अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 1
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - प्राणः, अपानः, आयुः
छन्दः - त्रिपाद्गायत्री
सूक्तम् - अभय प्राप्ति सूक्त
2
यथा॒ द्यौश्च॑ पृथि॒वी च॒ न बि॑भी॒तो न रिष्य॑तः। ए॒वा मे॑ प्राण॒ मा बि॑भेः ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । द्यौ: । च॒ । पृ॒थि॒वी । च॒ । न । बि॒भी॒त: । न । रिष्य॑त: । ए॒व । मे॒ । प्रा॒ण॒ । मा । बि॒भे॒: ॥१५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा बिभेः ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । द्यौ: । च । पृथिवी । च । न । बिभीत: । न । रिष्यत: । एव । मे । प्राण । मा । बिभे: ॥१५.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य धर्म के पालन में निर्भय रहे।
पदार्थ
(यथा) जैसे (च) निश्चय करके (द्यौः) आकाश (च) और (पृथिवी) पृथिवी दोनों (न) न (रिष्यतः) दुःख देते हैं और (न) न (बिभीतः) डरते हैं। (एव) ऐसे ही, (मे) मेरे (प्राण) प्राण ! तू (मा बिभेः) मत डर ॥१॥
भावार्थ
यह आकाश और पृथिवी आदि लोक परमेश्वर के नियमपालन से अपने-अपने स्थान और मार्ग में स्थिर रहकर जगत् का उपकार करते हैं, ऐसे ही मनुष्य ईश्वर की आज्ञा मानने से पापों को छोड़कर और सुकर्मों को करके सदा निर्भय और सुखी रहता है ॥१॥
टिप्पणी
१–यथा। येन प्रकारेण। द्यौः। अ० २।१२।६। द्योतन्ते लोका यत्र। आकाशम्। च। निश्चये। समुच्चये। पृथिवी। अ० १।२।१। प्रथ विस्तारे–षिवन्, ङीष्। भूमिः। सत्तास्थानम्। न। निषेधे। बिभीतः। ञिभी भये। दरं त्रासं प्राप्नुतः। रिष्यतः। रिष हिंसायाम्, दिवादिः सकर्मकः। हिनस्तः। आज्ञाभङ्गं कुरुतः–इत्यर्थः। एव। एवम्। तथा। मे। मम। प्राण। प्र+अन् जीवने–अच्, घञ् वा। हे आत्मन्। मा बिभेः। ञिभी भये, लङ्। त्वं शङ्कां मा कार्षीः ॥
विषय
घलोक और पृथिवीलोक
पदार्थ
१. (यथा) = जैसे (द्यौः च पृथिवी च) = युलोक और पृथिवीलोक (न बिभीत:) = भयभीत नहीं होते और अतएव (न रिष्यत:) = हिंसित नहीं होते। (एव) = इसीप्रकार (मे प्राण) = हे मेरे प्राण! तू भी (मा) = मत (विभे:) = डर । २. धुलोक वृष्टि के द्वारा पृथिवी का पोषण करता है और पृथिवी पदार्थों को धुलोक में भेजती है। ये दोनों लोक इसीप्रकार परस्पर सम्बद्ध हैं, जैसे शरीर में 'मस्तिष्क और शरीर'। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है और मस्तिष्क का स्वास्थ्य शरीर को स्वस्थ बनाये रखता है। जैसे एक घर में बच्चों के माता-पिता का परस्पर सम्बन्ध है, उसी प्रकार धुलोक 'पिता' है और पृथिवी माता । मस्तिष्क व शरीर के समन्वय से जीवन उत्तम बनता है। माता-पिता के समन्बय में सन्तान सुन्दर होती है। इसीप्रकार धुलोक व पृथिवी लोक के सम्मिलित होकर कार्य करने पर दुर्भिक्ष आदि का भय नहीं रहता। मिले हुए धुलोक व पृथिवीलोक हिंसित नहीं होते। ३. जिस प्रकार मिले हुए द्युलोक व पृथिवीलोक भयरहित व अहिसित है, इसीप्रकार मेरा प्राण भी निर्भय व अहिंसित हो। भय में ही हिंसा है। भय शरीर को विध्वस्त करता हुआ मस्तिष्क को भी समाप्त कर देता है।
भावार्थ
मेरा प्राण 'धुलोक व पृथिवीलोक' की भाँति निर्भय हो।
भाषार्थ
(यथा) जैसे (द्यौः च, पृथिवी च) द्युलोक और पृथिवी लोक ( न बिभीतः) नहीं डरते, (न रिष्यतः) और नहीं हिंसित होते। ( एव= एवम्) इस प्रकार (मे प्राण) मेरे हे प्राण ! (मा बिभेः) तू भय न कर [और हिंसित न हो।]
टिप्पणी
[द्युलोक और पृथिवीलोक निराधार आकाश में, सततगति से घूम रहे हैं, तो भी पतनाशंका से भयभीत नहीं होते। इसी प्रकार प्रवक्ता निज प्राण को कहता है।]
विषय
अभय की भावना
भावार्थ
यथा जिस प्रकार (द्यौः च) द्यौ और (पृथिवी च) पृथिवी (नः बिभीतः) भय नहीं करते (न रिष्यतः) कभी नष्ट भी नहीं होते (एवा) इसी प्रकार हे (मे) मेरे (प्राण) प्राण ! (मा) मत (बिभेः) कर ।
टिप्पणी
‘एवं मे प्राण मा बिभ एवं प्राण मा रिष’ इति मा० गृ० सु०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। प्राणो देवता। १-६ त्रिपाद् गायत्रम् । षडृचं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
No Fear
Meaning
Just as heaven and earth never fear, nor are they ever hurt, nor destroyed, similarly, O my mind and pranic identity, never fear.
