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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - बलप्राप्ति सूक्त
    4

    इ॒दं वर्चो॑ अ॒ग्निना॑ द॒त्तमाग॒न्भर्गो॒ यशः॒ सह॒ ओजो॒ वयो॒ बल॑म्। त्रय॑स्त्रिंश॒द्यानि॑ च वी॒र्याणि॒ तान्य॒ग्निः प्र द॑दातु मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम्। वर्चः॑। अ॒ग्निना॑। द॒त्तम्। आ। अ॒ग॒न्। भर्गः॑। यशः॑। सहः॑। ओजः॑। वयः॑। बल॑म्। त्रयः॑ऽत्रिंशत्। यानि॑। च॒। वी॒र्या᳡णि। तानि॑। अ॒ग्निः। प्र। द॒दा॒तु॒। मे॒ ॥३७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदं वर्चो अग्निना दत्तमागन्भर्गो यशः सह ओजो वयो बलम्। त्रयस्त्रिंशद्यानि च वीर्याणि तान्यग्निः प्र ददातु मे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदम्। वर्चः। अग्निना। दत्तम्। आ। अगन्। भर्गः। यशः। सहः। ओजः। वयः। बलम्। त्रयःऽत्रिंशत्। यानि। च। वीर्याणि। तानि। अग्निः। प्र। ददातु। मे ॥३७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 37; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    बल की प्राप्ति का उपदेश –॥

    पदार्थ

    (अग्निना) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमेश्वर] करके (दत्तम्) दिया गया (इदम्) यह (वर्चः) प्रताप, (भर्गः) प्रकाश, (यशः) यश, (सहः) उत्साह, (ओजः) पराक्रम, (वयः) पौरुष और (बलम्) बल (आ अगन्) आया है। (च) और (यानि) जो (त्रयस्त्रिंशत्) तेंतीस (वीर्याणि) वीर कर्म हैं, (तानि) उनको (अग्निः) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमात्मा] (मे) मुझे (प्र ददातु) देता रहे ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर के दिये साधनों से अनेक प्रकार का बल प्राप्त करें और तेंतीस जो आठ वसु आदि देवता हैं [देखो अथर्व०१९।२७।१०], उनसे भी सदा उपकार लेते रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(इदम्) दृश्यमानम् (वर्चः) प्रतापः (अग्निना) प्रकाशस्वरूपेण परमात्मना (दत्तम्) समर्पितम् (आ अगन्) आगमत् (भर्गः) प्रकाशः (यशः) कीर्त्तिः (सहः) उत्साहः (ओजः) पराक्रमः (वयः) पौरुषम् (बलम्) सामर्थ्यम् (त्रयस्त्रिंशत्) त्रयस्त्रिंशद्वस्वादिदेवतासम्बन्धीनि (यानि) (च) (वीर्याणि) वीरकर्माणि (तानि) (अग्निः) प्रकाशस्वरूपः परमेश्वरः (प्र ददातु) प्रयच्छतु (मे) मह्यम् ॥

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    भाषार्थ

    (इदम्) यह (वर्चः) शारीरिक-कान्ति (भर्गः) पापभर्जक तेज (यशः) निर्मल यश (सहः) सहनशक्ति (ओजः) पराक्रम (वयः) स्वस्थ आयु, और (वलम्) शारीरिक बल (अग्निना) ज्योतिर्मय जगदग्रणी परमेश्वर द्वारा (दत्तम्) दिया हुआ (आगन्) मुझे प्राप्त हुआ है। (च) और (यानि) जो (त्रयस्त्रिंशत्) ३३ (वीर्याणि) शक्तियाँ हैं, (तानि) उन्हें (अग्निः) ज्योतिर्मय जगदग्रणी परमेश्वर (मे) मुझे (प्र ददातु) प्रदान करे।

