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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 57/ मन्त्र 1
    ऋषिः - यमः देवता - दुःष्वप्ननाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दुःस्वप्नानाशन सूक्त
    1

    यथा॑ क॒लां यथा॑ श॒फं यथ॒र्णं सं॒नय॑न्ति। ए॒वा दुः॒ष्वप्न्यं॒ सर्व॒मप्रि॑ये॒ सं न॑यामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑। क॒लाम्। यथा॑। श॒फम्। यथा॑। ऋ॒णम्। स॒म्ऽनय॑न्ति। ए॒व। दुः॒ऽस्वप्न्य॑म्। सर्व॑म्। अप्रि॑ये। सम्। न॒या॒म॒सि॒ ॥५७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा कलां यथा शफं यथर्णं संनयन्ति। एवा दुःष्वप्न्यं सर्वमप्रिये सं नयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा। कलाम्। यथा। शफम्। यथा। ऋणम्। सम्ऽनयन्ति। एव। दुःऽस्वप्न्यम्। सर्वम्। अप्रिये। सम्। नयामसि ॥५७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 57; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (4)

    विषय

    बुरे स्वप्न दूर करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (कलाम्) सोलहवें अंश को और (यथा) जैसे (शफम्) आठवें अंश को और (यथा) जैसे (ऋणम्) [पूरे] ऋण को (संनयन्त) लोग चुकाते हैं। (एव) वैसे ही (सर्वम्) सब (दुःष्वप्न्यम्) नींद में उठे बुरे विचार को (अप्रिये) अप्रिय पुरुष पर (सम् नयामसि) हम छोड़ते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे मनुष्य ऋण को थोड़ा-थोड़ा करके वा सब एक साथ चुकाते हैं, वैसे ही मनुष्य कुस्वप्न आदि रोगों से निवृत्ति पावें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है-अ० ६।४६।३ और ऋग्वेद में भी है-८।४७।१७ ॥ १−(यथा) येन प्रकारेण (कलाम्) षोडशांशम् (यथा) (शफम्) गवादिपादचतुष्टयस्य द्विखुरत्वाद् एकस्य खुरस्याष्टमांशग्रहणम्। अष्टमांशम् (यथा) (ऋणम्) पुनर्देयत्वेन गृहीतं धनम् (संनयन्ति) सम्यग् गमयन्ति। प्रत्यर्पयन्ति (एव) एवम् (दुःष्वप्न्यम्) कुनिद्राभवं विचारम् (सर्वम्) (अप्रिये) अहिते। शत्रौ (संनयामसि) संनयामः। स्थापयामः ॥

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    भाषार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (कलाम्) ऋण के १६ वें हिस्से को, (यथा) जिस प्रकार (शफम्) ऋण के आठवें और चौथे हिस्से को, और (यथा) जिस प्रकार (ऋणम्) शेष ऋण को (सम् नयन्ति) सम्यक्तया ऋणदाता के प्रति पहुँचा देते हैं, (एवा) इसी प्रकार शनैः शनैः (सर्वम्) सब (दुष्वप्न्यम्) दुःस्वप्न और उस के परिणामों को (अप्रिये) अप्रिय पक्ष में (सं नयामसि) सम्यक् प्रकार के अर्थात् शनैः शनैः हम पहुँचा देते हैं।

    टिप्पणी

    [कलाम्= Interest on capital (आपटे)। चन्द्रमा की १६ कलाओं की दृष्टि से एक कला है १६वां भाग। शफम्= गौ के चार शफ (=खुर) फटे होते हैं, अतः इस दृष्टि से शफ से अभिप्राय है आठवां भाग, और अश्व के शफों की दृष्टि से शफ से अभिप्राय है चौथा भाग। अर्थात् ऋण को जैसे विभागशः शनैःशनैः चुका दिया जाता है, वैसे ही संकल्प करके दुःस्वप्न को भी शनैःशनै अप्रिय जानकर, उसे सदा के लिए अप्रियपक्ष में डाल कर दुःस्वप्नों से छुटकारा पाया जा सकता है।]

