Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 27
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - याजुषी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    1

    अक्षि॑तिं॒भूय॑सीम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अक्षि॑तिम् । भूय॑सीम् ॥४.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अक्षितिंभूयसीम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अक्षितिम् । भूयसीम् ॥४.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 27
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    यजमान के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [और वह उनको] (भूयसीम्) अधिकतर (अक्षितिम्) क्षयरहित क्रिया [निरन्तर जाने] ॥२७॥

    भावार्थ

    यज्ञ करानेवाला पुरुषयथाविधि संशोधित तिल, जौ, चावल आदि जिन सामग्रियों से हवन करता है, उसके द्वारावायुमण्डल की शुद्धि से संसार का उपकार और यजमान का अधिक पुण्य होता है ॥ २६, २७॥

    टिप्पणी

    २७−(अक्षितिम्)क्षयरहितां क्रियाम् (भूयसीम्) अधिकतराम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अक्षिति

    पदार्थ

    १, हे साधक! तू प्रभु के अनुग्रह से (भूयसीम्) = बहुत अधिक (अक्षितिम्) = न नष्ट होने देनेवाली अन्न-सम्पत्ति को प्राप्त कर।

    भावार्थ

    हमारे घरों में उन उत्तम अत्रों की कमी न हो जो हमारी नीरोगता व निर्मलता के साधक बनते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    वह उपज तेरे लिए (अक्षितिम्) न क्षीण होनेवाली मात्रा में हो, (भूयसीम्) और प्रभूतमात्रा में हो। उसकी स्वीकृति राजा तुझे प्रदान करे।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    देवयान और पितृयाण।

    भावार्थ

    हे पुरुष ! नियन्ता परमेश्वर की अनुपति से तू (भूयसीम्) बहुत (अक्षितिम्) कभी क्षय न होने वाली, अक्षय सम्पत्ति को चिरकाल तक भोग कर। तै० आ० में ‘एषा ते यमसादने स्वधा निधीयते गृहे अक्षितिर्नाम ते असौ’। (तै० आ० ६। ७। २॥) गृह में संचित अन्न ही अक्षिति है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। यमः, मन्त्रोक्ताः बहवश्च देवताः (८१ पितरो देवताः ८८ अग्निः, ८९ चन्द्रमाः) १, ४, ७, १४, ३६, ६०, भुरिजः, २, ५,११,२९,५०, ५१,५८ जगत्यः। ३ पश्चपदा भुरिगतिजगती, ६, ९, १३, पञ्चपदा शक्वरी (९ भुरिक्, १३ त्र्यवसाना), ८ पश्चपदा बृहती (२६ विराट्) २७ याजुषी गायत्री [ २५ ], ३१, ३२, ३८, ४१, ४२, ५५-५७,५९,६१ अनुष्टुप् (५६ ककुम्मती)। ३६,६२, ६३ आस्तारपंक्तिः (३९ पुरोविराड्, ६२ भुरिक्, ६३ स्वराड्), ६७ द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्, ६८, ७१ आसुरी अनुष्टुप, ७२, ७४,७९ आसुरीपंक्तिः, ७५ आसुरीगायत्री, ७६ आसुरीउष्णिक्, ७७ दैवी जगती, ७८ आसुरीत्रिष्टुप्, ८० आसुरी जगती, ८१ प्राजापत्यानुष्टुप्, ८२ साम्नी बृहती, ८३, ८४ साम्नीत्रिष्टुभौ, ८५ आसुरी बृहती, (६७-६८,७१, (८६ एकावसाना), ८६, ८७, चतुष्पदा उष्णिक्, (८६ ककुम्मती, ८७ शंकुमती), ८८ त्र्यवसाना पथ्यापंक्तिः, ८९ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, शेषा स्त्रिष्टुभः। एकोननवत्यृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    May there be nothing wanting, may there be inexhaustible abundance, more and ever more, by the grace of Yama.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    A more abundant inexhaustibleness.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Yajmana, May All-controlling God grant you in exhaustible wealth or immortality lastion long.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    A greater, more abundant inexhaustibleness.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २७−(अक्षितिम्)क्षयरहितां क्रियाम् (भूयसीम्) अधिकतराम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top