अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 1
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - कुष्ठः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कुष्ठनाशन सूक्त
1
ऐतु॑ दे॒वस्त्रा॑यमाणः॒ कुष्ठो॑ हि॒मव॑त॒स्परि॑। त॒क्मानं॒ सर्वं॑ नाशय॒ सर्वा॑श्च यातुधा॒न्यः ॥
स्वर सहित पद पाठआ। ए॒तु॒। दे॒वः। त्राय॑माणः। कुष्ठः॑। हि॒मऽव॑तः। परि॑। त॒क्मान॑म्। सर्व॑म्। ना॒श॒य॒। सर्वाः॑। च॒। या॒तु॒ऽधा॒न्यः᳡ ॥ ३९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
ऐतु देवस्त्रायमाणः कुष्ठो हिमवतस्परि। तक्मानं सर्वं नाशय सर्वाश्च यातुधान्यः ॥
स्वर रहित पद पाठआ। एतु। देवः। त्रायमाणः। कुष्ठः। हिमऽवतः। परि। तक्मानम्। सर्वम्। नाशय। सर्वाः। च। यातुऽधान्यः ॥ ३९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रोगनाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(देवः) दिव्य गुणवाला, (त्रायमाणः) रक्षा करता हुआ (कुष्ठः) कुष्ठ [रोग बाहर करनेवाला औषध विशेष] (हिमवतः परि) हिमवाले देश से (आ एतु) आवे। तू (सर्वम्) सब (तक्मानम्) जीवन के कष्ट देनेवाले ज्वर को (च) और (सर्वाः) सब (यातुधान्यः) दुःखदायिनी पीड़ाओं को (नाशय) नाश कर दे ॥१॥
भावार्थ
कुष्ठ वा कूट औषध ठण्डे देशों में होता है, उसको प्राप्त करके ज्वर आदि रोगों का नाश करें ॥१॥
टिप्पणी
इस सूक्त का मिलान करो-अथर्व०४।५ तथा ६।९५॥१−(ऐतु) आगच्छतु (देवः) दिव्यगुणः (त्रायमाणः) पालयमानः (कुष्ठः) अ०५।४।१। हनिकुषिनी०। उ०२।२। कुष निष्कर्षे-क्थन्। रोगाणां निष्कर्षको बहिष्कर्ता। औषधविशेषः (हिमवतः) हिमदेशात् (परि) सर्वतः (तक्मानम्) जीवनस्य क्लेशकारिणं ज्वरम् (सर्वम्) (नाशय) दूरीकुरु (सर्वाः) (च) (यातुधान्यः) दुःखदायिनीः पीडाः ॥
भाषार्थ
(हिमवतः परि) बर्फीले पर्वत से, (त्रायमाणः) यह रक्षक (देवः कुष्ठः) दिव्य कुष्ठ औषध (ऐतु) हमें प्राप्त हो। हे कुष्ठ औषध! (सर्वम्) सब प्रकार के (तक्मानम्) कष्टप्रद ज्वरों को (नाशय) विनष्ट कर, (च) और (सर्वाः) सब (यातुधान्यः) यातना अर्थात् पीड़ा देनेवाले स्त्रीलिङ्गी कीटाणुओं का नाश कर।
विषय
कुष्ठ
पदार्थ
१. यह (देवः) = रोगों को जीतने की कामनावाला (त्रायमाण:) = हमारा रक्षण करता हुआ (कुष्ठः) = [कुष्णाति रोगान्] रोग को (वाहि) = निकाल फेंकनेवाला 'कुष्ठ' (हिमवतःपरि) = हिम-[बर्फ] वाले प्रदेश से (आ एतु) = हमें प्राप्त हो। २. हे कुष्ठ! तु (तक्मानम्) = जीवन को कष्टमय बनानेवाले (सर्वम्) = सब रोगों को, (च) = और (सर्वा:) = सब (यातुधान्य:) = पीड़ा का आधान करनेवाली बीमारियों को नाशय नष्ट कर दे।
भावार्थ
हिमवाले प्रदेशों से प्राप्त होनेवाला यह कुष्ठ सब ज्वरों व पीड़ाओं को दूर करनेवाला है। संस्कृत में इसके नाम ही 'व्याधिः पारिभाव्यम्' है [विगतः आधि: अनेन, परिभावे साधुः] रोग इससे दूर होता है। यह रोगों को पराजित करने में उत्तम है।
इंग्लिश (4)
Subject
Cure by Kushtha
Meaning
Let Kushtha, medicinal herb of wonderful life- giving and life saving quality, come from the snowy mountain area. O Kushtha, destroy all kinds of consumptive, cancerous and life-threatening diseases and all dangerous germs, bacteria and viruses.
Subject
The Kustha
Translation
May the dive kustha (costus specious) come protectory from the snowy mountain. Banish all the fever and all the painful diseases.
Translation
I, the physician take both the qualities for keeping the Patient unscatterod.
Translation
Let the herb, kushtha by name, possessed of superfine qualities come to us protecting from the snow-covered mountain (its birth-place). Let it destroy all kinds of fevers and all sorts of pain-giving diseases.
Footnote
This sukta describes the useful properties the well known medicinal herb, known as Kustha or simply kutha in general. They are worth research.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
इस सूक्त का मिलान करो-अथर्व०४।५ तथा ६।९५॥१−(ऐतु) आगच्छतु (देवः) दिव्यगुणः (त्रायमाणः) पालयमानः (कुष्ठः) अ०५।४।१। हनिकुषिनी०। उ०२।२। कुष निष्कर्षे-क्थन्। रोगाणां निष्कर्षको बहिष्कर्ता। औषधविशेषः (हिमवतः) हिमदेशात् (परि) सर्वतः (तक्मानम्) जीवनस्य क्लेशकारिणं ज्वरम् (सर्वम्) (नाशय) दूरीकुरु (सर्वाः) (च) (यातुधान्यः) दुःखदायिनीः पीडाः ॥
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