अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 71/ मन्त्र 1
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - गायत्री
छन्दः - त्र्यवसाना पञ्चपदातिजगती
सूक्तम् - वेदमाता सूक्त
6
स्तु॒ता मया॑ वर॒दा वे॑दमा॒ता प्र चो॑दयन्तां पावमा॒नी द्वि॒जाना॑म्। आयुः॑ प्रा॒णं प्र॒जां प॒शुं की॒र्तिं द्रवि॑णं ब्रह्मवर्च॒सम्। मह्यं॑ द॒त्त्वा व्र॑जत ब्रह्मलो॒कम् ॥
स्वर सहित पद पाठस्तु॒ता। मया॑। व॒र॒दा। वे॒द॒ऽमा॒ता। प्र। चो॒द॒य॒न्ता॒म्। पा॒व॒मा॒नी। द्वि॒जाना॑म्। आयुः॑। प्रा॒णम्। प्र॒ऽजाम्। प॒शुम्। की॒र्तिम्। द्रवि॑णम्। ब्र॒ह्म॒ऽव॒र्च॒सम्। मह्य॑म्। द॒त्त्वा। व्र॒ज॒त॒। ब्र॒ह्म॒ऽलो॒कम् ॥७१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्। आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम् ॥
स्वर रहित पद पाठस्तुता। मया। वरदा। वेदऽमाता। प्र। चोदयन्ताम्। पावमानी। द्विजानाम्। आयुः। प्राणम्। प्रऽजाम्। पशुम्। कीर्तिम्। द्रविणम्। ब्रह्मऽवर्चसम्। मह्यम्। दत्त्वा। व्रजत। ब्रह्मऽलोकम् ॥७१.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (7)
विषय
सब सुख पाने का उपदेश।
पदार्थ
(वरदा) वर [इष्ट फल] देनेवाली (वेदमाता) ज्ञान की माता [वेदवाणी] (मया) मुझ करके (स्तुता) स्तुति की गयी है, [आप विद्वान् लोग] (पावमानी) शुद्ध करनेवाले [परमात्मा] की बतानेवाली [वेदवाणी] को (द्विजानाम्) द्विजों [ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों] में (प्र चोदयन्ताम्) आगे बढ़ावें। [हे विद्वानों !] (आयुः) जीवन, (प्राणम्) प्राण [आत्मबल], (प्रजाम्) प्रजा [सन्तान आदि], (पशुम) पशु [गौ आदि], (कीर्तिम्) कीर्ति, (द्रविणम्) धन और (ब्रह्मवर्चसम्) वेदाभ्यास का तेज (मह्यम्) मुझको (दत्त्वा) देकर [हमें] (ब्रह्मलोकम्) ब्रह्मलोक [वेदज्ञानियों के समाज] में (व्रजत) पहुँचाओ ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य विद्वान् आचार्यों के द्वारा आदर के साथ वेदवाणी का निरन्तर अभ्यास करके सर्वोन्नति से कीर्तिमान् होते हुए ब्रह्मज्ञानियों में प्रतिष्ठा पावें ॥१॥
टिप्पणी
१−(स्तुता) प्रशंसिता (मया) उपासकेन (वरदा) इष्टफलदात्री (वेदमाता) वेदस्य ज्ञानस्य निर्मात्री वेदवाणी (प्र चोदयन्ताम्) प्रेरयन्तां विद्वांसः (पावमानीः) पवमान-अण्, ङीप्। द्वितीयार्थे प्रथमा। पवमानस्य शोधकस्य परमेश्वरस्य प्रतिपादिकां वेदवाणीम् (द्विजानाम्) ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यानां मध्ये (आयुः) जीवनम् (प्राणम्) आत्मबलम् (प्रजाम्) सन्तानादिकम् (पशुम्) गवादिकम् (कीर्तिम्) यशः (द्रविणम्) धनम् (ब्रह्मवर्चसम्) ब्रह्मवर्चस्-अच्। वेदाभ्यासेन तेजः (मह्यम्) उपासकाय (दत्त्वा) (व्रजत) अन्तर्गतण्यर्थः। व्राजयत। प्रापयत। अस्मान् (ब्रह्मलोकम्) ब्रह्मणां वेदज्ञातॄणां समाजम् ॥
विषय
वेदवाणी
व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज
