अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 52/ मन्त्र 1
काम॒स्तदग्रे॒ सम॑वर्तत॒ मन॑सो॒ रेतः॑ प्रथ॒मं यदासी॑त्। स का॑म॒ कामे॑न बृह॒ता सयो॑नी रा॒यस्पोषं॒ यज॑मानाय धेहि ॥
स्वर सहित पद पाठकामः॑। तत्। अग्रे॑। सम्। अ॒व॒र्त॒त॒। मन॑सः। रेतः॑। प्र॒थ॒मम्। यत्। आसी॑त् ॥ सः। का॒म॒। कामे॑न। बृ॒ह॒ता। सऽयो॑निः। रा॒यः। पोष॑म्। यज॑मानाय। धे॒हि॒ ॥५२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
कामस्तदग्रे समवर्तत मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्। स काम कामेन बृहता सयोनी रायस्पोषं यजमानाय धेहि ॥
स्वर रहित पद पाठकामः। तत्। अग्रे। सम्। अवर्तत। मनसः। रेतः। प्रथमम्। यत्। आसीत् ॥ सः। काम। कामेन। बृहता। सऽयोनिः। रायः। पोषम्। यजमानाय। धेहि ॥५२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
काम की प्रशंसा का उपदेश।
पदार्थ
(तत्) फिर [प्रलय के पीछे] (अग्रे) पहिले ही पहिले (कामः) काम [इच्छा] (सम्) ठीक-ठीक (अवर्तत) वर्तमान हुआ, (यत्) जो (मनसः) मन का (प्रथमम्) पहिला (रेतः) बीज (आसीत्) था। (सः) सो तू, (काम) हे काम ! (बृहता) बड़े (कामेन) काम [कामना करनेवाले परमेश्वर] के साथ (सयोनिः) एकस्थानी होकर (रायः) धन की (पोषम्) वृद्धि (यजमानाय) यजमान [विद्वानों के सत्कार करनेवाले] को (धेहि) दान कर ॥१॥
भावार्थ
प्रलय के पीछे प्राणियों के पूर्वजन्मों के कर्मफलों के अनुसार परमात्मा ने सृष्टि उत्पन्न करने की इच्छा की है, सो हे मनुष्यो ! तुम उत्तम कर्म करके अभीष्ट सुख प्राप्त करो ॥१॥
टिप्पणी
१−इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध ऋग्वेद में है-१०।१२९।४। और चौथा पाद आ चुका है-अ० १८।१।४३ ॥ २−इस सूक्त का मिलान करो-अ० ९।२। और देखो यजुर्वेद ७।४८ ॥ १−(कामः) कमु कान्तौ-घञ्। अभिलाषः। इच्छा (तत्) ततः। प्रलयानन्तरम् (अग्रे) सृष्ट्यादौ (सम्) सम्यक् (अवर्तत) वर्तमानोऽभवत् (मनसः) चित्तस्य (रेतः) बीजम् (प्रथमम्) आद्यम्। पूर्वकल्पे प्राणिभिः कृतं पुण्यापुण्यात्मकं कर्म (यत्) कर्म (आसीत्) अभवत् (सः) स त्वम् (काम) हे काम (कामेन) कामयतेः-पचाद्यच्। कामयित्रा परमेश्वरेण सह (बृहता) महता (सयोनिः) समानगृहः। एकस्थानीयः (रायः) धनस्य (पोषम्) वृद्धिम् (यजमानाय) विदुषां सत्कर्त्रे (धेहि) देहि ॥
भाषार्थ
(अग्रे) सृष्टि के आरम्भकाल में (कामः) ईश्वरीय काम [कामना=इच्छा] (समवर्तत) सम्यक्-रूप में प्रकट हुआ। (यत्) जो काम कि (मनसः) परमेश्वर के मनन अर्थात् “ज्ञानस्वरूप सामर्थ्य” से प्रकट हुआ, (तत् प्रथमम्) वह काम प्रथम (रेतः) बीज (आसीत्) था। (काम) हे मेरे काम! [कामना वा इच्छा] (सः) वह तू (बृहता कामेन) बृहत् काम अर्थात् परमेश्वर के काम के साथ (सयोनिः) समानयोनि वाला अर्थात् तत्सदृश होकर (यजमानाय) यज्ञ के कर्त्ता मुझे (रायस्पोषम्) आध्यात्मिक-सम्पत्ति की पुष्टि अर्थात् समृद्धि (धेहि) प्रदान कर।
टिप्पणी
[सृष्टि के आरम्भ में सृष्ट्युत्पादन के लिए परमेश्वर में काम अर्थात् कामना या इच्छा प्रकट होती है। यथा— “सोऽकामयत्” (बृह० उप० १.२.४,६,७); तथा=“स ऐच्छत्” (बृह० उप० १.४.३)। मनसः= इसका अर्थ “ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका” के “सृष्टिविद्याविषय” में, तथा यजुर्वेद ३१.१२ में “मनसः” शब्द के किये अर्थ के अनुसार किया है। परमेश्वर मन द्वारा कार्य नहीं करता, जैसे कि मनुष्य मन द्वारा कार्य करते हैं। परमेश्वर अस्मत्सदृश मन से रहित है। मन्त्र का अभिप्राय है कि सृष्ट्युत्पत्ति में परमेश्वर के ज्ञानस्वरूप सामर्थ्य से, जिसे कि ईक्षण (तदैक्षत बहु स्याम्; छां० ६.२.३) भी कहते हैं— “काम” अर्थात् कामना प्रकट हुई, और यह काम [या कामना] सृष्ट्युत्पत्ति का प्रथम बीज (रेतः) था। कामेन बृहता= यजमान भी यजन करता है, यज्ञस्वरूप कर्मों को करता है। इन यज्ञिय कर्मों का कारण भी “काम” है। यज्ञिय कर्मों के करने के लिए “काम” भी यज्ञिय भावनाओं वाला होना चाहिए। देवपूजा, सत्संगति तथा दानभावना आदि से ओत-प्रोत होना चाहिए, जैसे कि परमेश्वरीय काम परोपकार न्याय दानभावना आदि से ओत-प्रोत है। परमेश्वरीय काम को “बृहत्-काम” कहा है। यज्ञिय कर्मों के करने के लिए यज्ञकर्त्ता का “काम” भी परमेश्वरीय “बृहत्-काम” के सदृश सात्त्विक होना चाहिए। तभी यजमान को आध्यात्मिक-सम्पत्तियों की पुष्टि अर्थात् समृद्धि प्राप्त हो सकती है।]