    टिप्पणी

    [अग्निना= अग्नि नाम परमेश्वर का भी है। यथा—“तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदु चन्द्रमाः। तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म ता आपः स प्रजापतिः” (यजुः० ३१.१)। भर्गः= भ्रस्ज् पाके। त्रयस्त्रिंशत् वीर्याणि= १० ज्ञानेन्द्रियों की शक्तियाँ, १० कर्मेन्द्रियों की शक्तियां, ५ पंचभूतों की शक्तियां, ५ पञ्चतन्मात्राओं की शक्तियां, १ मन, १ अहंकार, १ बुद्धि।]

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    विषय

    वर्च:, भर्गों, यशः, सह, ओजो, वयो, बलम्

    पदार्थ

    १. (अग्निना) = उस अग्रणी प्रभु से (दत्तम्) = दिया हुआ (इदं वर्च:) = यह दीप्त तेज (आगन्) = मुझे प्राप्त हो। (भर्ग:) = शत्रुओं को भून डालनेवाला तेज, (यश:) = यश, (सहः) = दूसरों को अभिभूत करनेवाला तेज (ओज:) = ओजस्विता-कार्यों को करने का उत्साह (वय:) = नित्ययौवन या गतिशीलजीवन, तथा (बलम्) = दूसरों से अभिभूत न किये जानेवाला सामर्थ्य मुझे प्राप्त हुआ है। २.(च) = और (यानि) = जो (त्रयस्त्रिंशत्) = शरीरस्थ तेतीस देवताओं में प्रत्येक में स्थित होने से तेतीस (वीर्यमणि) = बल हैं, (तानि) = उनको (मे) = मेरे लिए (अग्निः प्रददातु) = ये अग्रणी प्रभु दें।

    भावार्थ

    प्रभु मुझे 'वर्चस्, भर्ग, यश, सह, ओज, वय और बल' प्राप्त कराएँ। मेरे शरीरस्थ तेतीस-के-तेतीस देव वीर्यवान हों।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Energy

    Meaning

    This lustre, splendour, honour, heroic patience and courage, effulgence, youthful vigour and strength given by Agni, leading light of life, have come. May Agni give me all the manly vigour and splendour of which the variants are thirty-three. (Thirty three powers and splendours may be interpreted as powers gifted by thirty-three divinities. Reference may be made to Atharva-veda 19, 27, 10-13. Another interpretation could be: the powers of five senses of perception, five senses of volition, five main pranas, five sub-pranas, five gross elements, five subtle elements, and mind, intellect and the sense of Identity.)

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    Subject

    Agni

    Translation

    This lustre, assigned by the adorable Lord, has come (to me): may the adorable Lord bestow upon me effulgence, fame, overwhelming force, vigour, ling life, strength and the thirtythree manly powers that are there.

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    Translation

    I, the physician through this shatavar prevent the hundreds diseases caused by female germs and cloud and raining showers which make the patient bark like bitches.

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    Translation

    May this glory, splendour, fame, courage, brilliance, long life and strength, granted by God, the Effulgent, the learned person,, the chief leader of the nation, or jathragni come to us. Whatever thirty-three kinds of means of strength and velour there are, let God, the learned teacher or preacher or the chief leader or commander or bodily temperature fully invest me with all these forces of action.

    Footnote

    (1-4) It is through Agni, i.e., physical, spiritual and natural that a person can attain the benefits mentioned here

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(इदम्) दृश्यमानम् (वर्चः) प्रतापः (अग्निना) प्रकाशस्वरूपेण परमात्मना (दत्तम्) समर्पितम् (आ अगन्) आगमत् (भर्गः) प्रकाशः (यशः) कीर्त्तिः (सहः) उत्साहः (ओजः) पराक्रमः (वयः) पौरुषम् (बलम्) सामर्थ्यम् (त्रयस्त्रिंशत्) त्रयस्त्रिंशद्वस्वादिदेवतासम्बन्धीनि (यानि) (च) (वीर्याणि) वीरकर्माणि (तानि) (अग्निः) प्रकाशस्वरूपः परमेश्वरः (प्र ददातु) प्रयच्छतु (मे) मह्यम् ॥

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