हे वेदवाणी! तू कल्याण करने वाली है। तू वह वेदवाणी है जो सृष्टि के प्रारम्भ से संसार के कल्याणार्थ आयी है। हे वाणी! तेरा जो अनुकरण करते हैं उनका वास्तव में कल्याण होता है। तू वह वाणी है, जो सूर्य और चन्द्रमा को प्राप्त हुई है। हे वाणी! तू वह वाणी है जिसने यह संसार रचाया है। तू बड़ी उदार व पवित्र है। संसार में जो तेरा अनुकरण करते हैं वे बड़े ऊंचे और पवित्र बन जाते हैं, वही उदार होते हैं।
आज का मनोहर पाठ हमारे हृदय को छूता चला जा रहा था। हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम परमपिता परमात्मा की इस पवित्र वाणी का प्रसारण करते ही चले जायें और वह जो आनन्दमयी माँ है उसकी ज्ञान रूपी लोरियों का हम पान करते ही रहें। यह जो ज्ञान विज्ञान रूपी वेद है यह मानव के अन्तःकरण को ऊर्ध्व बनाने वाला है। वह वेद वाणी हमारे जीवन को ऊर्ध्व और मानवता में परिणत करती चली जा रही है।
वेद हमे बारम्बार यह प्रेरणा दे रहा है, प्रेरित कर रहा है कि जहाँ जो शब्द उद्गीत रूप में गाया जाये, वहाँ उसको उसी रूप में गाना चाहिए। उस शब्द का, उसकी जो रचना है, उसको विकृत नहीं करना चाहिए। तो इसी प्रकार का हमारा वेद का मन्त्र हमें प्रेरित करता है।
इस संसार में आज हम उस वेद माता की याचना करते चले जाएं जो वेद माता हमें प्रकाश के देने वाली है। हमें प्रकाश के मार्ग पर पंहुचाने वाली है आज हम पुनः से उसकी याचना करते चले जाएं।
वेद रूपी प्रकाश है यह वेद रूपी माता है? कौन सी माता है वेद माता, जिस वेद माता के गर्भ में जाने के पश्चात हम महान बन जाते हैं। जिस गायत्री के गर्भ में जाने के पश्चात् हम महान बन जाते हैं, विचित्र बन जाते हैं तो वह हमारे द्वारा कौन है वह हमारे द्वारा प्रकाश है हमें प्रकाश को पाने के लिये क्या करना पड़ेगा?
वेद का जो विज्ञान है वह एक महान है, वह मानव को एक महानता का दर्शन कराता है। वेद का भाष्यकार भी वही होता है जो व्यवहार को जानता है, यौगिकवाद को जानता है और विज्ञान को जानता है वही वेद का भाष्य कर सकता है। अन्यथा वेद की जो चहुमुखी विद्या है इसका जो अध्ययन करने वाला हो, वही वेद की प्रतिभा को ऊँचा बनाता रहता है।
एक ही वेद मन्त्र में तीन प्रकार की धाराएं विद्यमान हैं, बिना तीन भाव के वेद मन्त्र को जान नहीं पाते, न उसमें से मानव दर्शन को जान सकते हैं, न विज्ञान को जान सकते हैं और ज्ञान से हम शून्य हो जाते हैं।
परन्तु जब प्रत्येक वेद मन्त्र में तीन प्रकार के भावों को दृष्टिपात करोगे, तीन प्रकार की धाराओं के ऊपर विचार विनिमय होगा, तो उसमें ज्ञान, विज्ञान और मानवीय दर्शन दृष्टिपात होगा। उसमें जब तीनों दृष्टिपात करने लगोगे तो वेद मन्त्र का आशय और ज्ञान की प्रतिभा हमारे समीप आ जाती है।
वैदिक जो भाषा है इसको देव भाषा कहा जाता है इसको देव वाणी कहा जाता है वेद को जानने वाला उसके प्रकारों को, स्वरों को जानने वाला ब्रह्माण्ड के लोकों की वार्ता को जान सकता है। यह जो देव भाषा है और देवभाषा का जो व्याकरण है वह ब्रह्मा का व्याकरण कहलाता है। ओर अनहद ध्वनि होती है मस्तिष्क में जो उसका तारतम्य साधना से बना लेता है वह ब्रह्माण्ड के किसी भी लोक की भाषा को जान लेता है।
