अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 38/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - गुल्गुलुः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
1
न तं यक्ष्मा॒ अरु॑न्धते॒ नैनं॑ श॒पथो॑ अश्नुते। यं भे॑ष॒जस्य॑ गुल्गु॒लोः सु॑र॒भिर्ग॒न्धो अ॑श्नु॒ते ॥
स्वर सहित पद पाठन। तम्। यक्ष्माः॑। अरु॑न्धते। न। ए॒न॒म्। श॒पथः॑। अ॒श्नु॒ते॒। यम्। भे॒ष॒जस्य॑। गु॒ल्गु॒लोः। सु॒र॒भिः। ग॒न्धः। अ॒श्नु॒ते ॥३८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
न तं यक्ष्मा अरुन्धते नैनं शपथो अश्नुते। यं भेषजस्य गुल्गुलोः सुरभिर्गन्धो अश्नुते ॥
स्वर रहित पद पाठन। तम्। यक्ष्माः। अरुन्धते। न। एनम्। शपथः। अश्नुते। यम्। भेषजस्य। गुल्गुलोः। सुरभिः। गन्धः। अश्नुते ॥३८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रोग नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(न) न तो (तम्) उस [पुरुष] को (यक्ष्माः) राजरोग (अरुन्धते=आरुन्धते) रोकते हैं, और (न) (एनम्) उसको (शपथः) शाप [क्रोध वचन] (अश्नुते) व्यापता है। (यम्) जिस [पुरुष] को (गुल्गुलोः) गुल्गुलु [गुग्गुल] (भेषजस्य) औषध का (सुरभिः) सुगन्धित (गन्धः) गन्ध (अश्नुते) व्यापता है ॥१॥
भावार्थ
जिस घर में गुग्गुल आदि सुगन्धित द्रव्यों का गन्ध किया जाता है, वहाँ रोग नहीं होता ॥१॥
टिप्पणी
(गुग्गुलु) शब्द पहिले आ चुका है-अ०२।३६।७॥१−(न) निषेधे (तम्) पुरुषम् (यक्ष्माः) राजरोगाः (अरुन्धते) छान्दसो ह्रस्वः। आरुन्धते समन्ताद् रोधं कुर्वन्ति (न) (एनम्) (शपथः) शापः। क्रोधवचनम् (अश्नुते) व्याप्नोति (यम्) पुरुषम् (भेषजस्य) औषधस्य (गुल्गुलोः) अ०२।३६।७। गुड रक्षणे-क्विप्+गुड रक्षणे-कु, डस्य लत्वम्। गुड्यते रक्ष्यतेऽस्मादिति गुड्-रोगः, तस्माद् गुडति रक्षतीति गुल्गुलुः। गुल्गुलुरेव गुग्गुलुः। सुगन्धौषधविशेषस्तस्यौषधस्य (सुरभिः) सुगन्धितः (गन्धः) घ्राणग्राह्यो गुणः (अश्नुते) व्याप्नोति ॥
भाषार्थ
(तम्) उसे (यक्ष्माः) यक्ष्म रोग [Tuberclosis; T. B.] (न अरुन्धते) अवरुद्ध नहीं करते, और (न) न (एनम्) इसे (शपथः) शपथ लेने की प्रवृत्ति (अश्नुते) व्याप्त करती है, (यम्) जिसे कि (गुल्गुलोः भेषजस्य) गुग्गुल-औषध का (सुरभिः गन्धः) सुगन्धित गन्ध (अश्नुते) व्यापता है।
टिप्पणी
[अरुन्धते=आरुन्धते; रुधिर् अवरोधने। गुल्गुलु=गुग्गुलु। अग्नि में जलाए गये गुग्गुलु के धूम्र द्वारा यक्ष्मरोग का शमन होता है। शपथः= शपथ अर्थात् सौगन्ध या कसम की आदत मानसिक कमजोरी को सूचित करती है। गुग्गुल की गन्ध शपथ खाने की प्रवृत्ति को कम करती है। गुग्गुल-गन्ध से अतिरिक्त और भी ओषधियां हैं, जो कि शपथ खाने की प्रवृत्ति को कम करती हैं, जिन्हें कि “शपथयावनी” (अथर्व० ४.१७.२), तथा “शपथयोपनी” (अथर्व० २.७.१) कहा है।]
विषय
गुग्गुलु
पदार्थ
१. (तम्) = उस साधक को (यक्ष्मा:) = राजरोग न अरुन्धते नहीं घेरते तथा (एनम्) = इसको (शपथ:) = शाप व क्रोध-वचन न (अश्नुते) = नहीं व्यापता, (यम्) = जिसको (भेषजस्य) = औषधभूत [भेषं रोगभयं जयति] रोगभय को जीतनेवाले (गुल्गुलो:) = गुग्गुल का [गुज् स्तेये, गड रक्षणे] रोगों के अपहरण द्वारा रक्षण करनेवाले इस पदार्थ का (सुरभिः गन्धः) = उत्तम गन्ध (अश्नुते) = व्यापता है [सुष्टु रभते] यह गन्ध रोगों पर सम्यक् आक्रमण करनेवाला होता है।
भावार्थ
अग्निहोत्र में गुग्गुल की हवि सम्पूर्ण घर को उस गन्ध से व्याप्त कर देती है जोकि रोगों को आक्रान्त करके होताओं को नौरोग व शान्तचित्त बना देती है। यह तो है ही रोगापहारी [गुज स्तेये] तथा रक्षक [गुड रक्षणे]।
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Disease
Meaning
Diseases stop him not, curses and imprecations touch him not, whom the aromatic fragrance of medicinal gulgulu, bdellium, reaches and fortifies.
Subject
The Guggulu : against disease
Translation
Wasting diseases obstruct him not, nor the curses affect him, whom the fragrant smell of the healing guggulu (bdellium) penetrates.
Translation
I perform the Yajna in fire for the seasons, for the products of seasons, for the months for the year, for preserver, for constructive force, for prosperity and for the Master of the creatures (God).
Translation
The fell disease, consumption does not pain him, nor does the evil¬ thinking of the enemy have any ill effect on him, whom the wholesome scent of the gugglu, having curing effect pervades.
Footnote
This sukta of three verses describes the superfine properties of the common medicine, Gugglu.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
(गुग्गुलु) शब्द पहिले आ चुका है-अ०२।३६।७॥१−(न) निषेधे (तम्) पुरुषम् (यक्ष्माः) राजरोगाः (अरुन्धते) छान्दसो ह्रस्वः। आरुन्धते समन्ताद् रोधं कुर्वन्ति (न) (एनम्) (शपथः) शापः। क्रोधवचनम् (अश्नुते) व्याप्नोति (यम्) पुरुषम् (भेषजस्य) औषधस्य (गुल्गुलोः) अ०२।३६।७। गुड रक्षणे-क्विप्+गुड रक्षणे-कु, डस्य लत्वम्। गुड्यते रक्ष्यतेऽस्मादिति गुड्-रोगः, तस्माद् गुडति रक्षतीति गुल्गुलुः। गुल्गुलुरेव गुग्गुलुः। सुगन्धौषधविशेषस्तस्यौषधस्य (सुरभिः) सुगन्धितः (गन्धः) घ्राणग्राह्यो गुणः (अश्नुते) व्याप्नोति ॥
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