Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 49 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 49/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गोपथः, भरद्वाजः देवता - रात्रिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - रात्रि सूक्त
    1

    इ॑षि॒रा योषा॑ युव॒तिर्दमू॑ना॒ रात्री॑ दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्भग॑स्य। अ॑श्वक्ष॒भा सु॒हवा॒ संभृ॑तश्री॒रा प॑प्रौ॒ द्यावा॑पृथि॒वी म॑हि॒त्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒षि॒रा। योषा॑। यु॒व॒तिः। दमू॑ना। रात्री॑। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। भग॑स्य। अ॒श्व॒ऽक्ष॒भा। सु॒ऽहवा॑। सम्ऽभृ॑तश्रीः। आ। प॒प्रौ॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। म॒हि॒ऽत्वा ॥४९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इषिरा योषा युवतिर्दमूना रात्री देवस्य सवितुर्भगस्य। अश्वक्षभा सुहवा संभृतश्रीरा पप्रौ द्यावापृथिवी महित्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इषिरा। योषा। युवतिः। दमूना। रात्री। देवस्य। सवितुः। भगस्य। अश्वऽक्षभा। सुऽहवा। सम्ऽभृतश्रीः। आ। पप्रौ। द्यावापृथिवी इति। महिऽत्वा ॥४९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रात्रि में रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (इषिरा) फुरतीली, (योषा) सेवनीया (युवतिः) युवा [बलवती], (देवस्य) प्रकाशमान, (भगस्य) ऐश्वर्यवान् (सवितुः) प्रेरक सूर्य की (दमूनाः) वश में करनेवाली, (अश्वक्षमा) शीघ्र फैलनेवाली, (सुहवा) सहज में बुलाने योग्य, (संभृतश्रीः) सम्पूर्ण सम्पत्तिवाली (रात्रौ) रात्री ने (महित्वा) महिमा से (द्यावापृथिवी) आकाश और पृथिवी को (आ) सर्वथा (पप्रौ) भर दिया है ॥१॥

    भावार्थ

    जिस समय विश्रामदात्री रात्री का बड़ा अन्धकार संसार में फैले, मनुष्य सावधानी से अपनी सम्पत्ति की रक्षा करें ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र के पदपाठ के (अश्व-क्षमा) को (अशु-अक्षमा) मानकर अर्थ किया गया है ॥ १−(इषिरा) इषिमदिमुदि०। उ० १।५१। इष गतौ-किरच्। शीघ्रगतिः (योषा) युष सेवने-अच्, टाप्। सेवनीया (युवतिः) तरुणी। बलवती (दमूनाः) अ० ७।१४।४। दमेरुनसि। उ० ४।२™३५। दमु उपशमे-उनसि, वा दीर्घः। दमनशीला (रात्री) (देवस्य) प्रकाशमानस्य (सवितुः) प्रेरकस्य सूर्यस्य (भगस्य) ऐश्वर्यवतः (अश्वक्षमा) भृमृशीङ्०। उ० १।७। अशू व्याप्तौ-उ प्रत्ययः+कॄशृशलिकलि०। उ० ३।१२२। अक्षू व्याप्तौ-अमच्, टाप्। अशु आशु शीघ्रं अक्षमा व्यापनशीला (सुहवा) सुखेन ह्वातव्या (संभृतश्रीः) सम्पूर्णसम्पत्तिः (आ) समन्तात् (पप्रौ) प्रा पूरणे-लिट्। पूरितवती (द्यावापृथिवी) आकाशभूमी (महित्वा) महिम्ना ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (दमूनाः) गृहकार्यों में दत्तचित्त, (युवतिः) युवावस्थावाली, (देवस्य सवितुः भगस्य) दिव्य गुणों वाले, सन्तानोत्पादन में समर्थ तथा सेवनीय या भाग्यशाली पति की (योषा) पत्नी के सदृश (रात्री) रात्री (इषिरा) सदा सक्रिय है, उद्यमशील है। (अश्वक्षभा) सूर्य के क्षय होने पर चमकने वाली, (सुहवा) सुगमतया पारस्परिक आह्वान में सहायक, (संभृतश्रीः) शोभाभरी रात्री ने (महित्वा) निज महत्ता के कारण (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक को (आ पप्रौ) पूर्णतया भर दिया है, व्याप्त कर लिया है।

    टिप्पणी

    [इषिरा=इष गतौ+किरच् (उणा० १.५१), सदा गतिशील। रात्री भूमण्डल के चारों ओर निजोत्पत्ति काल से ही चक्कर लगा रही है, कभी विश्राम नहीं करती। दमूनाः= “अपि वा दम इति गृहनाम, तन्मनाः” (निरु० ४.१.५), अर्थात् गृह में मनवाली। सवितुः=षू प्रसवे। अश्वक्षभा= अश्व (सूर्य) यथा—“एकः अश्वो वहति सप्तनामा” (निरु० ४.५.२७) में “एकोऽश्वो वहति सप्तनामादित्यः” (निरु० ४.५.२७)+क्ष (क्षय)+भा (दीप्तौ)। सुहवा=रात्री के प्रशान्त वायुमण्डल में आवाज दूर तक सुगमता से पहुँच जाती है। संभृतश्रीः =चान्द और नक्षत्रों तथा तारागणों की शोभावाली रात्रि।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'संभृतश्री:' रात्री