वेद ही प्रकाश है, आनन्द है। जैसे सूर्य प्रातःकाल में प्रकाश लेकर आता है और वह संसार को प्रकाश देता चला जाता है, ऊर्ज्वा देता है, सत्ता प्रदान कर देता है, इसी प्रकार वेद के पठन पाठन करने वालों को जान लेना चाहिए कि वेद मानव का अनुपम प्रकाश है। वह वेद का जब गान गाता है तो उसके आन्तरिक जगत में प्रकाश आना प्रारम्भ हो जाता है। वह प्रकाश ही मानव के अन्तःकरण को प्रकाशित कर देता है। सूर्य इस साधारण प्राणी को ऊर्ज्वा में प्रकाश देता है, वेद रूपी प्रकाश मानव के अन्तःकरण को पवित्र बना देता है।
संसार में आयु का जो वेद है उसको विचारना है। ‘‘आयु को देने वाला हो वेद है।’’ जो मानव प्रकाश में जाता है उस मानव को आयु दीर्घ हो जाती है आयुर्वेद किसे कहा जाता है जो आयु का देने वाला होता है। आयु क्या होती है? ‘‘मानव का नियन्त्रण होता है जब वह अपनी सब इन्द्रियों पर संयम कर लेता है उसके विचारों में, आचार में संयम आ जाता है तो आयु को देने वाला बन जाता है।
पदार्थ
शब्दार्थ = ( वरदा ) = इष्ट फल देनेवाली ( वेदमाता ) = ज्ञान की माता वेदवाणी ( मया ) = मेरे द्वारा ( स्तुता ) = स्तुति की गई है । आप विद्वान् लोग ( पावमानी ) = पवित्र करनेवाले परमात्मा के बतानेवाली वेद वाणी को ( द्विजानाम् ) = ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों में ( प्रचोदयन्ताम् ) = आगे बढ़ाएँ। ( आयुः ) = जीवन ( प्राणम् ) = आत्मिक बल ( प्रजाम् ) = सन्तानादि ( पशुम् ) = गो, घोड़ा आदि पशु ( कीर्तिम् ) = यश ( द्रविणम् ) = धन ( ब्रह्मवर्चसम् ) = वेदाभ्यास का तेज ( मह्यं दत्त्वा ) = मुझे देकर, हे विद्वान् लोगो! ( ब्रह्मलोकम् ) = वेदज्ञानियों की समाज में ( व्रजत ) = प्राप्त कराओ ।
भावार्थ
भावार्थ = इस मन्त्र में सारे सुखों की प्राप्ति का उपदेश है । वेदमाता जो ज्ञान के देनेवाली परमात्मा की पवित्र वाणी वेदवाणी सारे इष्ट फलों के देनेवाली है—इसकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। सब विद्वानों को योग्य है कि इस ईश्वरीय पवित्र वेदवाणी को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यादि मनुष्य मात्र में प्रचार करते हुए सारे संसार में फैला देवें । उस वाणी की कृपा से पुरुष को दीर्घ जीवन, आत्मबल, पुत्रादि सन्तान, गौ, घोड़े आदि पशु, यश और धन प्राप्त होते हैं। यही वेदवाणी पुरुष को ब्रह्मवर्चस दे कर वेदज्ञानियों के मध्य में सत्कार और प्रतिष्ठा प्राप्त कराती हुई ब्रह्मलोक को अर्थात् ‘ब्रह्मण: लोकः ब्रह्मलोकः' सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् जो परमात्मा उसका ज्ञान देकर मोक्षधाम को प्राप्त कराती है ।
भाषार्थ
(मया) मैंने (वरदा) इष्टफल देनेवाली (वेदमाता) वेदरूपी माता का (स्तुता) स्तवन अर्थात् अध्ययन कर लिया है। (प्र चोदयन्ताम्) हे गुरुजनों! इसका मुझे और प्रवचन कीजिए। (द्विजानाम् पावमानी) द्विजन्मों को यह वेदमाता पवित्र करती है। (आयुः) स्वस्थ और दीर्घ आयु, (प्राणम्) प्राणविद्या, (प्रजाम्) उत्तम सन्तानों, (पशुम्) पशुपालन, (कीर्तिम्) पुण्य और यश, (द्रविणम्) धनोपार्जनविद्या, (ब्रह्मवर्चसम्) ब्रह्म के तेजःस्वरूप का परिज्ञान इनका सदुपदेश (मह्यं दत्त्वा) मुझे दे कर, हे गुरुजनों! (ब्रह्मलोकम्) आलोकमय ब्रह्म तक (व्रजत= व्राजयत) मुझे पहुँचाइए।
