अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 51/ मन्त्र 1
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - आत्मा
छन्दः - एकावसानैकपदा ब्राह्म्यनुष्टुप्
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
1
अयु॑तो॒ऽहमयु॑तो म आ॒त्मायु॑तं मे॒ चक्षु॒रयु॑तं मे॒ श्रोत्र॑मयु॑तो मे प्रा॒णोऽयु॑तो मेऽपा॒नोऽयु॑तो मे व्या॒नोऽयु॑तो॒ऽहं सर्वः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअयु॑तः। अ॒हम्। अयु॑तः। मे॒। आ॒त्मा। अयु॑तम्। मे॒। चक्षुः॑। अयु॑तम्। मे॒। श्रोत्र॑म्। अयु॑तः। मे॒। प्रा॒णः। अयु॑तः। मे॒। अ॒पा॒नः। मे॒। वि॒ऽआ॒नः। अयु॑तः। अ॒हम्। सर्वः॑ ॥५१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अयुतोऽहमयुतो म आत्मायुतं मे चक्षुरयुतं मे श्रोत्रमयुतो मे प्राणोऽयुतो मेऽपानोऽयुतो मे व्यानोऽयुतोऽहं सर्वः ॥
स्वर रहित पद पाठअयुतः। अहम्। अयुतः। मे। आत्मा। अयुतम्। मे। चक्षुः। अयुतम्। मे। श्रोत्रम्। अयुतः। मे। प्राणः। अयुतः। मे। अपानः। मे। विऽआनः। अयुतः। अहम्। सर्वः ॥५१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
आत्मा की उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैं (अयुतः) अनिन्दित [प्रशंसायुक्त] [होऊँ] (मे) मेरा (आत्मा) आत्मा [जीवात्मा] (अयुतः) अनिन्दित, (मे) मेरी (चक्षुः) आँख (अयुतम्) अनिन्दित, (मे) मेरा (श्रोत्रम्) कान (अयुतम्) अनिन्दित, (मे) मेरा (प्राणः) प्राण [भीतर जानेवाला श्वास] (अयुतः) अनिन्दित, (मे) मेरा (अपानः) अपान [बाहिर जानेवाला श्वास] (अयुतः) अनिन्दित, (मे) मेरा (व्यानः) व्यान [सब शरीर में घूमनेवाला वायु] (अयुतः) अनिन्दित [होवे], (सर्वः) सबका सब (अहम्) मैं (अयुतः) अनिन्दित [होऊँ] ॥१॥
भावार्थ
जो मनुष्य अपने-आप, अपने आत्मा, अपने इन्द्रियों, अपने अङ्गों और अपने सर्वस्व से सदा प्रशंसनीय कर्म करते हैं। वे ही आत्मोन्नति कर सकते हैं ॥१॥
टिप्पणी
१−(अयुतः) यु निन्दायाम्, चुरादिः-क्त। अनिन्दितः। प्रशंसितः (अहम्) (मे) मम (आत्मा) जीवात्मा (चक्षुः) दर्शनेन्द्रियम् (श्रोत्रम्) श्रवणेन्द्रियम् (प्राणः) शरीराभ्यन्तरगामी वायुः (अपानः) शरीराद् बहिर्गामी वायुः (व्यानः) सर्वशरीरव्यापको वायुः (सर्वः) समस्तः। अन्यद् गतं स्पष्टं च ॥
भाषार्थ
(अयुतः) दोषरहित (अहम्) मैं हो गया हूं, (अयुतः) दोषरहित (मे) मेरा (आत्मा) आत्मा हो गया है, (अयुतम्) दोषरहित (मे) मेरी (चक्षुः) आँख हो गई है, (अयुतम्) दोषरहित (मे) मेरी (श्रोत्रम्) श्रवणशक्ति हो गई है, (अयुतः) दोषरहित (मे) मेरा (प्राणः) प्राण हो गया है, (अयुतः) दोषरहित (मे) मेरा (अपानः) अपान हो गया है, (अयुतः) दोषरहित (मे) मेरा (व्यानः) व्यान हो गया है। (अहम्) मैं (सर्वः) सब (अयुतः) दोषरहित हो गया हूँ।
टिप्पणी
[अयुतः= अ+यु (जुगुप्सा)+क्तः। प्राणः= भीतर आनेवाला श्वास। अपानः= बाहिर निकलनेवाला प्रश्वास, या पेट की अपानवायु। व्यानः= सर्वशरीरसंचारी वायु। तथा— अयुत अर्थात् हजारों मनुष्यों और प्राणियों के रूप में, मैं मानो हो गया हूँ। मैं मानो विभक्त होकर हजारों रूप धारण किये हुए हूँ। हजारों आँखें, कान, प्राण, अपान, व्यान मानो मेरे ही रूप हैं। मैं ही सर्वरूप हूँ। अर्थात् भूमण्डल का प्रत्येक मनुष्य अन्य प्राणियों में आत्मबुद्धि और आत्मीयता की भावना करके यह समझे कि वह मानो अन्यों की सेवा में अपनी, तथा अपनों की ही सेवा कर रहा है। इस प्रकार प्रेम और सहानुभूति द्वारा भूमण्डल के सभी मनुष्य परस्पर एक संगठन में संगठित हो सकेंगे। मन्त्रोक्त इस