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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 53/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भृगुः देवता - कालः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त
    1

    का॒लो अश्वो॑ वहति स॒प्तर॑श्मिः सहस्रा॒क्षो अ॒जरो॒ भूरि॑रेताः। तमा रो॑हन्ति क॒वयो॑ विप॒श्चित॒स्तस्य॑ च॒क्रा भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का॒लः। अश्वः॑। व॒ह॒ति॒। स॒प्तऽर॑श्मिः। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षः। अ॒जरः॑। भूरि॑ऽरेताः। तम्। आ। रो॒ह॒न्ति॒। क॒वयः॑। वि॒पः॒चितः॑। तस्य॑। च॒क्रा। भुव॑नानि। विश्वा॑ ॥५३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कालो अश्वो वहति सप्तरश्मिः सहस्राक्षो अजरो भूरिरेताः। तमा रोहन्ति कवयो विपश्चितस्तस्य चक्रा भुवनानि विश्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कालः। अश्वः। वहति। सप्तऽरश्मिः। सहस्रऽअक्षः। अजरः। भूरिऽरेताः। तम्। आ। रोहन्ति। कवयः। विपःचितः। तस्य। चक्रा। भुवनानि। विश्वा ॥५३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (3)

    विषय

    काल की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (सप्तरश्मिः) सात प्रकार की किरणोंवाले सूर्य [के समान प्रकाशमान], (सहस्राक्षः) सहस्रों नेत्रवाला, (अजरः) बूढ़ा न होनेवाला, (भूरिरेताः) बड़े बलवाला (कालः) काल [समयरूपी] (अश्वः) घोड़ा (वहति) चलता रहता है। (तम्) उस पर (कवयः) ज्ञानवान् (विपश्चितः) बुद्धिमान् लोग (आ रोहन्ति) चढ़ते हैं, (तस्य) उस [काल] के (चक्रा) चक्र [चक्र अर्थात् घूमने के स्थान] (विश्वा) सब (भुवनानि) सत्तावाले हैं ॥१॥

    भावार्थ

    महाबलवान् काल सर्वत्र व्यापी और अति शीघ्रगामी, शुक्ल, नील, पीत, रक्त, हरित, कपिश, चित्र वर्ण किरणोंवाले सूर्य के समान प्रकाशमान है, उस काल को बुद्धिमान् लोग सब अवस्थाओं में घोड़े के समान सहायक जान कर अपना कर्तव्य सिद्ध करते हैं ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(कालः) कल संख्याने प्रेरणे च-ण्यन्तात् पचाद्यच्। कालयति संख्याति सर्वान् पदार्थानिति। समयः। परमेश्वरः (अश्वः) अशू व्याप्तौ-क्वन्। अशनो व्यापनः सर्वभूतानां परमेश्वरः। व्यापनो मार्गस्य वा तुरङ्गः (वहति) गच्छति (सप्तरश्मिः) अश्नोतेरश्च। उ० ४।४६। अशू व्याप्तौ-मिप्रत्ययः, धातोरशादेशः। शुक्लनीलपीतादिकिरणयुक्तः सूर्यवत् प्रकाशमानः (सहस्राक्षः) बहुलोचनः। अमितदर्शनसामर्थ्यः (अजरः) जरारहितः। नित्ययुवा (भूरिरेताः) प्रभूतवीर्यः (तम्) (आ रोहन्ति) अधितिष्ठन्ति (कवयः) ज्ञानिनः (विपश्चितः) मेधाविनः (तस्य) कालस्य (चक्रा) चक्राणि। भ्रमणस्थानानि (भुवनानि) सत्तायुक्तानि भूतजातानि (विश्वानि) सर्वाणि ॥

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    भाषार्थ

    (सप्तरश्मिः) सात प्रकार की किरणों वाला (अश्वः) आदित्य जैसे (वहति) सौरमण्डल का वहन करता है, वैसे (सहस्राक्षः) हजारों का क्षय करनेवाला, (भूरिरेताः) प्रभूतोत्पादन शक्तिवाला, (अजरः) जरारहित, जीर्ण न होनेवाला, सदागतिक (कालः) काल संसार-रथ का (वहति) वहन कर रहा है। (कवयः) क्रान्तदर्शी, दूरदर्शी (विपश्चितः) मेधावी (तम्) उस पर (आ रोहन्ति) आरोहण करते हैं, उसे नियन्त्रित करते हैं। (तस्य) उस रथ के (चक्रा=चक्राणि) चक्र हैं, (विश्वा=विश्वानि, भुवनानि) सब भुवन, अर्थात् सत्तावाले तारागण नक्षत्र आदित्य चन्द्र ग्रह आदि।