    पदार्थ

    १. रात्रि में सूर्य तो अस्त हो चुका होता है। सूर्य की किरणों से प्रकाशित हुआ-हुआ चन्द्रमा रात्रि को विभा-[प्रकाश]-वाला करता है। यह 'विभा' हमारे लिए सन्तापशून्य प्रकाश को प्राप्त कराती है, अतः कहते हैं कि (सवितुः देवस्य) = सबके प्रेरक-सबको उठकर कार्य-प्रवृत्त होने की प्रेरणा देनेवाले सूर्य-प्रकाशमय सूर्य के (भगस्य) = ऐश्वर्य का (योषा) = अपने में मेल करनेवाली (रात्री) = यह रात्रिदेवता (महित्वा) = अपनी महिमा [फैलाव] से (द्यावापृथिवी) = सारे द्युलोक व पृथिवीलोक को (आपप्रौ) = भर लेती है-सर्वत्र द्यावापृथिवी में अन्धकार का राज्य हो जाता है। २. यह रात्रि (इषिरा) = एष्टव्या है-सबसे प्रार्थनीय है-चाहने योग्य है। यही थके हुए प्राणी की थकावट को दूर करके उसे पुन: तरोताजा करती है। अथवा अपनी गति से सर्वत्र व्याप्त हो रही है। (युवति:) = सदा यौवनवाली है-सृष्टि के प्रारम्भ से अन्त तक एक-सी ही आती-जाती रहती है। (दमूना:) = सबका दमन करनेवाली है-सबको अभिभूत करनेवाली है। (अश्वक्षभा) = [अश्वान् क्षायति भा दीतिर्यस्याः] इन्द्रियों को अभिभूत करनेवाली दीसिवाली है। रात्रि के समय सब इन्द्रियाँ कार्य से उपरत हो जाती हैं। यह रात्रि (सुहवा) = सुष्टु हातव्य-सबसे पुकारने योग्य है। सबसे चाहने योग्य है, (संभृतश्री:) = यह फिर से हमारे अन्दर श्री का संभरण करने आती है। सब इन्द्रियों को पुन: सशक्त बना देती है।

    भावार्थ

    रात्रि सारे आकाश को अन्धकार से आपूरित कर देती है। इसमें सब इन्द्रियाँ थककर सो जाती हैं। यह उनमें पुनः शक्ति भरनेवाली होती है। इसी से यह सबसे चाहने योग्य है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Ratri

    Meaning

    Inspiring, youthful, Night, friend by shadow of the house of the mighty refulgent sun, instantly coming on sunset bearing her own restful beauty and grace has arrived and pervades and fills the heaven and earth with her greatness and glory.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject

    Night : Praises and Prayer

    Translation

    Covetablé, vouthful maiden. night. dear to the impeller ___ of the fortune, all encompassing. “easy Ce cee ne accumulating giory. nee elec the heaven md carb eu grandeur.

    Comments / Notes

    Text is not clear in the book. If someone has a clearer copy, please edit this translation

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    This night which is quick, serviceable, connective link between sun and moon, has control over brilliant mighty sun, which spreads quickly, which bears good name and which contains the beauty, fills up the heaven and earth with its impact.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Just as a young lady, desirous of seeking pleasure from her husband, who is possessed of fine qualities, capable of producing children and is fortunate, similarly the primordial cause of the universe i.e., Prakriti, lying latent in utter darkness in the state of annihilation, ever young, under the control of its Lord, seeks the touch of the Divine Creator, the Distributor of all for¬ tunes to be set in motion to produce this universe. It (i.e., Prakriti) is capable of coming into brilliance at once, easy to handle and bearer of all forms of riches, completely fills the earth and the heavens with its grandeur.

    Footnote

    Here Ratri means the Prakriti, lying in state of utter darkness during प्रलय Jaidev Vidyalankar has also referred to the Royal power, capable of producing peace and prosperity by its dominating influence. Ratri has been variously interpreted as Prakriti, Royal power or night according to the content of each verse.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र के पदपाठ के (अश्व-क्षमा) को (अशु-अक्षमा) मानकर अर्थ किया गया है ॥ १−(इषिरा) इषिमदिमुदि०। उ० १।५१। इष गतौ-किरच्। शीघ्रगतिः (योषा) युष सेवने-अच्, टाप्। सेवनीया (युवतिः) तरुणी। बलवती (दमूनाः) अ० ७।१४।४। दमेरुनसि। उ० ४।२™३५। दमु उपशमे-उनसि, वा दीर्घः। दमनशीला (रात्री) (देवस्य) प्रकाशमानस्य (सवितुः) प्रेरकस्य सूर्यस्य (भगस्य) ऐश्वर्यवतः (अश्वक्षमा) भृमृशीङ्०। उ० १।७। अशू व्याप्तौ-उ प्रत्ययः+कॄशृशलिकलि०। उ० ३।१२२। अक्षू व्याप्तौ-अमच्, टाप्। अशु आशु शीघ्रं अक्षमा व्यापनशीला (सुहवा) सुखेन ह्वातव्या (संभृतश्रीः) सम्पूर्णसम्पत्तिः (आ) समन्तात् (पप्रौ) प्रा पूरणे-लिट्। पूरितवती (द्यावापृथिवी) आकाशभूमी (महित्वा) महिम्ना ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top