सर्वात्मभावना से ऊँची और कोई सर्वात्मभावना सम्भव नहीं। यह सर्वात्मभावना सार्वभौमभावना की पराकाष्ठा है। इस सर्वात्मभावना में पशु-पक्षी तथा कीट-पतङ्ग तक समाते हैं। इसी भावना को सुदृढ़ बनाए रखने के लिए वेदों तथा सच्छास्त्रों में सर्वभूतमैत्री, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ तथा बलिवैश्वयज्ञ आदि का विधान किया गया है। बलिवैश्वदेवयज्ञ में समग्र प्राणियों की रक्षा की भावना ओत-प्रोत है। यथा—“शुनां च पतितानां च श्वपचां पापरोगिणाम्। वायसानां कृमीणां च शनकैर्निर्वपेद् भुवि” (मनु० ३.९२)। अर्थात् कुत्तों, पतितों, कुत्तों का मांस पकाकर खानेवालों, पापकर्म के कारण हुए रोगियों, कौओं, कृमियों तक को भोजन देने की भावना है। ये भावनाएँ प्रत्येक गृहस्थी के दैनिक धर्मकृत्यों की नींवरूप हैं। अयुत=१० हजार। (Ten Thousand) (आप्टे)।]
विषय
अनिन्दित जीवनवाला 'ब्रह्मा'
पदार्थ
१. [यु निन्दायाम्] (अयुतः अहम्) = अनिन्दित जीवनवाला मैं होऊँ। (मे आत्मा अयुतः) = मेरा मन अनिन्दित हो। मे (चक्षुः अयुतम्) = मेरी आँख अनिन्दित हो-इससे मैं भद्र को ही देखू । (मे श्रोत्रं अयुतम्) = मेरा कान अनिन्दित हो-इससे मैं भद्र को ही सु।। २. (मे प्राणः अयुत:) = मेरा प्राण अनिन्दित हो। (मे अपान: अयुतः) = मेरा अपान भी अनिन्दित हो। (मे व्यान: अयुत:) = प्राणापान सन्धिरूप मेरा व्यानवायु भी अनिन्दित हो। (अहं सर्वः अयुत्) = मैं सारे-का-सारा अनिन्दित होऊँ।
भावार्थ
हम निष्पाप जीवनवाले बनकर अनिन्दित जीबनवाले हों।
इंग्लिश (4)
Subject
Atma
Meaning
I am a complete whole, my soul is complete whole, my eye is complete whole, my ear is complete whole, my prana is complete whole, my apana is complete whole, my vyana is complete whole, I am all, complete, whole, undivided, complete, integrated organismic being.
Subject
Atman
Translation
Unbound am I; unbound is my soul: unbound (is) my vision; unbound (is) my audition; unbound (is) my in-breath: unbound (is) my out-breath; unbound (is) my diffused breath; unbound the whole of me.
Translation
I am unhumiliated, my soul is unhumiliated, my eye is unhumiliated, my car is unhumiliated, my in-breathing is un-humiliated, my out breathing is un-humiliated, my diffu- sive breath is unhumiliated and I am unhumiliated in entirely.
Translation
I (a devotee) am fully engrossed (in the meditation of God) (literally not separated from Him) my soul is united with Him, my eye is fixed on Him, my ear is all-attention to Him, my ingoing breath is not separated from Him, my out-going breath; is related to Him, my vital breath running through all my veins, is wrapt in Him, in short, the whole of myself is totally absorbed in Him. This is the state attained in Samadhi.
Footnote
It describes the state of smadhi, the means whereby it is attained.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(अयुतः) यु निन्दायाम्, चुरादिः-क्त। अनिन्दितः। प्रशंसितः (अहम्) (मे) मम (आत्मा) जीवात्मा (चक्षुः) दर्शनेन्द्रियम् (श्रोत्रम्) श्रवणेन्द्रियम् (प्राणः) शरीराभ्यन्तरगामी वायुः (अपानः) शरीराद् बहिर्गामी वायुः (व्यानः) सर्वशरीरव्यापको वायुः (सर्वः) समस्तः। अन्यद् गतं स्पष्टं च ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal