अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 63/ मन्त्र 1
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - ब्रह्मणस्पतिः
छन्दः - विराडुपरिष्टाद्बृहती
सूक्तम् - आयुवर्धन सूक्त
1
उत्ति॑ष्ठ ब्रह्मणस्पते दे॒वान्य॒ज्ञेन॑ बोधय। आयुः॑ प्रा॒णं प्र॒जां प॒शून्की॒र्तिं यज॑मानं च वर्धय ॥
स्वर सहित पद पाठउत्। ति॒ष्ठ॒। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒। दे॒वान्। य॒ज्ञेन॑। बो॒ध॒य॒। आयुः॑। प्रा॒णम्। प्र॒ऽजाम्। प॒शून्। की॒र्तिम्। यज॑मानम्। च॒। व॒र्ध॒य॒ ॥६३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवान्यज्ञेन बोधय। आयुः प्राणं प्रजां पशून्कीर्तिं यजमानं च वर्धय ॥
स्वर रहित पद पाठउत्। तिष्ठ। ब्रह्मणः। पते। देवान्। यज्ञेन। बोधय। आयुः। प्राणम्। प्रऽजाम्। पशून्। कीर्तिम्। यजमानम्। च। वर्धय ॥६३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(ब्रह्मणः पते) हे वेद के रक्षक ! [विद्वान् पुरुष] तू (उत् तिष्ठ) उठ और (देवान्) विद्वानों को (यज्ञेन) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] से (बोधय) जगा। (यजमानम्) यजमान [श्रेष्ठकर्म करनेवाले] को (च) और (आयुः) [उसके] जीवन, (प्राणम्) प्राण [आत्मबल], (प्रजाम्) प्रजा, [सन्तान आदि], (पशून्) पशुओं [गौएँ घोड़े आदि] और (कीर्तिम्) कीर्ति को (वर्धय) बढ़ा ॥१॥
भावार्थ
विद्वान् लोग विद्वानों से मिलकर सब मनुष्यों की सब प्रकार उन्नति का उपाय करते रहें ॥१॥
टिप्पणी
१−(उत्तिष्ठ) ऊर्ध्वं गच्छ (ब्रह्मणः) वेदस्य (पते) रक्षक विद्वन् (देवान्) विदुषः पुरुषान् (यज्ञेन) पूजनीयव्यवहारेण (बोधय) सावधानान् कुरु (आयुः) जीवनम् (प्राणम्) आत्मबलम् (प्रजाम्) पुत्रपौत्रभृत्यादिरूपाम् (पशून्) गवाश्वादीन् (कीर्तिम्) यशः (यजमानम्) यज्ञस्यानुष्ठातारम् (च) (वर्धय) समर्धय ॥
पदार्थ
शब्दार्थ = ( ब्रह्मणस्पते ) = हे वेद रक्षक विद्वान् ! ( उत्तिष्ठ ) = उठो । और ( देवान् ) = विद्वानों को ( यज्ञेन ) = श्रेष्ठ कर्म से ( बोधय ) = जगा । ( यजमानम् ) = श्रेष्ठ कर्म करनेवाले के ( आयुः ) = जीवन ( प्राणम् ) = आत्मबल ( प्रजाम् ) = सन्तान ( पशून् ) = गौ, घोड़े आदि पशु ( कीर्तिम् ) = यश को ( वर्धय ) = बढ़ा ।
भावार्थ
भावार्थ = विद्वान् पुरुषों का कर्तव्य है कि दूसरे विद्वानों से मिल कर वेदों का और यज्ञादिक उत्तम कर्मों का प्रचार करें जिससे यज्ञादिक कर्म करनेवाले यजमान चिरंजीवी बनकर आत्मिक बल, पुत्रादि सन्तान और गौ-घोड़े आदि सुखदायक पशु और यश को प्राप्त होकर अपनी और अपने देश की उन्नति करें।
भाषार्थ
(ब्रह्मणस्पते) हे वेदों के पति विद्वान्! (उत् तिष्ठ) आप उठिये, सक्रिय हूजिये, और (यज्ञेन) निज यज्ञिय व्यवहारों द्वारा (देवान्) दिव्यगुणी जनों को (बोधय) जगाइये। (च) और (यजमानम्) यज्ञियकर्मों के करनेवाले को, (आयुः) तथा हमारी आयुओं, (प्राणम्) जीवनों, (प्रजाम्) सन्तानों, (पशुम्=पशून्) पशुओं, (कीर्तिम्) और कीर्ति को (वर्धय) बढ़ाइये।
टिप्पणी
[वैदिक विद्वानों को चाहिये कि वे निज यज्ञिय-आचरणों द्वारा दिव्यगुणी जनों को सजग कर सब जनों की वृद्धि करें। मन्त्र में ब्रह्मणस्पति पद द्वारा ब्रह्माण्ड तथा वेदों के स्वामी परमेश्वर का भी वर्णन है। परमेश्वरार्थ में “उत् तिष्ठ” का अभिप्राय “हृदय में प्रकट होना” है; तथा “यज्ञेन” का अभिप्राय है— “यज्ञिय भावनाओं की प्रेरणा द्वारा”।]
विषय
ब्रह्मणस्पति का कर्त्तव्य-'उद्बोधन'
पदार्थ
