Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 9 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः छन्दः - विराडुरोबृहती सूक्तम् - शान्ति सूक्त
    1

    शा॒न्ता द्यौः शा॒न्ता पृ॑थि॒वी शा॒न्तमि॒दमु॒र्वन्तरि॑क्षम्। शा॒न्ता उ॑द॒न्वती॒रापः॑ शा॒न्ता नः॑ स॒न्त्वोष॑धीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शा॒न्ता। द्यौः। शा॒न्ता। पृ॒थि॒वी। शा॒न्तम्। इ॒दम्। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। शा॒न्ताः। उ॒द॒न्वतीः॑। आपः॑। शा॒न्ताः। नः॒। स॒न्तु॒। ओष॑धीः ॥९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शान्ता द्यौः शान्ता पृथिवी शान्तमिदमुर्वन्तरिक्षम्। शान्ता उदन्वतीरापः शान्ता नः सन्त्वोषधीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शान्ता। द्यौः। शान्ता। पृथिवी। शान्तम्। इदम्। उरु। अन्तरिक्षम्। शान्ताः। उदन्वतीः। आपः। शान्ताः। नः। सन्तु। ओषधीः ॥९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्यों को कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (द्यौः) प्रकाशमान [सूर्य आदि की विद्या] (शान्ता) शान्तियुक्त, (पृथिवी) चौड़ी [पृथिवी आदि] (शान्ता) शान्तियुक्त, (इदम्) यह (उरु) चौड़ा (अन्तरिक्षम्) मध्यवर्ती आकाश (शान्तम्) शान्तियुक्त [होवे]। (उदन्वतीः) उत्तम जलवाली (आपः) फैली हुई नदियाँ (शान्ताः) शान्तियुक्त और (ओषधीः) ओषधियाँ [अन्न सोमलता आदि] (नः) हमारे लिये (शान्ताः) शान्तियुक्त (सन्तु) होवें ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को योग्य है कि प्रकाशविद्या, भूमिविद्या, आकाशविद्या, जलविद्या, अन्न, ओषधि आदि की अनेक विद्याओं को प्राप्त करके संसार को सुख पहुँचावें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(शान्ता) शमु उपशमे-क्त। शान्तियुक्ता (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यादिलोकः (शान्ता) (पृथिवी) विस्तीर्णो भूम्यादिलोकः (शान्तम्) शान्तियुक्तम् (इदम्) दृश्यमानम् (उरु) विस्तीर्णम् (अन्तरिक्षम्) मध्ये वर्तमानमाकाशम् (शान्ताः) (उदन्वतीः) अ० १८।२।४८। उदकस्य उदन् मतौ, प्रशंसायां मतुप्। उदन्वत्यः। प्रशस्तजलाः (आपः) व्यापिका नद्यः (शान्ताः) (नः) अस्मभ्यम् (सन्तु) (ओषधीः) वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति यणादेशाभावे पूर्वसवर्णदीर्घः। ओषध्यः। अन्नसोमलतादयः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( शान्ता द्यौः ) = हमारे लिए द्युलोक सुखकारक हो, ( शान्ता पृथिवी ) = भूमि सुखकारक हो,  ( शान्तम् इदम् उरु अन्तरिक्षम् ) = यह विस्तीर्ण मध्य लोक सुखकारक हो, ( शान्ता उदन्वती आपः ) = समुद्र और सब जल सुखकारक हों  ( शान्ता नः सन्तु ओषधी: ) = हमारे गेहूँ, चना, चावल आदि सब परिपक्व अन्न सुखकारक हों ।
     

    भावार्थ

    भावार्थ = हे दयामय परमात्मन्! आपकी कृपा से द्युलोक, भूमि, अन्तरिक्ष, समुद्र, जल और सब प्रकार के अन्न, हमें सुखकारक हों। सब स्थानों में हम सुखी रहकर आपके अनन्त उपकारों को स्मरण करते हुए, आपके ध्यान में मग्न रहें आपसे कभी विमुख न होवें ऐसी सब पर कृपा करो ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शान्ता द्यौः शान्ता पृथिवी

    पदार्थ

    १. (द्यौः शान्ता) = द्युलोक हमारे लिए शान्ति देनेवाला हो। (पृथिवी शान्ता) = यह पृथिवीलोक भी शान्तिकर हो। (इदम् उरु अन्तरिक्षम्) = यह विशाल अन्तरिक्षलोक (शान्तम्) = शान्ति देनेवाला हो। २. (उदन्वती: आप:) = समुद्रों के जल [समुद्र से वाष्पीभूत होकर आकाश में पर्जन्यरूप होकर बरसनेवाले जल] (शान्ता) = हमें शान्ति देनेवाले हों तथा (ओषधी:) = ओषधियाँ (न: शान्ता सन्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हों।

