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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - साम्न्येकावसानोष्णिक् सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
    1

    आ॑ङ्गिर॒साना॑मा॒द्यैः पञ्चा॑नुवा॒कैः स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ङ्गि॒र॒साना॑म्। आ॒द्यैः। पञ्च॑। अ॒नु॒ऽवा॒कैः। स्वाहा॑ ॥२२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आङ्गिरसानामाद्यैः पञ्चानुवाकैः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आङ्गिरसानाम्। आद्यैः। पञ्च। अनुऽवाकैः। स्वाहा ॥२२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    महाशान्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (आङ्गिरसानाम्) अङ्गिरा [सर्वज्ञ परमेश्वर] के बनाये [ज्ञानों] के (पञ्च) पाँच [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश पञ्चभूतों] से सम्बन्धवाले (आद्यैः) आदि में [इस सृष्टि के पहिले] वर्तमान (अनुवाकैः) अनुकूल वेदवाक्यों के साथ (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वरीय ज्ञान वेदों द्वारा पृथिवी आदि पदार्थों को यथावत् जानकर अपनी वाणी को सुफल करें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(आङ्गिरसानाम्) अङ्गिरस्-अण्। अङ्गिरसा सर्वज्ञेन परमात्मना कृतानां ज्ञानानाम् (आद्यैः) सृष्टेः प्राग् वर्तमानैः (पञ्च) विभक्तेर्लुक्। पञ्चभिः पृथिव्यादिपञ्चभूतसम्बन्धिभिः (अनुवाकैः) अनुकूलवेदवाक्यैः सह (स्वाहा) अ०१९।१७।१। सुवाणी ॥

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    विषय

    योगाङ्गों का अभ्यास आँख

    पदार्थ

    १. 'अङ्गिरस' वे व्यक्ति हैं जो गतिशील जीवनवाले होते हुए, ज्ञानप्रधान जीवन बिताते हुए [अगि गतौ] अंग-प्रत्यंग को रसमय बनाये रखते हैं-इनकी लोच-लाचक में कमी नहीं आने देते। इन (आङ्गिरसानाम्) = आंगिरसों के (अद्यै:) = प्रथम-प्रारम्भ में होनेवाले(पञ्च अनुवाकैः) = पाँच बातों के साथ सम्बद्ध जपों के हेतु से-'मैं 'यम-नियम' का पालन करूँगा, मैं 'आसन, प्राणायाम' को अपनाऊँगा और इसप्रकार 'प्रत्याहार'-वाला-इन्द्रियों को विषयों से वापस लानेवाला बनूंगा' इन प्रतिदिन दुहराये जानेवाले विचारों के हेतु से (स्वाहा) = उस प्रभु के प्रति अपना अर्पण करता हूँ। प्रभु ही मुझे इन विचारों को स्थूल रूप देने में समर्थ करेंगे। प्रभु-कृपा से ही ये विचार मेरे जीवन में आचार के रूप में परिवर्तित होंगे। २. अब मैं (षष्ठाय) = प्रत्याहार के बाद धारणारूप योग के छठे अंग के लिए प्रभु के प्रति (स्वाहा) = अपना अर्पण करता हूँ। इन्द्रियों को अन्दर ही बाँधने का प्रयत्न करता हूँ। ३. धारणा के बाद (सप्तम् अष्टमाभ्याम्) = सातवें व आठवें-ध्यान व समाधिरूप-योगांगों के लिए (स्वाहा) = आपके प्रति अपने को अर्पित करता हूँ। आपने ही मुझे इन योगांगों में गतिवाला करना है।

    भावार्थ

    हम योग के प्रथम पाँच अंगों को क्रियान्वित करने के लिए उन्हीं का जप व विचार करें-हमें उनका विस्मरण न हो। अब प्रत्याहार के बाद 'धारणा' के लिए यत्नशील हों। धारणा के बाद 'ध्यान व समाधि' को अपना पाएँ। इन सबके लिए मैं प्रभु के प्रति अपना अर्पण करता हूँ।

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    भाषार्थ

    (आङ्गिरसानाम्) शारीरिक अङ्ग, शरीर अङ्गी, और शारीरिक रसों सम्बन्धी ओषधों का वर्णन करनेवाले (आद्यैः) प्रारम्भ के (पञ्च अनुवाकैः) पांच अनुवाकों द्वारा (स्वाहा) रोगनिवारणार्थ आहुतियां हों।

    टिप्पणी

    [अङ्गिराः= आङ्गिरसं मन्यन्तेऽङ्गानां हि यद् रसः (छा० १.२.१०); आङ्गिरसोऽङ्गानां हि रसः (बृहदा० १।३।८)। तथा अङ्गिराः= जङ्गिड औषध, यथा—“तमु त्वाङ्गिरा इति ब्राह्मणाः पूर्व्या विदुः” (अथर्व० १९.३४.६)। तथा आङ्गिरसीः= ओपधयः,यथा—“आथर्वणीराङ्गिरसीर्दैवीर्मनुष्यजा उत। ओषधयः प्र जायन्ते यदा त्वं प्राण जिन्वसि” (अथर्व० ११.४.१६)। इन प्रमाणों द्वारा प्रतीत होता है कि “अङ्गिराः” शब्द द्वारा शरीर और शारीरिक रसों तथा ओषधियों का ग्रहण सम्भव है। अथर्ववेद के प्रथमकाण्ड में ६ अनुवाक हैं, जिनमें से प्रथम के ५ अनुवाकों में रोगों और रोगोपचारों का वर्णन हुआ है। भिन्न-भिन्न ओषधों द्वारा यज्ञ करने पर रोगनिवारण वेदानुमोदित है। औषधों की आहुतियों द्वारा यज्ञोत्थ धूम फेफड़ों में जाकर, रक्त में मिलकर, रक्तसंचार द्वारा रोगों का विनाशक होता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Chhandas

    Meaning

    Homage to Divinity in truth of word and deed with the first five Anuvakas of the Angirasas, science of pranic energy of life (for the five elements of the body and the universe). Note: This Sukta has been interpreted in two ways: one, purely on structural basis and, secondly on thematic basis. So where as Satavalekara interprets it on structural basis, Kshemakarana Dasa interprets it on thematic basis. So Satavalekara: Homage, with first five Anuvakas of the Angirasas.Kshemakarana Das: Homage, with relevant verses, divinely revealed in the Veda on the theme of the first five elements of earth, water, fire, vayu energy and other.

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    Subject

    Homage to the parts of Atharva Veda

    Translation

    Svaha with the first five Anuvakas (chapters) of Atharva Veda (the compositions of Angiras).

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    Translation

    Man. attain knowledge through the important five inculcating sets of verses concerned with fire and its Various Properties and appreciate it.

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    Translation

    O people, have a thorough knowledge of the 1st five Anuvakas i.e. Kanda suktas 1-28 of the Atharvaveda.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(आङ्गिरसानाम्) अङ्गिरस्-अण्। अङ्गिरसा सर्वज्ञेन परमात्मना कृतानां ज्ञानानाम् (आद्यैः) सृष्टेः प्राग् वर्तमानैः (पञ्च) विभक्तेर्लुक्। पञ्चभिः पृथिव्यादिपञ्चभूतसम्बन्धिभिः (अनुवाकैः) अनुकूलवेदवाक्यैः सह (स्वाहा) अ०१९।१७।१। सुवाणी ॥

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