टिप्पणी
[वेदमाता=मन्त्र का देवता गायत्री है, इस प्रकार अथर्ववेद-सर्वानुक्रमणीकार की अभिमत है। यदि गायत्री का अभिप्राय है “प्रसिद्ध गायत्रीमन्त्र”, तो यह “स्तुता मया वरदा” मन्त्र द्वारा अनुक्त है। “या तेन प्रोच्यते सा देवता” के अनुसार “देवता” मन्त्रप्रोक्त होनी चाहिए। गायत्री तो स्वयं मन्त्र है। यथा—“तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्”। इस गायत्रीमन्त्र के सम्बन्ध में कोई वर्णन “स्तुता मया वरदा” इस मन्त्र में नहीं है। तथा समग्र अथर्ववेद में कहीं भी प्रसिद्ध गायत्री-मन्त्र पठित नहीं है। प्रकरणानुसार भी “वेदमाता” का अर्थ वेदरूपी माता ही उपयुक्त प्रतीत होता है। सूक्त ६८ में “वेदमथ” द्वारा वेद का ही वर्णन है। और सूक्त ७२ में भी “कोशादुदभराम वेदम्” द्वारा वेद का ही वर्णन है। इसलिए “वेदमाता” शब्द द्वारा वेदरूपी माता अर्थात् “वेदवाणी” ही अभिप्रेत है। वेदवाणी मातृसदृश उपकारिणी है। इस वेदमाता का ही स्तवन अर्थात् अध्ययन अथर्ववेद के १ से १९ काण्डों तक अभिप्रेत प्रतीत होता है, जिसकी ओर कि निर्देश “स्तुता मया वरदा वेदमाता” द्वारा किया गया है। अथवा—गायत्री= गायतः स्तोतॄन् त्रायते” इति गायत्री=वेदवाणी (=वेदः)। इस प्रकार “स्तुता” पद द्वारा गायत्री अर्थात् वेदवाणी अभिप्रेत हो सकती है। व्रजत=णिच् का लोप छान्दस है। ब्रह्मलोकम्=ब्रह्मदर्शन; लोकृ दर्शने यथा—“सर्वलोकं म इषाण” (यजुः० ३१.२२) में सर्वलोकम्=“सबके दर्शन को” (महर्षि दयानन्द भाष्य)। “प्र चोदयन्ताम्” तथा “व्रजत ब्रह्मलोकम्”=इन पदों द्वारा अभिकांक्षी और अधिक प्रवचन चाहता हुआ, और ब्रह्मलोक तक पहुँचना चाहता हुआ, उपदेश या प्रवचन की प्रार्थना करता है।]
विषय
वेद खण्ड
शब्दार्थ
परमात्मा उपदेश देते हैं —हे मनुष्यो ! (वरदा) वरदान देनेवाली (वेदमाता) वेदमाता (मया स्तुता) मेरे द्वारा उपदेश कर दी गई । यह वेदवाणी (प्रचोदयन्ताम्, द्विजानाम्) चेष्टाशील द्विजों को, मनुष्यों को (पावमानी) पवित्र करनेवाली है । यह वेदमाता (आयु:) दीर्घायु (प्राणम्) जीवनशक्ति (प्रजाम् ) सुसन्तान (पशुम् ) पशुधन (कीर्तिम् ) यश ( द्रविणम्) धन-धान्य और ( ब्रह्मवर्चसम्) ब्रह्मतेज प्रदान करनेवाली है । वेद के स्वाध्याय से प्राप्त इन पदार्थों को ( मह्यम्, दत्त्वा ) मेरे अर्पण करके (ब्रह्मलोकम् ) मोक्ष को ( व्रजत) प्राप्त करो ।
भावार्थ