Subject
Prāņas:Vital breathings
Translation
As both the heaven and the earth do not entertain any fear, nor do they suffer any harm, so, O my life-breath, Pranas, may you have no fear.
Translation
As the heaven and earth are not afraid and never they suffer from loss, so my vital breath let not fear.
Translation
As Heaven and Earth are not afraid, and never suffer doss or harm; even so, my spirit, fear not thou.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१–यथा। येन प्रकारेण। द्यौः। अ० २।१२।६। द्योतन्ते लोका यत्र। आकाशम्। च। निश्चये। समुच्चये। पृथिवी। अ० १।२।१। प्रथ विस्तारे–षिवन्, ङीष्। भूमिः। सत्तास्थानम्। न। निषेधे। बिभीतः। ञिभी भये। दरं त्रासं प्राप्नुतः। रिष्यतः। रिष हिंसायाम्, दिवादिः सकर्मकः। हिनस्तः। आज्ञाभङ्गं कुरुतः–इत्यर्थः। एव। एवम्। तथा। मे। मम। प्राण। प्र+अन् जीवने–अच्, घञ् वा। हे आत्मन्। मा बिभेः। ञिभी भये, लङ्। त्वं शङ्कां मा कार्षीः ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(যথা) যেমন (দ্যৌঃ চ, পৃথিবী চ) দ্যুলোক এবং পৃথিবীলোক (ন বিভীতঃ) ভীত হয় না/ভয় করে না, (ন রিষ্যতঃ) এবং হিংসিত হয়না। (এব = এবম্) এইভাবে (মে প্রাণ) আমার হে প্রাণ ! (মা বিভেঃ) তুমি ভীত হয়োনা [এবং হিংসিত হয়োনা।]
टिप्पणी
[দ্যুলোক এবং পৃথিবীলোক নিরাধার আকাশে, সততগতিতে পরিভ্রমণ করছে, তবুও পতনাশংঙ্কা থেকে ভীত হয় না। এইভাবে প্রবক্তা নিজ প্রাণকে বলে।]
मन्त्र विषय
মনুষ্যো ধর্মপালনে নির্ভয়ো ভবেৎ
भाषार्थ
(যথা) যেমন (চ) নিশ্চিতরূপে (দ্যৌঃ) আকাশ (চ) ও (পৃথিবী) পৃথিবী দুই (ন) না (রিষ্যতঃ) দুঃখ দেয় এবং (ন) না (বিভীতঃ) ভীত হয়/ভয় করে। (এব) এভাবেই, (মে) আমার (প্রাণ) প্রাণ ! তুমি (মা বিভেঃ) ভয় পেওনা/আশঙ্কিত হয়োনা॥১॥
भावार्थ
এই আকাশ ও পৃথিবী আদি লোক পরমেশ্বরের নিয়মপালন দ্বারা নিজ-নিজ স্থান ও মার্গে স্থির থেকে জগতের উপকার করে, এভাবেই মনুষ্য ঈশ্বরের আজ্ঞা মেনে পাপ ত্যাগ করে এবং সুকর্ম করে সদা নির্ভয় ও সুখী থাকে ॥১॥
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