अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 1
सम॑स्य म॒न्यवे॒ विशो॒ विश्वा॑ नमन्त कृ॒ष्टयः॑। स॑मु॒द्राये॑व॒ सिन्ध॑वः ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । अ॒स्य॒ । म॒न्यवे॑ । विश॑: । विश्वा॑: । न॒म॒न्त॒ । कृ॒ष्टय॑: ॥ स॒मु॒द्राय॑ऽइव । सिन्ध॑व: ॥१०७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
समस्य मन्यवे विशो विश्वा नमन्त कृष्टयः। समुद्रायेव सिन्धवः ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । अस्य । मन्यवे । विश: । विश्वा: । नमन्त । कृष्टय: ॥ समुद्रायऽइव । सिन्धव: ॥१०७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
१-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(विश्वाः) सब (विशः) प्रजाएँ और (कृष्टयः) मनुष्य (अस्य) इस [परमेश्वर] के (मन्यवे) तेज वा क्रोध के आगे (सम्) ठीक-ठीक (नमन्त) नमे हैं, (समुद्राय इव) जैसे समुद्र के लिये (सिन्धवः) नदियाँ [नमती हैं] ॥१॥
भावार्थ
जैसे नदियाँ समुद्र की ओर झुकती हैं, वैसे ही सब सृष्टि के पदार्थ और सब मनुष्य परमात्मा की आज्ञा को अवश्य मानते हैं ॥१॥
टिप्पणी
मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-८।६।४-६; सामवेद-उ० ८।१। तृच १३; मन्त्र १ साम० पू० २।।३ ॥ १−(सम्) सम्यक् (अस्य) परमेश्वरस्य (मन्यवे) मन्युर्मन्यतेर्दीप्तिकर्मणः क्रोधकर्मणो वा-निरु० १०।२९। तेजसे। क्रोधाय (विशः) प्रजाः (विश्वाः) (नमन्त) नमतेर्लङ्। नमन्ति स्म (कृष्टयः) मनुष्याः (समुद्राय) (इव) यथा (सिन्धवः) स्यन्दनशीला नद्यः ॥
विषय
प्रभु का विनम्न प्रिय शिष्य
पदार्थ
१. (अस्य मन्यवे) = इस प्रभु के ज्ञान के लिए (विश्वा:) = सब (विश:) = संसार में प्रवेश करनेवाली (कृष्टय:) = श्रमशील प्रजाएँ (सन्नमन्त) = इसप्रकार नतमस्तक होती हैं, (इव) = जिस प्रकार (समुद्राय) = समुद्र के लिए (सिन्धवः) = नदियाँ । २. नदियाँ निम्नमार्ग से जाती हुई समुद्र को प्राप्त करती हैं। इसी प्रकार प्रजाएँ नम्रता को धारण करती हुई प्रभु से दिये जानेवाले ज्ञान को प्राप्त करती हैं। ज्ञान-प्राप्ति के लिए नम्रता ही तो मुख्य साधन है 'तद् विद्धि प्रणिपातेन'।
भावार्थ
हम नम्रता को धारण करते हुए प्रभु से दिये जानेवाले वेदज्ञान को प्राप्त करें।
भाषार्थ
(अस्य) इस परमेश्वर के (मन्यवे) मन्यु के प्रति, (विश्वाः विशः) सब नागरिक प्रजाएँ, तथा (कृ ष्टयः) कृषिकार प्रजाएँ (सम् नमन्त) स्वभावतः नत हो रही हैं, झुक रही हैं, (इव) जैसे कि (सिन्धवः) बहती नदियाँ (समुद्राय) समुद्र के प्रति झुकी रहती हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Agni Devata
Meaning
The people, in fact the entire humanity, bow in homage and surrender to this lord of passion, power and splendour just as rivers flow on down and join into the sea.
Translation
All the subjects and people bow down to His wrath as rivers bend them to sea.
Translation
All the subjects and people bow down to His wrath as rivers bend them to sea.
Translation
Just as the skin of the dear is spread and rolled together (at the will of the user) similarly when the mighty Lord sets in motion and again rolls up both the earth and the heavens (at His Will). His Energy and Power shines forth just then.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-८।६।४-६; सामवेद-उ० ८।१। तृच १३; मन्त्र १ साम० पू० २।।३ ॥ १−(सम्) सम्यक् (अस्य) परमेश्वरस्य (मन्यवे) मन्युर्मन्यतेर्दीप्तिकर्मणः क्रोधकर्मणो वा-निरु० १०।२९। तेजसे। क्रोधाय (विशः) प्रजाः (विश्वाः) (नमन्त) नमतेर्लङ्। नमन्ति स्म (कृष्टयः) मनुष्याः (समुद्राय) (इव) यथा (सिन्धवः) स्यन्दनशीला नद्यः ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
১-১২ পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(বিশ্বাঃ) সমস্ত (বিশঃ) প্রজাগণ এবং (কৃষ্টয়ঃ) মনুষ্য (অস্য) এই [পরমেশ্বরের] (মন্যবে) তেজ বা ক্রোধের সামনে (সম্) সম্যক (নমন্ত) প্রণাম করে/নত হয়, (সমুদ্রায় ইব) যেমন সমুদ্রের জন্য (সিন্ধবঃ) নদীসমূহ [নমন করে] ॥১॥
भावार्थ
যেমন নদীসমূহ সমুদ্রের দিকে ঝুঁকে, তেমনই সমগ্র সৃষ্টির পদার্থ এবং সমস্ত মনুষ্য পরমাত্মার আজ্ঞাকে অবশ্যই মান্য করে ॥১॥ মন্ত্র ১-৩ ঋগ্বেদে আছে-৮।৬।৪-৬; সামবেদ-উ০ ৮।১। তৃচ ১৩; মন্ত্র ১ সাম০ পূ০ ২॥৩ ॥
भाषार्थ
(অস্য) এই পরমেশ্বরের (মন্যবে) মন্যু-এর প্রতি, (বিশ্বাঃ বিশঃ) সকর নাগরিক প্রজাগণ, তথা (কৃ ষ্টয়ঃ) কৃষিক প্রজাগণ (সম্ নমন্ত) স্বভাবতঃ নত হচ্ছে, (ইব) যেমন (সিন্ধবঃ) প্রবাহমান নদী-সমূহ (সমুদ্রায়) সমুদ্রের প্রতি নত থাকে।
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