अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 103/ मन्त्र 1
अ॒ग्निमी॑डि॒ष्वाव॑से॒ गाथा॑भिः शी॒रशो॑चिषम्। अ॒ग्निं रा॒ये पु॑रुमीढ श्रु॒तं नरो॒ऽग्निं सु॑दी॒तये॑ छ॒र्दिः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निम् । ई॒लि॒ष्व॒ । अव॑से । गाथा॑भि: । शी॒रऽशो॑चिषम् ॥ अ॒ग्निम् । रा॒ये । पु॒रु॒ऽमी॒ल्ह॒ । श्रु॒तम् । नर॑: । अ॒ग्निम् । सु॒ऽदी॒तये॑ । छ॒र्दि: ॥१०३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निमीडिष्वावसे गाथाभिः शीरशोचिषम्। अग्निं राये पुरुमीढ श्रुतं नरोऽग्निं सुदीतये छर्दिः ॥
स्वर रहित पद पाठअग्निम् । ईलिष्व । अवसे । गाथाभि: । शीरऽशोचिषम् ॥ अग्निम् । राये । पुरुऽमील्ह । श्रुतम् । नर: । अग्निम् । सुऽदीतये । छर्दि: ॥१०३.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(पुरुमीढ) हे बहुत ज्ञान से सींचे हुए मनुष्य ! (नरः) नर [नेता] होकर तू (गाथाभिः) गाने योग्य क्रियाओं के साथ (अवसे) अपनी रक्षा के लिये (शीरशोचिषम्) बड़े प्रकाशवाले (अग्निम्) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमात्मा] को, (राये) धन के लिये (श्रुतम्) विख्यात (अग्निम्) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमात्मा] को और (सुदीतये) सुन्दर प्रकाश के लिये (छर्दिः) घर सदृश (अग्निम्) अग्नि [प्रकाशस्वरूप परमात्मा] को (ईडिष्व) खोज ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य परमात्मा की भक्ति से अपनी रक्षा के लिये धन और विद्या को बढ़ावें ॥१॥
टिप्पणी
यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।७१ [सायणभाष्य ६०]।१४, सामवेद-पू० १।।६ ॥ १−(अग्निम्) प्रकाशस्वरूपं परमात्मानम् (ईडिष्व) अ० २०।१०२।१। अधीष्व। अन्विच्छ (अवसे) रक्षणाय (गाथाभिः) गानयोग्यक्रियाभिः (शीरशोचिषम्) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। शीङ् स्वप्ने-रक्। अर्चिशुचि० उ० २।१०८। शुच शोके-इसि। महाप्रकाशयुक्तम् (अग्निम्) (राये) धनाय (पुरुमीढ) मिह सेचने-क्त। बहुज्ञानेन मीढ सिक्त वर्धित मनुष्य (श्रुतम्) विख्यातम् (नरः) नेता सन् (अग्निम्) (सुदीतये) पलोपः। सुदीप्तये। शोभनप्रकाशाय (छर्दिः) अर्चिशुचिहुसृपिछादिच्छर्दिभ्य इसिः। उ० २।१०८। छर्द सन्दीपने-इसि। गृहम्-निघ० ३।४ ॥
विषय
सुदीतये छर्दिः
पदार्थ
१. (अग्निम्) = उस अग्रणी प्रभु को (अवसे) = रक्षण के लिए (गाथाभि:) = स्तुतिवाणियों के द्वारा (ईडिष्य) = उपासित कर। हे (पुरुमीढ) = अपने में शक्ति का खूब ही सेचन करनेवाले उपासक! तू (राये) = ऐश्वर्यप्राप्ति के लिए (शीरशोचिषम्) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाली ज्ञानदीसिवाले (श्रुतम्) = उस प्रसिद्ध (अग्निम्) = अग्रणी प्रभु को उपासित कर। २. हे (नर) = मनुष्यो! (अग्नि:) = ये अग्रणी प्रभु (सुदीतये) = उत्तम दीप्तिवाले नर के लिए खूब ज्ञान प्राप्त करनेवाले मनुष्य के लिए (छर्दिः) = शरणस्थान व गृह हैं। इस सुदीति को प्रभु शरण देते हैं।
भावार्थ
हम स्तुतिवाणियों से प्रभु का अर्चन करें। प्रभु ही हमें ऐश्वर्य प्राप्त कराते हैं। प्रभु ही ज्ञानदीप्ति प्राप्त करनेवालों के लिए शरणस्थान होते हैं।
भाषार्थ
हे उपासक! तू (शीरशोचिषम्) सोई हुई ज्योति के रूप में सब में रम रहे, (अग्निम्) प्रकाशमय प्रभु की (गाथाभिः) सामगानों द्वारा (ईळिष्व=ईलिष्व) स्तुतियाँ किया कर। (पुरुमीळ्ह=पुरुमील्ह) हे पालक और परिपूर्ण प्रभु के स्तोता! तू (राये) आध्यात्मिक-धन की प्राप्ति के लिए (अग्निम्) जगन्नेता प्रभु की स्तुतियाँ किया कर, (श्रुतम्) जो कि वेदों में विश्रुत है। (नरः) हे नर-नारीरूप उपासको! तुम सब (अग्निम्) सर्वाग्रणी प्रभु की स्तुतियाँ किया करो, जो कि (सुदीतये) क्लेशों के क्षय करने के लिए (छर्दिः) छत्तवाले घर के सदृश है। [छर्दिः=गृहनाम (निघं০ ३.४)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Agni Devata
Meaning
Pray to Agni of bright flames with songs and praise for protection and progress. O generous scholar, study and serve Agni for wealth, famous among people, Agni who provides home and happiness for the man of brilliance.
