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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
    ऋषिः - नारायणः देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त
    17

    केन॒ पार्ष्णी॒ आभृ॑ते॒ पूरु॑षस्य॒ केन॑ मां॒सं संभृ॑तं॒ केन॑ गु॒ल्फौ। केना॒ङ्गुलीः॒ पेश॑नीः॒ केन॒ खानि॒ केनो॑च्छ्ल॒ङ्खौ म॑ध्य॒तः कः प्र॑ति॒ष्ठाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    केन॑ । पार्ष्णी॒ इति॑ । आभृ॑ते॒ इत्याऽभृ॑ते । पुरु॑षस्य । केन॑ । मां॒सम् । सम्ऽभृ॑तम् । केन॑ । गु॒ल्फौ । केन॑ । अ॒ङ्गुली॑: । पेश॑नी: । केन॑ । खानि॑ । केन॑ । उ॒त्ऽश्ल॒ङ्खौ । म॒ध्य॒त: । क: । प्र॒ति॒ऽस्थाम् ॥२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    केन पार्ष्णी आभृते पूरुषस्य केन मांसं संभृतं केन गुल्फौ। केनाङ्गुलीः पेशनीः केन खानि केनोच्छ्लङ्खौ मध्यतः कः प्रतिष्ठाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    केन । पार्ष्णी इति । आभृते इत्याऽभृते । पुरुषस्य । केन । मांसम् । सम्ऽभृतम् । केन । गुल्फौ । केन । अङ्गुली: । पेशनी: । केन । खानि । केन । उत्ऽश्लङ्खौ । मध्यत: । क: । प्रतिऽस्थाम् ॥२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यशरीर की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (केन) किस करके (पुरुषस्य) मनुष्य की (पार्ष्णी) दोनों एड़ियाँ (आभृते) पुष्ट की गयीं, (केन) किस करके (मांसम्) मांस (संभृतम्) जोड़ा गया, (केन) किस करके (गुल्फौ) दोनों टकने। (केन) किस करके (पेशनीः) सुन्दर अवयवोंवाली (अङ्गुलीः) अङ्गुलियाँ, (केन) किस करके (खानि) इन्द्रियाँ, (केन) किस करके (उच्छ्लङ्खौ) दोनों उच्छ्लङ्ख [पाँव के तलवे, जोड़े गये], (कः) किस ने [भूगोल के] (मध्यतः) बीचों-बीच (प्रतिष्ठाम्) ठिकाना [पाँव रखने को, बनाया] ॥१॥

    भावार्थ

    मन्त्र १-४ प्रश्न हैं। जिज्ञासु सदा खोजता रहे कि मनुष्य का अद्भुत शरीर, अद्भुत अङ्ग, और स्थान आदि किस अद्भुत स्वरूप ने बनाये हैं ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(केन) प्रश्ने (पार्ष्णी) अ० २।३३।५। गुल्फस्याधोभागौ (आभृते) सम्यक् पोषिते (पुरुषस्य) अ० १।१६।४। मनुष्यस्य (केन) (मांसम्) शरीरधातुविशेषः (संभृतम्) संयोजितम् (केन) (गुल्फौ) कलिगलिभ्यां फगस्योच्च। उ० ५।२६। गल अदने−फक्, अकारस्य उत्वम्। पादग्रन्थी (केन) (अङ्गुलीः) अङ्गुलयः (पेशनीः) पिश अवयवे-ल्युट्, ङीप्। पेशन्यः। उत्तमावयवयुक्ताः (केन) (खानि) खन विदारे−ड। छिद्राणि। इन्द्रियाणि (केन) (उच्छ्लङ्खौ) उत्+श्लकि गतौ-अच्। कस्य खः। द्वे पादतले (मध्यतः) भूगोलमध्य इत्यर्थः (कः) (प्रतिष्ठाम्) (पादाश्रयम्, चकारेति शेषः ॥

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    विषय

    'पार्ष्णी-प्रतिष्ठा' केन?

    पदार्थ

    १. (पूरुषस्य) = पुरुषदेह की (पार्ष्णी) = दोनों एडियों (केन आभृते) = किसने बनायी हैं? (मांसं केन संभृतम्) = मांस को किसने सम्यक् भूत [धारित] किया है? (केन गुल्फौ) = किसने गिट्टों को लगाया है? २. (केन पेशनी:) = किसने सुन्दर अवयवोंवाली [पिश अवयवे] (अंगुली:) = अंगुलियों को संभृत किया है? (केन खानि) = किसने इन्द्रिय-छिद्रों को बनाया है? (केन उच्छ्लङ्खौ) = [उत् श्लंक गतौ] किसने उत्कृष्ट गतिवाले दोनों शिर:कपाल बनाये हैं? (मध्यतः) = शरीर के मध्य में (क:) = किसने (प्रतिष्ठाम्) = बैठने के आधारभूत 'श्रोणिफलक'-नितम्ब बनाये हैं?

