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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - साम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
    1

    अ॒ग्निं ते वसु॑वन्तमृच्छन्तु। ये मा॑ऽघा॒यवः॒ प्राच्या॑ दि॒शोऽभि॒दासा॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निम्। ते। वसु॑ऽवन्तम्। ऋ॒च्छ॒न्तु॒। ये। मा॒। अ॒घ॒ऽयवः॑। प्राच्याः॑। दि॒शः। अ॒भि॒ऽदासा॑त्॥ १८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निं ते वसुवन्तमृच्छन्तु। ये माऽघायवः प्राच्या दिशोऽभिदासात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निम्। ते। वसुऽवन्तम्। ऋच्छन्तु। ये। मा। अघऽयवः। प्राच्याः। दिशः। अभिऽदासात्॥ १८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    रक्षा के प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (ते) वे [दुष्ट] (वसुवन्तम्) श्रेष्ठ गुणों के स्वामी (अग्निम्) ज्ञानस्वरूप परमेश्वर की (ऋच्छन्तु) सेवा करें। (ये) जो (अघायवः) बुरा चीतनेवाले (मा) मुझे (प्राच्याः) पूर्व वा सामनेवाली (दिशः) दिशा से (अभिदासात्) सताया करें ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्न करें कि पापी लोग दुष्टाचरण छोड़कर सर्वनियन्ता परमेश्वर की आज्ञा में रहकर सर्वत्र सबको सुख देवें ॥१॥

    टिप्पणी

    इस सूक्त के मन्त्रों को यथाक्रम गत सूक्त के मन्त्रों से मिलाओ ॥१−(अग्निम्) ज्ञानस्वरूप परमेश्वरम् (ते) अघायवः (वसुवन्तम्) संज्ञायाम्। पा०८।२।११। इति मतोर्वः। श्रेष्ठगुणस्य स्वामिनम् (ऋच्छन्तु) ऋच्छतिः परिचरणकर्मा-निघ०३।५। परिचरन्तु। सेवन्ताम् (ये) (मा) माम् (अघायवः) अघ-क्यच् परेच्छायाम्। अश्वाघस्यात्। पा०७।४।३७। इत्यात्त्वम्। क्याच्छन्दसि। पा०३।२।१७०। इति उ प्रत्ययः। पापमिच्छन्तः। जिघांसवः। (प्राच्याः) पूर्वस्याः। अभिमुखीभूतायाः (दिशः) (अभिदासात्) लेटि बहुवचनस्यैकवचनम्। सर्वतो दासेयुः। हिंस्युः ॥

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    विषय

    'आगे बढ़ने की भावना' व पापवृत्तियों का निराकरण

    पदार्थ

    १.(ये) = जो (अघायवः) = [malicious, harmful] अशुभ को चाहनेवाले हानिकर भाव (प्राच्यः दिश:) = पूर्व दिशा की ओर से (मा) = मुझे (अभिदासात्) = [दसु उपक्षये] उपक्षीण [हिंसित] करना चाहें, (ते) = वे (वसुवन्तम्) = सब वसुओंवाले-निवास के लिए आवश्यक तत्त्वोंवाले (अग्निम्) = अग्रणी प्रभु को (ऋच्छन्तु) = [ऋच्छ-reach, fail in faculties] प्राप्त होकर क्षीणशक्ति हो जाएँ। २. इस पूर्वदिशा में अग्नि' प्रभु वसुओं के साथ मेरा रक्षण कर रहे हैं। जो भी दास्यवभाव इधर से मुझपर आक्रमण करता है, वह इस प्रभु को प्रास होकर नष्ट हो जाता है। प्रभु रक्षक हैं तो ये मुझ तक पहुँच ही कैसे सकते हैं?

    भावार्थ

    पूर्वदिशा से कोई पाप मुझपर आक्रमण नहीं कर सकता। इधर तो 'अग्नि' नामक प्रभु मेरा रक्षण कर रहे हैं न? आगे बढ़ने की प्रवृत्ति 'अग्नि' मुझे अशुभ भावनाओं से बचाती हैं।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (अघायवः) पापेच्छुक-हत्यारे (प्राच्याः दिशः) पूर्वदिशा से (मा) मेरा (अभिदासात्) क्षय करें, (ते) वे (वसुवन्तम्) वसुओं के स्वामी (अग्निम्) ज्योतिर्मय जगदग्रणी अर्थात् जगन्नेता [के न्यायदण्ड] को (ऋच्छन्तु) प्राप्त हों।

    टिप्पणी

    [वसुवन्तम्= वसुओं और प्राची दिशा, तथा उसके साथ अग्नि के सम्बन्ध के परिज्ञान के लिए, तथा इसी प्रकार वर्तमान सूक्त के अन्य मन्त्रों के स्पष्टीकरण के लिए पूर्वसूक्त (१७) द्रष्टव्य है। अग्निम्=अग्रणीम् (निरु० ७.४.१४) अघायवः=अघेच्छवः, अघं हन्तेर्निर्ह्रसितोपसर्ग आहन्तीति (निरु० ६.३.११)। अभिदासात्=दसु उपक्षये। ऋच्छन्तु=ऋछ् गतौ। वैदिकसंध्यागत मनसा-परिक्रमा के मन्त्रों में “योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः तं वो जम्भे दध्मः” का अभिप्राय सूक्त १८ वें के मन्त्रों में लक्षित होता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Protection and Security

    Meaning

    To the dispensation of Agni, light of life, with the Vasus, life sustainers, may they proceed in the course of justice who are of evil and negative nature and treat and hurt me as an enemy, from the eastern direction.

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    Subject

    For protection : To various God.

    Translation

    To the adorable Lord with the Vasus, may they go (for their destruction), who, of sinful intent, invade me from the eastern quarter.

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    Translation

    Let those mischief—mongers who harass me from the east surrender them to self-refulgent God followed by Vasus.

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    Translation

    May the violent enemies, who come from the eastern or front quarter, with evil intention of killing us, come to our leading commander, surround¬ ed by youthful warriors, to meet their death.

    Footnote

    The whole of the sukta deals with the mighty, crushing power of the army to deal a death-blow to all evil-designs of the enemy.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस सूक्त के मन्त्रों को यथाक्रम गत सूक्त के मन्त्रों से मिलाओ ॥१−(अग्निम्) ज्ञानस्वरूप परमेश्वरम् (ते) अघायवः (वसुवन्तम्) संज्ञायाम्। पा०८।२।११। इति मतोर्वः। श्रेष्ठगुणस्य स्वामिनम् (ऋच्छन्तु) ऋच्छतिः परिचरणकर्मा-निघ०३।५। परिचरन्तु। सेवन्ताम् (ये) (मा) माम् (अघायवः) अघ-क्यच् परेच्छायाम्। अश्वाघस्यात्। पा०७।४।३७। इत्यात्त्वम्। क्याच्छन्दसि। पा०३।२।१७०। इति उ प्रत्ययः। पापमिच्छन्तः। जिघांसवः। (प्राच्याः) पूर्वस्याः। अभिमुखीभूतायाः (दिशः) (अभिदासात्) लेटि बहुवचनस्यैकवचनम्। सर्वतो दासेयुः। हिंस्युः ॥

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