अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - आसुरी बृहती
सूक्तम् - अथर्वाण सूक्त
4
आ॑थर्व॒णाना॑ चतुरृ॒चेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒थ॒र्व॒णाना॑म्। च॒तुः॒ऽऋ॒चेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
आथर्वणाना चतुरृचेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठआथर्वणानाम्। चतुःऽऋचेभ्यः। स्वाहा ॥२३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(आथर्वणानाम्) अथर्वा [निश्चल ब्रह्म] के बताये ज्ञानों के (चतुर्ऋचेभ्यः) चार [धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष] की स्तुतियोग्य विद्यावाले [वेदों] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] हो ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को परमेश्वरोक्त ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद द्वारा श्रेष्ठ विद्याएँ प्राप्त करके इस जन्म और पर जन्म का सुख भोगना चाहिये ॥१॥
टिप्पणी
यही भावार्थ आगे मन्त्र २९ तक समझें और “निश्चल ब्रह्म के बताये ज्ञानों के”-इन पदों की अनुवृत्ति जानें ॥१−(आथर्वणानाम्) अथर्वन्-अण्। अथर्वणा निश्चलब्रह्मणा प्रोक्तानां ज्ञानानाम् (चतुर्ऋचेभ्यः) ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा०५।४।७४। इति चतुर्+ऋच्-अप्रत्ययः समासान्तः। ऋच स्तुतौ-क्विप्। ऋग्वाङ्नाम-निघ०१।११। चतुर्णां धर्मार्थकाममोक्षाणाम् ऋक्स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः (स्वाहा) अ०१९।१७।१। सुवाणी ॥
विषय
चार पुरुषार्थ, पञ्चभूत, छह ऋतुएँ, सात ऋषि
पदार्थ
१. 'अथर्वा' से जिन मन्त्रों का अर्थ देखा जाता है वे मन्त्र 'आथर्वण' कहलाते हैं। 'अथर्वा' वे व्यक्ति हैं जोकि 'अथ अर्वाङ्'-विषयों में न भटक [न थर्व] अब अन्दर-आत्मनिरीक्षण करते हैं। (आथर्वणानाम्) = इन अथर्वाओं से देखे गये मन्त्रों में (चतुर्ऋचेभ्यः) = [ऋच् स्तुती] जिनमें 'धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' इन चारों पुरुषार्थों का स्तवन व प्रतिपादन है, उन मन्त्रों के लिए (स्वाहा) = हम [सु आह] प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। हम भी उन मन्त्रों का अध्ययन करते हुए 'धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' इन चारों ही पुरुषार्थों को सिद्ध करते हैं। २. (पञ्चचेभ्यः) = पृथिवी, जल, तेज, वायु व आकाश' इन पाँचों भूतों का स्तवन व प्रतिपादन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम (स्वाहा) = प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इनके अध्ययन से पाँचों भूतों का ज्ञान प्राप्त करके उनकी अनुकूलता के सम्पादन से हम पूर्ण स्वस्थ होने का प्रयत्न करते हैं। ३. (षड्चेभ्य:) = 'वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त व शिशिर' इन छह ऋओं का स्तवन करनेवाले मन्त्रों का हम स्वाहा शंसन करते हैं। इनका अध्ययन करते हुए सब ऋतुओं के गुण-धर्मों को समझकर अपनी ऋतुचर्या को ठीक बनाते हैं। २. (सप्तर्चेभ्यः स्वाहा) = 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्' इन सात ऋषियों का स्तवन व प्रतिपादन करनेवाले मन्त्रों के लिए हम प्रशंसात्मक शब्द कहते हैं। इनके अध्ययन से कान आदि ऋषियों के महत्त्व को समझते हैं और उनको ज्ञान-प्राप्ति में लगाकर सचमुच ही उन्हें ऋषि बनाये रखने का प्रयत्न करते हैं।
भावार्थ
हम आथर्वण मन्त्रों में 'चतुरीच' मन्त्रों से 'धर्मार्थ, काम व मोक्ष' इन चार पुरुषार्थों का ज्ञान प्राप्त करें। 'पञ्चचों' से पञ्चभूतों का, 'षड़चों' से छह ऋतुओं का तथा 'सप्तौं' सें कान आदि सात ऋषियों का ज्ञान प्राप्त करें।
भाषार्थ
(आथर्वणानाम्) अथर्वा अर्थात् अचलकूटस्थ ब्रह्म द्वारा प्रोक्त (चतुऋर्चेभ्यः) चार ऋचाओंवाले सूक्तों के लिये (स्वाहा) प्रशंसायुक्त वाणी हो।
टिप्पणी
[अथर्वा = थर्वतिः चरतिकर्मा तत्प्रतिषेधः (निरु० ११.२.१९)। तथा “योऽथर्वाणं पितरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्। त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान्”॥ (अथर्व० ४.१.७) में अथर्वा = अचल कूटस्थ ब्रह्म। चतुऋर्चेभ्यः = अथर्ववेद का प्रारम्भ चार ऋचओंवाले सूक्त से होता है। इसलिये १९.२३.१ का मन्त्र “चतुऋर्चेभ्यः” द्वारा प्रारम्भ किया गया है। स्वाहा= वाक् (निघं० १.११) तथा स्वाहा=सु+आह (निरु० ८.३.२१), अर्थात् सुप्रशस्त वाणी। अर्थात् हम इन सूक्तों की प्रशंसा करते हैं। सूक्तों में सदुपदेशों की दृष्टि से सूक्तों की प्रशंसा की गई है। २३ वें सूक्त में आगे के मन्त्रों के उत्तरोत्तर क्रमशः एक-एक ऋचा की वृद्धिवाले कतिपय सूक्तों का कथन किया गया है।]
इंग्लिश (4)
Subject
x
Meaning
For four-verse hymns on four adorables (Dharma, Artha, Kama and Moksha) of the sages of unshakable mind and spirit, Svaha, homage in truth of word and deed.
Subject
Homage to the parts of Atharva Veda
Translation
Svahà to the four-versed (hymns) of the Atharva Veda (the song of Atharvan).
Translation
Let us gain knowledge from the sets of the four verses concerned with Atharva, the vital air and appreciate them.
Translation
Have good knowledge of the suktas of the Atharvaveda, which have four mantras.
Footnote
Pt. K.hem Karan Pas Trivedi has given different rendering of this sukta as well as of the previous. But to me it appears to be far-fetched. It is too difficult to give appropriate meanings to ail the numbers given here. One can’t maintain its appropriateness through0out. Both of these suktas are called. Smasa suktas, bringing together the whole of the Atharva to emphasize its thorough study.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यही भावार्थ आगे मन्त्र २९ तक समझें और “निश्चल ब्रह्म के बताये ज्ञानों के”-इन पदों की अनुवृत्ति जानें ॥१−(आथर्वणानाम्) अथर्वन्-अण्। अथर्वणा निश्चलब्रह्मणा प्रोक्तानां ज्ञानानाम् (चतुर्ऋचेभ्यः) ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा०५।४।७४। इति चतुर्+ऋच्-अप्रत्ययः समासान्तः। ऋच स्तुतौ-क्विप्। ऋग्वाङ्नाम-निघ०१।११। चतुर्णां धर्मार्थकाममोक्षाणाम् ऋक्स्तुत्या विद्या येषु वेदेषु तेभ्यः (स्वाहा) अ०१९।१७।१। सुवाणी ॥
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