विषय
काम:-मनसाः प्रथमं रेतः
पदार्थ
१. (तत् अग्रे) = इस सृष्टि के प्रारम्भ में [प्रलय की समाप्ति पर] (काम: समवर्तत) = काम सिसक्षा हुआ। प्रभु ने सृष्टि को उत्पन्न करने की कामना की [सोऽकामयत बहु स्यां प्रजायेय] (यत्) = जो काम (मनसः) = मन का (प्रथमं रेतः) = सर्वमुख्य तेज (आसीत्) = था। काम से ही सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण होता है, मानो यह काम ही सृष्टि का बीज [रेतः] हो। २. हे (काम) = काम! तू (बृहता कामेन) = उस महान् काम-कान्त प्रभु के साथ (सयोनिः) = समान निवासवाला होता हुआ (यजमानाय) = यज्ञशील पुरुष के लिए (रायस्पोषं धेहि) = धन की पुष्टि को स्थापित कर । हृदय में प्रभु के साथ निवासवाला काम पवित्र ही होता है [धर्माविरुद्ध: कामोऽस्मि भूतेषु भरतर्षभ] यह धर्माविरुद्ध काम हम यज्ञशीलों को धन का पोषण प्राप्त कराए।
भावार्थ
'काम' मन की सर्वमुख्य शक्ति है।'धर्माविरुद्ध काम' प्रभु का ही रूप है। यह हम यज्ञशील पुरुषों को आवश्यक समृद्धि से युक्त करे।
इंग्लिश (4)
Subject
Kama
Meaning
In the beginning, there was Kama, thought-and- desire, born of the divine mind, and that was the first seed of the world of existence. O Kama, coexistent and one with the infinite mind and potential, pray bring in and bless the yajamana with wealth and nourishment of life.
Subject
Kama : Desire
Translation
In the beginning arose that desire, which was the first seed of the mind. As such, may you, O desire, akin to the providential desire, grant plenty of-riches to the sacrificer.
Translation
In the beginning of creation desire (containing plan and purpose) arose at first and that it was the primal seed of Manas, the spirit. May this Kama accompanied by the Great Kama (the Great Divinity who is the seat of first germ) give rickes and growth to the man performing Yajna.
Translation
In the beginning of the creation, it was God, the Desire-Incarnate, imbued with the desire to create the universe. His desire was the first creative power of the Omniscient. The self same Desire-Incarnate and His great desire for creation were centred at the same place i.e., the whole expanse of space. O Kama, shower riches and prosperity on the sacrificer.
Footnote
Just as a fast horse, with seven-roped reins carries a chariot, similarly the All-stirring, Omnipresent, Omniscient, All-potent God, Who is possessed.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध ऋग्वेद में है-१०।१२९।४। और चौथा पाद आ चुका है-अ० १८।१।४३ ॥ २−इस सूक्त का मिलान करो-अ० ९।२। और देखो यजुर्वेद ७।४८ ॥ १−(कामः) कमु कान्तौ-घञ्। अभिलाषः। इच्छा (तत्) ततः। प्रलयानन्तरम् (अग्रे) सृष्ट्यादौ (सम्) सम्यक् (अवर्तत) वर्तमानोऽभवत् (मनसः) चित्तस्य (रेतः) बीजम् (प्रथमम्) आद्यम्। पूर्वकल्पे प्राणिभिः कृतं पुण्यापुण्यात्मकं कर्म (यत्) कर्म (आसीत्) अभवत् (सः) स त्वम् (काम) हे काम (कामेन) कामयतेः-पचाद्यच्। कामयित्रा परमेश्वरेण सह (बृहता) महता (सयोनिः) समानगृहः। एकस्थानीयः (रायः) धनस्य (पोषम्) वृद्धिम् (यजमानाय) विदुषां सत्कर्त्रे (धेहि) देहि ॥
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