अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - वरणमणिः, वनस्पतिः, चन्द्रमाः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सपत्नक्षयणवरणमणि सूक्त
2
अ॒यं मे॑ वर॒णो म॒णिः स॑पत्न॒क्षय॑णो॒ वृषा॑। ते॒ना र॑भस्व॒ त्वं शत्रू॒न्प्र मृ॑णीहि दुरस्य॒तः ॥
स्वर सहित पद पाठअयम् । मे॒ । व॒र॒ण: । म॒णि: । स॒प॒त्न॒ऽक्षय॑ण: । वृषा॑ । तेन॑ । आ । र॒भ॒स्व॒ । त्वम् । शत्रू॑न् । प्र । मृ॒णी॒हि॒ । दु॒र॒स्य॒त: ॥३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं मे वरणो मणिः सपत्नक्षयणो वृषा। तेना रभस्व त्वं शत्रून्प्र मृणीहि दुरस्यतः ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । मे । वरण: । मणि: । सपत्नऽक्षयण: । वृषा । तेन । आ । रभस्व । त्वम् । शत्रून् । प्र । मृणीहि । दुरस्यत: ॥३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सब सम्पत्तियों के पाने का उपदेश।
पदार्थ
(अयम्) यह (मणिः) प्रशंसनीय (वरणः) वरण [स्वीकार करने योग्य वैदिक बोध, अथवा वरना वा वरुण औषध] (मे) मेरे (सपत्नक्षयणः) वैरियों का नाश करनेवाला (वृषा) वीर्यवान् है। [हे प्राणी !] (तेन) उस से (त्वम्) तू (शत्रून्) शत्रुओं को (आ रभस्व) पकड़ ले, और (दुरस्यतः) दुराचारियों को (प्र मृणीहि) मार डाल ॥१॥
भावार्थ
जैसे सद्वैद्य वरण आदि औषध द्वारा शरीर के रोगों का नाश करता है, वैसे ही विद्वान् वेदविद्या द्वारा आत्मिक दोष मिटावे ॥१॥ (वरणः) वरण औषधिविशेष है, उसका वर्णन इस प्रकार है−देखो भावप्रकाश, पूर्णखण्ड, वटादिवर्ग, श्लोक ५६।५७ ॥ वरुण [के नाम] वरण, सेतु, तिक्तशाक, कुमारक हैं। वरना पित्तकारक, मलभेदक, और कफ़, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, वात, गुल्म, वात से उत्पन्न रक्तविकार और कृमि को मिटाता है, वह उष्ण, अग्नि को दीपन करनेवाला, कसैला, मधुर, कड़वा, चर्परा, रूखा और हलका होता है ॥१॥
टिप्पणी
१−(अयम्) प्रसिद्धः (मे) मम (वरणः) अ० ६।८५।१। वृञ् वरणे स्वीकरणे-युच्। स्वीकरणीयः। वेदबोधः। वरुणौषधिर्वा (मणिः) अ० १।२९।१। मण कूजे-इन्। प्रशंसनीयः (सपत्नक्षयणः) शत्रुनाशकः (वृषा) वीर्यवान् (तेन) (आरभस्व) निगृहाण (त्वम्) (शत्रून्) (प्रमृणीहि) सर्वथा मारय (दुरस्यतः) अ० १।२९।२। दुरस्य-शतृ। दुष्टीयतः। अनिष्टं कर्तुमिच्छून् ॥
विषय
'सपत्नक्षयण: वृषा' वरणो मणिः
पदार्थ
१. (अयं) = यह (मे) = मेरी (मणि:) = वीर्यमणि (वरण:) = सब रोगों का निवारण करनेवाली है। (सपनक्षयण:) = वासनारूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाली है। (वृषा) = हममें शक्ति व सुखों का सेचन करनेवाली है। (तेन) = उस वरण-मणि के द्वारा (त्वम्) = तू (शत्रून् आरभस्व) = रोगादि शत्रुओं को पकड़ ले [sieze, grasp] और इन (दुरस्यतः) = दुष्ट कामनावालों को-अशुभ चाहनेवालों को (प्रमृणीहि) = कुचल दे।
भावार्थ
वीर्य बरणमणि है, यह शत्रुओं का निवारण करनेवाली है। शत्रुओं के निवारण के द्वारा यह हममें सुखों का सेचन करनेवाली है।
भाषार्थ
(मे) मैरा (अयम्, वरणः) यह शत्रुनिवारक [सेनाध्यक्ष] (मणिः) श्रेष्ठमणिरूप है, (सपत्नक्षयणः) शत्रुओं का क्षय करने वाला, (वृषा) और सुखों की वर्षा करने वाला है। (तेन) उस द्वारा (त्वम्) तू (शत्रून्, आरभस्व) शत्रुओं को पकड़ और (दुरस्यतः) दुःखदायी अस्त्रों के फैंकने वालों को (प्र मृणीहि) पूर्णतया मार।
टिप्पणी
[राजा, युद्ध की उपस्थिति में सेना के सर्वोच्चाधिकारी को आदेश देता है। तथा वैद्य रुग्णावस्था में रोगी के प्रति कहता है कि यह मुझ द्वारा प्रदत्त "वरण" नामक औषधि श्रेष्ठमणिरूप है, इस द्वारा तू रोग-शत्रु का क्षय कर, यह तेरे लिए सुखप्रद है, इस द्वारा रोग या रोगोत्पादक कारणों का तू हनन कर, जो रोग या रोग कारण तुझ पर प्रहार करते हैं। दुरस्यतः = दुर् + असु (क्षेपणे), (दिवादिः) + शतृ + द्वितीया बहुवचन]।
इंग्लिश (4)
Subject
Warding off Rival Adversaries
Meaning
The theme of this sukta is Varanamani, ‘choice jewel’ to keep off, prohibit, ward off and fight out enemies. Varana is a rampart, also called ‘Varuna’ and ‘Setu’ and this also implies water and bridge, something like a moat crossable by a draw-bridge. Mani is a jewel, ornament, amulet, globule, crystal, also a magnet, lodestone. The choice of interpretation of Varana-mani then is between: (a) an amulet, a magical formula, to ward off and fight out the adversaries, if possible in a scientific age; (b) the choice and deployment of weapons; and (c) a combination of ‘a’ and ‘b’: a strategy and technique of defence with the right choice of the commander, personnel, weapons and tactics which can give wonderful results against the enemies. This is my jewel choice of defence, the right commander and strategist, destroyer of enemies, strong, virile, and producer of wondrous results. With this you engage the enemies, destroy them all who have launched the attack.
Subject
Varana - manih - Vanaspatih
Translation
This protective blessing of mine is a mighty destroyer of rivals, With this may you take hold of the enemies. May you crush those, who would injure you. .
Translation
[N.B.: Varana in this hymn is a plant which is used in medicines. It is called in present days as Gataeva Rox-burghii. The word Mani is not here to mean stone. Here it stands to mean as highly effectual As the Varuna is highly effectual so it is called Mani.] This is my highly effectual Varana herb which is the slayer of diseases. Our enemies and is strong in power. With this attach on the diseases, O man! And crush them which cause injury to you.
Translation
Here is my laudable Vedic knowledge, slayer of rivals, strong in action. O man, with this grasp thou thine enemies, crush those who fain would injure thee.
Footnote
Varna is also the name of a medicine, vide Bhava Prakasha Purvakhanda, Vatativerga Shalok 56, 57. Pt. Khem Karan Das Trivedi has translated it as Vedic knowledge. Pt. Jaidev Vidyalankar translates it as general of the army. Griffith translates this as charm, amulet.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(अयम्) प्रसिद्धः (मे) मम (वरणः) अ० ६।८५।१। वृञ् वरणे स्वीकरणे-युच्। स्वीकरणीयः। वेदबोधः। वरुणौषधिर्वा (मणिः) अ० १।२९।१। मण कूजे-इन्। प्रशंसनीयः (सपत्नक्षयणः) शत्रुनाशकः (वृषा) वीर्यवान् (तेन) (आरभस्व) निगृहाण (त्वम्) (शत्रून्) (प्रमृणीहि) सर्वथा मारय (दुरस्यतः) अ० १।२९।२। दुरस्य-शतृ। दुष्टीयतः। अनिष्टं कर्तुमिच्छून् ॥
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