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    विषय

    दुःष्वप्न्य का अप्रिय पुरुषों में संनयन

    पदार्थ

    १. (यथा कलाम) = जैसे एक-एक कला-सोलहवाँ भाग करके, अथवा (यथा शफम्) = [गवादि पशुओं के चार पाँव, प्रत्येक पाँव के दो भाग] जैसे एक-एक शफ-आठवाँ भाग-करके (ऋणम्) = सारे ऋण को यथा (संनयन्ति) = जैसे उत्तमर्ण के लिए लौटा देते हैं, (एव) = इसी प्रकार (सर्वं दुःष्वप्न्य) = सब अशुभ स्वप्नों के कारणभूत वसुओं को [शरीर में मलबन्ध व मन में व्यर्थ की बातों के समावेश को] (अप्रिये) = प्रीतिरहित शत्रुभूत लोगों में (संनयामसि) = प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    हम सतत प्रयत्न करके-निरन्तर थोड़ा-थोड़ा करते हुए सब अशुभ स्वप्नों के कारणभूत तत्वों को अपने से दूर करें। ये तत्व अप्रिय लोगों को प्रास हों।

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    विषय

    आलस्य प्रमाद को दूर करने का उपाय।

    भावार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (कलाम्) एक एक कला करके और (यथा शफं) जिस प्रकार एक एक चरण करके और (यथा ऋणम्) जिस प्रकार थोड़ा थोडा करके पूरा ऋण (संनयन्ति) चुका देते हैं (एवा) उसी प्रकार (सर्वं) सब (दुष्वप्न्यम्) दुःखकारी स्वप्न या कष्ट पूर्वक शयन की पीड़ा को हम (अप्रिये) अपने अप्रिय द्वेषयुक्त पुरुष पर (सं नयामसि) उसी के निमित्त त्याग दें। अथवा जिस प्रकार एक एक कला करके चन्द्र नामशेष हो जाता है और जिस प्रकार एक एक पैर रखते रखते मार्ग तय हो जाता है और जिस प्रकार थोड़ा थोड़ा करके ऋण चुक जाता है उसी प्रकार हम आलस्य त्याग दें। दुःखकारी आलस्य को हम थोड़ा थोड़ा करके ऋण के समान सब त्याग दें और उसे अपने शत्रुओं के लिये रहने दें। वे आलस्य में फंस कर कष्ट उठावें।

    टिप्पणी

    ‘सर्वमाट्ये’ इति सायणाभिमतः पाठः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यम ऋषिः। दुस्वप्ननाशनो देवता। १ अनुष्टुप्। ३ त्र्यवसाना चतुष्पा त्रिष्टुप्। ४ उष्णिग् बृहतीगर्भा विराड् शक्वरीच। ५ त्र्यवसाना पञ्चपदा परशाक्वरातिजगती। पञ्चर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Duh-Svapna

    Meaning

    As people repay one sixteenth and one eighth part and finally discharge the whole debt, so do we discharge all evil dreams and assign them to our disvalues and disagreeables in our value system.

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    Subject

    Against evil - dreaming

    Translation

    Just as they (pay back) one sixteenth part, as one eighth part and as they pay back the (whole) debt, so we carry all the bad dream to the unpleasant enemy.

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    Translation

    Let us know all the effects and off shots of this sleep before- hand also know who is its controller, In this world let it protect with whatsoever is its happy effect to us who desire prominence of life and let it go far away from us with whatever are its poisions.

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    Translation

    Just as the moon losing one Kala i.e., one sixteenth each day is reduced to a non-entity on the Amavas day, just as the path is fully covered step by step; and just debt is fully paid up by instalment. Similarly do we totally entrust all the bad dreams by slow degrees to the enemy or to ‘Trita Aptya.’

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है-अ० ६।४६।३ और ऋग्वेद में भी है-८।४७।१७ ॥ १−(यथा) येन प्रकारेण (कलाम्) षोडशांशम् (यथा) (शफम्) गवादिपादचतुष्टयस्य द्विखुरत्वाद् एकस्य खुरस्याष्टमांशग्रहणम्। अष्टमांशम् (यथा) (ऋणम्) पुनर्देयत्वेन गृहीतं धनम् (संनयन्ति) सम्यग् गमयन्ति। प्रत्यर्पयन्ति (एव) एवम् (दुःष्वप्न्यम्) कुनिद्राभवं विचारम् (सर्वम्) (अप्रिये) अहिते। शत्रौ (संनयामसि) संनयामः। स्थापयामः ॥

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