प्रभु उपदेश देते हैं – हे मनुष्यो ! मैंने तुम्हारे कल्याण के लिए वेदमाता का उपदेश कर दिया है । यह वेदवाणी कर्मशील मनुष्यों को पवित्र करनेवाली है । जो वेद का अध्ययन कर तदनुसार आचरण करेगा उसका जीवन पवित्र, निर्दोष और निष्पाप तो बनेगा ही, साथ ही उसे - १. दीर्घायु की प्राप्ति होगी । २. जीवनशक्ति मिलेगी । ३. सुसन्तान की प्राप्ति होगी । ४. पशुओं की कमी नहीं रहेगी । ५. चहुँ दिशाओं में उसकी कीर्ति चन्द्रिका छिटकेगी । ६. धन-धान्य, ऐश्वर्य और वैभव की उसे न्यूनता नहीं रहेगी । ७. ब्रह्मतेज, ज्ञान-बल निरन्तर बढ़ता रहेगा । वेदाध्ययन द्वारा प्राप्त इन सभी वस्तुओं का अपने स्वार्थ के लिए भोग मत करो । इन सभी वस्तुओं को प्रभु-अर्पण कर दो, प्रजा-हित में लगा दो, मानव-कल्याण में लगा दो तो तुम्हें जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी ।
विषय
वरदा वदेमाता स्तुता मया वरदा वैदमाता न चौदयन्ता पावमानी द्विजानाम्। आयुः प्राणं प्रजां पशु कीर्ति द्रविणं ब्राह्मवर्चसम्। मी दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्॥ १॥
पदार्थ
१. प्रभु कहते हैं कि (मया) = मैंने यह (वरदा) = सब उत्तम पदार्थों को देनेवाली (वेदमाता) = वेदरूप माता तुम्हारे लिए (प्रस्तुता) = प्रस्तुत की है। यह (चोदयन्ताम्) = तुम्हें प्रेरणा देनेवाली हो। यह (द्विजानाम् पावमानी) = द्विजों-अध्ययनशील पुरुषों को पवित्र करनेवाली है। २. यह तुम्हारे लिए (आयु:) = दीर्घजीवन देगी। (प्राणम्) = प्राणशक्ति देगी। (प्रजाम्) = उत्तम सन्तति को प्राप्त कराएगी। (पशम्) = यह उत्तम गवादि पशुओं को देनेवाली होगी। (कीर्तिम्) = यह तुम्हारे जीवन को यशस्वी करेगी। (द्रविणम्) = यह तुम्हें धन प्राप्त कराएगी और (ब्रह्मवर्चसम्) = ब्रह्मतेज प्राप्त कराएगी। २. साथ ही यदि तुम इन वस्तुओं का गर्व न करके इन्हें मुझसे दिया हुआ जानोगे और इन्हें मेरे प्रति ही अर्पण करनेवाले होओगे तो इन सब वस्तुओं को (मह्यं दत्त्वा) = मेरे अर्पण करके (ब्रह्मलोकं व्रजत) = तुम ब्रह्मलोक को प्राप्त करो।
भावार्थ
हम वेदमाता की प्रेरणा को सुनकर 'आयु, प्राण, प्रजा, पशु कीर्ति, द्रविण व ब्रह्मवर्चस्' को प्राप्त करें। इन सब वस्तुओं का गर्व न करते हुए इन्हें प्रभु-अर्पण करते हुए प्रभु को प्राप्त करनेवाले हों।
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 1171
ओ३म् स्तु॒ता मया॑ वर॒दा वे॑दमा॒ता प्र चो॑दयन्तां पावमा॒नी द्वि॒जाना॑म्।
आयुः॑ प्रा॒णं प्र॒जां प॒शुं की॒र्तिं द्रवि॑णं ब्रह्मवर्च॒सम्। मह्यं॑ द॒त्त्वा व्र॑जत ब्रह्मलो॒कम् ॥
अथर्ववेद काण्ड 19 सूक्त 71 मन्त्र 1
मैंने वेद माता की
स्तुति की हृदय से
और शुभ चिन्तन किया है
विदुर वेदमाता के ज्ञान-उपदेशों से
सार्थक जीवन जिया है
मैंने वेद माता की
स्तुति की हृदय से
और शुभ चिन्तन किया है
वेदमाता का स्तवन-अध्ययन
अर्थ-चिन्तन और गान करें
जीवन का उसे अङ्ग बनाकर
अमृतरस का पान करें
है वेद माता गायत्री
गायें उसे दिवस व रात्रि
परमेश्वर-रूप कवि का
गायन है हृदयवासी
हर इक द्विज को जिसने
पावन किया है
मैंने वेद माता की
स्तुति की हृदय से
और शुभ चिन्तन किया है
सुनना हो सुन लो
ज्ञानियों का अनुभव
वेद-स्तवन से दीर्घायु सम्भव
दीर्घ जीवन में प्राणवान बनके
पाईं प्रजायें सुयोग्य और अनवर
पशुपालन की शिक्षा दी
मन्त्रों ने यश कीर्ति दी
हुई पूजित-धन की प्राप्ति
ब्रह्मतेज की आत्मिक शान्ति
बस निश्चित समझ लो
सब कुछ दिया है
मैंने वेद माता की
