अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - दैवी जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
1
तस्मै॒ प्राच्या॑दि॒शः ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मै॑ । प्राच्या॑: । दि॒श: ॥४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्मै प्राच्यादिशः ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मै । प्राच्या: । दिश: ॥४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के रक्षा गुण का उपदेश।
पदार्थ
(तस्मै) उस [विद्वान्]के लिये (प्राच्याः) पूर्व (दिशः) दिशा से ॥१॥
भावार्थ
विद्वान् लोग निश्चयकरके मानते हैं कि जो मनुष्य परमात्मा में विश्वास करता है, वह पुरुषार्थी जनपूर्वादि दिशाओं और वसन्त आदि ऋतुओं में सुरक्षित रहता है ॥१-३॥
टिप्पणी
१−(तस्मै) विदुषे जनाय (प्राच्याः) पूर्वायाः (दिशः) दिक्सकाशात् ॥
विषय
प्राच्याः दिशः
पदार्थ
१. (तस्मै) = उस व्रात्य के लिए (प्राच्याः दिश:) = पूर्व दिशा से सब देव (वासन्तौ मासौ) = वसन्त ऋतु के दो मासों को (गोसारौ अकुर्वन्) = रक्षक बनाते हैं (च) = तथा (बृहत् रथन्तरं च) = हदय की विशालता तथा शरीर-रथ से जीवन-यात्रा को पूर्ण करने की प्रवृत्ति को (अनुष्ठातारौ) = विहित कार्यसाधक बनाते हैं। (एनम्) = इस व्रात्य को (वासन्तौ मासौ) = वसन्त ऋतु के दो मास (प्राच्याः दिशः गोपायत:) = पूर्व दिशा से रक्षित करते हैं (च) = तथा (बृहत् रथन्तरं च) = हृदय की विशालता तथा शरीर-रथ से भव-सागर को तैरने की प्रवृत्ति (अनुतिष्ठत:) = उसके कर्तव्य-कर्मों को करनेवाले होते हैं। इस व्यक्ति के ये कर्तव्य साधक होते हैं, (य:) = जो (एवं वेद) = इस तत्त्व को समझ लेता है, वह 'बृहत् और रथन्तर' के महत्त्व को जान लेता है।
भावार्थ
व्रात्य को वसन्त के दो मास पूर्व दिशा से रक्षित करते हैं और बृहत् तथा रथन्तर' इसे कर्तव्य-कर्मों में प्रवृत्त करते हैं।
भाषार्थ
(तस्मै) उस व्रात्य-संन्यासी के लिए (प्राच्याः दिशः) पूर्वदिशा से—
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
For that Vratya, from the eastern quarter...
Translation
For him (Vratya) from the eastern region.
Translation
They made the two spring months his protectors, atmosphere, and the world conquerable through noble traits his attendants.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(तस्मै) विदुषे जनाय (प्राच्याः) पूर्वायाः (दिशः) दिक्सकाशात् ॥
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