    भावार्थ

    एक-एक अंग की रचना में प्रभु की महिमा दृष्टिगोचर होती है।

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    भाषार्थ

    (केन) किस ने (पुरुषस्य) पुरुष की (पार्ष्णी) दो एड़ियां (आभृते) पुष्ट की हैं, या जोड़ी हैं; (केन) किस ने (मांसम्, संभृतम्) मांस मढ़ा है, या संगृहीत किया है; (केन) किस ने (गुल्फौ) दो गिट्टे या पैरों और टांगों के मध्यवर्ती जोड़ [Ankles] जोड़े हैं। (केन) किस ने (पेशनीः) सुन्दर अवयवों वाली (अङ्गुलीः) अङ्गुलियां; (केन) किस ने (खानि) इन्द्रियों के गढ़े; (केन) किस ने (उच्छलङ्खौ) उछलने के लिये दो तलवे, (क) किस ने (मध्यतः) शरीर का मध्यवर्ती (प्रतिष्ठाम्) आधारभूत धड़ जोड़ा है।१

    टिप्पणी

    [आभृते = आ+भृ (भृञ् धारणपोषणयोंः) + क्त; अथवा आहृते (हृग्रहोर्भः छन्दसि)। पेशनीः= “पेशः रूपनाम” (निघं० ३‌।७), तथा पिश अवयवे (तुदादिः)। खानि= खनु अवदारणे (भ्वादिः), तथा “पराञ्चि खानि व्यतृणत् स्वयम्भूः (कठ० उप० २।४।१)। खानि में “खनु”, तथा व्यंतृणत् में “तृद” लगभग समानार्थक हैं। उच्छ्लङ्खा= उत् +शल (गतौ, भ्वादिः) + खम् (अवकाश), प्रपदों और पार्ष्णियों के मध्यवर्ती अवकाश, जो कि उछलने में सहायक होता है। प्रतिष्ठा= गर्दन, दो बाहुमूलों तथा कटिभागों की स्थिति का आधार, धड़।] [१. काण्ड १०।२ अथर्ववेद का केन सुक्त है, जैसे कि "केन० उपनिषद्”।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kena Suktam

    Meaning

    Like Kenopanishad, this Sukta begins with the interrogative ‘Kena, By whom’: What is the cause? The Sukta explores the cause of human existence at the individual, social and spiritual level. The first eight mantras explore the cause of the formation of the human body: Who designed, shaped, finished and juxtaposed the heels of man (i.e., the human being)? Who formed the flesh? Who the ankles? By whom were the beautiful nimble fingers formed? By whom the soles of feet? And who brought about the balance at the centre of gravity?

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    Subject

    Purusa - Brahma - Prakašanam

    Translation

    By whom the two heels of men were formed ? By whom the flesh was put on ? By whom the two ankles ? By whom the beautiful fingers ? By whom the orifices ? By whom the two foot-soles and who gave him support in the middle ? (Pārgņī = heals; gulpha = ankle; anguli = finger; kha = orifice for organs; ucchalsankha = foot-soles; pratistha = Support).

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    Translation

    Who did frame the heels of this man? Who did fashion the flesh of him? Who did form and fix his ankles? Who does make the openeing and the well-moulded fingers? Who does give him the foot-soles and who does provides him with central stamina?

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    Translation

    Who framed the heels of man! Who fashioned the flesh of him! Who formed and fixed his ankles! Who made the beautiful fingers! Who made the organs! Who gave him foot-soles! Who made the central haunches to sit upon!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(केन) प्रश्ने (पार्ष्णी) अ० २।३३।५। गुल्फस्याधोभागौ (आभृते) सम्यक् पोषिते (पुरुषस्य) अ० १।१६।४। मनुष्यस्य (केन) (मांसम्) शरीरधातुविशेषः (संभृतम्) संयोजितम् (केन) (गुल्फौ) कलिगलिभ्यां फगस्योच्च। उ० ५।२६। गल अदने−फक्, अकारस्य उत्वम्। पादग्रन्थी (केन) (अङ्गुलीः) अङ्गुलयः (पेशनीः) पिश अवयवे-ल्युट्, ङीप्। पेशन्यः। उत्तमावयवयुक्ताः (केन) (खानि) खन विदारे−ड। छिद्राणि। इन्द्रियाणि (केन) (उच्छ्लङ्खौ) उत्+श्लकि गतौ-अच्। कस्य खः। द्वे पादतले (मध्यतः) भूगोलमध्य इत्यर्थः (कः) (प्रतिष्ठाम्) (पादाश्रयम्, चकारेति शेषः ॥

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