अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 1
इ॒मं ब॑ध्नामि ते म॒णिं दी॑र्घायु॒त्वाय॒ तेज॑से। द॒र्भं स॑पत्न॒दम्भ॑नं द्विष॒तस्तप॑नं हृ॒दः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम्। ब॒ध्ना॒मि॒। ते॒। म॒णिम्। दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑। तेज॑से। द॒र्भम्। स॒प॒त्न॒ऽदम्भ॑नम्। द्वि॒ष॒तः। तप॑नम्। हृ॒दः ॥२८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इमं बध्नामि ते मणिं दीर्घायुत्वाय तेजसे। दर्भं सपत्नदम्भनं द्विषतस्तपनं हृदः ॥
स्वर रहित पद पाठइमम्। बध्नामि। ते। मणिम्। दीर्घायुऽत्वाय। तेजसे। दर्भम्। सपत्नऽदम्भनम्। द्विषतः। तपनम्। हृदः ॥२८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
[हे प्रजागण !] (ते) तेरे (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ जीवन और (तेजसे) तेज के लिये (इमम्) इस (मणिम्) मणिरूप [अति प्रशंसनीय], (सपत्नदम्भनम्) शत्रुओं के दबानेवाले, (द्विषतः) विरोधी के (हृदः) हृदय के (तपनम्) तपानेवाले (दर्भम्) दर्भ [शत्रुविदारक सेनापति] को (बध्नामि) मैं नियुक्त करता हूँ ॥१॥
भावार्थ
राजा प्रजा की रक्षा और उन्नति के लिये बलवान् नीतिज्ञ सेनापति को नियुक्त करे ॥१॥
टिप्पणी
दर्भ एक घास औषध विशेष भी है, जो वात, पित्त, कफ त्रिदोष आदि रोगनाश करता है ॥ इस मन्त्र का मिलान करो-अ०६।४३।१२॥१−(इमम्) प्रसिद्धम् (बध्नामि) नियोजयामि (ते) तव (मणिम्) अ०१।२९।१। मण कूजे-इन्। रत्नम्। प्रशंसनीयम् (दीर्घायुत्वाय) चिरजीवनाय (तेजसे) प्रतापाय (दर्भम्) अ०६।४३।१। दॄदलिभ्यां भः। उ०३।१५१। दॄ विदारणे-भ। शत्रुविदारकं सेनापतिम्। कुशादितृणविशेषम् (सपत्नदम्भनम्) शत्रूणां हिंसकम् (द्विषतः) विरोधिनः पुरुषस्य (तपनम्) तापकम् (हृदः) हृदयस्य ॥
विषय
दीर्घायुत्वाय, तेजसे
पदार्थ
१. 'आपो दर्भाः श० २.२.३.११' इस वाक्य के अनुसार 'आप:' ही 'दर्भ:' कहलाते हैं। 'आप:' शरीरस्थ रेत:कणों का नाम है, अत: रेत:कण ही 'दर्भ' कहे गये हैं। रेत: कण 'मणि' व 'रत्न' हैं-शरीर में रमणीयतम वस्तु हैं, अत: 'दर्भमणि' शब्द का प्रयोग इन रेत:कणों के लिए हुआ है। (इमम्) = इस (मणिम्) = मणि को (ते बध्नामि) = तेरे लिए बाँधता हूँ। शरीर में इसे सुबद्ध करता है, ताकि (दीर्घायुत्वाय) = तुझे दीर्घजीवन प्राप्त हो तथा (तेजसे) = तू तेजस्वी बने। २. इस (दर्भम्) = दर्भ को मैं तेरे लिए बाँधता हूँ, क्योंकि [दुभ to fear, to be afraid of] इससे सब रोग भयभीत होते हैं। (सपत्नदम्भनम्) = यह तो रोगरूप शत्रुओं को हिंसित करनेवाला है। (द्विषतः हृदः तपनम्) = ये दर्भ हमसे प्रीति न करनेवाले शत्रु के हृदय को संतप्त करनेवाले हैं। शरीर में दर्भ का बन्धन होने पर शरीर में रोगरूप शत्रुओं का वास नहीं हो पाता।
भावार्थ
शरीर में वीर्यकों के रूप में रहनेवाले 'आप:' ही 'दर्भ' हैं। इनका शरीर में बंधन होने पर वहाँ रोगरूप शत्रु नहीं आ सकते। यह रोगों से अनाक्रान्त व्यक्ति दीर्घजीवी व तेजस्वी बनता है।
भाषार्थ
हे राजन्! (ते) तेरे राज्य की (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ-आयु के लिए तथा (तेजसे) तेज के लिए, मैं प्रजाजनों का प्रतिनिधि, (सपत्नदम्भनम्) आन्तरिक शत्रुओं को दबानेवाले, तथा (द्विषतः) द्वेषी राजा के (हृदः) हृदय को (तपनम्) तपानेवाले, (मणिम्) सेनापतियों में शिरोमणिरूप, (दर्भम्) शत्रुओं के विदारण द्वारा चमकनेवाले, (इमम्) इस सेनापति को (बध्नामि) तेरे साथ दृढ़ बद्ध करता हूँ।
