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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
    1

    अप॒ न्यधुः॒ पौरु॑षेयं व॒धं यमि॑न्द्रा॒ग्नी धा॒ता स॑वि॒ता बृह॒स्पतिः॑। सोमो॑ राजा॒ वरु॑णो अ॒श्विना॑ य॒मः पू॒षास्मान्परि॑ पातु मृ॒त्योः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑। न्यधुः॑। पौरु॑षेयम्। व॒धम्। यम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। धा॒ता। स॒वि॒ता। बृह॒स्पतिः॑। सोमः॑। राजा॑। वरु॑णः। अ॒श्विना॑। य॒मः। पू॒षा। अ॒स्मान्। परि॑। पा॒तु॒। मृ॒त्योः ॥२०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप न्यधुः पौरुषेयं वधं यमिन्द्राग्नी धाता सविता बृहस्पतिः। सोमो राजा वरुणो अश्विना यमः पूषास्मान्परि पातु मृत्योः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप। न्यधुः। पौरुषेयम्। वधम्। यम्। इन्द्राग्नी इति। धाता। सविता। बृहस्पतिः। सोमः। राजा। वरुणः। अश्विना। यमः। पूषा। अस्मान्। परि। पातु। मृत्योः ॥२०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रक्षा के प्रयत्न का उपदेश।

    पदार्थ

    (यम्) जिस (पौरुषेयम्) पुरुषों में विकार करनेवाले (वधम्) हथियार को (अप) छिपाकर (न्यधुः) उन [शत्रुओं] ने जमा रक्खा है, [उस] (मृत्योः) मृत्यु [मृत्यु के कारण] से (इन्द्राग्नी) बिजुली और अग्नि दोनों [के समान व्यापक और तेजस्वी], (धाता) धारण करनेवाला, (सविता) आगे चलानेवाला, (बृहस्पतिः) बड़ी विद्याओं का रक्षक, (सोमः) ऐश्वर्यवान्, (राजा) राजा [शासक] (वरुणः) श्रेष्ठ, (अश्विना) सूर्य और चन्द्रमा दोनों [के समान नियम पर चलनेवाला], (यमः) न्यायकारी (पूषा) पोषण करनेवाला [शूर पुरुष] (अस्मान्) हमें (परि) सब ओर से (पातु) बचावे ॥१॥

    भावार्थ

    यदि शत्रु, चोर, डाकू आदि छल-कपट से सुरंग आदि लगाकर प्रजा को दुःख देवें, शूर प्रतापी राजा उनको रोक कर प्रजा की रक्षा करे ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(अप) अपगूढम्। अप्रकाशम् (न्यधुः) निहितवन्तः। नीचैः स्थापितवन्तः शत्रवः (पौरुषेयम्) पुरुषाद् वधविकारसमूहतेनकृतेषु। वा०पा०५।१।१०। पुरुष-ढञ्। पुरुषाणां विकर्तारं नाशकम् (वधम्) हननसाधनं शस्त्रास्त्रादिरूपम् (यम्) (इन्द्राग्नी) विद्युत्पावकाविव व्यापकस्तेजस्वी च (धाता) धारकः (सविता) प्रेरकः (बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां पालकः (सोमः) ऐश्वर्यवान् (राजा) शासकः (वरुणः) श्रेष्ठः (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसाविव नियमवान् पुरुषः (यमः) न्यायकारी (पूषा) पोषकः (अस्मान्) प्रजागणान् (परि) सर्वतः (पातु) (रक्षतु) (मृत्योः) तस्माद् मरणकारणात् ॥

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    विषय

    पौरुषेय वध से परित्राण

    पदार्थ

    १. (यम्) = जिस (पौरुषेयम्) = पुरुष-सम्बन्धी (वधम्) = घातक अस्व को (अपन्यधु:) = शत्रुगण छिपाकर रखते हैं। शरीर में रोगकृमिरूप हमारे सपत्न हमारे शरीरों में घातक तत्वों को विविध अंग प्रत्यंगों में छिपाकर स्थापित करनेवाले होते हैं। इन्हीं के कारण हमारी असमय में मृत्यु हो जाती है। (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के तत्त्व उस (मृत्योः) = मृत्यु से (अस्मान्) = हमें (परिपातु) = बचाएँ। इन्द्र व अग्नितत्व का [बल व प्रकाश] का समन्वय होने पर हम रोगरूप वधों से मारे नहीं जाते। २. (धाता) = धारण करनेवाला, (सविता) = उत्पादक, (बृहस्पति:) = ज्ञान का स्वामी, सोमः सौम्य व सोमशक्ति का पुञ्ज, (राजा) = शासक-व्यावस्थापक, (वरुण:) = सब पापों का निवारण करनेवाला, (अश्विना) = प्राणापानशक्ति का अधिष्ठाता, (यमः) = सर्वनियन्ता (पूषा) = पोषक प्रभु हमें मृत्यु से बचाए। प्रभु के ये सब नाम हमें प्रेरणा देते हैं कि हम भी धारणात्मक कार्यों में प्रवृत्त हों, निर्माण में लगे, ज्ञानी बनें, सौम्य हों, जीवन को व्यवस्थित रक्खें, निष बनें, प्राणापान की साधनावाले हों, मन का नियमन करें और शक्तियों का उचित पोषण करें। यही मृत्यु से बचने का मार्ग है।

    भावार्थ

    मृत्यु से बचने का मार्ग यही है कि हम अपने जीवन में शक्ति व प्रकाश का समन्वय करें। 'धाता' इत्यादि नामों से प्रेरणा लेकर जीवनों को वैसा ही बनाएँ।

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    भाषार्थ

    (पौरुषेयम्) पुरुषों के द्वारा किये गये (यं वधम्) जिस वध अर्थात् युद्ध-हत्या को वक्ष्यमाण व्यक्तियों ने (अप) राष्ट्रों से पृथक् कर दिया है, हटा दिया है, और उसे (नि अधुः) नीच ठहराया है,१ वे हैं—(इन्द्राग्नी) इन्द्र और अग्नि, (धाता) विधाता (सविता) ऐश्वर्यों का अध्यक्ष, (बृहस्पतिः) महासेनापति, (सोमः) सेनाओं का प्रेरक (राजा वरुणः) वरुण राजा, (अश्विना) अश्वों के दो अध्यक्ष, (यमः) तथा यम-नियमों का अध्यक्ष। (पूषा) पुष्टिकारक-अन्नों का अध्यक्ष (मृत्योः) क्षुधाजन्य मृत्यु से (अस्मान्) हमारी (परि पातु) पूर्ण रक्षा करे।

    टिप्पणी

    [इस बीसवें सूक्त को ‘सुरक्षा-सूक्त’ कहते हैं, क्योंकि इसमें उत्तम-रक्षा के साधनों का वर्णन है। पौरुषेय वध=इन पदों द्वारा युद्ध अभिप्रेत है, जिसमें कि सैनिक-पुरुष परस्पर एक-दूसरे का वध करते हैं। युद्ध अर्थात् संग्राम का नाम “पृतनाज्य” भी है (निघं० २.१७), अर्थात् जिस युद्धाग्नि में कि “पृतना” अर्थात् सेनाएँ “आज्य” अर्थात् घी का काम करती हैं। अप न्यधुः—राष्ट्रों के नेता परस्पर मिलकर समझौते द्वारा, इस पौरुषेयवध का परित्याग कर सकते हैं। और इसे नीचकर्म कहकर सर्वदा के लिए दूर कर सकते हैं। वे राष्ट्रिय-नेता निम्नलिखित हैं— इन्द्र और वरुण राजा—इन्द्र का अभिप्राय है “सम्राट्”, जो कि संयुक्त-प्रादेशिक-राज्यों का अध्यक्ष होता है; और “वरुण” है प्रादेशिक राजा लोग। यथा—“इन्द्रश्च सम्राड् वरुणश्च राजा” (यजुः० ८.३७)। अग्निः—अग्नि का अर्थ है—अग्रणी। “अग्निः कस्मात्। अग्रणीर्भवति” (निरु० ७.४.१४)। इन्द्र अर्थात् सम्राट् की दृष्टि से, अग्नि अर्थात् अग्रणी है उसका प्रधानमन्त्री। और वरुण अर्थात् प्रादेशिक राजाओं की दृष्टि से अग्नि अर्थात् अग्रणी हैं उनके मुख्यमन्त्री। धाता—धाता का अर्थ है—विधाता। राष्ट्र की विधियों या विधानों का निर्देशक अध्यक्ष, अर्थात् राष्ट्र के कानूनों का अध्यक्ष। सविता—राष्ट्र का धनाध्यक्ष। सविता=षु ऐश्वर्ये। बृहस्पतिः—बृहती सेना का पति। तथा सोमः—इस सेना का प्रेरक षू प्रेरणे। सेनाओं के सम्बन्ध में इन्द्र, बृहस्पति और सोम के स्वरूपों के विज्ञान के लिए देखो मन्त्र (१९.१३.९)। इन्द्र अर्थात् सम्राट् सेनाओं का मुख्याधीश होता है। अश्विना= अश्वों के दो अध्यक्ष। सेना की दृष्टि से अश्वों के दो वर्ग होते हैं। अश्वारोहियों के अश्व, तथा रथियों के अश्व। इन अश्वों के अध्यक्षों को अश्विना= अश्विनौ कहा है। यमः—यम-नियमों का अध्यक्ष, अर्थात् राष्ट्र की सदाचार-नीति का अध्यक्ष या धर्माध्यक्ष। पूषा—राष्ट्र के पुष्टिकारक अन्नादिकों का अध्यक्ष। यथा—“अनक्तु पूषा पयसा घृतेन। अन्नस्य भूमा पुरुषस्य भूमा भूमा पशूनां त इह श्रयन्ताम्” (अथर्व० ५.२८.३)। तथा—“इन्द्रः सीतां नि गृह्णातु तां पूषाभि रक्षतु। सा नः पयस्वती दुहामुत्तरामुत्तरां समान" (अथर्व० ३.१७.४)।] [१. अथवा उसे नीच कोटि में स्थापित किया है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Protection

    Meaning

    Whatever the cause of human death (such as deprivation, war and murder), the same, Indra, world ruler, Agni, leading light and value-advisor, Dhata, controller of law and order, Savita, keeper of wealth and production, Brhaspati, commander of the expansive forces, Soma, keeper of the peace and matters of culture, Raja Varuna, regional rulers, Ashvins, complementary powers such as physician and surgeon, scientist and technologist, teacher and preacher, and Yama, supreme controller, have ruled out and set aside. May Pusha, natural health, nourishment and internal resistance of immunity protect us against untimely death.

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    Subject

    For protection by various Gods

    Translation

    From the deadly weapon, which the foemen have secretly sent towards us, may the Lord resplendent and adorable and sustainer, the impeller Lord, the lord supreme, the blissful Lord, the venerable king, the twins-divine, the Controller Lord, the nourisher Lord fülly protect us from that death.

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    Translation

    Let electricity and fire, air, sun, cloud, soma, the king of herbs, water, day and night, the time and the constructive power of nature become the means of protecting up from that fatal weapon which causes death and which is concerned with the slaughter of men and which people keep hidden.

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    Translation

    Let electricity and fire, air, the stirring sun, the essence of medicines the bright pure water, the physician and the druggist the celibate living, the nourishing mother earth, all guard us against death, which has been deadly hidden for taking away the life of men.

    Footnote

    The verse enumerates the forces of nature and other means to keep away death. It may also refer to the protection of the people by the various officers of the-state entrusted with duties of looking after the welfare and security of the people to protect them from death, which may be caused by the means of destruction like mines deeply hidden by the enemies. The whole sukta shows the means for protection and security of man on earth.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(अप) अपगूढम्। अप्रकाशम् (न्यधुः) निहितवन्तः। नीचैः स्थापितवन्तः शत्रवः (पौरुषेयम्) पुरुषाद् वधविकारसमूहतेनकृतेषु। वा०पा०५।१।१०। पुरुष-ढञ्। पुरुषाणां विकर्तारं नाशकम् (वधम्) हननसाधनं शस्त्रास्त्रादिरूपम् (यम्) (इन्द्राग्नी) विद्युत्पावकाविव व्यापकस्तेजस्वी च (धाता) धारकः (सविता) प्रेरकः (बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां पालकः (सोमः) ऐश्वर्यवान् (राजा) शासकः (वरुणः) श्रेष्ठः (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसाविव नियमवान् पुरुषः (यमः) न्यायकारी (पूषा) पोषकः (अस्मान्) प्रजागणान् (परि) सर्वतः (पातु) (रक्षतु) (मृत्योः) तस्माद् मरणकारणात् ॥

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