अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
ऋषिः - अथर्वा
देवता - चन्द्रः
छन्दः - एकावसानानिचृद्विषमात्रिपाद्गायत्री
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
1
चन्द्र॒ यत्ते॒ तप॒स्तेन॒ तं प्रति॑ तप॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥
स्वर सहित पद पाठचन्द्र॑ । यत् । ते॒ । तप॑: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । त॒प॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥२२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
चन्द्र यत्ते तपस्तेन तं प्रति तप यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥
स्वर रहित पद पाठचन्द्र । यत् । ते । तप: । तेन । तम् । प्रति । तप । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥२२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कुप्रयोग के त्याग के लिये उपदेश।
पदार्थ
(चन्द्र) हे चन्द्र [चन्द्रमण्डल !] (यत्) जो (ते) तेरा (तपः) प्रताप है, (तेन) उससे (तम् प्रति) उस (दोष) पर (तप) प्रतापी हो, (यः) जो (अस्मान्) हमसे (द्वेष्टि) अप्रिय करे, (यम्) जिससे (वयम्) हम (द्विष्मः) अप्रिय करें ॥१॥
भावार्थ
शीतलस्वभाव चन्द्रमा स्वभावतः अपनी किरणों से अनिष्टों को हटाकर अन्न आदि ओषधियों को पुष्ट करके प्राणियों को आनन्द देता है। परन्तु उसी चन्द्रमा के कुप्रयोग से मनुष्य पागल [Lunatic] और घोड़े आदि पशु रोगी हो जाते हैं। इस कुप्रयोग का त्याग करके सुप्रयोग से आनन्द प्राप्त करना चाहिये ॥१॥
टिप्पणी
१–चन्द्र। अ० १।३।४। हे आह्लादक चन्द्रलोक ! ॥
विषय
५ भुरिग्विषमात्रिपाद्गायत्री।
पदार्थ
१, २, ३, ४, ५ एवं मन्त्र संख्या के केवल भावार्थ ही है |
भावार्थ
सदा आह्वादमय प्रभु [चन्द्र] अपने तप आदि के द्वारा द्वेष-भावना को दूर करे। राष्ट्र में राजा भी चन्द्र है। इसे अपने आह्लादमय स्वभाव से प्रजा के स्वभाव में भी परिवर्तन करना है। समाज में एक ज्ञानी प्रचारक को भी ज्ञान-प्रसार के साथ अपनी प्रसादमयी मनोवृत्ति से सभी को द्वेष से रहित होने की प्रेरणा देनी है।
भाषार्थ
(चन्द्र) हे चांद ! (यत् ते तपः) जो तेरा ताप है (तेन) उस द्वारा (तम् प्रति) उसे (तप) तपा, (य:) जो द्वेष्टा (अस्मान्) हमारे साथ द्वेष करता है, अतः (यम्, वयम् द्विष्मः) जिसके प्रति हम प्रेम नहीं करते ।
टिप्पणी
[चन्द्र द्वारा चन्द्रमा अर्थात् परमेश्वर भी अभिप्रेत है (यजु० ३२।१) । परमेश्वरार्थ मुख्य है । वह निज आह्वादक तथा प्रदीप्त स्वरूप द्वारा आध्यात्मिक देवासुर संग्राम में आसुर विचारों तथा कर्मों को तपा देता है, संतप्त कर देता है। चदि आह्वादने दीप्ति च (भ्वादि)। प्राकृतिक चांद तो रात्रीकाल में अन्धकार को ही तपाता है, संतप्त करता है, हटाता है । आगामी मन्त्रों में भी परमेश्वरार्थं ही मुख्य है।]
विषय
द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।
भावार्थ
हे (चन्द्र) समस्त जगत् के आह्लादक परमात्मन् ! शेष सब पूर्ववत् ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिश्छन्दश्च पूर्ववत् । चन्द्रो देवता । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Chandra Devata
Meaning
O moon, the heat that is yours, with that cleanse off that which hates us and that we hate to suffer.
Subject
Chandra-Moon
Translation
O moon, whatever tormenting force (tapas) you have, with that may you torment him, who hates us and whom we hate.
Translation
Let the moon...... etc. like the pervious Hymn. XIX.
Translation
O God, the Gladdener of the universe like the Moon, with Thy power of penitence, let him repent for his misdeed, who hates us, or whom we do not love!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१–चन्द्र। अ० १।३।४। हे आह्लादक चन्द्रलोक ! ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(চন্দ্র) হে চাঁদ ! (যৎ) যে (তে তপঃ) তোমার তাপ রয়েছে (তেন) তা দ্বারা (তম্ প্রতি) তাঁকে (তপ) তুমি তপ্ত করো (যঃ অস্মান) যে আমাদের সাথে দ্বেষ করে, এবং (যম্ বয়ম্ দ্বিষ্মঃ) এইজন্য যার প্রতি আমরা প্রেম করিনা।
टिप्पणी
[চন্দ্র দ্বারা চন্দ্রমা অর্থাৎ পরমেশ্বরও অভিপ্রেত হয়েছে (যজু০ ৩২।১)। পরমেশ্বরার্থ হল মুখ্য। তিনি নিজ আহ্লাদক এবং প্রদীপ্ত স্বরূপ দ্বারা আধ্যাত্মিক দেবাসুর সংগ্রামে আসুরিক বিচার এবং কর্মকে তপ্ত করেন, সন্তপ্ত করে দেন। চদি আহ্লাদনে দীপ্তৌ চ (ভ্বাদিঃ)। প্রাকৃতিক চাঁদ তো রাত্রীকালে অন্ধকারকে তপ্ত করে, সন্তপ্ত করে, অপসারিত করে। আগামী মন্ত্রেও পরমেশ্বরার্থই মুখ্য।]
मन्त्र विषय
কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(চন্দ্র) হে চন্দ্র [চন্দ্রমণ্ডল !] (যৎ) যে (তে) তোমার (তপঃ) প্রতাপ আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্ প্রতি) সেই (দোষের) ওপর (তপ) প্রতাপী হও, ((যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি ॥১॥
भावार्थ
শীতল স্বভাবযুক্ত চন্দ্র স্বভাবতঃ নিজের কিরণের দ্বারা অনিষ্ট দূর করে অন্ন আদি ঔষধি পুষ্ট করে প্রাণীদের আনন্দ প্রদান করে। কিন্তু সেই চন্দ্রের কুপ্রয়োগ দ্বারা মনুষ্য পাগল [Lunatic] ও ঘোড়া আদি পশু রোগী হয়ে যায়। এই কুপ্রয়োগের ত্যাগ করে সুপ্রয়োগ দ্বারা আনন্দ প্রাপ্ত করা উচিৎ ॥১॥
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