स्तुति की हृदय से
और शुभ चिन्तन किया है
विद्या की देवी, सरस्वती मात ने
करा दी हृदयंगम विविध विधाएँ
आत्मलोक में, हुईं प्रतिष्ठित
ऐश्वर्य-निधियों की, बहा दी धाराएँ
बनी आत्म-अङ्ग वो मेरी
किरणें निखरीं सुनहरी
माँ की वाणी है स्नेही
और मुझे बनाया सेवी
वेदमाता ने हृदयों में
घर कर लिया है
मैंने वेद माता की
स्तुति की हृदय से
और शुभ चिन्तन किया है
विदुर वेदमाता के ज्ञान-उपदेशों से
सार्थक जीवन जिया है
मैंने वेद माता की
स्तुति की हृदय से
और शुभ चिन्तन किया है
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :--*१.१.२००९ ८.१० रात्रि
राग :- खमाज
गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर,
ताल कहरवा 8 मात्रा
शीर्षक :- मैंने वेद माता की स्तुति की है ७२०वां भजन
*तर्ज :- *
00149-749
विदुर = महाज्ञानी
स्तवन = स्तुति करना
द्विज = दो बार जन्म देने वाला, ब्राह्मण
अनवर = श्रेष्ठ, उत्तम
पूजित-धन = इमानदारी से कमाया धन
हृदयंगम = मर्मस्पर्शी,हृदय में बिठा लेना
प्रतिष्ठित = आदर प्राप्त,सम्मान प्राप्त
सेवी = सेवा करने वाला
घर कर लेना = अपना स्थायी निवास बना लेना
Vyakhya
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का स्वाध्याय- सन्देश :-- 👇👇
शीर्षक:-मैंने वेद माता की स्तुति की है
मैंने गायत्री आदि छांदोमयी वेदमाता का स्तवन किया है। वेदों से मन्त्रों को चुनकर उनका पाठ किया है, गान किया है, अर्थ- चिन्तन किया है, उसे लेखनी से लेखबद्ध किया है और उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न किया है। आप लोग भी वेद माता का अध्ययन स्तवन, कीर्तन, अर्चन, गान और अर्थ चिन्तन करो तथा उसे अपने जीवन का अंग बनाने का प्रयास करो। वह वेद माता गायत्री कहलाती है, क्योंकि उसका गान किया जाता है अथवा वह वेद के गायक परमेश्वर रूप कवि के हृदय से निकली है। वह द्विजों को पवित्र करने वाली है। जो आचार्य के आधीन गुरुकुल वास कर वेद-अध्ययन करने के पश्चात् आचार्य के गर्भ से निकलकर स्नातक बनते हैं, वे द्विज कहलाते हैं, क्योंकि उनका दो बार जन्म होता है--एक बार माता के गर्भ से दूसरी बार आचार्य के गर्भ से।उन वेदपाठी द्विजों का जीवन वेदमाता के अध्ययन मनन तद् अनुकूल आचरण आदि से पवित्र हो जाता है।
यदि तुम आचार्यों का, ज्ञानियों का,अनुभव सुनना चाहते हो तो सुनो। स्तवन कीर्तन की हुई वेदमाता ने मुझे आयु दी है, स्वास्थ्य दीर्घ जीवन प्रदान किया है। दीर्घायु शिष्य के वेद मन्त्रों से प्रेरणा लेकर सचमुच मेने दीर्घ जीवन पा लिया है। वेद माता की प्राण विषयक सूक्तियों ने मुझे प्राणवान बनाया है। प्रजनन संबंधी मंत्रों ने मुझे उत्कृष्ट प्रजा प्रदान की है । पशुपालन संबंधी मन्त्रों ने पशुपालन विद्या की शिक्षा दी है। यशस्वी ता के प्रेरक मंत्रों ने मुझे कीर्ति प्रदान की है। धन प्राप्ति के लिए उत्साहित करने वाले यंत्रों ने मुझे धन प्रदान किया है। ब्रह्मवर्चस के मन्त्रों ने मेरे आत्मा में ब्रह्मवर्चस भरा है। कहां तक गिनाएं विभिन्न विद्याओं का वर्णन करने वाली वेदमाता ने मुझे अपनी सब विद्यायें हृदयंगम करा दी हैं। इन समस्त ऐश्वर्यों की निधि मुझे देकर वह अहर्निश पुनः-पुनः अधीत(पढ़ा हुआ) स्तुत एवं अभिपूजित वेदमाता मेरे आत्मलोक में प्रतिष्ठित हो गई है।मेरी आत्मा का अंग बन गई है।
