को (आबध्नन्) = अपने अन्दर बाँधते हैं, (तत्) = उस हिरण्य को (ते) = तेरे लिए (दीर्घायुत्वाय) = तेरा जीवन दीर्घ हो, (शतशारदाय) = तू पूरे सौ वर्ष तक चल सके, इसलिए धारण करता हूँ कि (वर्चसे) = तुझमें वर्चस् हो, वह प्राणशक्ति हो जो शरीर में रोगकृमियों से संघर्ष में विजय प्राप्त करती है और (बलाय) = तेरा मन बलवान् बने।
भावार्थ
वीर्यरक्षा से [क] सब प्रकार की उन्नति सम्भव होती है [दाक्षायणाः], [ख] मन प्रसन्न रहता है [सुमनस्यमानाः], दीर्घजीवन की प्राप्ति होती है, [घ] शरीर वर्चस्वी होता है और [ङ] मन सबल बनता है।
भाषार्थ
(दाक्षायणाः) वृद्धि के निवासभूत आचार्यों ने, ( सुमनस्यमानाः) सुप्रसन्न हुए, (शतानीकाय) सौ वर्षों तक के जीवन के लिये, (यद् हिरण्यम्) जो हिरण्यसदृश बहुमूल्य वीर्य को (आबध्नन्) वांधा था [निज शरीरों में, उसे च्युत न होने दिया था] (तत्) उस वीर्य को (ते) तेरे शरीर में (बध्नामि) मैं बाँधता हूँ, स्थिर करता हूँ, (आयुषे) सुखी जीवन के लिए, (वर्चसे) तेज के लिये, (बलाय) शारीरिक बल के लिये, (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ जीवनकाल के लिये, (शतशारदाय) सौ वर्षों तक जीवन के लिए।
टिप्पणी
[ब्रह्मचारी का आचार्य ब्रह्मचारी को वीर्य स्थिर रखने की विधि सिखाता है। दाक्षायणा:= दक्ष वृद्धौ (भ्वादि:)+ अयनाः। अनीकाय =अन प्राणने (अदादिः)। तथा "दक्षः बलनाम" (निघं० २।९) दाक्षायणा:= दक्षिणायण+ अण् (स्वार्थे)। आबध्नन् = इस द्वारा नित्य वैदिक प्रथा का कथन किया है, ब्रह्मचारी को इस प्रथा के सम्बन्ध में विश्वास दिलाने के लिए। मन्त्र (२) में इसका विशेष कथन हुआ है।]
विषय
दीर्घ जीवन का उपाय।
भावार्थ
ब्रह्मचर्यसाधना का उपदेश करते हैं । ( दाक्षायणाः ) दक्ष रूप आत्मा के आश्रय पर रहने वाले योगी लोग ( सुमनस्यमानाः ) शुभ संकल्प वाले होकर ( शतानीकाय ) सैकड़ों अनीक, बल, सामर्थ्यों और आयु के शत वर्षों तक जीने हारे देह के लिये ( हिरण्यं ) हितकारी और अति रमणीय (यत्) जिस वीर्य को (आ बध्नन्) विषयों में नष्ट होने से रोक कर उसकी रक्षा करते हैं (तत्) उसको मैं आचार्य ( ते ) तुझ शिष्य के ( आयुषे ) आयु ( वर्चसे ) तेज, ( बलाय ) बल और ( शतशारदाय ) सौ वर्षों तक के लम्बे ( दीर्घायुत्वाय ) दीर्घ जीवन के लिये ( बध्नामि ) अपने अधीन व्रत रूप में नियत या व्यवस्थित करता हूं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
आयुष्कमोऽथर्वा ऋषिः। हिरण्यं विश्वेदेव वा देवताः। १-३ जगत्यः। ४ अनुष्टुप् गर्भा चतुष्पदा त्रिष्टुप्। चतुर्ऋचं सूक्तम् ।
इंग्लिश (4)
Subject
Health, Efficiency and Long Age
Meaning
That golden glowing discipline of life which the sages of holy life and enlightened mind hold, observe and prescribe for a life of hundredfold efficiency, I confer on you with commitment for a full age of hundred years of good health, strength of body and mind, honour and lustre.
Subject
Hiranyam - Gold
Translation
The gold, which the children of the dexterous tie affectionately to the commander of a hundred (Satanika) armies; that I tie to you for vital power, for lustre, for strength and a long life of hundred autumns.
Translation
I bind you O man; for life, for brilliance, for vigour and long life lasting through hundred autumns, with that gold ornaments which the persons knowing the medical utility of gold desiring healthy mind bind to the man desirous of multi cornered benefit.
Translation
The yogis, who live for the purity of soul, full of noble thoughts, preserve the precious semen for the body, that it may last for a hundred years, so I, thy preceptor, O pupil, advise thee to preserve it for longevity, glory, strength and a long life of a hundred autumns.
Footnote
In the opinion of Griffith, Daksha is in the Veda a creative power associated with Aditi (Infinity or Eternity) the mother of Adityas. This interpretation is illogical as there is no history in the Vedas. Dakshayană means self-controlled yogis and noble persons, who preserve their precious semen. See Yajur, 34-52.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−यत्। हिरण्यम्। आ। समन्तात्। अबध्नन्। बन्ध बन्धने−लङ्। अधारयन्, अस्थापयन्। दाक्षायणाः। दक्ष−अयनाः। दक्ष वृद्धौ−अच्। दक्षते प्रवृद्धये समर्थो भवतीति। दक्षः, बलम्। निघ० २।९। अय गतौ−ल्युट्। अयनं गतिः। पूर्वपददीर्घत्वं छान्दसम्। दक्षस्य बलस्य अयनं गतिर्येषां ते दाक्षायणाः। परमोत्साहिनः शूरवीरा विद्वांसो वा। हिरण्यम्। १।९।२। कमनीयं विज्ञानम्। सुवर्णादिकं धनम्। शत-अनीकाय। दिक्संख्ये संज्ञायाम्। पा० २।१।५०। इति तत्पुरुषः। शत सेनाप्राप्तये। सु-मनस्यमानाः। कर्तुः क्यङ् सलोपश्च। पा० ३।१।११। इति मनस्−क्यङ्, विकल्पत्वादत्र सकारभावः, ततो लटः शानच्। शोभनं मनः कुर्वन्ते सुमनस्यन्ते सुमनायन्ते वा ते सुमनस्यमानाः, शोभनं ध्यायन्तः शुभचिन्तकाः सज्जनाः। बध्नामि। बन्ध बन्धने−क्र्यादि। धारयामि। आयुषे। १।३०।३। ईयते प्राप्यते यत्तद् आयुः। आयाय, लाभाय। वर्चसे। १।९।४। तेजसे, यशसे। बलाय। १।१।१। पराक्रमाय। दीर्घायु-त्वाय। दॄ विदारणे−घञ्। छन्दसीणः। उ० १।२। इति इण् गतौ−उण्−आयुः। भावे त्व प्रत्ययः। लम्बमानजीवनाय, चिरकालजीवनाय। शत−शारदाय। सन्धिवेलाद्यृतुनक्षत्रेभ्योऽण्। पा० ४।३।१६। इति शरद्−अण्। शरदृतोः संबन्धी कालः संवत्सरः। शतसंवत्सरयुक्ताय ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(য়) যে (হিরণ্যম্) কামনা যোগ্য বিজ্ঞান বা সুবর্ণাদিকে (দাক্ষায়ণাঃ) পরম উৎসাহী (সুমন্যমানঃ) শুভচিন্তকেরা (শতানীকায়) শত শত সৈন্যের জন্য (অবধ্নন্) বাধিয়াছে (তৎ) তাহাকে (আয়ুষে) লাভের জন্য (বর্চসে) যশের জন্য (বলায়) বলের জন্য ও (শত শারদায়) শতবর্ষ ব্যাপী (দীর্ঘায়ু ত্বায়) দীর্ঘ জীবনের জন্য (তে) তোমার (বধ্নামি) আমি বাধিতেছি।।
भावार्थ
পরম উৎসাহী শুভ চিন্তকেরা সৈন্যদের জন্য যে কামনার যোগ্য সুবর্ণাদি সঞ্চয় করিয়াছেন লাভ, যশ, বল ও শত বর্ষব্যাপী আয়ুষ্কালের জন্য তাতা আমি সঞ্চয় করিতেছি।।
मन्त्र (बांग्ला)
য়দাবধ্নন্ দাক্ষায়ণা হিরণ্যং শতানীকায় সুমনস্য মানাঃ। তত্তে বধ্নাম্যায়ুষে বৰ্চসে বলায় দীর্ঘায়ুত্বায় শত শারদায়।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা (আয়ুষ্কামঃ)। হিরণ্যম্। জগতী
मन्त्र विषय
(সুবর্ণাদিধনলাভোপদেশঃ) সুবর্ণ আদি ধন প্রাপ্তির জন্য উপদেশ
भाषार्थ
(যৎ) যে (হিরণ্যম্) কামনাযোগ্য বিজ্ঞান বা সুবর্ণাদিকে (দাক্ষায়ণাঃ) বলের গতি ধারণকারী, পরম উৎসাহী (সুমনস্যমানাঃ) শুভচিন্তকগণ (শতানীকায়) শত সেনাদের জন্য (অবধ্নন্) বন্ধন করেছে, (তৎ) তা (আয়ুষে) লাভের/প্রাপ্তির জন্য, (বর্চসে) যশের জন্য, (বলায়) বলের জন্য এবং (শতশারদায়) শত শরৎ ঋতুসম্পন্ন (দীর্ঘায়ুত্বায়) চিরকাল জীবনের/দীর্ঘায়ুর জন্য (তে) তোমায় (বধ্নামি) আমি বন্ধন করি ॥১॥
भावार्थ
যেভাবে কামনাযোগ্য উত্তম বিজ্ঞান এবং ধন আদি দ্বারা দূরদর্শী, শুভচিন্তক, বীর বিদ্বানগণ বহু সেনা নিয়ে রক্ষা করেন, তেমনিভাবে সব মনুষ্য বিজ্ঞান এবং ধন প্রাপ্তি দ্বারা সংসারে কীর্তি এবং সামর্থ্য বৃদ্ধি করবে এবং নিজের জীবন সফল করবে ॥১॥ এই মন্ত্র কিছু ভেদে যজুর্বেদে রয়েছে। অ০ ৩৪ ম০ ৫২ ॥
भाषार्थ
(দাক্ষায়ণাঃ) বৃদ্ধির নিবাসভূত আচার্যগণ, (সুমনস্যমানাঃ) সুপ্রসন্ন হয়ে, (শতানীকায়) শত বছর পর্যন্ত জীবনের জন্য (যদ্ হিরণ্যম্) যে হিরণ্যসদৃশ বহুমূল্য বীর্যকে (আবধ্নন্) বেঁধেছিলেন/বদ্ধ করেছিলেন [নিজ শরীরে, তা চ্যুত হতে দেননি] (তৎ) সেই বীর্যকে (তে) তোমার শরীরে (বধ্নামি) আমি বন্ধন করি, স্থির করি, (আয়ুষে) সুখী জীবনের জন্য, (বর্চসে) তেজের জন্য, (বলায়) শারীরিক বলের জন্য, দীর্ঘায়ুত্বায়) দীর্ঘ জীবনকালের/দীর্ঘায়ুর জন্য, (শতশারদায়) শত বছর পর্যন্ত জীবনের জন্য।
टिप्पणी
[ব্রহ্মচারীর আচার্য ব্রহ্মচারীকে বীর্য স্থির রাখার বিধি শেখান। দাক্ষায়ণাঃ=দক্ষ বৃদ্ধৌ (ভ্বাদিঃ) + অয়নাঃ। অনীকায় =অন প্রাণনে (অদাদিঃ)। তথা "দক্ষঃ বলনাম" (নিঘং০ ২।৯)। আবধ্নন্= এর দ্বারা নিত্য বৈদিক প্রথার কথন করা হয়েছে, ব্রহ্মচারীকে এই প্রথার সম্বন্ধে বিশ্বাস দেওয়ার জন্য। মন্ত্র (২) এ ইহার বিশেষ কথন হয়েছে।]
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