    भावार्थ

    भावार्थ - द्युलोक, पृथिवीलोक, अन्तरिक्षलोक, समुद्र, जल व ओषधियाँ हमारे लिए शान्ति देनेवाली हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (नः) हमारे लिए (द्यौः) द्युलोक (शान्ता) शान्तिप्रद हो, (पृथिवी शान्ता) पृथिवी शान्ति-प्रद हो। (इदम्) यह (उरु) विस्तृत (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष (शान्तम्) शान्तिप्रद हो। (उदन्वतीः) प्रशस्त जलवाली (आपः) नदियाँ, समुद्र, तथा प्रशस्त जलवाले अन्तरिक्षव्यापी मेघ (शान्ताः) शान्तिप्रद हों। (ओषधीः) ओषधियाँ (शान्ताः सन्तु) शान्तिप्रद हों।

    टिप्पणी

    [उदन्वतीः= प्राशस्त्ये मतुप्। आपः=नदियां; आप्लृ व्याप्तौ, अर्थात् अन्तरिक्षव्यापी मेघ, तथा समुद्रिय जल। उदन्वत्= समुद्र।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shanti

    Meaning

    May heaven be full of peace for us. May peace prevail upon the earth for us. May this vast sky be full of peace for us. May the abundant streams of water be for our peace and plenty, and may the herbs and trees bring us peace and good health.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject

    To Various Divinities : For appeasement and prosperity

    Translation

    May heaven be peace-giving, earth peace-giving, and peace-giving be this vast midspace; may peace-giving be the waters of the oceans, and peace-giving to us be the herbs.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May for us the heavenly region be peaceable, may the earth be peaceable, may this vast firmament be peaceable, may the waters of ocean be peaceable and may the herbaceous plants be peaceable.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the shining firmament be peace-showering to us. May the earth be peace-giving and the vast mid-regions be blissful, may the waters of the ocean with high tides peaceful and the herbs may also a source of calmness for us.

    Footnote

    (1-5) Mere prayers won’t effect anything. It is our acts executed in all serious steadfastness, that may .enable us to achieve our object

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(शान्ता) शमु उपशमे-क्त। शान्तियुक्ता (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यादिलोकः (शान्ता) (पृथिवी) विस्तीर्णो भूम्यादिलोकः (शान्तम्) शान्तियुक्तम् (इदम्) दृश्यमानम् (उरु) विस्तीर्णम् (अन्तरिक्षम्) मध्ये वर्तमानमाकाशम् (शान्ताः) (उदन्वतीः) अ० १८।२।४८। उदकस्य उदन् मतौ, प्रशंसायां मतुप्। उदन्वत्यः। प्रशस्तजलाः (आपः) व्यापिका नद्यः (शान्ताः) (नः) अस्मभ्यम् (सन्तु) (ओषधीः) वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति यणादेशाभावे पूर्वसवर्णदीर्घः। ओषध्यः। अन्नसोमलतादयः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    পদার্থ

    শান্তা দ্যৌঃ শান্তা পৃথিবী শান্তমিদমুর্বন্তরিক্ষম্ ৷

    শান্তা উদন্বতীরাপঃ শান্তা নঃ‌ সন্ত্বোষধীঃ

    (অথর্ব ১৯।৯।১)

    পদার্থঃ (শান্তা দ্যৌঃ) আমাদের জন্য দ্যুলোক সুখদায়ক হোক, (শান্তা পৃথিবী) ভূমি সুখদায়ক হোক, (শান্তম্ ইদং উরুং অন্তরিক্ষম্) এই বিস্তীর্ণ অন্তরিক্ষ সুখদায়ক হোক, (শান্তা উদন্বতী আপঃ) সমুদ্র আর সকল জল সুখদায়ক হোক, (শান্তা নঃ সন্তু ঔষধীঃ) আমাদের জন্য গম, চাউল ইত্যাদি সকল পরিপক্ব অন্ন সুখদায়ক হোক।।৭।।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে দয়াময় পরমাত্মা! তোমার কৃপায় দ্যুলোক, ভূমি, অন্তরিক্ষ, সমুদ্র, জল ও সকল প্রকার অন্ন আমাদের সুখদায়ক হোক। সকল স্থানে আমরা সুখী থেকে তোমার অনন্ত উপকারকে স্মরণ করে যেন তোমার ধ্যানে মগ্ন থাকি। তোমার প্রতি বিমুখ যেন না হই। এভাবেই আমাদের সকলের উপর কৃপা করো, ভগবান! ।।৭।।

     

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top