टिप्पणी
[दर्भम्=दर् (दृ विदारणे)+भम् (भा दीप्तौ) आतोऽनुपसर्गे कः (अष्टा० ३.२.३)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Darbha Mani
Meaning
O man, for a long healthy life, I bind on you this jewel Darbha, a catalytic agent, which puts down rival elements and burns out the very heart centre of negative forces. (‘Darbha’, the word is derived from the root ‘dr’ which means ‘to break’. It is something that is valuable, powerful and adorable. In this sukta, it has been interpreted as the Darbha grass which is purest white, most adorable and effective against ailments. The other interpretation is ‘the commander of the forces of defence’. Reference: “Dayananada Vaidic Kosha”, by Rajavir Shastri, Delhi: Arsha Sahitya Trust, and “Atharva-veda Bhashyam” by Vishvanath Vidyalankar, published by Ram Lai Kapur Trust, and Atharva-veda commentaries by Kshemakarana Das, and by W.D. Whitney)
Subject
The darbha mani : for blessings
Translation
For your long life and splendour, I bind this blessing (mani), darbha (poacymosuroides), destroyer of rivals and causing heart-burn to the malicious one.
Translation
[N.B.:—in this hymn we come across the Darbhamani in the verses. Some explain the word as the amulet of Darbha which is not at all plausible. Here Mani is the adjective of Darbha. It means “Prasasta, the lendable or praiseworthy. ] O man, I bind this excellent Darbha grass on you for your long life and splendor. This Drabha is the destroyer of foes and this burns the spirit of the foe-men.
Translation
O king or commander, I (the prohita) this radiating contrivance, made of Durbha-grass, vested with special qualities of radiation, for your long life and energy. It is capable of subduing the enemies by roasting their hearts.
Footnote
To me it appears that ‘Darbha mani’ is not a charm of Amulet as interpreted by Griffith or a fierce commander of the army, as interpreted by Pt. Jaidev Vidyalankar and Pt. Khem Karan Das Trivedi but some small radiating instrument or contrivance formed^ by the expert technicians from the ‘Durbha grass’, which is supposed to have certain? special powers of radiation, due to which it finds extensive usage among the Hindus. Its special use as an instrument of destruction and protection against the enejnics is worth “exploring by the scientists.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
दर्भ एक घास औषध विशेष भी है, जो वात, पित्त, कफ त्रिदोष आदि रोगनाश करता है ॥ इस मन्त्र का मिलान करो-अ०६।४३।१२॥१−(इमम्) प्रसिद्धम् (बध्नामि) नियोजयामि (ते) तव (मणिम्) अ०१।२९।१। मण कूजे-इन्। रत्नम्। प्रशंसनीयम् (दीर्घायुत्वाय) चिरजीवनाय (तेजसे) प्रतापाय (दर्भम्) अ०६।४३।१। दॄदलिभ्यां भः। उ०३।१५१। दॄ विदारणे-भ। शत्रुविदारकं सेनापतिम्। कुशादितृणविशेषम् (सपत्नदम्भनम्) शत्रूणां हिंसकम् (द्विषतः) विरोधिनः पुरुषस्य (तपनम्) तापकम् (हृदः) हृदयस्य ॥
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