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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रजापति देवता - आर्ची अनुष्टुप् छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    1

    जि॒तम॒स्माक॒मुद्भि॑न्नम॒स्माक॑म॒भ्यष्ठां॒ विश्वाः॒ पृत॑ना॒ अरा॑तीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जि॒तम् । अ॒स्माक॑म् । उत्ऽभि॑न्नम् । अ॒स्माक॑म् । अ॒भि । अ॒स्था॒म् । विश्वा॑: । पृत॑ना: । अरा॑ती: ॥९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जितमस्माकमुद्भिन्नमस्माकमभ्यष्ठां विश्वाः पृतना अरातीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जितम् । अस्माकम् । उत्ऽभिन्नम् । अस्माकम् । अभि । अस्थाम् । विश्वा: । पृतना: । अराती: ॥९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (जितम्) जय किया हुआवस्तु (अस्माकम्) हमारा और (उद्भिन्नम्) निकासी किया हुआ धन (अस्माकम्) हमारा [हो], (विश्वाः) [शत्रुओं की] सब (पृतनाः) सेनाओं और (अरातीः) कंजूसियों को (अभिअस्थाम्) मैंने रोक दिया है ॥१॥

    भावार्थ

    पराक्रमी वीर पुरुषशत्रुओं को जीतकर और उन से कर लेकर अपने वश में रक्खे ॥१॥यह मन्त्र आचुका है-अ०१०।५।३६ ॥

    टिप्पणी

    १−(जितम्) जयेन प्राप्तम् (अस्माकम्) धर्मात्मनाम् (उद्भिन्नम्)उद्भेदनं स्फुरणम्। आयधनम् (अस्माकम्) (अभि अस्थाम्) अभिभूतवानस्मि (विश्वाः)सर्वाः (पृतनाः) शत्रुसेनाः (अरातीः) अदानशीलताः ॥

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    विषय

    शत्रुसैन्याभिभव

    पदार्थ

    १. गतसूक्त के अनुसार बाह्य शत्रुओं को, काम, क्रोध आदि मानस शत्रुओं को तथा शारीर रोगों को दूर करके (अस्माकं जितम्) = हमारा विजय हो। (अस्माकम् उद्भिन्नम्) = हमारा उदय-ही उदय होता चले। (विश्वा:) = सब (अराती: पृतना:) = शत्रु-सेनाओं को (अभ्यष्ठाम्) = मैंने पादाक्रान्त किया है-उनपर अधिष्ठित हुआ है। इनको पराजित करके ही तो विजय व उन्नति सम्भव होता है।

    भावार्थ

    शत्रु-सैन्यो का पराभव करके हम संसार में विजयी व उन्नत बनें।

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    भाषार्थ

    (जितम्) जो जीता है वह (अस्माकम्) हमारा हो गया है, (उद्भिन्नम्) पृथिवी का उद्भेदन कर के जो वनोपवन हुए हैं वे (अस्माकम्) हमारे हो गये हैं, (विश्वाः) शत्रु की सब (अरातीः) अदानी अर्थात् कंजूस प्रजाओं, और (पृतनाः) सेनाओं पर (अभ्यष्ठाम्) मैं अधिष्ठित हुआ हूं, या उन के समक्ष विजयी रूप में खड़ा हूं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में राजा की उक्ति है। अथवा जितम्, उद्भिन्नम् = भावेक्त, अर्थात् जीत हमारी हुई है, शत्रुदल का उद्भेदन हमने किया है। अभ्यष्ठाम् = अध्यष्ठाम्। यथा "स्वज श्वाभिष्ठितो दश" (अथर्व० ५।१४।१०), अभिष्ठित अर्थात् अधिष्ठित, पादाक्रान्त हुए सांप की तरह कीट। दश =डस, काट। दशन =दांत ]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    What we have won is ours. What is broke open, uncovered and recovered is ours. I have won all battles and frustrated all enemy’s hostile tactics.

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    Subject

    To Secure Wealth

    Translation

    Ours be the conquest; ours be the rise-up. May I withstand all thé enemy hordes.

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    Translation

    May conquest be on our side, may advancement with its results be with us and may I overcome all the malices and spites,

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    Translation

    Let us be victorious. Let us be prosperous. I have conquered all the hostile forces.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(जितम्) जयेन प्राप्तम् (अस्माकम्) धर्मात्मनाम् (उद्भिन्नम्)उद्भेदनं स्फुरणम्। आयधनम् (अस्माकम्) (अभि अस्थाम्) अभिभूतवानस्मि (विश्वाः)सर्वाः (पृतनाः) शत्रुसेनाः (अरातीः) अदानशीलताः ॥

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