Translation
O men of plentiful wealth, you for security with praises describe the powers of fire which has enhanced luminosity: You describe the qualities of fire for prosperity. O people, you take into use the fire known to all for illuminating the house.
Translation
O men of plentiful wealth, you for security with praises describe the powers of fire which has enhanced luminosity. You describe the qualities of fire for prosperity. O people, you take into use the fire known to all for illuminating the house.
Translation
O Splendorous God, king, commander, leader, learned person, or light, come to us with various lights spiritual or material. We accept Thee as our benefactor. Let the "well-spread (vast heaven and earth, full of all means of sacrifice and offerings, be a fit seat for Thee, the Greatest synthesizer or Analyser.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र ऋग्वेद में है-८।७१ [सायणभाष्य ६०]।१४, सामवेद-पू० १।।६ ॥ १−(अग्निम्) प्रकाशस्वरूपं परमात्मानम् (ईडिष्व) अ० २०।१०२।१। अधीष्व। अन्विच्छ (अवसे) रक्षणाय (गाथाभिः) गानयोग्यक्रियाभिः (शीरशोचिषम्) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। शीङ् स्वप्ने-रक्। अर्चिशुचि० उ० २।१०८। शुच शोके-इसि। महाप्रकाशयुक्तम् (अग्निम्) (राये) धनाय (पुरुमीढ) मिह सेचने-क्त। बहुज्ञानेन मीढ सिक्त वर्धित मनुष्य (श्रुतम्) विख्यातम् (नरः) नेता सन् (अग्निम्) (सुदीतये) पलोपः। सुदीप्तये। शोभनप्रकाशाय (छर्दिः) अर्चिशुचिहुसृपिछादिच्छर्दिभ्य इसिः। उ० २।१०८। छर्द सन्दीपने-इसि। गृहम्-निघ० ३।४ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(পুরুমীঢ) হে বহু জ্ঞানসিক্ত মানুষ! (নরঃ) নর [নেতা] হয়ে তুমি (গাথাভিঃ) গানের/প্রশংসাযোগ্য কর্মসমূহের সহিত (অবসে) নিজের সুরক্ষার জন্য (শীরশোচিষম্) মহা প্রকাশমান (অগ্নিম্) অগ্নিকে [প্রকাশস্বরূপ পরমাত্মাকে], (রায়ে) ধনের জন্য (শ্রুতম্) বিখ্যাত (অগ্নিম্) অগ্নিকে [প্রকাশস্বরূপ পরমাত্মাকে] এবং (সুদীতয়ে) শোভিত প্রকাশের জন্য (ছর্দিঃ) ঘর সদৃশ (অগ্নিম্) অগ্নিকে [প্রকাশস্বরূপ পরমাত্মাকে] (ঈডিষ্ব) অন্বেষণ করো॥১॥
भावार्थ
মনুষ্য পরমাত্মার ভক্তি দ্বারা নিজের রক্ষার জন্য ধন এবং বিদ্যার বৃদ্ধি করুক ॥১॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে-৮।৭১ [সায়ণভাষ্য ৬০]।১৪, সামবেদ-পূ০ ১॥৬ ॥
भाषार्थ
হে উপাসক! তুমি (শীরশোচিষম্) সুপ্ত জ্যোতি রূপে সকলের মধ্যে রমনকারী, (অগ্নিম্) প্রকাশময় প্রভুর (গাথাভিঃ) সামগান দ্বারা (ঈল়িষ্ব=ঈলিষ্ব) স্তুতি করো। (পুরুমীল়্হ=পুরুমীল্হ) হে পালক এবং পরিপূর্ণ প্রভুর স্তোতা! তুমি (রায়ে) আধ্যাত্মিক-ধন প্রাপ্তির জন্য (অগ্নিম্) জগন্নেতা প্রভুর স্তুতি করো, (শ্রুতম্) যা বেদে বিশ্রুত। (নরঃ) হে নর-নারীরূপ উপাসকগণ! তোমরা সবাই (অগ্নিম্) সর্বাগ্রণী প্রভুর স্তুতি করো, যিনি (সুদীতয়ে) ক্লেশ ক্ষয় করার জন্য (ছর্দিঃ) আচ্ছাদিত ঘরের সদৃশ। [ছর্দিঃ=গৃহনাম (নিঘং০ ৩.৪)।]
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