१. हे (ब्रह्मणस्पते) = ज्ञान के रक्षक ज्ञानी ब्राह्मण! (उत्तिष्ठ) = तू उठ खड़ा हो। आलस्य में न पड़ा रह अथवा केवल अपना वेदपाठ ही न करता रह। (यज्ञेन) = [संगतिकरण, दान] प्रजा के लोगों के सम्पर्क से तथा उन्हें ज्ञान देने के द्वारा-इस यज्ञ से (देवान् बोधय) = प्रजाओं में दिव्यवृत्तियों को जागरित कर। उन्हें देव बनाने का यत्न कर । 'प्रजाजनों को उत्तम आचरण की ओर प्रवृत्तिवाला करना' यह ब्राह्मण का सर्वमहान् कर्तव्य है। २. तू ज्ञान देने के द्वारा (आयु:) = आयु को, (प्राणम्) = प्राणशक्ति को, (प्रजाम्) = प्रजाओं-सन्तानों को, (पशून्) = उत्तम गवादि पशुओं को (कीर्तिम्) = यश को (च) = और (यजमानम्) = यज्ञशील पुरुष को (वर्धय) = बड़ा। उन बातों का तु ज्ञान दे जिनसे कि आयु आदि की वृद्धि हो।
भावार्थ
ज्ञानी ब्राह्मण राष्ट्र में ज्ञान का प्रचार करता हुआ आयु, प्राण' आदि की वृद्धि का कारण बने।
इंग्लिश (4)
Subject
Health and Age
Meaning
Rise, O Brahmanaspati, lord of divine knowledge, arouse the Devas, nobles and brilliants with yajna, and promote health and age, prana energy, people and progeny, wealth and cattle, honour and fame, and thus promote the yajamana.
Subject
To Brhaspati
Translation
Get up, O Lord of knowledge; awaken the enlightened ones with the sacrifice. Increase our life-span, vital breath, progeny, cattle, and fame as well as the sacrificer.
Translation
O master of vedic speech, please rise to excellence and inspire awakening in the men of wisdom and virtue through the performance of Yajna. You strengthen the performer or Yajmana and give an aid to life, vital breath, progeny cattle and fame.
Translation
Oh! Lord of the universe, the Vedas, the riches and of food grains, or the Vedic scholar, be ready and enlighten all the learned people or the natural forces, by the sacrifice and enhance the life, the vital breath, the off-spring, the cattle, the renown of the sacrifice.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(उत्तिष्ठ) ऊर्ध्वं गच्छ (ब्रह्मणः) वेदस्य (पते) रक्षक विद्वन् (देवान्) विदुषः पुरुषान् (यज्ञेन) पूजनीयव्यवहारेण (बोधय) सावधानान् कुरु (आयुः) जीवनम् (प्राणम्) आत्मबलम् (प्रजाम्) पुत्रपौत्रभृत्यादिरूपाम् (पशून्) गवाश्वादीन् (कीर्तिम्) यशः (यजमानम्) यज्ञस्यानुष्ठातारम् (च) (वर्धय) समर्धय ॥
बंगाली (1)
পদার্থ
উত্তিষ্ঠ ব্রহ্মণস্পতে দেবান্ যজ্ঞেন বোধয়।
আয়ুঃ প্রাণং প্রজাং পশুং কীর্তিঁ যজমানং চ বর্ধয় ।।৯১।।
(অথর্ব ১৯।৬৩।১)
পদার্থঃ (ব্রহ্মণস্পতে) হে বেদ রক্ষক বিদ্বান! (উত্তিষ্ঠ) ওঠ এবং (দেবান্) বিদ্বানদের (য়জ্ঞেন) শ্রেষ্ঠ কর্ম দ্বারা (বোধয়) জাগাও । (য়জমানম্) শ্রেষ্ঠ কর্ম কর্তাদের (আয়ুঃ) জীবন (প্রাণম্) আত্মবল (প্রজাম্) সন্তান (পশুন্) গো, ঘোড়া আদি পশু এবং (কীর্তিম্) যশ (বর্ধয়) বৃদ্ধি করো।।৯১।।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ বিদ্বানগণের কর্তব্য অন্য বিদ্বানদের সাথে মিলে বেদ এবং যজ্ঞাদি উত্তম কর্মের প্রচার করা। যার ফলে যজ্ঞাদি কর্ম কর্তা যজমান চিরঞ্জীবী হয়ে আত্মিক বল, পুত্রাদি সন্তান এবং গো ঘোড়া আদি সুখ-দায়ক পশু ও যশ প্রাপ্ত হয়ে নিজের ও নিজ দেশের উন্নতি করতে পারে ।।৯১।।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal