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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 40/ मन्त्र 1
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - बृहस्पतिः, विश्वे देवाः छन्दः - परानुष्टुप्त्रिष्टुप् सूक्तम् - मेधा सूक्त
    1

    यन्मे॑ छि॒द्रं मन॑सो॒ यच्च॑ वा॒चः सर॑स्वती मन्यु॒मन्तं॑ ज॒गाम॑। विश्वै॒स्तद्दे॒वैः स॒ह सं॑विदा॒नः सं द॑धातु॒ बृह॒स्पतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। मे॒। छि॒द्रम्। मन॑सः। यत्। च॒। वा॒चः। सर॑स्वती। म॒न्यु॒ऽमन्त॑म्। ज॒गाम॑। विश्वैः॑। तत्। दे॒वैः। स॒ह। स॒म्ऽवि॒दा॒नः। सम्। द॒धा॒तु॒। बृह॒स्पतिः॑ ॥४०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यन्मे छिद्रं मनसो यच्च वाचः सरस्वती मन्युमन्तं जगाम। विश्वैस्तद्देवैः सह संविदानः सं दधातु बृहस्पतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। मे। छिद्रम्। मनसः। यत्। च। वाचः। सरस्वती। मन्युऽमन्तम्। जगाम। विश्वैः। तत्। देवैः। सह। सम्ऽविदानः। सम्। दधातु। बृहस्पतिः ॥४०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 40; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जो (मे) मेरे (मनसः) मन का (च) और (यत्) जो (वाचः) वाणी का (छिद्रम्) दोष है, [जिससे] (सरस्वती) सरस्वती [उत्तम वेदविद्या] (मन्युमन्तम्) क्रोधयुक्त [व्यवहार] को (जगाम) प्राप्त हुई है। (तत्) उस [दोष] को (विश्वैः) सब (देवैः सह) उत्तम गुणों के साथ (संविदानः) मिलता हुआ (बृहस्पतिः) बड़े आकाश आदि का पालक परमेश्वर (सं दधातु) सन्धियुक्त करे ॥१॥

    भावार्थ

    जब मनुष्य मानसिक वा वाचिक दोष से विद्या देवी को क्रोधित कर देवे, वह परमात्मा की शरण लेकर अपनी न्यूनताएँ पूरी करे ॥१॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का मिलान करो-यजु०३६।२॥१−(यत्) (मे) मम (छिद्रम्) दोषम् (मनसः) हृदयस्य (यत्) (च) (वाचः) वाण्याः (सरस्वती) विज्ञानवती वेदविद्या (मन्युमन्तम्) क्रोधवन्तं व्यवहारम् (जगाम) प्राप (विश्वैः) सर्वैः (तत्) छिद्रम् (देवैः) उत्तमगुणैः (सह) (संविदानः) संगच्छमानः (सं दधातु) सन्धानं करोतु (बृहस्पतिः) बृहतामाकाशादीनां पालक ईश्वरः ॥

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    भाषार्थ

    (मे) मेरे (मनसः) मन का (यत्) जो (छिद्रम्) दोष है, (च) और (यत्) जो (वाचः) वाणी का दोष है, तथा जो मेरी (सरस्वती) ज्ञान-विज्ञान-सम्पन्ना वाणी [क्षुब्ध होकर] (मन्युमन्तम्) क्रोधी मनुष्य के प्रति (जगाम) प्रवृत्त हुई है, उच्चरित हुई है, (तत्) उन दोषों का (विश्वैः देवेभ्यः सह) अन्य सब आचार्य आदि देवों के साथ (संविदानः) सहमत होकर (बृहस्पतिः) वेदवाणी का आचार्य (सं दधातु) उपचार करे, उन दोषों अर्थात् छिद्रों को पूरित करे।

    टिप्पणी

    [मनसः= मन का दोष है—अशिवसंकल्प, नास्तिकता आदि। वाचः= वाणी का दोष है—असत्य वचन, निन्दा, कटुता आदि। सरस्वती= सरो विज्ञानं तद्वती (उणा० ४.१९०)। ज्ञान-विज्ञान सम्पन्न व्यक्ति की वाणी में भी यदि क्षोभ हो जाएँ, तो वह दोष ही है। बृहस्पतिः= बृहती वाक् वेदवाणी (शत० ब्रा० १.४.११), तस्याः पतिः। विश्वैः देवैः= अन्य शिक्षक, मातृदेव, पितृदेव आदि। संदधातु= मन्त्र में दोष को छिद्र कहा है। छिद्र को भरना होता है। इसलिए संदधातु का अर्थ है—संधान करना। “दोष” अर्थ में इसका अर्थ होगा—उपचार करना।]

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    विषय

    सरस्वती मन्युमन्तं जगाम

    पदार्थ

    १. (यत्) = जो (मे) = मेरा (मनस:) = मन का (छिद्रम्) = दोष है-मन में विद्याप्राप्ति के लिए उत्साह का न होना ही मन का सर्वमहान् दोष है (च) = और (यत्) = जो (वाच:) = वाणी का दोष है-वेदवाणी का स्वाध्याय न करना ही वाणी का सर्वमहान् दोष है। (तत्) = उस दोष को (विश्वैः देवैः सह) = "माता, पिता, आचार्य' आदि सब देवों के साथ (संविदान:) = ऐकमत्य को प्राप्त हुआ-हुआ (बृहस्पति:) = ज्ञान का स्वामी प्रभु (संदधातु) = ठीक करदे । प्रभु उत्तम माता-पिता आदि को प्रास कराके हमारे इस दोष को दूर कर दें-छिद्र को भर दें। ३. इसप्रकार निर्दोष जीवनवाले बनते हुए हम इस बात का सदा स्मरण रखें कि (सरस्वती) = ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता (मन्युमन्तम्) [मन्यु-Sacrifice, Ardour, zeal] त्याग व तीव्र उत्साहवाले को ही (जगाम) = प्राप्त होती है। मन्युमान् बनते हुए हम इस सरस्वती की आराधना करें। वस्तुतः यही निर्दोष बनने का मार्ग है।

    भावार्थ

    हमारे मन व वाणी के दोष प्रभु-कृपा से व उत्तम माता-पिता-आचार्य आदि के प्रशिक्षण से दूर हों। हम त्याग व उत्साह की वृत्तिवाले बनकर सरस्वती की आराधना करें।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    For Intelligence, Medha

    Meaning

    Whatever the weakness of mind in me, whatever the indiscretion of language and communication, whatever the fault that vitiates my understanding and wisdom because of my ego and passion, all that may Brhaspati, Vedic scholar and teacher knowing all and ever with me, with all other enlightened persons, repair and bring back to wholeness and balance with stability.

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    Subject

    To divinities : For blessings

    Translation

    Whatever fault is there in my mind and in my speech, which has offend the divine learning, may the Lord supreme, in accord with all the bounties of Nature, rectify that (fault).

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    Translation

    Let this all-powerful Kustha bring ‘down and drive away the fever, headache-causing, tartian, continual fever and that which lasts for a year.

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    Translation

    Whatever drawback there is of my mind and whatever failing there is of my speech, which my tongue underwent during the state of my being angry, may the learned person of Vedic lore remove it after full consultation with all other learned persons, or fully ascertaining them through all other sense organs.

    Footnote

    The weakness of the mind, the harshness of speech can easily be adjudged from the lustful eyes, and the reddened face of the man. My: man’s, cf. Yajur 36.2.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का मिलान करो-यजु०३६।२॥१−(यत्) (मे) मम (छिद्रम्) दोषम् (मनसः) हृदयस्य (यत्) (च) (वाचः) वाण्याः (सरस्वती) विज्ञानवती वेदविद्या (मन्युमन्तम्) क्रोधवन्तं व्यवहारम् (जगाम) प्राप (विश्वैः) सर्वैः (तत्) छिद्रम् (देवैः) उत्तमगुणैः (सह) (संविदानः) संगच्छमानः (सं दधातु) सन्धानं करोतु (बृहस्पतिः) बृहतामाकाशादीनां पालक ईश्वरः ॥

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