अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 61/ मन्त्र 1
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - ब्रह्मणस्पतिः
छन्दः - विराट्पथ्याबृहती
सूक्तम् - पूर्ण आयु सूक्त
1
त॒नूस्त॒न्वा मे सहे द॒तः सर्व॒मायु॑रशीय। स्यो॒नं मे॑ सीद पु॒रुः पृ॑णस्व॒ पव॑मानः स्व॒र्गे ॥
स्वर सहित पद पाठत॒नूः। त॒न्वा᳡। मे॒। स॒हे॒। द॒तः। सर्व॑म्। आयुः॑। अ॒शी॒य॒। स्यो॒नम्। मे॒। सी॒द॒। पु॒रुः। पृ॒ण॒स्व॒। पव॑मानः। स्वः॒ऽगे ॥६१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
तनूस्तन्वा मे सहे दतः सर्वमायुरशीय। स्योनं मे सीद पुरुः पृणस्व पवमानः स्वर्गे ॥
स्वर रहित पद पाठतनूः। तन्वा। मे। सहे। दतः। सर्वम्। आयुः। अशीय। स्योनम्। मे। सीद। पुरुः। पृणस्व। पवमानः। स्वःऽगे ॥६१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सुख की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(मे) अपने (तन्वा) शरीर के साथ (तनूः) [दूसरों के] शरीरों को (सहे) मैं सहारता हूँ, (दतः=दत्तः) रक्षा किया हुआ मैं (सर्वम्) पूर्ण (आयुः) जीवन (अशीय) प्राप्त करूँ (मे) मेरे लिये (स्योनम्) सुख से (सीद) तू बैठ, (पुरुः) पूर्ण होकर (स्वर्गे) स्वर्ग [सुख पहुँचानेवाले स्थान] में (पवमानः) चलता हुआ तू [हमें] (पृणस्व) पूर्ण कर ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि आप सबकी रक्षा करके अपनी रक्षा करें और विद्या और पराक्रम में पूर्ण होकर सबको विद्वान् और पराक्रमी बनाकर आप सुखी होवें और सबको सुखी करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(तनूः) अन्येषां शरीराणि (तन्वा) शरीरेण (मे) मम। आत्मीयेन (सहे) उत्साहयामि (दतः) तकारलोपः। दत्तः। रक्षितः (सर्वम्) पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (अशीय) प्राप्नुयाम (स्योनम्) सुखम् (मे) मदर्थम् (सीद) उपविश (पुरुः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। पॄ पालनपूरणयोः-कु। पूर्णस्त्वम् (पृणस्व) पूरय अस्मान् (पवमानः) पवतेर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। गच्छन् (स्वर्गे) सुखप्रापके स्थाने ॥
भाषार्थ
(तन्वा) सूक्ष्मशरीरसमेत (मे तनूः) मेरा स्थूल शरीर (सहे) सहन-शक्ति से सम्पन्न हो; (दतः) प्रत्येक दान्त की (सर्वम् आयुः) पूर्ण आयु (अशीय) मैं प्राप्त करूं। (मे) मेरे (स्योनम्) सुखसम्पन्न हृदय में, हे परमेश्वर! (सीद) आप विराजिये। (पुरुः) पालन करनेवाले आप (पृणस्व) मेरी पालना कीजिये; (स्वर्गे) और सुखी हृदय में (पवमानः) वास कर मुझे पवित्र कीजिये।
टिप्पणी
[मन्त्र का देवता है—“ब्रह्मणस्पतिः”, ब्रह्म अर्थात् वेदों का पति स्वामी और रक्षक परमेश्वर। स्वर्गे=अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूर-योध्या। तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गों ज्योतिषावृतः॥ (अथर्व० १०.२.३१)। अर्थात् आठ चक्रों वाली, नौ द्वारों वाली देवों की पुरी है, जो कि अयोध्या है। उस पुरी (=शरीर) में सुवर्णघटित एक कोश (=हृदय) है, जिसे कि स्वर्ग कहते है, जो कि ब्राह्मी ज्योति से घिरा हुआ हैं। सूक्त ६० से ६१ में परमेश्वरीय सहायता के साथ-साथ, स्वयं भी दृढ़ संकल्प और तदनुकूल उपायों के अवलम्बन द्वारा इष्टसिद्धि हो सकती है—इस का वर्णन हुआ है।]
विषय
पवमानः स्वर्गे
पदार्थ
१.हे प्रभो! (मे तनूः) = मेरा शरीर (तन्वा) = शक्तियों के विस्तार से युक्त हो। (दतः) [दन्ताः] = दाँत (सहे) = शत्रुओं का पराभव करनेवाले हों-इन दन्तपंक्तियों में कीड़े न लग जाएँ-दाँत दृद बने रहें और इसप्रकार मैं सर्व (आयु:) = पूर्ण जीवन को (अशीय) = प्राप्त करूँ। २. हे प्रभो! (स्योनम्) = मेरे सुखसम्पन्न मानस में-प्रसादयुक्त मन में (सीद) = आप आसीन होइए। (पुरु:) = पालन व पूरण करनेवाले (प्रणस्व) = हमें पूर्ण कीजिए-हमारी न्यूनताओं को दूर कीजिए। स्वर्ग-सुखमयलोक में (पवमानः) = आप हमें पवित्र करनेवाले हों। सुखों में आसक्त होकर हम मार्गभ्रष्ट न हो जाएँ।
भावार्थ
हमारा शरीर शक्तियों के विस्तारवाला हो, दाँत दृढ़ हों ताकि हम पूर्ण जीवन प्राप्त करें। मेरे प्रसन्न मन में प्रभु का आसन हो, वे मेरी न्यूनताओं को दूर करें और स्वर्ग में स्थित मुझे पवित्र बनाए रखें।
इंग्लिश (4)
Subject
Life at the Full
Meaning
May my body be strong with all my systems and pranic, psychic and intellectual potentials perfect so that I can face, challenge and forbear all forces against me and live a full life to the full capacity. O lord Brahmanaspati, be kind and gracious to my soul within, raise me to the full in abundance, purifying, sanctifying and edifying me for heavenly bliss.
Subject
For long life
Translation
May my body be fit. I shall overpower the foes, May I attain my full length of life. Be seated happily for me. Bestow plenty (on me), purifying in the realm of bliss.
Translation
Mas I have my body intact with all bodily powers may I enjoy the full maturity. of life, you may keep me happy, O Lord, give me abundance and purifying me make me live in blessedness.
Translation
May my body remain along with bodily strength and energy. I may, therefore, complete full span of life. Oh ! God, Nourisher of all, keep me happy and cheerful and purify me and enthrall me in the blissful state.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(तनूः) अन्येषां शरीराणि (तन्वा) शरीरेण (मे) मम। आत्मीयेन (सहे) उत्साहयामि (दतः) तकारलोपः। दत्तः। रक्षितः (सर्वम्) पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (अशीय) प्राप्नुयाम (स्योनम्) सुखम् (मे) मदर्थम् (सीद) उपविश (पुरुः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। पॄ पालनपूरणयोः-कु। पूर्णस्त्वम् (पृणस्व) पूरय अस्मान् (पवमानः) पवतेर्गतिकर्मा-निघ० २।१४। गच्छन् (स्वर्गे) सुखप्रापके स्थाने ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal