अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 1
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - प्राणः, अपानः, आयुः
छन्दः - एदपदासुरीत्रिष्टुप्
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
3
प्राणा॑पानौ मृ॒त्योर्मा॑ पातं॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप्राणा॑पानौ । मृ॒त्यो: । मा॒ । पा॒त॒म् । स्वाहा॑॥१६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
प्राणापानौ मृत्योर्मा पातं स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठप्राणापानौ । मृत्यो: । मा । पातम् । स्वाहा॥१६.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मरक्षा के लिये उपदेश।
पदार्थ
(प्राणापानौ) हे प्राण और अपान ! तुम दोनों (मृत्योः) मृत्यु से (मा) मुझे (पातम्) बचाओ, (स्वाहा) यह सुन्दर वाणी [आशीर्वाद] हो ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, प्राणायाम, पथ्य भोजन आदि से प्राण अर्थात् भीतर जानेवाली श्वास और अपान, अर्थात् बाहिर आनेवाली श्वास की स्वस्थता स्थापित करें और बलवान् रहकर चिरंजीव होवें ॥१॥
टिप्पणी
१–प्राणापानौ। अन जीवने–अच् वा घञ्। प्राणश्च अपानश्च तौ। हे उच्छ्वासनिश्वासौ। हे अन्तर्मुखश्वासबहिर्मुखश्वासौ। मृत्योः। अ० १।३०।३। मृङ्–त्युक्। प्राणत्यागात्। मरणात्। मा। माम्। पातम्। युवां रक्षतम्। स्वाहा। सु+आङ्+ह्वेञ् आह्वाने–डा। वाङ्नाम–निघ० १।११। स्वाहेत्येतत् सु आहेति वा स्वा वागाहेति वा स्वं प्राहेति वा स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा–निरु० ८।२०। सुवाणी। आशीर्वादः। सुदानम् ॥
विषय
दीर्घजीवन
पदार्थ
१. (प्राणापानौ) = हे प्राण और अपान! [प्राक् ऊर्ध्वमुखः अनिति चेष्टत इति प्राणः, अप आवमुखः अनिति इति अपान:] आप दोनों (मा) = मुझे (मृत्यो:) = मृत्यु से (पातम्) = बचाओ। 'अपान' दोषों को दूर करता है और प्राण शक्ति का सञ्चार करता है। इसप्रकार प्राणापान की क्रिया से हम मृत्यु का शिकार नहीं होते। २. (स्वाहा) = 'स्वा वाग् आह' [तै० २.१.२.३]। मेरी वाणी सदा यही प्रार्थना करनेवाली हो। मैं सदा अपने को इसीप्रकार आत्मप्रेरणा दूँ कि प्राणापान कि शक्ति के वर्धन से मैं मृत्यु को अपने से दूर रक्षंगा।
भावार्थ
प्राणापान की शक्ति के वर्धन से हम दीर्घजीवी बनें। ये प्राण और अपान हमें मृत्यु व रोगों से बचाते हैं।
भाषार्थ
(प्राणापानौ) हे प्राण और अपान ! (मा) मेरी (पातम्) रक्षा करो (मृत्योः) मृत्यु से, (स्वाहा) सु + आह, यह ठीक कहा है।
टिप्पणी
[प्राण-अपान= श्वास-प्रश्वास; या श्वासवायु और अपान वायु, गुदावायु। इन दोनों के स्वस्थ रहते मृत्यु नहीं होती। स्वाहा= "स्वाहेत्येतत् सु आहेति वा" (निरुक्त ८।३।२१)।]
विषय
रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (प्राणापानौ) प्राण और अपान ! तुम दोनों (मा) मुझ को (मृत्योः) शरीर के छूट जाने के भय से (पातं) बचाओ, (स्वाहा) यह उत्तम प्रार्थना है।
टिप्पणी
स्वाहा - स्वाहेत्येतत् सु आहेति वा, स्वा वागाहेति वा, स्वं प्राह इति वा, स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा । (नि० ८। २०) स्वैव ते वाग् ‘अब्रवीत् सोऽजुहोत् स्वाहा इति तत् स्वाहाकारस्य जन्मा [तै० ब्रा० २। १। २। ३।]
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। प्राणापानौ आयुश्च देवताः। १, ३ एकपदा आसुरी त्रिष्टुप्। एकपदा आसुरी उष्णिक्। ४, ५ द्विपदा आसुरी गायत्री। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prayer for Divine Protection
Meaning
May the vital energies of prana and apana protect and promote me with life and resistance against death. This is the voice of the soul.
Subject
Prāņa-apāna, Dyāvā-prthvī, Sūrya-Agni-Visvambhara
Translation
O in-breath and out-breath, may both of you protect me from death. Svāhā. (hail)
Translation
Let the inhaling and exhaling vital breath guard me from death. What a beautiful utterance.
Translation
Guard me from death, Inhaling and Exhaling! This is well said.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१–प्राणापानौ। अन जीवने–अच् वा घञ्। प्राणश्च अपानश्च तौ। हे उच्छ्वासनिश्वासौ। हे अन्तर्मुखश्वासबहिर्मुखश्वासौ। मृत्योः। अ० १।३०।३। मृङ्–त्युक्। प्राणत्यागात्। मरणात्। मा। माम्। पातम्। युवां रक्षतम्। स्वाहा। सु+आङ्+ह्वेञ् आह्वाने–डा। वाङ्नाम–निघ० १।११। स्वाहेत्येतत् सु आहेति वा स्वा वागाहेति वा स्वं प्राहेति वा स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा–निरु० ८।२०। सुवाणी। आशीर्वादः। सुदानम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(প্রাণাপানৌ) হে প্রাণ এবং অপান ! (মা) আমার (পাতম্) রক্ষা করো (মৃত্যোঃ) মৃত্যু থেকে, (স্বাহা) সু+আহ, এটা ঠিক বলেছে।
टिप्पणी
[প্রাণ-অপান=শ্বাস-প্রশ্বাস; বা শ্বাসবায়ু এবং অপান বায়ু, গুদাবায়ু। এই দুটি সুস্থ থাকলে মৃত্যু হয় না। স্বাহা="স্বাহেত্যে তৎ সু আহেতি বা" (নিরুক্ত ৮/৩/২১)।]
मन्त्र विषय
আত্মরক্ষায়া উপদেশঃ
भाषार्थ
(প্রাণাপানৌ) হে প্রাণ ও অপান ! তোমরা (মৃত্যোঃ) মৃত্যু থেকে (মা) আমাকে (পাতম্) রক্ষা করো, (স্বাহা) এই সুন্দর বাণী [আশীর্বাদ] হোক ॥১॥
भावार्थ
মনুষ্য, ব্রহ্মচর্য, ব্যায়াম, প্রাণায়াম, পথ্য ভোজন আদি দ্বারা প্রাণ অর্থাৎ ভেতরে গমনকারী শ্বাস ও অপান, অর্থাৎ বাইরে আগত শ্বাসের সুস্থতা স্থাপিত করুক এবং বলবান্ হয়ে চিরঞ্জীব হোক॥১॥
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