मित्रों आप भी उस वेदमाता का स्तवन कीर्तन करो। आपको भी ये समस्त फल प्राप्त होंगे।यह वेद की वाणी है, यह वेद की प्रेरणा है, यह वेद उपनिषद है।
🕉🧘♂️ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा 🌹🙏
🕉वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗🙏
इंग्लिश (4)
Subject
Veda Mata: Mother Voice
Meaning
Honoured, celebrated and worshipped by me is Mother Knowledge, Veda, purifier, sanctifier and inspirer of the inspired and inspiring Dvijas, enlightened men of culture, education and piety, the Mother who, having given me good health, full age, prana, progeny, wealth, honour and fame, substantial power and stability, and the light and lustre of Divinity, retires to Brahma- loka, the Eternal Mind of Brahma.
Subject
For Blessings .
Translation
The boon-giving veda-mother is praised by the intellectual persons. Bestowing on me long lif, vital breath, progeny, cattle, glory, material prosperity and intellectual lustre, may she go to the world of the Divine Supreme.
Translation
By me (man studying. Veda) Veda-mata, the Veda which is the mother of knowledge and which is the sacrosanct law for Dvijas, the men whose classification is made by due consideration of worth, not of birth. Let the men of learning disseminate this veda. O Ye learned men, please you givin: me lengthened life, vitality, offspring, cattle, fame wealth and the knowledge of Supreme Being you attain the high’ and blessedness of God.
Translation
Let the Glorious God infuse life into me. Let the shining Sun infuse life into me. Let the learned people and the national forces infuse life into me. May I live long. May I complete the full span of life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(स्तुता) प्रशंसिता (मया) उपासकेन (वरदा) इष्टफलदात्री (वेदमाता) वेदस्य ज्ञानस्य निर्मात्री वेदवाणी (प्र चोदयन्ताम्) प्रेरयन्तां विद्वांसः (पावमानीः) पवमान-अण्, ङीप्। द्वितीयार्थे प्रथमा। पवमानस्य शोधकस्य परमेश्वरस्य प्रतिपादिकां वेदवाणीम् (द्विजानाम्) ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यानां मध्ये (आयुः) जीवनम् (प्राणम्) आत्मबलम् (प्रजाम्) सन्तानादिकम् (पशुम्) गवादिकम् (कीर्तिम्) यशः (द्रविणम्) धनम् (ब्रह्मवर्चसम्) ब्रह्मवर्चस्-अच्। वेदाभ्यासेन तेजः (मह्यम्) उपासकाय (दत्त्वा) (व्रजत) अन्तर्गतण्यर्थः। व्राजयत। प्रापयत। अस्मान् (ब्रह्मलोकम्) ब्रह्मणां वेदज्ञातॄणां समाजम् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal