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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 100 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 100/ मन्त्र 1
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-१००
    2

    अधा॒ हीन्द्र॑ गिर्वण॒ उप॑ त्वा॒ कामा॑न्म॒हः स॑सृ॒ज्महे॑। उ॒देव॒ यन्त॑ उ॒दभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । हि । इ॒न्द्र॒ । गि॒र्व॒ण॒: । उप॑ । त्वा॒ । कामा॑न् । म॒ह: । स॒सृ॒ज्महे॑ ॥ उ॒दाऽइ॑व । यन्त॑: । उ॒दऽभि॑: ॥१००.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधा हीन्द्र गिर्वण उप त्वा कामान्महः ससृज्महे। उदेव यन्त उदभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । हि । इन्द्र । गिर्वण: । उप । त्वा । कामान् । मह: । ससृज्महे ॥ उदाऽइव । यन्त: । उदऽभि: ॥१००.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 100; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (गिर्वणः) हे स्तुतियों से सेवनीय (इन्द्र) इन्द्र ! [महाप्रतापी राजन्] (अद्य हि) अब ही (त्वा) तुझे (महः) अपनी बड़ी (कामान्) कामनाओं को, (उदा) जल [जल की बाढ़] के पीछे (उदभिः) दूसरी जलों की बाढ़ों के साथ (यन्तः इव) चलते हुए पुरुषों के समान हमने (उप) आदर से (ससृज्महे) समर्पण किया है ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे नदी की बाढ़ अति वेग से लगातार चली आती हो और गामों और प्राणी आदि को वहाये ले जाती हो, उसे देख लोग घबड़ाकर भागते हैं, वैसे ही प्रजागण दुष्टों से बचने के लिये राजा की शरण शीघ्र लेवें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८। [सायणभाष्य ८७]। ७-९, सामवेद-उ० १।१। तृच २३ और मन्त्र १ साम० पू० ।२।८ ॥ १−(अद्य) सम्प्रति (हि) (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (गिर्वणः) स्तुतिभिः सेवनीय (उप) पूजायाम् (त्वा) त्वाम् (कामान्) कमनीयान् मनोरथान् (महः) महतः। विशालान्, (ससृज्महे) वय समर्पितवन्तः (उदा) उदकेन। जलप्रवाहेण (इव) यथा (यन्तः) गच्छन्तः पुरुषाः (उदभिः) उदकैः। अन्यजलप्रवाहैः ॥

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    विषय

    महान् कामनाएँ

    पदार्थ

    १.हे (गिर्वणः) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा उपासनीय (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (अधा हि) = अब निश्चय से (त्वा उप) = आपके समीप ही (महः कामान्) = इन महान् कामनाओं को (ससृज्महे) = अपने में उत्पन्न करवाते हैं। प्रभु की उपासना-उस महान् प्रभु का सम्पर्क हममें महान् ही कामनाओं को जन्म देता है। २. (इव) = जैसे (उदा यन्त:) = पानी में से जाते हुए पुरुष (उदभिः) = जलों से अपने को संसृष्ट करनेवाले होते है।

    भावार्थ

    जैसे नदी से जानेवाले पुरुष जलों से संसृष्ट होते हैं, उसी प्रकार महान् प्रभु के सम्पर्कवाले पुरुष महान् कामनाओं से संसृष्ट हो पाते हैं। इनके अन्दर तुच्छ कामनाएँ उत्पन्न ही नहीं होती।

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    भाषार्थ

    (गिर्वण) हे वेदवाणियों द्वारा भजनीय (इन्द्र) परमेश्वर! (अधा) अब (हि) निश्चय से (महः कामान्) हम अपनी महा-कामनाओं का (उप ससृज्महे त्वा) संसर्ग, आपके साथ, कर देते हैं, (इव) जैसे कि (उदभिः) जलों के साथ (उदा=उदानि=उदकानि) जल (यन्त) मिल जाते और एकरस हो जाते हैं। अर्थात् हम अपनी कामनाओं का संसर्ग संसार के साथ न कर, आपके साथ करते हैं।

    टिप्पणी

    [महः=मह (क्विप्), द्वितीया बहुवचन।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    And O lord lover of song and celebration, lndra, we send up vaulting voices of adoration and prayer to you like wave on waves of the flood rolling upon the sea.

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    Translation

    O Almighty God, we send our great wishes before you. O All-praised one, coming like floods followed by floods.

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    Translation

    O Almighty God, we send our great wishes before you. O All-praised one, coming like floods followed by floods.

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    Translation

    O Invincible Lord of Courage and Daring, just as waters of the ocean are increased by the waters of the rivers, similarly do the Vedic songs add to Thy Glory, which is ever on the increase itself.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।९८। [सायणभाष्य ८७]। ७-९, सामवेद-उ० १।१। तृच २३ और मन्त्र १ साम० पू० ।२।८ ॥ १−(अद्य) सम्प्रति (हि) (इन्द्र) महाप्रतापिन् राजन् (गिर्वणः) स्तुतिभिः सेवनीय (उप) पूजायाम् (त्वा) त्वाम् (कामान्) कमनीयान् मनोरथान् (महः) महतः। विशालान्, (ससृज्महे) वय समर्पितवन्तः (उदा) उदकेन। जलप्रवाहेण (इव) यथा (यन्तः) गच्छन्तः पुरुषाः (उदभिः) उदकैः। अन्यजलप्रवाहैः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (গির্বণঃ) হে স্তুতি দ্বারা সেবনীয়/প্রশংসনীয় (ইন্দ্র) ইন্দ্র! [মহাপ্রতাপী রাজা] (অদ্য হি) এখনই (ত্বা) তোমাকে (মহঃ) নিজেদের মহান (কামান্) কামনাসমূহকে, (উদা) জলের [জলপ্রবাহের] পেছনে (উদভিঃ) অন্যান্য জলপ্রবাহের সাথে (যন্তঃ ইব) চলমান পুরুষদের সমান আমরা (উপ) আদরপূর্বক (সসৃজ্মহে) সমর্পণ করি ॥১॥

    भावार्थ

    নদীর জলপ্রবাহ যেমন অবিরাম প্রবল বেগে প্রবাহিত হয়ে গ্রাম ও পশুপাখি ইত্যাদিকে সঙ্গে নিয়ে যায়, তা দেখে মানুষ আতঙ্কিত হয়ে পলায়ন করে, তেমনই দুষ্টদের হাত থেকে রক্ষার জন্য প্রজাগণ শীঘ্রই রাজার শরণাপন্ন হোক ॥১॥ এই তৃচ ঋগ্বেদে আছে-৮।৯৮। [সায়ণভাষ্য ৮৭]। ৭-৯, সামবেদ-উ০ ১।১। তৃচ ২৩ এবং মন্ত্র ১ সাম০ পূ০ ।২।৮ ॥

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    भाषार्थ

    (গির্বণ) হে বেদবাণীর দ্বারা ভজনীয় (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! (অধা) এখন (হি) নিশ্চিতরূপে (মহঃ কামান্) আমরা নিজের মহা-কামনার (উপ সসৃজ্মহে ত্বা) সংসর্গ, আপনার সাথে, করি, (ইব) যেমন (উদভিঃ) জলের সাথে (উদা=উদানি=উদকানি) জল (যন্ত) মিলিত হয় এবং একরস হয়ে যায়। অর্থাৎ আমরা নিজেদের কামনার সংসর্গ সংসারের সাথে না করে, আপনার সাথে করি।

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