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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१०
    1

    उदु॒ त्ये मधु॑मत्तमा॒ गिर॒ स्तोमा॑स ईरते। स॑त्रा॒जितो॑ धन॒सा अक्षि॑तोतयो वाज॒यन्तो॒ रथा॑ इव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ऊं॒ इति॑ । त्ये । मधु॑मत्ऽतमा: । गिर॑: । स्तोमा॑स: । ई॒र॒ते॒ ॥ स॒त्रा॒जित॑: । ध॒न॒ऽसा: । अक्षि॑तऽऊतय: । वा॒ज॒ऽयन्त॑: । रथा॑:ऽइव ॥१०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदु त्ये मधुमत्तमा गिर स्तोमास ईरते। सत्राजितो धनसा अक्षितोतयो वाजयन्तो रथा इव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । ऊं इति । त्ये । मधुमत्ऽतमा: । गिर: । स्तोमास: । ईरते ॥ सत्राजित: । धनऽसा: । अक्षितऽऊतय: । वाजऽयन्त: । रथा:ऽइव ॥१०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्ये) वे (मधुमत्तमाः) अतिमधुर (स्तोमासः) स्तोत्र (उ) और (गिरः) वाणियाँ (उत् ईरते) ऊँची जाती हैं। (इव) जैसे (सत्राजितः) सत्य से जीतनेवाले, (धनसाः) धन देनेवाले, (अक्षितोतयः) अक्षय रक्षा करनेवाले, (वाजयन्तः) बल प्रकट करते हुए (रथाः) रथ [आगे बढ़ते हैं] ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे शूर वीरों के रथ रणक्षेत्र में विजय पाने के लिये उमङ्ग से चलते हैं, वैसे ही मनुष्य दोषों और दुष्टों को वश में करने के लिये परमात्मा की स्तुति को बड़े आनन्द से किया करें ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-८।३।१, १६, साम० उ० ६।१।६ और आगे हैं-अ० २०।९।१, २ तथा म० १ साम० पू० ३।६।९ में भी है ॥ १−(उत्) ऊर्ध्वम् (उ) चार्थे (त्ये) ते (मधुमत्तमाः) अतिशयेन मधुराः (गिरः) वाण्यः (स्तोमासः) स्तोत्राणि (ईरते) गच्छन्ति (सत्राजितः) सत्रा सत्यनाम-निघ० ३।१०। सत्रा सत्येन जेतारः (धनसाः) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। षण संभक्तौ-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। इत्यात्वम्। धनानां संभक्तारः। धनप्रदाः (अक्षितोतयः) अक्षीणरक्षणाः (वाजयन्तः) वाज-क्यच्, शतृ। वाजं बलमिच्छन्तः (रथाः) युद्धयानानि (इव) यथा ॥

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    विषय

    स्तवन+ज्ञान

    पदार्थ

    १. (उ) = निश्चय से (त्ये) = वे (मधुमत्तमाः) = जीवन को अतिशयेन मधुर बनानेवाली (स्तोमास:) = स्तुति-समूह (उदीरते) = उद्गत होते हैं। इसी प्रकार (गिर:) = ज्ञान की वाणियों उच्चरित होती हैं। ये स्तुति-वाणियों व ज्ञान की वाणियाँ हमारे जीवनों को अतिशयेन मधुर बनाती हैं। २. ये स्तोम (सत्राजित:) = [सह एब] एक साथ ही शत्रुओं को जीतनेवाले हैं। (धनसा:) = धनों को प्रदान करनेवाले हैं। (अक्षित ऊतयः) = अक्षीण रक्षणोंवाले हैं। (वाजयन्त:) = ये हमें शक्तिशाली बनानेवाले हैं और (रथाः इव) = ये स्तोम जीवन-यात्रा की पूर्ति के लिए रथ के समान हैं।

    भावार्थ

    हम प्रभु-स्तवन व ज्ञान के द्वारा जीवन को मधुर, विजयी, ऐश्वर्यसम्पन्न, सुरक्षित व शकिशाली बनाएँ। ये स्तवन व ज्ञान की वाणियाँ हमारे जीवन में रथ का काम देंगी- हमें लक्ष्य स्थान पर पहुँचाएंगी।

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    विषय

    ईश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्ये) वे (मधुमत्तमाः) अतिमधुर (स्तोमासः) स्तोत्र (उ) और (गिरः) वाणियाँ (उत् ईरते) ऊँची जाती हैं। (इव) जैसे (सत्राजितः) सत्य से जीतनेवाले, (धनसाः) धन देनेवाले, (अक्षितोतयः) अक्षय रक्षा करनेवाले, (वाजयन्तः) बल प्रकट करते हुए (रथाः) रथ [आगे बढ़ते हैं] ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे शूर वीरों के रथ रणक्षेत्र में विजय पाने के लिये उमङ्ग से चलते हैं, वैसे ही मनुष्य दोषों और दुष्टों को वश में करने के लिये परमात्मा की स्तुति को बड़े आनन्द से किया करें ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-८।३।१, १६, साम० उ० ६।१।६ और आगे हैं-अ० २०।५९।१, २ तथा म० १ साम० पू० ३।६।९ में भी है ॥ १−(उत्) ऊर्ध्वम् (उ) चार्थे (त्ये) ते (मधुमत्तमाः) अतिशयेन मधुराः (गिरः) वाण्यः (स्तोमासः) स्तोत्राणि (ईरते) गच्छन्ति (सत्राजितः) सत्रा सत्यनाम-निघ० ३।१०। सत्रा सत्येन जेतारः (धनसाः) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। षण संभक्तौ-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। इत्यात्वम्। धनानां संभक्तारः। धनप्रदाः (अक्षितोतयः) अक्षीणरक्षणाः (वाजयन्तः) वाज-क्यच्, शतृ। वाजं बलमिच्छन्तः (रथाः) युद्धयानानि (इव) यथा ॥