    टिप्पणी

    [अश्वः= “एको अश्वो वहति सप्तनामादित्यः” (निरु० ४.४.२७)। सप्तरश्मिः=सात प्रकार की किरणें हैं—लाल, पीत, नारङ्गी वर्ण, हरित, नीली, इण्डिगो वर्ण, बैंगनी। सहस्राक्षः= सहस्रा+क्ष (क्षय)। अजरः=जरारहित; अज (गतौ)+र (वाला)। कवयः; कविः=क्रान्तदर्शनः (उणा० ४.१४१), महर्षि दयानन्द। भुवनानि=सूर्य, चान्द, नक्षत्र, तारागण, ग्रह आदि गोलाकृति हैं, अतः इन्हें चक्र कहा है। अभिप्राय यह कि काल अश्व के समान मेधावियों का सहायक होता है, मेधावियों द्वारा नियन्त्रित होता है।]

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    विषय

    'सर्वजगत् कारणभूतः कालरूपः' परमात्मा

    पदार्थ

    १. (काल:) = सबका संख्यान करनेवाला [मृत्यु] (अश्व:) = भूत, भविष्यत, वर्तमानकाल की सब वस्तुओं का व्यापन करनेवाला, (सप्तरश्मि:) = सात छन्दोमयी वेदवाणीरूप सात रश्मियोंवाला यह प्रभु (वहति) = अपने पर आरोहण करनेवालों को अभिमत स्थान में प्रास कराता है। यह प्रभु (सहस्त्राक्ष:) = अनन्त आँखोंवाला है-सर्वत्र दृष्टिशक्तिवाला है। (अजर:) = कभी जीर्ण न होनेवाले वे प्रभु (भूरिरेता:) = प्रभूत जगत् सर्जनसमर्थशक्ति-सम्पन्न है। २. (विपश्चितः कवयः) = अधिगत परमार्थ ज्ञानी लोग (तम् अरोहन्ति) = उस प्रभु का आरोहण करते हैं। (तस्य) = उस प्रभु के (चक्रा) = [चक्रमणात् चक्रम् नि०४.२१] गन्तव्य स्थान (विश्वा भुवनानि) = सब भुवन हैं-बे प्रभु सब लोक-लोकान्तरों में व्याप्त हैं।

    भावार्थ

    प्रभु काल, अश्व, सप्तरश्मि, सहस्राक्ष, अजर, व भूरिश्ता: हैं। तत्त्वद्रष्टा पुरुष ही इन प्रभु को प्राप्त करते हैं। प्रभु सब लोक-लोकान्तरों में गये हुए-व्यास हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kala

    Meaning

    The ‘Time-courser’ of seven ‘reins’ and thousand eyes, unbound, unaging and omnipotent, carries the cosmic chariot of a thousand wheels at tremendous velocity. Only poetic visionaries and wise sages ride the courser and the chariot. All stars and planets and the worlds of life are the wheels of his chariot on the move.

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    Subject

    Kala : Time

    Translation

    Time, the seven-reigned horse, thousand-eyed-unaging and prolific, draws (the Cosmic Chariot). Sages with keen vision mount it; all the beings are it wheels.

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    Translation

    Kala, the time is Asvah, that which pervades all the produced objects. This (in the form of sun) possesses seven rays and have thousand axles and is undicaying and mighty. It bears everything onward. The learned men of penetrative intellect mount on that, All the worlds are the wheels of it.

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    Translation

    Just as a fast horse, with seven-roped reins carries a chariot, similarly the All-stirring, Omnipresent, Omniscient, All-potent God, Who is possessed of thousand-fold powers of vigilance, Indestructible, the Almighty carries on this universe under His sway. The seers, possessing all kinds of knowledge and powers of action reach up to Him. All the worlds are sheer wheels of His machine of creation.

    Footnote

    Kala is the All-pervading God with all the powers of sustaining, protecting and even destroying the universe.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(कालः) कल संख्याने प्रेरणे च-ण्यन्तात् पचाद्यच्। कालयति संख्याति सर्वान् पदार्थानिति। समयः। परमेश्वरः (अश्वः) अशू व्याप्तौ-क्वन्। अशनो व्यापनः सर्वभूतानां परमेश्वरः। व्यापनो मार्गस्य वा तुरङ्गः (वहति) गच्छति (सप्तरश्मिः) अश्नोतेरश्च। उ० ४।४६। अशू व्याप्तौ-मिप्रत्ययः, धातोरशादेशः। शुक्लनीलपीतादिकिरणयुक्तः सूर्यवत् प्रकाशमानः (सहस्राक्षः) बहुलोचनः। अमितदर्शनसामर्थ्यः (अजरः) जरारहितः। नित्ययुवा (भूरिरेताः) प्रभूतवीर्यः (तम्) (आ रोहन्ति) अधितिष्ठन्ति (कवयः) ज्ञानिनः (विपश्चितः) मेधाविनः (तस्य) कालस्य (चक्रा) चक्राणि। भ्रमणस्थानानि (भुवनानि) सत्तायुक्तानि भूतजातानि (विश्वानि) सर्वाणि ॥

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