Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 2 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वाक् देवता - आसुरी अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    2

    निर्दु॑रर्म॒ण्यऊ॒र्जा मधु॑मती॒ वाक् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि: । दु॒:ऽअ॒र्म॒ण्य᳡: । ऊ॒र्जा । मधु॑ऽमती । वाक् ॥२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    निर्दुरर्मण्यऊर्जा मधुमती वाक् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नि: । दु:ऽअर्मण्य: । ऊर्जा । मधुऽमती । वाक् ॥२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।

    पदार्थ

    (ऊर्जा) शक्ति के साथ (मधुमती) ज्ञानयुक्त (वाक्) वाणी (दुरर्मण्यः) दुर्गति से (निः) पृथक् [होवे]॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य हैकि वे समझ-बूझ कर सदा सत्य वचन बोल कर दृढ़ प्रतिज्ञावाले होवें, जिससे उनकेजीवन में शक्ति बढ़े और कभी निन्दा न होवे ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(निः) बहिर्भवतु (दुरर्मण्यः)सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। दुः+ऋ गतिप्रापणयोः-मनिन्। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा०४।१।५। इति ङीप्, पञ्चमीरूपम्। दुरर्मण्याः। दुर्गतेः (ऊर्जा) ऊर्जबलप्राणनयोः-क्विप्। शक्त्या (मधुमती) ज्ञानवती (वाक्) वाणी ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मधुरवाणी

    पदार्थ

    १. गतसूक्त के भाव के अनुसार कामाग्नि के शान्त होने पर तथा रेत:कणों के रक्षित होने पर (दुःअर्मण्यः) = [a disease of the eye]-जीवन को दु:खमय बनानेवाला आँख का रोग (नि:) = हमसे दूर हो। ये रेत:कण हमें 'शिवचक्षु' प्राप्त कराएँ। हम आँखों से मृदु को ही देखें। न हमारी आँखें अभद्र को देखें और न ही हम अशुभ बाणी बोलें। हमारी (वाक्) = वाणी (ऊर्जा) = बल व प्राणशक्ति के साथ (मधुमती:) = अत्यन्त माधुर्य को लिये हुए हो। २. हे शरीरस्थ रेत:कण! [आपः] तुम (मधुमती: स्थ) = अत्यन्त माधुर्यवाले हो-शरीर में सुरक्षित होकर तुम सारे जीवन को मधुर बनाते हो। तुम्हारा रक्षण होने पर (मधुमती वाचम् उदेयम्) = अत्यन्त मधुर ही वाणी को बोलूँ।

    भावार्थ

    रेत:कणों के रक्षण के द्वारा हमारे चक्षु आदि इन्द्रियों के रोग दूर हों। हम शिव ही देखें और हमारी वाणी ओजस्विनी व मधुर हो। रेत:कण हमारे जीवन को अतिशयेन मधुर बनाते हैं। मैं मधुर ही वाणी बोलूँ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (निर्दुरर्मण्यः) बुरे चक्षु रोगों का निराकरण, (ऊर्जा) बल और प्राणशक्ति, (मधुमती वाक्) तथा मधुर वाणी [हमें प्राप्त हो]।

    टिप्पणी

    [निर्दुरर्मण्यः= निर्+दुर्+अर्मन्+ङीप्+प्रथमा का बहुवचन। अर्मन्=ऋ+मन् (उणा० १।१४०) चक्षूरोगः (महर्षि दयानन्द)। मन् प्रत्यय में "न्" का लोप न होकर "ऋन्नेभ्यो ङीप् (अष्टा० ५।१।८) द्वारा ङीप्। नैतिक दृष्टि से चक्षूरोग=बुरी दृष्टि से देखना, आंखों के इशारों द्वारा बातचीत करना, विषयों के प्रति आंखों की चञ्चलता आदि। उर्जा= ऊर्ज् बल प्राणनयोः।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vak Devata

    Meaning

    Let adversity be away. Let there be strength and energy all round. Let speech be honey sweet.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject

    Vak (speech)

    Translation

    Away from dirty rubbish, comes out the vigorous and honey-sweet speech.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let there calamity be driven aways and powerful speech be sweet.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let misfortune be away. Let my speech be forceful and sweet.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(निः) बहिर्भवतु (दुरर्मण्यः)सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४५। दुः+ऋ गतिप्रापणयोः-मनिन्। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा०४।१।५। इति ङीप्, पञ्चमीरूपम्। दुरर्मण्याः। दुर्गतेः (ऊर्जा) ऊर्जबलप्राणनयोः-क्विप्। शक्त्या (मधुमती) ज्ञानवती (वाक्) वाणी ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top