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    भाषार्थ

    (उ) निश्चय से (त्ये) वे (मधुमत्तमाः) अत्यन्त मधुर (गिरः) स्तुतिवाणियाँ, तथा (स्तोमासः) सामगान, (उद् ईरते) हम उपासकों के हृदयों से उत्त्थित हो रहे हैं। ये स्तुतिवाणियाँ और सामगान (सत्राजितः) विक्षेपवृत्तियों पर वास्तव में विजय पाते हैं, (धनसाः) आध्यात्मिक विभूतियाँ प्रदान करते हैं, (अक्षितोतयः) इनके द्वारा पाई रक्षाएँ क्षीण नहीं होतीं, और ये (रथाः इव) रथों के सदृश (वाजयन्तः) उद्देश्य की ओर वेग प्रदान करते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    The sweetest of honeyed songs of praise and vibrations of homage rise to you flying like victorious, unviolated and invincible chariots laden with gold heading for higher destinations.

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    Translation

    These sweetest praiseworthy songs of ours ascent to Him (God) like ever-conquering chariots which gain wealth and give unfailing protections.

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    Translation

    These sweetest praiseworthy songs of ours ascemt to Him (God) like ever-conquering chariots which gain wealth and give unfailing protections.

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    Translation

    Just as the warrious in strong and stout military vehicles or aeroplanes, equipped with invincible means of defence, disturbuting money all along and conquering all together in a single attack, rush headlong on their assault against the foe, so do these sweetest songs of praises, gush out of our hearts.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-८।३।१, १६, साम० उ० ६।१।६ और आगे हैं-अ० २०।९।१, २ तथा म० १ साम० पू० ३।६।९ में भी है ॥ १−(उत्) ऊर्ध्वम् (उ) चार्थे (त्ये) ते (मधुमत्तमाः) अतिशयेन मधुराः (गिरः) वाण्यः (स्तोमासः) स्तोत्राणि (ईरते) गच्छन्ति (सत्राजितः) सत्रा सत्यनाम-निघ० ३।१०। सत्रा सत्येन जेतारः (धनसाः) जनसनखनक्रमगमो विट्। पा० ३।२।६७। षण संभक्तौ-विट्। विड्वनोरनुनासिकस्यात्। पा० ६।४।४१। इत्यात्वम्। धनानां संभक्तारः। धनप्रदाः (अक्षितोतयः) अक्षीणरक्षणाः (वाजयन्तः) वाज-क्यच्, शतृ। वाजं बलमिच्छन्तः (रथाः) युद्धयानानि (इव) यथा ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ঈশ্বরোপাসনোদেপশঃ

    भाषार्थ

    (ত্যে) সেই (মধুমত্তমাঃ) সুমধুর (স্তোমাসঃ) স্তোত্র (উ) এবং (গিরঃ) বাণীসমূহ (উৎ ঈরতে) উচ্চতায় থাকে। (ইব) যেমন (সত্রাজিতঃ) সত্য দ্বারা বিজয়ী, (ধনসাঃ) ধন প্রদাতা, (অক্ষিতোতয়ঃ) অক্ষয় রক্ষাকারী (বাজয়ন্তঃ) বল প্রকট করে (রথাঃ) রথ [অগ্রসর হয়] ॥১॥

    भावार्थ

    যেমন বীরদের রথ রণক্ষেত্রে বিজয় প্রাপ্তির জন্য অগ্রসর হয়, তেমনই মনুষ্য দোষ এবং দুষ্টদের বশবর্তী করার জন্য পরমাত্মার স্তুতি আনন্দপূর্বক করুক ॥১॥ মন্ত্র ১, ২ ঋগ্বেদে আছে-৮।৩।১, ১৬, সাম০ উ০ ৬।১।৬ এবং আছে-অ০ ২০।৯।১, ২ তথা ম০ ১ সাম০ পূ০ ৩।৬।৯ এ ॥

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    भाषार्थ

    (উ) নিশ্চিতরূপে (ত্যে) সেই (মধুমত্তমাঃ) অত্যন্ত মধুর (গিরঃ) স্তুতিবাণী, তথা (স্তোমাসঃ) সামগান, (উদ্ ঈরতে) আমাদের [উপাসকদের] হৃদয় থেকে উত্থিত হচ্ছে। এই স্তুতিবাণী এবং সামগান (সত্রাজিতঃ) বিক্ষেপবৃত্তির ওপর বাস্তবে বিজয় পায়/প্রাপ্ত করে, (ধনসাঃ) আধ্যাত্মিক বিভূতি প্রদান করে, (অক্ষিতোতয়ঃ) এর দ্বারা প্রাপ্ত রক্ষা ক্ষীণ হয় না, এবং (রথাঃ ইব) রথের সদৃশ (বাজয়ন্তঃ) উদ্দেশ্যের দিকে বেগ প্রদান করে।

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