अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 1
यत्ते॑ दर्भ ज॒रामृ॑त्युः श॒तं वर्म॑सु॒ वर्म॑ ते। तेने॒मं व॒र्मिणं॑ कृ॒त्वा स॒पत्नां॑ ज॒हि वी॒र्यैः ॥
स्वर सहित पद पाठयत्। ते॒। द॒र्भ॒। ज॒राऽमृ॑त्युः। श॒तम्। वर्म॑ऽसु। वर्म॑। ते॒। तेन॑। इ॒मम्। व॒र्मिण॑म्। कृ॒त्वा। स॒ऽपत्ना॑न्। ज॒हि॒। वी॒र्यैः᳡ ॥३०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्ते दर्भ जरामृत्युः शतं वर्मसु वर्म ते। तेनेमं वर्मिणं कृत्वा सपत्नां जहि वीर्यैः ॥
स्वर रहित पद पाठयत्। ते। दर्भ। जराऽमृत्युः। शतम्। वर्मऽसु। वर्म। ते। तेन। इमम्। वर्मिणम्। कृत्वा। सऽपत्नान्। जहि। वीर्यैः ॥३०.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (यत्) जो (ते) तेरा (जरामृत्युः) जरा [निर्बलता] को मृत्यु [के समान दुःखदायी] समझना है, और [जो] (वर्मसु) कवचों के बीच (ते) तेरा (वर्म) कवच (शतम्) सौ प्रकार का है। (तेन) उसी [कारण] से (इमम्) इस [शूर] को (वर्मिणम्) कवचधारी (कृत्वा) करके (सपत्नान्) वैरियों को (वीर्यैः) वीरकर्मों से (जहि) नाश कर ॥१॥
भावार्थ
पराक्रमी शूर सेनापति अपने दृष्टान्त से अन्य पुरुषों को वीर बनाकर शत्रुओं का नाश करे ॥१॥
टिप्पणी
१−(यत्) यः (ते) तव (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापते (जरामृत्युः) जरा निर्बलता मृत्युरिव दुःखदायिनी यस्मिन् स व्यवहारः (शतम्) बहुप्रकारम् (वर्मसु) कवचेषु (वर्म) कवचम्। रक्षासाधनम् (ते) तव (तेन) कारणेन (इमम्) (वर्मिणम्) कवचिनम् (कृत्वा) विधाय (सपत्नान्) शत्रून् (जहि) नाशय (वीर्यैः) वीरकर्मभिः ॥
विषय
अद्वितीय कवच
पदार्थ
१. वीर्यकण ही वस्तुत: रोगों से रक्षित करनेवाला महान् कवच है, अत: कहते हैं कि हे (दर्भ) = रेत:कण! (यत्) = जो (ते) = तेरा (वर्म) = कवच है, वह (ते) = तेरा कवच (शतं वर्मसु) = सैकड़ों कवचों में एक अद्वितीय ही कवच है। यह कवच (जरामृत्यु:) = पूर्ण वृद्धावस्था के बाद ही मृत्यु को प्राप्त करानेवाला है। इस कवच से रक्षित होकर मनुष्य युवावस्था में ही समाप्त नहीं हो जाता। २. (तेन) = उस कवच से (इमम्) = इस इन्द्र को (वर्मिणं कृत्वा) = कवचवाला करके (सपत्नान्) = रोगरूप शत्रुओं को (वीर्य:) = पराक्रमों द्वारा (जहि) = सुदूर विनष्ट कर डाल।
भावार्थ
सुरक्षित वीर्य एक अद्वितीय कवच है। यह हमें रोगों से आक्रान्त नहीं होने देता। यह हमें पूर्ण आयुष्य प्राप्त कराता है।
भाषार्थ
(दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापति! (यत्) यतः (ते जरामृत्युः) तेरी मृत्यु जरावस्था में सम्भव है, और (यत्) यतः (ते) तेरे (वर्मसु) कवच आदि के शस्त्रागारों में (शतम्) सैकड़ों प्रकार के (वर्म) कवच आदि शस्त्र हैं, अतः (तेन) उस कवच आदि द्वारा (इमम्) इस प्रत्येक सैनिक को (वर्मिणं कृत्वा) कवच आदि से सम्पन्न करके (वीर्यैः) वीर कर्मों द्वारा (सपत्नान्) शत्रुओं का (जहि) हनन कर।
टिप्पणी
[जरामृत्युः= इस पद के द्वारा सेनापति को कहा है कि तू अभी युवावस्था वाला है, अतः शारीरिक शक्ति से सम्पन्न होने के कारण सेनापति होने योग्य है, चूंकि तू अभी जरावस्था को प्राप्त नहीं हुआ। वर्मसु= लक्षणया कवच आदि शस्त्रास्त्रों के आगार अभिप्रेत हैं। वर्म= वृञ् आवरणे। अर्थात् कवच आदि आवरण, जिनके द्वारा शत्रु के प्रहारों का निवारण किया जाता है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Darbha Mani
Meaning
O Darbha, destroyer of enemies, hundred-fold is your armour of defence among armours against age and untimely death. With that same armour, strengthen this man-warrior well-guarded and, with your vigour and virilities, destroy all adversaries ranged against him.
Subject
The darbha mani : for protection
Translation
O darbha, with that armours, which is the best among a hundred armours of your, and which leads one to ripe old age before death, making this person well-armoured, destroy the rivals with your valours.
Translation
Let this Darbha making this man armored with that shield which is its one amongst hundred shields and which guards till death in mature age make him destroy enemies with might.
Translation
O darbha-mani, thine is the capacity to ward off death till long, long age. Thine is the best armour of all the armours in the world. Shielding him (the king) with the self-same armour, kill the enemies with thy strong powers.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(यत्) यः (ते) तव (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापते (जरामृत्युः) जरा निर्बलता मृत्युरिव दुःखदायिनी यस्मिन् स व्यवहारः (शतम्) बहुप्रकारम् (वर्मसु) कवचेषु (वर्म) कवचम्। रक्षासाधनम् (ते) तव (तेन) कारणेन (इमम्) (वर्मिणम्) कवचिनम् (कृत्वा) विधाय (सपत्नान्) शत्रून् (जहि) नाशय (वीर्यैः) वीरकर्मभिः ॥
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