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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अभय सूक्त
    2

    अ॑सप॒त्नं पु॒रस्ता॑त्प॒श्चान्नो॒ अभ॑यं कृतम्। स॑वि॒ता मा॑ दक्षिण॒त उ॑त्त॒रान्मा॑ शची॒पतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स॒प॒त्नम्। पु॒रस्ता॑त्। प॒श्चात्। नः॒। अभ॑यम्। कृ॒त॒म्। स॒वि॒ता। मा॒। द॒क्षि॒ण॒तः। उ॒त्त॒रात्। मा॒। शची॒ऽपतिः॑ ॥१६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असपत्नं पुरस्तात्पश्चान्नो अभयं कृतम्। सविता मा दक्षिणत उत्तरान्मा शचीपतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    असपत्नम्। पुरस्तात्। पश्चात्। नः। अभयम्। कृतम्। सविता। मा। दक्षिणतः। उत्तरात्। मा। शचीऽपतिः ॥१६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अभय और रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (नः) हमारे लिये (मा) मुझको (पुरस्तात्) सामने [वा पूर्वदिशा] से (पश्चात्) पीछे [वा पश्चिम] से, (दक्षिणतः) दाहिनी और [वा दक्षिण] से और (मा) मुझको (उत्तरात्) बाईं ओर [वा उत्तर] से (सविता) सर्वप्ररेक राजा और (शचीपतिः) वाणियों वा कर्मों का पालनेवाला [मन्त्री], तुम दोनों (असपत्नम्) शत्रुरहित और (अभयम्) निर्भय (कृतम्) करो ॥१॥

    भावार्थ

    जहाँ पर राजा और मन्त्री अपनी वाणी और कर्म में पक्के होते हैं, उस राज्य में प्रजागण शत्रुओं से सुरक्षित रहते हैं ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(असपत्नम्) शत्रुरहितम् (पुरस्तात्) अग्रे। पूर्वस्यां दिशि (पश्चात्) पश्चाद् भागे पश्चिमस्यां दिशि (नः) अस्मभ्यम् (अभयम्) (कृतम्) लोटि छान्दसं रूपम्। युवां कुरुतम् (सविता) सर्वप्रेरको राजा (मा) माम् (दक्षिणतः) दक्षिणभागे। दक्षिणस्यां दिशि (उत्तरात्) उपरिभागे। उत्तरस्यां दिशि (मा) माम् (शचीपतिः) शची वाङ्नाम-निघ०१।११ कर्मनाम-निघ०२।१। वाणीनां कर्मणां वा पालको मन्त्री ॥

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    विषय

    असपत्नम्-अभयम्

    पदार्थ

    १. (न:) = हमारे लिए (पुरस्तात्) = सामने से (असपत्नम्) = शत्रराहित्य (कृतम्) = किया जाए और (पश्चात्) = पोछे से [न:] हमारे लिए (अभयं कृतम्) = निर्भयता प्राप्त कराई जाए। २. सविता वह सर्वप्रेरक प्रभु (मा) = मुझे (दक्षिणत:) = दक्षिण से रक्षित करे तथा (शचीपति:) = सब शक्तियों व प्रज्ञानों का स्वामी प्रभु मुझे (उत्तरात्) = उत्तर से बचाये।

    भावार्थ

    हमें पूर्व से शत्रुराहित्य प्राप्त हो तो पश्चिम से निर्भयता मिले । दक्षिण से सविता मेरा रक्षक हो तो उत्तर से शचीपति मेरा रक्षण करे।

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    भाषार्थ

    (नः) हमारा (सविता) राष्ट्र का प्रेरक राजा, तथा (शचीपतिः) राष्ट्र के ज्ञान-विज्ञान वाणियों और नानाविध कर्मों का अधिपति प्रधानमन्त्री (मा मा) मुझ प्रत्येक प्रजाजन को (पुरस्तात्) पूर्व से, (पश्चात्) पश्चिम से, (दक्षिणतः) दक्षिण से, (उत्तरात्) उत्तर से (असपत्नम्) (शत्रुरहित), तथा (अभयम्) भयरहित (कृतम्) करें।

    टिप्पणी

    [कृतम्= कुरुतम् (सायण)। शचीपतिः= शची प्रज्ञानाम (निघं० ३।९); वाङ्नाम (निघं० १।११); कर्मनाम (निघं० २।१)। सविता=षू प्रेरणे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Fear

    Meaning

    May Savita, inspirer of life, and Shachipati, master of power and noble action, make us free from fear and from enemies from the east and from the west. May they render us free from fear and enemies from the south and from the north.

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    Subject

    To divinities for safety and protection

    Translation

    Freedom from rivals in the east and freedom from fear in the west has been secured for us. May the impeller Lord guard me from the south and the Lord of action from the north.

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    Translation

    Our front is free from foes and there has been done without danger our bind quarter. Savitar, the creator of universe has made me secure from south and Shachipatih, the master of power and wisdom (the king) has made me safe from north.

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    Translation

    May king, the prime-mover of all things in the land and the wielder of power, the army-chief may provide us freedom from enemies, in the front and from fear from behind. May they make fearless from the right side (or south) as well as from the left (or north).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(असपत्नम्) शत्रुरहितम् (पुरस्तात्) अग्रे। पूर्वस्यां दिशि (पश्चात्) पश्चाद् भागे पश्चिमस्यां दिशि (नः) अस्मभ्यम् (अभयम्) (कृतम्) लोटि छान्दसं रूपम्। युवां कुरुतम् (सविता) सर्वप्रेरको राजा (मा) माम् (दक्षिणतः) दक्षिणभागे। दक्षिणस्यां दिशि (उत्तरात्) उपरिभागे। उत्तरस्यां दिशि (मा) माम् (शचीपतिः) शची वाङ्नाम-निघ०१।११ कर्मनाम-निघ०२।१। वाणीनां कर्मणां वा पालको मन्त्री ॥

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